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| यदि मनुष्य पापपूर्ण जीवन व्यतीत करता है तो उसे उसका गलत परिणाम प्राप्त होता है एवं गलत कर्म का गलत परिणाम भुगतना पडता है। इसलिये महाभारता के शान्तिपर्वमें कहा गया है-<blockquote>पापकर्म कृतं किञ्चिद्यदि तस्मिन्न दृश्यते। नृपते तस्य पुत्रेषु पौत्रेष्वपि च नप्तृषु॥</blockquote>शान्तिपर्व में भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं कि- किसी आदमी को उसके पाप कर्मों का फल उस समय मिलता हुआ नहीं दिखता है तो वह उसे ही नहीं बल्कि उसके पौत्रों एवं प्रपौत्रों तक को भोगना पडता है। | | यदि मनुष्य पापपूर्ण जीवन व्यतीत करता है तो उसे उसका गलत परिणाम प्राप्त होता है एवं गलत कर्म का गलत परिणाम भुगतना पडता है। इसलिये महाभारता के शान्तिपर्वमें कहा गया है-<blockquote>पापकर्म कृतं किञ्चिद्यदि तस्मिन्न दृश्यते। नृपते तस्य पुत्रेषु पौत्रेष्वपि च नप्तृषु॥</blockquote>शान्तिपर्व में भीष्म युधिष्ठिर से कहते हैं कि- किसी आदमी को उसके पाप कर्मों का फल उस समय मिलता हुआ नहीं दिखता है तो वह उसे ही नहीं बल्कि उसके पौत्रों एवं प्रपौत्रों तक को भोगना पडता है। |
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− | === शास्त्रों में वर्णित पापकर्म एवं पुण्यकर्म ===
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− | '''आत्महत्या-''' अभिमान से, क्रोधसे, स्नेहसे, भय आदि से स्त्री या पुरुष फाँसी लगाकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनकी शुद्धि नहीं होती है। क्योंकि आत्महत्या करना पाप कहा गया है।
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− | '''गर्भपात-''' ब्रह्महत्या का पाप बहुत बडा पाप माना गया है किन्तु गर्भपात करवाना इससे भी बडा पाप है। महर्षि का कहना है जो पाप ब्रह्महत्या से लगता है उससे दोगुना पाप गर्भपात से लगता है। ब्रह्महत्या से लगने वाले पाप का तो निराकरण है किन्तु गर्भपात रूपी महापाप का कोई प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त नहीं है।<ref>माधुरी तोमर, भारतीय धर्मशास्त्रमें प्रतिपादित पाप पुण्य की अवधारणा तथा वर्तमान नैतिक मूल्यों की स्थापना में उसका योगदान, सन् २०१९, राजस्थान विश्वविद्यालय( शोध गंगा), अध्याय-२,(पृ०७९)।</ref>
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− | '''सुरापान-''' शास्त्रों में सुरापान को द्यूत के समान पाप माना गया है। यह सुरापान मधु से बनती है। सुरा वह मादक पदार्थ है जिसके पीने से व्यक्ति पौरुषहीन हो जाता है, जिसके कारण व्यक्ति पापकर्म करता है।
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− | '''स्तेय-''' एक व्यक्ति दूसरे की संपत्ति के लोभ एवं उसके लेने से चोर होता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में क्यों न हो, स्तेय है। जब कोई व्यक्ति गुप्त या प्रकट रूप से दिन या रातमें किसी को सम्पत्ति से वंचित करता है, वह चोरी कहलाती है।
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− | '''परस्त्री गमन-''' शास्त्रकारों ने कहा है कि परस्त्री से सम्बन्ध नहीं रखना चाहिये। जब कोई व्यक्ति परस्त्री से सम्बन्ध स्थापित करता है तो वह व्यक्ति पापी(अपराधी) हो जाता है, ऐसे व्यक्ति का साथ हित चाहने वालों को छोन देना चाहिये।
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| == पुण्य == | | == पुण्य == |
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| === पाप कर्म एवं तत्त्व === | | === पाप कर्म एवं तत्त्व === |
− | कर्म के दो प्रकार होते हैं। शुभ एवं अशुभ ये पूर्व कह दिया गया है। अशुभ कर्म को पाप कर्म कहा गया है। अशुभ कर्म वे हैं जो आत्मा का पतन करने वाले हैं। इन्हें ही पाप कर्म कहा जाता है। जिस कार्य को करने से किसी का अकारण बुरा हो वह पापकर्म कहलाता है। | + | कर्म के दो प्रकार होते हैं। शुभ एवं अशुभ ये पूर्व कह दिया गया है। अशुभ कर्म को पाप कर्म कहा गया है। अशुभ कर्म वे हैं जो आत्मा का पतन करने वाले हैं। इन्हें ही पाप कर्म कहा जाता है। जिस कार्य को करने से किसी का अकारण बुरा हो वह पापकर्म कहलाता है। पापतत्व वह है कि जिसके द्वारा आत्मा का पतन हो, आत्मगुणों का ह्रास हो, हनन हो, आत्मा की अशुद्धि बढे ऐसे परिणामों को पाप तत्व कहा जाता है। पापतत्व में वृद्धि होने से भौतिक उपलब्धियों का ह्रास होता है। शास्त्रों में वर्णित पापकर्म कुछ पाप कर्मों का निरूपण इस प्रकार है- |
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− | पापतत्व वह है कि जिसके द्वारा आत्मा का पतन हो, आत्मगुणों का ह्रास हो, हनन हो, आत्मा की अशुद्धि बढे ऐसे परिणामों को पाप तत्व कहा जाता है। पापतत्व में वृद्धि होने से भौतिक उपलब्धियों का ह्रास होता है।
| + | '''आत्महत्या-''' अभिमान से, क्रोधसे, स्नेहसे, भय आदि से स्त्री या पुरुष फाँसी लगाकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं, उनकी शुद्धि नहीं होती है। क्योंकि आत्महत्या करना पाप कहा गया है। |
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| + | '''गर्भपात-''' ब्रह्महत्या का पाप बहुत बडा पाप माना गया है किन्तु गर्भपात करवाना इससे भी बडा पाप है। महर्षि का कहना है जो पाप ब्रह्महत्या से लगता है उससे दोगुना पाप गर्भपात से लगता है। ब्रह्महत्या से लगने वाले पाप का तो निराकरण है किन्तु गर्भपात रूपी महापाप का कोई प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त नहीं है।<ref>माधुरी तोमर, भारतीय धर्मशास्त्रमें प्रतिपादित पाप पुण्य की अवधारणा तथा वर्तमान नैतिक मूल्यों की स्थापना में उसका योगदान, सन् २०१९, राजस्थान विश्वविद्यालय( शोध गंगा), अध्याय-२,(पृ०७९)।</ref> |
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| + | '''सुरापान-''' शास्त्रों में सुरापान को द्यूत के समान पाप माना गया है। यह सुरापान मधु से बनती है। सुरा वह मादक पदार्थ है जिसके पीने से व्यक्ति पौरुषहीन हो जाता है, जिसके कारण व्यक्ति पापकर्म करता है। |
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| + | '''स्तेय-''' एक व्यक्ति दूसरे की संपत्ति के लोभ एवं उसके लेने से चोर होता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में क्यों न हो, स्तेय है। जब कोई व्यक्ति गुप्त या प्रकट रूप से दिन या रातमें किसी को सम्पत्ति से वंचित करता है, वह चोरी कहलाती है। |
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| + | '''परस्त्री गमन-''' शास्त्रकारों ने कहा है कि परस्त्री से सम्बन्ध नहीं रखना चाहिये। जब कोई व्यक्ति परस्त्री से सम्बन्ध स्थापित करता है तो वह व्यक्ति पापी(अपराधी) हो जाता है, ऐसे व्यक्ति का साथ हित चाहने वालों को छोन देना चाहिये। |
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| अतः हमें कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिये कि जो कर्म हम करने जा रहे हैं उससे देश, समाज का अथवा किसी का अहित तो नहीं होगा। इस प्रकार विचार पूर्वक कर्म करने से पाप कर्म में प्रवृत्ति नहीं होती है। पाप में प्रवृत्त होने के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं- | | अतः हमें कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिये कि जो कर्म हम करने जा रहे हैं उससे देश, समाज का अथवा किसी का अहित तो नहीं होगा। इस प्रकार विचार पूर्वक कर्म करने से पाप कर्म में प्रवृत्ति नहीं होती है। पाप में प्रवृत्त होने के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं- |