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Line 28: |
| | | |
| == परिचय == | | == परिचय == |
− |
| |
− |
| |
− |
| |
| | | |
| === ग्रह एवं मानव जीवन === | | === ग्रह एवं मानव जीवन === |
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Line 68: |
| == ज्योतिष शास्त्र में सृष्टि विषयक विचार == | | == ज्योतिष शास्त्र में सृष्टि विषयक विचार == |
| ब्रह्माण्ड एवं अन्तरिक्ष से संबंधित प्रश्न मानव मात्र के लिये दुविधा का केन्द्र बने हुये हैं, परन्तु समाधान पूर्वक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस सृष्टि की उत्पत्ति का कारण एकमात्र सूर्य हैं। अंशावतार सूर्य एवं मय के संवाद से स्पष्ट होता है कि समय-समय पर ज्योतिष शास्त्र का उपदेश भगवान् सूर्य द्वारा होता रहा है- <blockquote>श्रणुष्वैकमनाः पूर्वं यदुक्तं ज्ञानमुत्तमम् । युगे युगे महर्षीणां स्वयमेव विवस्वता॥ शास्त्रमाद्यं तदेवेदं यत्पूर्वं प्राह भास्करः। युगानां परि वर्तेत कालभेदोऽत्र केवलः॥(सू० सि० मध्यमाधिकार,८/९) </blockquote>पराशर मुनिने भी संसार की उत्पत्ति का कारण सूर्यको ही माना है।(बृ०पा०हो० ४) | | ब्रह्माण्ड एवं अन्तरिक्ष से संबंधित प्रश्न मानव मात्र के लिये दुविधा का केन्द्र बने हुये हैं, परन्तु समाधान पूर्वक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस सृष्टि की उत्पत्ति का कारण एकमात्र सूर्य हैं। अंशावतार सूर्य एवं मय के संवाद से स्पष्ट होता है कि समय-समय पर ज्योतिष शास्त्र का उपदेश भगवान् सूर्य द्वारा होता रहा है- <blockquote>श्रणुष्वैकमनाः पूर्वं यदुक्तं ज्ञानमुत्तमम् । युगे युगे महर्षीणां स्वयमेव विवस्वता॥ शास्त्रमाद्यं तदेवेदं यत्पूर्वं प्राह भास्करः। युगानां परि वर्तेत कालभेदोऽत्र केवलः॥(सू० सि० मध्यमाधिकार,८/९) </blockquote>पराशर मुनिने भी संसार की उत्पत्ति का कारण सूर्यको ही माना है।(बृ०पा०हो० ४) |
− |
| |
− | ==== भारतीय ज्योतिष एवं पंचांग ====
| |
| | | |
| == (ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों का महत्व) == | | == (ज्योतिषशास्त्र में वृक्षों का महत्व) == |
| भारतभूमि प्रकृति एवं जीवन के प्रति सद्भाव एवं श्रद्धा पर केन्द्रित मानव जीवन का मुख्य केन्द्रबिन्दु रही है। हमारी संस्कृतिमें स्थित स्नेह एवं श्रद्धा ने मानवमात्र में प्रकृति के साथ सहभागिता एवं अंतरंगता का भाव सजा रखा है। हमारे शास्त्रों में मनुष्य की वृक्षों के साथ अंतरंगता एवं वनों पर निर्भरता का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। हमारे मनीषियों ने अपनी गहरी सूझ-बूझ तथा अनुभव के आधार पर मानव जीवन, खगोल पिण्डों तथा पेड-पौधों के बीच के परस्पर संबन्धों का वर्णन किया है। | | भारतभूमि प्रकृति एवं जीवन के प्रति सद्भाव एवं श्रद्धा पर केन्द्रित मानव जीवन का मुख्य केन्द्रबिन्दु रही है। हमारी संस्कृतिमें स्थित स्नेह एवं श्रद्धा ने मानवमात्र में प्रकृति के साथ सहभागिता एवं अंतरंगता का भाव सजा रखा है। हमारे शास्त्रों में मनुष्य की वृक्षों के साथ अंतरंगता एवं वनों पर निर्भरता का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। हमारे मनीषियों ने अपनी गहरी सूझ-बूझ तथा अनुभव के आधार पर मानव जीवन, खगोल पिण्डों तथा पेड-पौधों के बीच के परस्पर संबन्धों का वर्णन किया है। |
| | | |
− | == Yoga in Panchanga (पंचांग में यो) == | + | == (षड् ऋतुएँ) == |
− | | |
− | == [[Karana in Panchanga (पंचांग में करण)]] ==
| |
− | पंचांग के अन्तर्गत करण का पञ्चम स्थान में समावेश होता है। तिथि का आधा भाग करण होता है। करण दो प्रकार के होते हैं। एक स्थिर एवं द्वितीय चलायमान। स्थिर करणों की संख्या ४ तथा चलायमान करणों की संख्या ७ है। इस लेख का मुख्य उद्देश्य करण ज्ञान, करण का मान एवं साधन।
