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| *आर्यभटका आर्यभटीयम् महत्त्वपूर्ण गणितसिद्धान्त है। इन्होंने पृथ्वीको स्थिर न मानकर चल बताया। आर्यभट प्रथमगणितज्ञ हुये और आर्यभटीयम् प्रथम पौरुष ग्रन्थ है। | | *आर्यभटका आर्यभटीयम् महत्त्वपूर्ण गणितसिद्धान्त है। इन्होंने पृथ्वीको स्थिर न मानकर चल बताया। आर्यभट प्रथमगणितज्ञ हुये और आर्यभटीयम् प्रथम पौरुष ग्रन्थ है। |
| *आचार्य ब्रह्मगुप्तका ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त भी अत्यन्त प्रसिद्ध है। | | *आचार्य ब्रह्मगुप्तका ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त भी अत्यन्त प्रसिद्ध है। |
− | प्रायः आर्यभट्ट एवं ब्रह्मगुप्तके सिद्धान्तोंको आधार बनाकर सिद्धान्त ज्योतिषके क्षेत्रमें पर्याप्त ग्रन्थ रचना हुई। पाटी(अंक) गणितमें लीलावती(भास्कराचार्य) एवं बीजगणितमें चापीयत्रिकोणगणितम् (नीलाम्बरदैवज्ञ) प्रमुख हैं। | + | प्रायः आर्यभट्ट एवं ब्रह्मगुप्तके सिद्धान्तोंको आधार बनाकर सिद्धान्त ज्योतिषके क्षेत्रमें पर्याप्त ग्रन्थ रचना हुई। पाटी(अंक) गणितमें लीलावती(भास्कराचार्य) एवं बीजगणितमें चापीयत्रिकोणगणितम् (नीलाम्बरदैवज्ञ) प्रमुख हैं।<ref name=":0">प्रवेश व्यास, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80786 ज्योतिष शास्त्र का परिचय], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ०३४)।</ref> |
| == परिभाषा == | | == परिभाषा == |
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− | जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। | + | जिस स्कन्ध में सभी प्रकार की गणितीय प्रक्रिया के साथ उपपत्तियों का समावेश है, वह सिद्धान्त स्कन्ध है। ग्रह, नक्षत्र एवं तारों की स्थिति आदि निरूपण में गणितशास्त्र के मूल सिद्धान्तों का उद्भव एवं विकास हुआ। त्रुट्यादि से प्रलयकाल पर्यन्त की गई काल गणना जिस स्कन्ध में हो उसे सिद्धान्त स्कन्ध कहते हैं। |
| == सिद्धान्त ज्योतिष के भेद == | | == सिद्धान्त ज्योतिष के भेद == |
− | सिद्धान्त ज्योतिष के प्रमुख तीन भेद होते हैं- प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण। | + | सिद्धान्त स्कन्धको गणित स्कन्धके नामसे भी जाना जाता है। सूक्ष्म-विभाजन की दृष्टिसे गणित स्कन्धके भी पुनः तीन विभाग माने जाते हैं जो कि - प्रथम सिद्धान्त, द्वितीय तन्त्र और तृतीय करण रूप में प्रतिष्ठित हैं।<ref>प्रो० श्रीचन्द्रमौलीजी उपाध्याय, ज्योतिषशास्त्रका सामान्य परिचय, कल्याण- ज्योतिषतत्त्वांक, सन् २०१४, गोरखपुर गीताप्रेस (पृ० १८४)।</ref> |
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| * '''1.''' '''सिद्धान्त-''' सिद्धान्त ग्रन्थों में सृष्ट्यादि से अथवा कल्पादि से ग्रहगणित की जाती है- | | * '''1.''' '''सिद्धान्त-''' सिद्धान्त ग्रन्थों में सृष्ट्यादि से अथवा कल्पादि से ग्रहगणित की जाती है- |
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| == सिद्धान्त स्कन्ध के प्रसिद्ध आचार्य व ग्रन्थ == | | == सिद्धान्त स्कन्ध के प्रसिद्ध आचार्य व ग्रन्थ == |
− | आचार्य लगध से प्रारम्भ कर आचार्य सुधाकर पर्यन्त जो मूल सिद्धान्त ग्रन्थ के प्रणेता हुये हैं वह इस प्रकार से हैं-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: normal;| | + | आचार्य लगध से प्रारम्भ कर आचार्य सुधाकर पर्यन्त जो मूल सिद्धान्त ग्रन्थ के प्रणेता हुये हैं वह इस प्रकार से हैं-<ref name=":1">प्रवेश व्यास, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80797 ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक एवम् आचार्य], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ०३११)।</ref>{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: normal;| |
