| सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत परिगणित किये जाने वाले विषयों में निम्न प्रमुख है- गणित के तीन भेद, पाटीगणित, बीजगणित और व्यक्ताव्यक्तगणित, अहर्गण आनयन, भूपरिधि साधन, देशान्तर ज्ञान, उदयान्तर साधन, चरकाल ज्ञान, अयनांश विचार, ग्रहण विचार, भूगोल वर्णन, मध्यमाधिकार, ग्रहस्पष्टीकरण दिग्देशकालसंज्ञक त्रिप्रश्न, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुति, पातविचार, कालमान, चन्द्रश्रृङ्गोन्नति इत्यादि । सिद्धान्त ज्योतिष के विविध ग्रन्थ व ग्रन्थकारों के वर्णन के संदर्भ में भी विविध विषयों का निरूपण किया गया। सिद्धान्तज्योतिष अन्तर्गत समागत विषयों के सन्दर्भ में बृहत्संहिता ग्रन्थ में आचार्यवराहमिहिर ने दैवज्ञलक्षणवर्णन के सन्दर्भ में विस्तार से वर्णन किया कि एक दैवज्ञ को किन किन विषयों का ज्ञाता होना चाहिये, इस वर्णन के सन्दर्भ में सिद्धान्त ज्योतिष से संबंधित निम्न विषयों का उल्लेख किया। | | सिद्धान्त ज्योतिष के अन्तर्गत परिगणित किये जाने वाले विषयों में निम्न प्रमुख है- गणित के तीन भेद, पाटीगणित, बीजगणित और व्यक्ताव्यक्तगणित, अहर्गण आनयन, भूपरिधि साधन, देशान्तर ज्ञान, उदयान्तर साधन, चरकाल ज्ञान, अयनांश विचार, ग्रहण विचार, भूगोल वर्णन, मध्यमाधिकार, ग्रहस्पष्टीकरण दिग्देशकालसंज्ञक त्रिप्रश्न, छेद्यकाधिकार, ग्रहयुत्यधिकार, भग्रहयुति, पातविचार, कालमान, चन्द्रश्रृङ्गोन्नति इत्यादि । सिद्धान्त ज्योतिष के विविध ग्रन्थ व ग्रन्थकारों के वर्णन के संदर्भ में भी विविध विषयों का निरूपण किया गया। सिद्धान्तज्योतिष अन्तर्गत समागत विषयों के सन्दर्भ में बृहत्संहिता ग्रन्थ में आचार्यवराहमिहिर ने दैवज्ञलक्षणवर्णन के सन्दर्भ में विस्तार से वर्णन किया कि एक दैवज्ञ को किन किन विषयों का ज्ञाता होना चाहिये, इस वर्णन के सन्दर्भ में सिद्धान्त ज्योतिष से संबंधित निम्न विषयों का उल्लेख किया। |