| |
− | | |
− | == परिचय ==
| |
− | भारतवर्ष में पंचांगों का प्रयोग भविष्यज्ञान तथा धर्मशास्त्र विषयक ज्ञान के लिये होता चला आ रहा है। जिसमें लुप्ततिथि में श्राद्ध का निर्णय करने में करण नियामक होता है। अतः करण का धार्मिक तथा अदृश्य महत्व है। श्राद्ध, होलिका दाह, यात्रा और अन्यान्य शुभ कर्मों एवं संस्कारों में करण नियन्त्रण ही शुभत्व को स्थिर करता है। तिथि चौबीस घण्टे की स्थिति को बतलाती है
| |
− | | |
− | == षड् ऋतु ==
| |
| ऋतु | | ऋतु |
| | | |
Line 145: |
Line 132: |
| === शकुनस्कन्ध === | | === शकुनस्कन्ध === |
| | | |
| + | == (अंग्रेजी केलेंडर) == |
| + | केलेंडर एक प्रकार की अंग्रेजी कालदर्शक व्यवस्था(सिस्टम) है, जिसके माध्यम से वर्ष, माह, सप्ताह, दिन एवं वार की जानकारी प्राप्त होती है। अंग्रेजी कालगणना केवल सूर्य एवं पृथ्वी की गति के आधार पर निर्धारित की जाती है इसमें चन्द्र एवं अन्य ग्रह नक्षत्रों का कोई संदर्भ नहीं लिया गया है। यह इसकी बहुत बडी कमी है। इस पद्धति से बनने वाला प्रसिद्ध केलेंडर ग्रेग्रेरियन कैलेंडर कहलाता है। इसे १४८२ में पोप ग्रेगरी ने बनाया था। |
| | | |
− | == ज्योतिष एवं आयुर्वेद॥ Jyotisha And Ayurveda == | + | == परिचय == |
− | {{Main|Jyotisha And Ayurveda (ज्योतिष एवं आयुर्वेद)}}
| + | कालगणना के क्रम में हम देखते है कि एक वर्ष में ३६५ दिन एवं ६ घण्टे होते हैं। इस कारण हर चौथे वर्ष में एक दिन अतिरिक्त प्राप्त होता है। इस अतिरिक्त दिन को फरवरी माह के अंतिम दिन २९ फरवरी के रूप में गिना जाता है, इसे लीप वर्ष कहते हैं। |
− | ज्योतिष एवं आयुर्वेद का संबन्ध जैसे संसार में भाई-भाई का सम्बन्ध है। आयुर्वेद में दैव एवं दैवज्ञ दोनों का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इन दोनों की उत्तमता का योग हो तो निश्चित रूप से सुखपूर्वक दीर्घायुकी प्राप्ति होती है। इसके विपरीत हीन संयोग दुःख एवम अल्पायु के कारण बनते हैं। इन्हींके आधार पर आयुका मान नियत किया जाता है-<blockquote>दैवेदचेतरत् कर्म विशिष्टेनोपहन्यते। दृष्ट्वा यदेके मन्यन्ते नियतं मानमायुषः॥( चरक विमा० ३। ३४)</blockquote>आयुर्वेद के अनुसार सृष्टिके शक्तिपुञ्ज अदृश्य होते हुये भी गर्भाधान क्रिया, कोशीय संरचना एवं विकसित होते भ्रूणपर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं। गर्भाधानके समय आकाशीय शक्तियॉं भ्रूणके गुण-संगठन एवं जीन्स-संगठनपर पूर्ण प्रभाव डालती है। इसीलिये भारतीय परम्परा में गर्भाधान आदि [[Solah samskar ( सोलह संस्कार )|सोलह संस्कार]] विहित हैं जो कि ज्योतिष के मध्यम से एक निहित शुभ काल में किये जाते हैं जिससे आकशीय शक्तिपुञ्जों का दुष्प्रभाव पतित न हो।
| |
| | | |
− | जन्मलग्न के द्वारा यह ज्ञात हो सकता है कि बच्चेमें किन आधारभूत तत्त्वों की कमी रह गई है। ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान के आधार पर ज्योतिषी पहले ही सूचित कर देते हैं शिशु को इस अवस्था में ये रोग होगा। ग्रहदोषके अनुसार ही विभिन्न वनौषधियां ग्रह बाधा का निवारण करती हैं। शरीरमें वात,पित्त एवं कफ की मात्राका समन्वय रहनेपर ही शरीर साधारणतया स्वस्थ बना रहता है अतः स्वस्थ शरीर के लिये व्याधियों के ज्ञान पूर्वक उपचार हेतु ज्योतिष एवं आयुर्वेद शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है।
| + | एक वर्ष में १२ माह, ५२ सप्ताह एवं ३६५ दिन होते हैं। कैलेंडर में इन्हीं का संयोजन होता है। अंग्रेजी काल गणना के अनुसार एक सप्ताह में ७ दिन होते हैं जो कि इस प्रकार हैं- |
− | | |
− | == षण्णवति श्राद्ध ==
| |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
− | |+(२०२३ में षण्णवति श्राद्ध सूची) | + | |+(वार सारिणी) |
− | !क्रम संख्या
| + | |सन डे |
− | !