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| लगधाचार्य - वेदांग ज्योतिष | | लगधाचार्य - वेदांग ज्योतिष |
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| == सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख विषय == | | == सिद्धान्त स्कन्ध के प्रमुख विषय == |
− | सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत परिगणित किये जाने वाले विषयों में निम्न प्रमुख है- गणित के तीन भेद, पाटीगणित, बीजगणित और व्यक्ताव्यक्तगणित, अहर्गण आनयन, भूपरिधि साधन, देशान्तर ज्ञान, उदयान्तर साधन, चरकाल ज्ञान, अयनांश विचार, ग्रहण विचार, भूगोल वर्णन, मध्यमाधिकार, ग्रहस्पष्टीकरण दिग्देशकालसंज्ञक त्रिप्रश्न, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुति, पातविचार, कालमान, चन्द्रश्रृङ्गोन्नति इत्यादि । सिद्धान्त ज्योतिष के विविध ग्रन्थ व ग्रन्थकारों के वर्णन के संदर्भ में भी विविध विषयों का निरूपण किया गया। सिद्धान्तज्योतिष अन्तर्गत समागत विषयों के सन्दर्भ में बृहत्संहिता ग्रन्थ में आचार्यवराहमिहिर ने दैवज्ञलक्षणवर्णन के सन्दर्भ में विस्तार से वर्णन किया कि एक दैवज्ञ को किन किन विषयों का ज्ञाता होना चाहिये, इस वर्णन के सन्दर्भ में सिद्धान्त ज्योतिष से संबंधित निम्न विषयों का उल्लेख किया। | + | सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत परिगणित किये जाने वाले विषयों में निम्न प्रमुख है- गणित के तीन भेद, पाटीगणित, बीजगणित और व्यक्ताव्यक्तगणित, अहर्गण आनयन, भूपरिधि साधन, देशान्तर ज्ञान, उदयान्तर साधन, चरकाल ज्ञान, अयनांश विचार, ग्रहण विचार, भूगोल वर्णन, मध्यमाधिकार, ग्रहस्पष्टीकरण दिग्देशकालसंज्ञक त्रिप्रश्न, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुति, पातविचार, कालमान, चन्द्रश्रृङ्गोन्नति इत्यादि । सिद्धान्त ज्योतिष के विविध ग्रन्थ व ग्रन्थकारों के वर्णन के संदर्भ में भी विविध विषयों का निरूपण किया गया। सिद्धान्तज्योतिष अन्तर्गत समागत विषयों के सन्दर्भ में बृहत्संहिता ग्रन्थ में आचार्यवराहमिहिर ने दैवज्ञलक्षणवर्णन के सन्दर्भ में विस्तार से वर्णन किया कि एक दैवज्ञ को किन किन विषयों का ज्ञाता होना चाहिये, इस वर्णन के सन्दर्भ में सिद्धान्त ज्योतिष से संबंधित निम्न विषयों का उल्लेख किया।<ref name=":0" /> |
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| == सिद्धान्त स्कन्ध का महत्त्व == | | == सिद्धान्त स्कन्ध का महत्त्व == |
− | गणित, कालक्रिया और गोल का सामंजस्य स्थापित करना ही सिद्धान्त ज्योतिष की मुख्य प्रवृत्ति है। ये तीनों विषय आपस में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को रखते है। अर्थात् ये तीनों की युगपत् (एक साथ) स्थिति हो सकती है तथा अलग अलग इनका अस्तित्व नहीं है। काल गणित तथा गोल पर आश्रित है। ग्रहों की स्थिति गति आदि विषय केवल काल साधन में ही नहीं बल्कि ज्योतिष के सिद्धान्त के अतिरिक्त स्कन्धों के लिये भी महत्वपूर्ण है। फलादेश हेतु स्पष्टग्रहों की आवश्यकता होती है तथा ग्रहों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं का ज्ञान किया जाता है। | + | गणित, कालक्रिया और गोल का सामंजस्य स्थापित करना ही सिद्धान्त ज्योतिष की मुख्य प्रवृत्ति है। ये तीनों विषय आपस में अन्योन्याश्रय सम्बन्ध को रखते है। अर्थात् ये तीनों की युगपत् (एक साथ) स्थिति हो सकती है तथा अलग अलग इनका अस्तित्व नहीं है। काल गणित तथा गोल पर आश्रित है। ग्रहों की स्थिति गति आदि विषय केवल काल साधन में ही नहीं बल्कि ज्योतिष के सिद्धान्त के अतिरिक्त स्कन्धों के लिये भी महत्वपूर्ण है। फलादेश हेतु स्पष्टग्रहों की आवश्यकता होती है तथा ग्रहों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं का ज्ञान किया जाता है।<ref name=":1" /> |
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |