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सामान्य रूपसे यह समझा जा सकता हैन कि लग्न मस्तिष्कका, चन्द्र मन, उदर और इन्द्रियों का, सूर्य आत्मस्वरूप एवं हृदय का प्रतिनिधित्व करता है। इन तीनों का अलग-अलग और परस्पर एक-दूसरे से अन्तः संबन्धोंका विश्लेषण मुख्य होता है। यह अध्ययन ज्योतिश एवं आयुर्वेद के सन्दर्भ में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। कुशल दैवज्ञके परामर्श द्वारा न केवल स्थिति स्पष्ट होती है अपितु अत्यन्त सहजता से (ग्रहप्रीतिकर दान, मन्त्रजाप, औषध स्नान, रत्नधारण आदिसे) रोग दूर हो जाते हैं। इस प्रकार एक कुशल ज्योतिषी चिकित्साविद् तथा रोगी दोनों के लिये मार्गदर्शक बन सकता है।
 
सामान्य रूपसे यह समझा जा सकता हैन कि लग्न मस्तिष्कका, चन्द्र मन, उदर और इन्द्रियों का, सूर्य आत्मस्वरूप एवं हृदय का प्रतिनिधित्व करता है। इन तीनों का अलग-अलग और परस्पर एक-दूसरे से अन्तः संबन्धोंका विश्लेषण मुख्य होता है। यह अध्ययन ज्योतिश एवं आयुर्वेद के सन्दर्भ में बहुत उपयोगी सिद्ध होगा। कुशल दैवज्ञके परामर्श द्वारा न केवल स्थिति स्पष्ट होती है अपितु अत्यन्त सहजता से (ग्रहप्रीतिकर दान, मन्त्रजाप, औषध स्नान, रत्नधारण आदिसे) रोग दूर हो जाते हैं। इस प्रकार एक कुशल ज्योतिषी चिकित्साविद् तथा रोगी दोनों के लिये मार्गदर्शक बन सकता है।
 
==रोगों का वर्गीकरण==
 
==रोगों का वर्गीकरण==
ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में रोगों का गम्भीरता पूर्वक विचार करने से सर्वप्रथम उनके भेदों का विचार किया गया है, इस शास्त्र में रोगों को मुख्यतः दो प्रकार का माना गया है-
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ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों में रोगों का गम्भीरता पूर्वक विचार करने से सर्वप्रथम उनके भेदों का विचार किया गया है, इस शास्त्र में रोगों को मुख्यतः दो प्रकार का माना गया है<ref>अर्चना शुक्ला, उदररोगमें ग्रहयोगकी समीक्षा वर्तमान सन्दर्भमें समालोचनात्मक अध्ययन, मेवाड विश्वविद्यालय, सन् २०२१, अध्य्याय०२, (पृ० ३८)</ref>-
 
#'''सहज-''' जन्मजात रोगों को सहज रोग कहते हैं।
 
#'''सहज-''' जन्मजात रोगों को सहज रोग कहते हैं।
 
#'''आगन्तुक-''' जन्म के बाद होने वाले रोगों को आगन्तुक रोग कहते हैं।
 
#'''आगन्तुक-''' जन्म के बाद होने वाले रोगों को आगन्तुक रोग कहते हैं।
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==ग्रह अधिष्ठित शरीराङ्ग॥ Planets Ruling The Body Parts==
 
==ग्रह अधिष्ठित शरीराङ्ग॥ Planets Ruling The Body Parts==
 
नवग्रहों में सूर्य-चन्द्र आदि जिस राशि में बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-विचार होता है। तथापि उनका स्वतन्त्र रूपमें  जिस अङ्ग पर प्रभाव या रोग विशेष होने की सम्भावना होती है उसे अधोलिखित सारणी द्वारा समझा जा सकता है<ref>श्री नलिनजी पाण्डे, आरोग्य अङ्क, ज्योतिष-रोग एवं उपचार, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२८३)।</ref>-
 