| + | |Sunday |
− | !दिनाँक
| + | |रविवार |
− | !मास/पक्ष/तिथि
| |
− | !पर्व
| |
− | !पुण्यकाल
| |
− | !दानादि विधान
| |
− | !ग्रन्थ
| |
| |- | | |- |
− | |१ | + | |मन डे |
− | |मन्व०
| + | |Monday |
− | |२/०१/२०२३
| + | |सोमवार |
− | |पौष,शुक्ल,एकादशी
| |
− | |धर्मसावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |२ | + | |ट्यूस डे |
− | |वैधृति
| + | |Tuesday |
− | |०७/०१/२०२३
| + | |मंगलवार |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |३ | + | |वेडनेस डे |
− | |अष्टका
| + | |Wednesday |
− | |१४/०१/२०२३
| + | |बुधवार |
− | |पौष, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |४ | + | |थर्स डे |
− | |अष्टका
| + | |Thursday |
− | |१५/०१/२०२३
| + | |गुरुवार |
− | |पौष, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |५ | + | |फ्राइडे |
− | |संक्रा०
| + | |Friday |
− | |१५/०१/२०२३
| + | |शुक्रवार |
− | |
| |
− | |मकर संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |६ | + | |सटर डे |
− | |अमा० | + | |Saturday |
− | |२१/०१/२०२३ | + | |शनिवार |
− | |माघ,कृष्ण, अमावस्या
| + | |} |
− | |दर्श
| + | अंग्रेजी कैलेण्डर का एक पृष्ठ- |
− | | | + | {| class="wikitable" |
− | |
| + | |+(माह जनवरी/ सन् २०२३) |
− | |
| + | |Sunday |
− | |-
| + | |१ |
− | |७ | + | |8 |
− | |पात | + | |१५ |
− | |२२/०१/२०२३
| + | |२२ |
− | | | + | |२९ |
− | |व्यतीपात | |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
− | |- | |
− | |८
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२७/०१/२०२३
| |
− | |माघ,शुक्ल,सप्तमी
| |
− | |ब्रह्मसावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
| |- | | |- |
| + | |Monday |
| + | |२ |
| |९ | | |९ |
− | |वैधृति | + | |१६ |
− | |०१/०२/२०२३
| + | |२३ |
− | |
| + | |३० |
− | |वैधृति
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |Tuesday |
| + | |३ |
| |१० | | |१० |
− | |अष्टका | + | |१७ |
− | |१२/०२/२०२३
| + | |२४ |
− | |माघ, कृष्ण, सप्तमी
| + | |३१ |
− | |पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |Wednesday |
| + | |४ |
| |११ | | |११ |
− | |अष्टका | + | |१८ |
− | |१३/०२/२०२३
| + | |२५ |
− | |माघ, कृष्ण, अष्टमी
| + | |* |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |Thursday |
| + | |५ |
| |१२ | | |१२ |
− | |संक्रा० | + | |१९ |
− | |१३/०२/२०२३
| + | |२६ |
− | |
| + | |* |
− | |कुम्भ संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |Friday |
| + | |६ |
| |१३ | | |१३ |
− | |पात | + | |२० |
− | |१७/०२/२०२३
| + | |२७ |
− | |
| + | |* |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |Saturday |
| + | |७ |
| |१४ | | |१४ |
− | |अमा०
| |
− | |१९/०२/२०२३
| |
− | |फाल्गुन, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१५
| |
− | |युगादि
| |
− | |१९/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |द्वापर युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१६
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२६/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१७
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०७/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन,शुक्ल,पूर्णिमा
| |
− | |सावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१८
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१४/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन,कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१९
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१५/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२०
| |
− | |पात
| |
− | |१५/०३/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
| |२१ | | |२१ |
− | |संक्रा० | + | |२८ |
− | |१५/०३/२०२३ | + | |* |
− | | | + | |} |
− | |मीन संक्रान्ति | + | |
− | | | + | === वर्षज्ञान === |
− | |
| + | उपर्युक्त प्रकार से अंग्रेजी वर्ष में १२ माह होते हैं इन १२ माहों का रोमन देवताओं या अंग्रेजी संतों के नाम पर आधारित है। जैसे- रोमन देवता जेनस के नाम पर अंग्रेजी प्रथम माह का नाम जनवरी पडा। इसी प्रकार रोमन देवता मार्स के नाम पर मार्च महिने का नामकरण हुआ आदि। इन १२ माह में दिनों की संख्या अलग-अलग नियत है। विस्तृत विवरण निम्न है- |
− | |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |+(मास दिवस सहित वर्ष ज्ञान सारिणी) |
| + | !क्रमांक |
| + | !माह |
| + | !अंग्रेजी नाम |
| + | !दिनों की संख्या |
| |- | | |- |
− | |२२ | + | |०१ |
− | |अमा०
| + | |जनवरी |
− | |२१/०३/२०२३
| + | |January |
− | |चैत्र, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| + | |३१ |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२३
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२३/०३/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |२४ | + | |०२ |
