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| == संहिता स्कन्ध का महत्व == | | == संहिता स्कन्ध का महत्व == |
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− | | + | आचार्य वराहमिहिर द्वारा विरचित बृहत्संहिता एक अद्वितीय एवं विलक्षण संहिता ग्रन्थ है। उसमें दैवज्ञ प्रशंसा के सन्दर्भ में निर्देश किया है कि जो दैवज्ञ संहिता शास्त्र को सम्यक् रूप से जानता है, वहीं दैवचिन्तक होता है-<blockquote> |
− | | + | संहितापारगश्च दैवचिन्तको भवति।</blockquote> |
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| + | जो दैवज्ञ गणित व होरा शास्त्र के साथ संहिता शास्त्र में भी पारंगत होता है उसकी संवत्सर संज्ञा दी गई। संवत्सर का अत्यधिक महत्त्व प्रतिपादित किया गया। सांवत्सर किसी देश, प्रदेश, जिले या नगर का शुभाशुभ फलकथन करने में समर्थ होता है, अतएव कहा गया कि अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को साम्वत्सर रहित देश में निवास नहीं करना चहिये। जैसा कि आचार्य का कथन है- <blockquote> |
| + | नासांवत्सरिके देशे वस्तव्यं भूतिमिच्छता। चक्षुर्भूतो हि यत्रैष पापं तत्र न विद्यते॥(बृह० सं० १/११)</blockquote>सांवत्सर का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए आचार्य वराहमिहिर ने वर्णन किया- जैसे दीप्तिरहित रात्रि अन्धकार युक्त होता है, जैसे सूर्यरहित आकाश अन्धकारयुक्त होता है उसी प्रकार दैवज्ञ विहीन राजा अन्धकार में ही भ्रमण करता हैं- <blockquote>अप्रदीपा यथा रात्रिः अनादित्यं यथा नभः। तथा असांवत्सरो राजा भ्रम्यत्यन्ध इवाध्वनि॥ (बृह० सं० २/८)</blockquote>जो राजा विजय की कामना करता है उसे सिद्धान्त संहिता होरा रूप त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिषशास्त्र में पारंगत सांवत्सर की अभ्यर्चना कर अपने राज्य में स्थान देना चाहिये। |
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| == संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य == | | == संहिता स्कन्ध के प्रमुख ग्रन्थ एवं आचार्य == |
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| == संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == | | == संहिता स्कन्ध के उपस्कन्ध == |
− | शकुन
| + | संहिता स्कन्ध अपने आप मेम एक अत्यन्त विशाल कल्पवृक्ष के समान है, जिसमें प्रकृति एवं खगोलीय तादात्म्य के आधार पर विविध देशों, प्राणियों और वनस्पतियों में होने वाले भेद और फल का बडे ही उदात्त भाव से वर्णन किया गया है। प्राणिविज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, कृषिविज्ञान, वृष्टि एवं ऋतुविज्ञान, पर्यावरणविज्ञान, जलविज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगर्भविज्ञान भूगोल और मनोविज्ञान के साथ-साथ सामुद्रिकशास्त्र, रत्नविज्ञान, धर्मशास्त्र, कर्मकाण्ड का विज्ञानिक पक्ष, स्वरोदयशास्त्र, मुहूर्तशास्त्र, स्वप्नशास्त्र के सभी विषयों का अंतर्भाव सरलता से इस स्कंध में होता है।<ref>श्याम देव मिश्र, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80812 ज्योतिष शास्त्र के अंग], प्रमुख स्कन्ध-संहिता, सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० २०६)।</ref> यदि इन सभी विषयों को स्थूलरूप से वर्गीकृत करें तो संहिता के कुछ उपस्कंध समझ में आते हैं जिन पर भारतीय ज्योतिष के इतिहास में ग्रन्थ मिलते हैं- |
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− | स्वप्न
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− | सामुद्रिकशास्त्र | + | '''संहिता स्कन्ध-''' शकुन, स्वप्न, सामुद्रिकशास्त्र, वास्तु, मुहूर्त, अर्घ और वृष्टि। इन उपस्कन्धों के भी विषय की दृष्टि से और विभाग हो सकते हैं, जिससे कि संहिता में शोध को नई दिशा मिल सके। |
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− | वास्तु
| + | '''शकुन''' |
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− | मुहूर्त | + | प्राकृतिक संकेत या जानवरों एवं पक्षियों की चेष्टाएं और ध्वनियां अंगस्फुरण (अंगों का फ़डकना) तथा पल्लीपतन आदि मुख्यतया शकुन के विचारणीय विषय हैं। वसन्तराज का 'वसन्तराजशकुनम् ' शकुनशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। शुभ और अशुभ इन दोनों प्रकार के शकुनों के फल इस ग्रन्थ में वर्णित हैं। बृहत्संहिता में उत्पातों भूकम्प आदि के लक्षण में एवं कृषि की सूचना में पक्षियों की विशेष चेष्टाओं का वर्णन है, जिनके आधार पर उत्पातों, भूकंप आदि का पूर्वानुमान प्राचीन समय में सांहितिक आचार्य किया करते थे। कालक्रम से इसका लोप हो गया। किन्तु विडम्बना यह है कि पाश्चात्य देशों एवं जापान आदि में पशु-पक्षियों की इन चेष्टाओं पर गंभीर अध्ययन और शोध हो रहे हैं जिनके आधार पर प्राकृतिक-उत्पात आदि के पूर्वानुमान में वैज्ञानिक सफल भी हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त बृहत्संहिता में एवं वास्तु के ग्रन्थों में भी वास्तु-निर्माण के पूर्व सूत्रपात शल्योद्धार के समय शकुन का विचार किया गया है। मुहूर्त-ग्रन्थों यथा- मुहूर्तचिंतामणि, मुहूर्तमार्तण्ड, रत्नमाला आदि में यात्रा-मुहूर्त के वर्णन के प्रसंग में भी शकुनों का विचार है। इन शकुनों परे भारत में भी शोध की संभावनायें अनंत हैं। |
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− | अर्घ
| + | '''स्वप्न''' |
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− | वृष्टि
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| == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == | | == रामायण में संहिता स्कन्ध के अंश == |
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| व्यक्तिविषयक | | व्यक्तिविषयक |
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| + | वृष्टि एवं आपदा |
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| + | विभिन चार फल विचार |
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| + | वास्तु विचार |
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |