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दिक् साधन ज्योतिषशास्त्र के मूलाधार पक्षों में से एक है। ऋषियों ने किसी भी वस्तु के परिज्ञान के लिये दिक् साधन की व्यवस्था प्रतिपादित किया है। ज्योतिष में प्रयोग के तीन पक्ष हैं- दिक् , देश एवं काल। इनके ज्ञानाभाव में ज्योतिषशास्त्र द्वारा सम्यक् रूप से किसी भी तथ्य को जानपाना सर्वथा दुष्कर है।  
 
दिक् साधन ज्योतिषशास्त्र के मूलाधार पक्षों में से एक है। ऋषियों ने किसी भी वस्तु के परिज्ञान के लिये दिक् साधन की व्यवस्था प्रतिपादित किया है। ज्योतिष में प्रयोग के तीन पक्ष हैं- दिक् , देश एवं काल। इनके ज्ञानाभाव में ज्योतिषशास्त्र द्वारा सम्यक् रूप से किसी भी तथ्य को जानपाना सर्वथा दुष्कर है।  
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ज्योतिष के त्रिप्रश्नों (दिक् देश एवं काल) में से एक है- दिक् । सामान्यतया दिक् शब्द का अर्थ होता है- दिशा। दिग् व्यवस्था द्वारा ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत एवं इस पृथ्वी पर किसी की स्थिति का निर्धारण किया जा सकता है। सामान्यतया दिक् या दिशा के बारे में आम लोग केवल इतना जानते हैं कि दिशायें केवल चार होती हैं- पूर्व
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ज्योतिष के त्रिप्रश्नों (दिक् देश एवं काल) में से एक है- दिक् । सामान्यतया दिक् शब्द का अर्थ होता है- दिशा। दिग् व्यवस्था द्वारा ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत एवं इस पृथ्वी पर किसी की स्थिति का निर्धारण किया जा सकता है। सामान्यतया दिक् या दिशा के बारे में आम लोग केवल इतना जानते हैं कि दिशायें केवल चार होती हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण, परन्तु ऐसा नहीं है।
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ज्योतिष शास्त्र में दिशाओं की संख्या १० कही गयी है। पूर्व, अग्नि कोण, दक्षिण, नैरृत्य कोण, पश्चिम, वायव्य कोण, उत्तर, ऐशान्य कोण, ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व एवं अधः दिशा। इनमें प्रधान पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चार दिशा, चार कोण एवं ऊर्ध्व तथा अधः दिशाओं को विदिशा के नाम से भी जाना जाता है।
    
दिक् साधन की विधि
 
दिक् साधन की विधि
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== काल की अवधारणा ==
 
== काल की अवधारणा ==
यास्कानुसार काल वह शक्ति है जो सबको गति देती है। संसार में गति अथवा कर्म का मूलाधार काल ही है क्योंकि कोई भी गति या कर्म किसी काल में ही किया जाता है, चाहे वह सूक्ष्म हो या व्यापक हो। वस्तुतः ज्योतिषशास्त्र काल विधायक शास्त्र है, इसका मुख्य आधार ही कालगणना है। जन्मकुण्डली निर्माण से लेकर मुहूर्त शोधन व समष्टि गत शुभाशुभ का विचार तक इसी काल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं स्थूल दोनों रूपोंद्वारा होता है अर्थात् सर्वत्र काल गणना ही आधार है।
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यास्कानुसार काल वह शक्ति है जो सबको गति देती है। संसार में गति अथवा कर्म का मूलाधार काल ही है क्योंकि कोई भी गति या कर्म किसी काल में ही किया जाता है, चाहे वह सूक्ष्म हो या व्यापक हो। वस्तुतः ज्योतिषशास्त्र काल विधायक शास्त्र है, इसका मुख्य आधार ही कालगणना है। जन्मकुण्डली निर्माण से लेकर मुहूर्त शोधन व समष्टि गत शुभाशुभ का विचार तक इसी काल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म एवं स्थूल दोनों रूपों द्वारा होता है अर्थात् सर्वत्र काल गणना ही आधार है।
    
=== परिचय ===
 
=== परिचय ===
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