− | |मन्व०
| + | |फरवरी |
− | |२४/०३/२०२३
| + | |Febuary |
− | |चैत्र शुक्लपक्ष तृतीया
| + | |२८(प्रत्येक चौथे वर्ष २९दिन) |
− | |स्वायम्भुव मन्वादि
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |२५ | + | |०३ |
− | |मन्व०
| + | |मार्च |
− | |०६/०४/२०२३
| + | |March |
− | |चैत्र शुक्लपक्ष पूर्णिमा
| + | |३१ |
− | |स्वारोचिष मन्वादि
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |२६ | + | |०४ |
− | |पात
| + | |अप्रैल |
− | |०९/०४/२०२३
| + | |April |
− | |
| + | |३० |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |२७ | + | |०५ |
− | |संक्रा०
| + | |मई |
− | |१४/०४/२०२३
| + | |May |
− | |
| + | |३१ |
− | |मेष संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२८
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |१८/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२९
| |
− | |अमा०
| |
− | |१९/०४/२०२३
| |
− | |वैशाख, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
| + | |०६ |
| + | |जून |
| + | |June |
| |३० | | |३० |
− | |युगादि
| |
− | |२२/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | |त्रेता युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
| |- | | |- |
| + | |०७ |
| + | |जुलाई |
| + | |July |
| |३१ | | |३१ |
− | |पात
| |
− | |०५/०५/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
| |- | | |- |
− | |३२ | + | |०८ |
− | |वैधृति
| + | |अगस्त |
− | |१४/०५/२०२३
| + | |August |
− | |
| + | |३१ |
− | |वैधृति योग
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |३३ | + | |०९ |
− | |संक्रा०
| + | |सितम्बर |
− | |१५/०५/२०२३
| + | |September |
− | |
| + | |३० |
− | |वृषभ संक्रान्ति
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |३४ | + | |१० |
− | |अमा०
| + | |अक्टूबर |
− | |१९/०५/२०२३
| + | |October |
− | |ज्येष्ठ,कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| + | |३१ |
− | |दर्श
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |३५ | + | |११ |
− | |पात
| + | |नवम्बर |
− | |३०/०५/२०२३
| + | |November |
− | |
| + | |३० |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |३६ | + | |१२ |
− | |मन्व०
| + | |दिसम्बर |
− | |०४/०६/२०२३
| + | |December |
− | |ज्येष्ठ,शुक्ल पूर्णिमा
| + | |३१ |
− | |वैवस्वत मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०८/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३८
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१५/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |मिथुन संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३९
| |
− | |अमा०
| |
− | |१७/०६/२०२३
| |
− | |आषाढ, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४०
| |
− | |पात
| |
− | |२५/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४१
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२८/०६/२०२३
| |
− | |आषाढ, शुक्ल दशमी
| |
− | |रैवत मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४२
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०३/०७/२०२३
| |
− | |आषाढ, शुक्ल, पूर्णिमा
| |
− | |चाक्षुष मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४३
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०४/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४४
| |
− | |अमा०
| |
− | |१७/०७/२०२३
| |
− | |श्रावण, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४५
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कर्क संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४६
| |
− | |पात
| |
− | |२०/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |३०/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४८
| |
− | |पात
| |
− | |१४/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्य्तीपात योग
| |
− | | | |
− | | | |
− | | | |
| |- | | |- |
− | |४९ | + | | colspan="2" | |
− | |अमा०
| + | |योग= |
− | |१५/०८/२०२३
| + | |३६५ १/४ |
− | |श्रावण, कृष्ण पक्ष(अधिक मास) अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५०
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |सिंह संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५१
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२४/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५२
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०७/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद,कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |इन्द्रसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५३
| |
− | |पात
| |
− | |०८/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५४
| |
− | |मन्व०
| |
− | |१४/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दैवसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५५
| |
− | |अमा०
| |
− | |१४/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५६
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कन्या संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५७
| |
− | |मन्व०
| |
− | |१८/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद,शुक्ल,तृतीया
| |
− | |रुद्रसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५८
| |
− | |वैधृति
| |
− | |१८/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५९
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |२९/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, शुक्ल, पूर्णिमा
| |
− | |पूर्णिमा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६०
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |२९/०९/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, प्रतिपदा
| |
− | |प्रतिपदा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६१
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |३०/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,द्वितीया
| |
− | |द्वितीया
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६२
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०१/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,तृतीया
| |
− | |तृतीया
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६३
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०२/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्थी
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६४
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०२/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्थी(भरणी)
| |
− | |महाभरणी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६५
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०३/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,पञ्चमी
| |
− | |पञ्चमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६६
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०४/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, षष्ठी
| |
− | |षष्ठी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६७
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०५/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६८
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०६/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६९
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०७/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, नवमी
| |
− | |नवमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७०
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०८/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, दशमी
| |
− | |दशमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७१
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०९/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, एकादशी
| |
− | |एकादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७२
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१०/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, मघा श्राद्ध
| |
− | |मघा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७३
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |११/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, द्वादशी
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७४
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१२/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, त्रयोदशी
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७५
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१३/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्दशी
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७६
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१४
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, सर्वपितृ अमावस्या
| |
− | |अमावस्या
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |१४/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७८
| |
− | |पात
| |
− | |०४/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |7९
| |
− | |युगादि
| |
− | |१२/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कलियुग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८०
| |
− | |अमा०
| |
− | |१४/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८१
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१८/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |तुला संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८२
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२३/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन,शुक्ल,नवमी
| |
− | |दक्षसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८३
| |
− | |पात
| |
− | |२९/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८४
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०८/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८५
| |
− | |अमा०
| |
− | |१३/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८६
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वृश्चिक संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८७
| |
− | |युगादि
| |
− | |२१/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |सत युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८८
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२४/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक,शुक्ल द्वादशी
| |
− | |तामस मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८९
| |
− | |पात
| |
− | |२४/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९०
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२७/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक, शुक्ल पूर्णिमा
| |
− | |उत्तम मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९१
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०३/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९२
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |०४/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९३
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |०५/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९४
| |
− | |अमा
| |
− | |१२/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | | | |
− | | | |
− | |-
| |
− | |९५
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१६/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |धनु
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९६
| |
− | |पात
| |
− | |१९/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | | | |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२८/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
| |} | | |} |
| + | उपर्युक्त इन अंग्रेजी माहों में निर्धारित किये दिनों को स्मरण रखने के लिये हिन्दी भाषा में एक दोसा प्रसिद्ध है जो निम्नांकित हैं-<blockquote> |
| + | सित, अप, जू, नव तीस के, बाकी के इकतीस। फरवरी अट्ठाइस की, चौथे सन् उन्नतीस॥</blockquote>अंग्रेजी कैलेंडर १२ पृष्ठों का होता है। प्रत्येक पृष्ठ में १-१ माह का वर्णन क्रमशः दिन, दिनांकों और वर्ष के सन्दर्भों में प्रस्तुत किया जाता है। सातों वारों का क्रमशः सतत् रूप से आवर्तन होता रहता है, जबकि तारीखें महीने के नियत दिनों की संख्याओं की पूर्ति के बाद पुनः एक दो से शुरू हो जाती है- इसी तरह अगले पृष्ठों में क्रमशः आगामी माहों का कालदर्शक विवरण क्रमशः अंकित किया जाता है। इस तरह अंग्रेजी कालदर्शक (केलेण्डर) मात्र १२ पृष्ठों का होता है। जबकि भारतीय पंचांग अनेक पन्नों का अनेक जटिल सारणियों, ग्रह नक्षत्रों की सूक्ष्म गणनाओं से भरपूर होता है। |
| | | |
− | === अन्य श्राद्ध योग्यानि महाफलप्रदानि श्राद्ध दिवसानि === | + | == विचार-विमर्श == |
| | | |
− | == श्राद्ध के फल == | + | == उद्धरण == |
− | उत्तम संतान की प्राप्ति, आरोग्य ऐश्वर्य और आयुर्दाय का रक्षण, संतान की अभिवृद्धि, वेद अभिवृद्धि, सम्पत् प्राप्ति, श्रद्धा, बहु दान शीलत्व स्वभाव््््
| |
| | | |
− | === अशक्तस्य प्रत्यम्नायम् (श्राद्धस्पियृ तर्पण, त) === | + | == ज्योतिष एवं आयुर्वेद॥ Jyotisha And Ayurveda == |
− | तिल तर्पण, गोग्रास
| + | {{Main|Jyotisha And Ayurveda (ज्योतिष एवं आयुर्वेद)}} |
| + | ज्योतिष एवं आयुर्वेद का संबन्ध जैसे संसार में भाई-भाई का सम्बन्ध है। आयुर्वेद में दैव एवं दैवज्ञ दोनों का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इन दोनों की उत्तमता का योग हो तो निश्चित रूप से सुखपूर्वक दीर्घायुकी प्राप्ति होती है। इसके विपरीत हीन संयोग दुःख एवम अल्पायु के कारण बनते हैं। इन्हींके आधार पर आयुका मान नियत किया जाता है-<blockquote>दैवेदचेतरत् कर्म विशिष्टेनोपहन्यते। दृष्ट्वा यदेके मन्यन्ते नियतं मानमायुषः॥( चरक विमा० ३। ३४)</blockquote>आयुर्वेद के अनुसार सृष्टिके शक्तिपुञ्ज अदृश्य होते हुये भी गर्भाधान क्रिया, कोशीय संरचना एवं विकसित होते भ्रूणपर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं। गर्भाधानके समय आकाशीय शक्तियॉं भ्रूणके गुण-संगठन एवं जीन्स-संगठनपर पूर्ण प्रभाव डालती है। इसीलिये भारतीय परम्परा में गर्भाधान आदि [[Solah samskar ( सोलह संस्कार )|सोलह संस्कार]] विहित हैं जो कि ज्योतिष के मध्यम से एक निहित शुभ काल में किये जाते हैं जिससे आकशीय शक्तिपुञ्जों का दुष्प्रभाव पतित न हो। |
| | | |
− | | + | जन्मलग्न के द्वारा यह ज्ञात हो सकता है कि बच्चेमें किन आधारभूत तत्त्वों की कमी रह गई है। ज्योतिषशास्त्र के ज्ञान के आधार पर ज्योतिषी पहले ही सूचित कर देते हैं शिशु को इस अवस्था में ये रोग होगा। ग्रहदोषके अनुसार ही विभिन्न वनौषधियां ग्रह बाधा का निवारण करती हैं। शरीरमें वात,पित्त एवं कफ की मात्राका समन्वय रहनेपर ही शरीर साधारणतया स्वस्थ बना रहता है अतः स्वस्थ शरीर के लिये व्याधियों के ज्ञान पूर्वक उपचार हेतु ज्योतिष एवं आयुर्वेद शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है। |
− | | |
− | == अनन्तपुण्य संपादकं पञ्चाङ्गम् ==
| |
− | मास, तिथि, वार नक्षत्र और योग के संयोग से जो-जो प्रत्येक अलभ्य योग उत्पन्न होते हैं उनके आचरण के प्रभाव से अर्थ और धर्म पुरुषार्थ प्रद होते हैं। जैसे जिस किसी का भी धन अर्जन के लिये पुण्य आवश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति का संकल्पपूर्ति के लिये पुण्य संपादन बहुत आवश्यक है। जिस प्रकार संसार में किसी भी कार्य की सिद्धि के लिये धन की आवश्यकता होती है।
| |
− | {| class="wikitable"
| |
− | |+(अलभ्य योग)
| |
− | !क्रम संख्या
| |
− | !दिनाँक
| |
− | !मास/पक्ष
| |
− | !तिथि
| |
− | !व्रत
| |
− | !व्रत विधान
| |
− | !फल
| |
− | !तिथि निर्णय
| |
− | !ग्रन्थ
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०१/०२/२०२२
| |
− | |माघ/शुक्ल
| |
− | |एकादशी
| |
− | |भीम एकादशी/भीष्म एकादशी/ जय एकादशी/भीष्म पञ्चक व्रत आरंभ/ तिल पद्म व्रत
| |
− | |
| |
− | |संतति अभिवृध्दि भीष्म/ भीम एका० २४ एकादशी व्रत फल प्राप्ति/
| |
− | |
| |
− | |(काञ्ची कामकोटी पीठ पञ्चाग)
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०२/०२/२०२२
| |
− | |
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |भीष्म/भीम/वराह/षट्तिल द्वादशी/तिलपद्म व्रत/ प्रदोष/
| |
− | |उपवास/तिल स्नान/ तिल विष्णु पूजन/ तिल नैवेद्य/ तिल तेल दीपदान/ तिल से होम/तिअ दान/तिल भक्षण
| |
− | |द्रष्टव्य
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |माघ शुक्ल द्वादशी पुनर्वसु योग
| |
− | |स्नान, दान, जप, होम
| |
− | |विषेश फल
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०३/०२/२०२२
| |
− | |
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |वराह कल्पादि/ प्रदोष
| |
− | |स्नान, दान, जप, होम,श्रद्ध
| |
− | |अक्षय/कोटी गुणित
| |
− | |षण्णवति
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०३/०२/२०२२
| |
− | |
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |दिनत्रय व्रत
| |
− | |माघ शुक्ल (त्रयोदशी,चतुर्दशी,पूर्णिमा) को स्नान,दान,पूजादि
| |
− | |आयु,आरोग्य,सम्पत्ति,रूप, मनोरथ सफलता, माघगंगा स्नान वषत् (प्रतिदिन सुवर्ण दान फल प्राप्ति)
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०४/०२/२०२२
| |
− | |
| |
− | |पूर्णिमा
| |
− | |माघ पूर्णिमा
| |
− | |समुद्र स्नान,तीर्थ स्नान, तिलपात्र,कम्बल अजिन रक्तवस्त्र आदि दानम(स्नान,दान, जप पूजा होमादिक ) प्रयाग में विशेष
| |
− | |अधिक पुण्यप्रद
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चन्द्रार्क योग(भानुवार पूर्णिमा तिथि वशात)
| |
− | |स्नान,दान,जप होमादि
| |
− | |विशेष पुण्यप्रद
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०६/०२/२०२२
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
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− | |फाल्गुन, कृष्ण, च
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− | |फाल्गुन,कृष्ण, अष्टमी
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| == Indian Observatories (भारतीय वेधशालाएँ) == | | == Indian Observatories (भारतीय वेधशालाएँ) == |
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| == परिचय == | | == परिचय == |
| भारतवर्ष में वेध परम्परा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरम्भ हो गया था। कालान्तर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल के द्वारा सभी ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था अनन्तर ग्रहों को प्राचीन वेध-यन्त्रों के द्वारा देखा जाने लगा। | | भारतवर्ष में वेध परम्परा का प्रादुर्भाव वैदिक काल से ही आरम्भ हो गया था। कालान्तर में उसका क्रियान्वयन का स्वरूप समय-समय पर परिवर्तित होते रहा है। कभी तपोबल के द्वारा सभी ग्रहों की स्थितियों को जान लिया जाता था अनन्तर ग्रहों को प्राचीन वेध-यन्त्रों के द्वारा देखा जाने लगा। |
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| + | इनमें से कुछ प्रमुख यंत्रों का वर्णन इस प्रकार है- |
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| + | * सम्राट यंत्र |
| + | * नाडीवलय यंत्र |
| + | * दिगंश यंत्र |
| + | * भित्ति यंत्र |
| + | * शंकु यंत्र |
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| == परिभाषा == | | == परिभाषा == |
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| प्राचीन भारत में कालगणना ज्योतिष एवं अंकगणित में भारत विश्वगुरु की पदवी पर था। इसी ज्ञान का उपयोग करते हुये १७२० से १७३० के बीच सवाई राजा जयसिंह(द्वितीय) जो दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के शासन काल में मालवा के गवर्नर थे। इन्होंने उत्तर भारत के पांच स्थानों उज्जैन, दिल्ली, जयपुर, मथुरा और वाराणसी में उन्नत यंत्रों एवं खगोलीय ज्ञान को प्राप्त करने वाली संस्थाओं का निर्माण किया जिन्हैं वेधशाला या जंतर-मंतर कहा जाता है। | | प्राचीन भारत में कालगणना ज्योतिष एवं अंकगणित में भारत विश्वगुरु की पदवी पर था। इसी ज्ञान का उपयोग करते हुये १७२० से १७३० के बीच सवाई राजा जयसिंह(द्वितीय) जो दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के शासन काल में मालवा के गवर्नर थे। इन्होंने उत्तर भारत के पांच स्थानों उज्जैन, दिल्ली, जयपुर, मथुरा और वाराणसी में उन्नत यंत्रों एवं खगोलीय ज्ञान को प्राप्त करने वाली संस्थाओं का निर्माण किया जिन्हैं वेधशाला या जंतर-मंतर कहा जाता है। |
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− | इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने प्राचीन शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ अपनी योग्यता से नये-नये यंत्रों का निर्माण करवा कर लगभग ८वर्षों तक स्वयं ने ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन किया। इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने सम्राट यंत्र, भ्रान्तिवृतयंत्र, चन्द्रयंत्र, दक्षिणोत्तर वृत्त यंत्र, दिगंशयंत्र, उन्नतांश यंत्र, कपाल यंत्र, नाडी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र | + | इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने प्राचीन शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ अपनी योग्यता से नये-नये यंत्रों का निर्माण करवा कर लगभग ८वर्षों तक स्वयं ने ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन किया। इन वेधशालाओं में राजा जयसिंह ने सम्राट यंत्र, भ्रान्तिवृतयंत्र, चन्द्रयंत्र, दक्षिणोत्तर वृत्त यंत्र, दिगंशयंत्र, उन्नतांश यंत्र, कपाल यंत्र, नाडी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, राशिवलय यंत्र, मिस्र यंत्र, राम यंत्र, जयप्रकाश यंत्र, सनडायल यंत्र इत्यादि स्वयं की कल्पना से और पण्डित जगन्नाथ महाराज के मार्गदर्शन में बनवाये। उनके द्वारा स्थापित वेधशालाओं का संक्षेप में विवरण इस प्रकार हैं- |
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| + | === जयपुरकी वेधशाला === |
| + | यह वेधशाला समुद्रतल से ४३१ मीटर(१४१४ फीट)- की ऊँचाई पर स्थित है, इसका देशान्तर ७५॰ ४९' ८,८<nowiki>''</nowiki> ग्रीनविचके पूर्वमें तथा अक्षांश २६॰५५' २७<nowiki>''</nowiki> उत्तरमें है। |
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| + | प्रस्तर यन्त्रों से युक्त दिल्ली वेधशालापर किये गये सफल प्रयोग के उपरान्त सन् १७२४ ई० में महाराजा सवाई जयसिंहने अपनी नयी राजधानी जयपुरमें एक बृहत् वेधशालाके निर्माणका निर्णय लिया और सन् १७२८ ई० में यह वेधशाला बनकर तैयार हुई। |
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| + | === दिल्ली वेधशाला === |
| + | यह समुद्रतलसे २३९ मीटर(७८५ फुट)-की ऊँचाईपर, अक्षांश-२८ अंश ३९ विकला उत्तर तथा देशान्तर- ग्रीनविचके पूर्वमें ७७ अंश १३ कला ५ विकलापर स्थित है। |
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| + | === उज्जैन वेधशाला === |
| + | यह समुद्रतलसे ४९२ मीटर(१५०० फुट) ऊँचाईपर, देशान्तर-७५ अंश ४५ कला (ग्रीनविचके पूर्व) तथा अक्षांश- २३अंश १० कला उत्तरपर स्थित है। |
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| + | === वाराणसी वेधशाला === |
| + | वाराणसी प्राचीन कालसे धार्मिक आस्था, कला, संस्कृति और विद्याका एक महान् परम्परागत केन्द्र रहा है। काशी और बनारसके नामसे भी जानीजाने वाली यह नगरी सभी शास्त्रोंका अध्ययन केन्द्र रही है। अन्य विद्याओंके साथ-साथ खगोल-विज्ञान और ज्योतिषके अध्ययनकी भी यहाँ परम्परा थी। इसलिये जयपुरके महाराज सवाई जयसिंह(द्वितीय)-ने इस ज्ञानपीठमें गंगाके तटपर एक वैज्ञानिक संरचनापूर्ण वेधशालाका निर्माण कराया। |
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| + | === मथुरा वेधशाला === |
| + | यह समुद्रतलसे ६०० फुट ऊँचाईपर, देशान्तर-ग्रीनविचके पूर्व ७७॰ ४२' तथा अक्षांश- २७॰ २८' उत्तरपर स्थित है। |
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| + | महाराजा जयसिंहने सन् १७३८ ई०के आसपास यहाँ कई खगोलीय यन्त्रोंका निर्माण कराया था। इस वेधशालाके निर्माणके लिये महाराजने शाही किलेकी छतको चुना था, जिसे कंसका महल कहा जाता था। |
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| + | == उद्धरण॥ References == |
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| == उद्धरण॥ References == | | == उद्धरण॥ References == |
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