नवग्रहों में सूर्य-चन्द्र आदि जिस राशि में बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-विचार होता है। तथापि उनका स्वतन्त्र रूपमें  जिस अङ्ग पर प्रभाव या रोग विशेष होने की सम्भावना होती है उसे अधोलिखित सारणी द्वारा समझा जा सकता है<ref>श्री नलिनजी पाण्डे, आरोग्य अङ्क, ज्योतिष-रोग एवं उपचार, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२८३)।</ref>-
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मस्तिष्क-रोग, हृदय-रोग, उच्च रक्तचाप, उदरविकार, मेननजाइटिस, मिरगी, सिरदर्द, नेत्रविकार, बुखार।
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नेत्ररोग, हिस्टीरिया, ठंड, कफ, उदर-रोग, अस्थमा, डायरिया, दस्त, मानसिक रोग, जननाङ्ग रोग (स्त्रियोचित), पागलपन, हैजा, ट्यूमर, ड्रॉप्सी।
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तीव्र ज्वर, सिरदर्द, मुँहासे, चेचक, घाव, जलन, कटना, बवासीर, नासूर, साइनस, गर्भपात, रक्ताल्पता, फोड़ा, लकवा, पक्षाघात, पोलियो, गले-गर्दनके रोग, हाइड्रोसील, हर्निया ।
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{| class="wikitable"
 
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|+नवग्रह, रोग तथा तत्संबन्धित अङ्ग
 
|+नवग्रह, रोग तथा तत्संबन्धित अङ्ग
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|सूर्य
 
|सूर्य
 
|सिर, हृदय, ऑंख( दायीं), मुख, तिल्ली, गला, मस्तिष्क, पित्ताशय, हड्डी, रक्त, फेफडे, स्तन।
 
|सिर, हृदय, ऑंख( दायीं), मुख, तिल्ली, गला, मस्तिष्क, पित्ताशय, हड्डी, रक्त, फेफडे, स्तन।
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|मस्तिष्क-रोग, हृदय-रोग, उच्च रक्तचाप, उदरविकार, मेननजाइटिस, मिरगी, सिरदर्द, नेत्रविकार, बुखार।
 
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|चन्द्र
 
|चन्द्र
 
|छाती, लार, गर्भ, जल, रक्त, लसिका, ग्रन्थियॉं, कफ, मूत्र, मन, ऑंख(बायीं), उदर, डिम्बग्रन्थि, जननाङ्ग(महिला)।
 
|छाती, लार, गर्भ, जल, रक्त, लसिका, ग्रन्थियॉं, कफ, मूत्र, मन, ऑंख(बायीं), उदर, डिम्बग्रन्थि, जननाङ्ग(महिला)।
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|नेत्ररोग, हिस्टीरिया, ठंड, कफ, उदर-रोग, अस्थमा, डायरिया, दस्त, मानसिक रोग, जननाङ्ग रोग (स्त्रियोचित), पागलपन, हैजा, ट्यूमर, ड्रॉप्सी।
 
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|मंगल
 
|मंगल
 
|पित्त, मात्रक, मांसपेशी, स्वादेन्द्रिय, पेशीतन्त्र, तन्तु, बाह्य-जननाङ्ग, प्रोस्टेट, गुदा, रक्त, अस्थि-मज्जा, नाक, नस, ऊतक।
 
|पित्त, मात्रक, मांसपेशी, स्वादेन्द्रिय, पेशीतन्त्र, तन्तु, बाह्य-जननाङ्ग, प्रोस्टेट, गुदा, रक्त, अस्थि-मज्जा, नाक, नस, ऊतक।
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|तीव्र ज्वर, सिरदर्द, मुँहासे, चेचक, घाव, जलन, कटना, बवासीर, नासूर, साइनस, गर्भपात, रक्ताल्पता, फोड़ा, लकवा, पक्षाघात, पोलियो, गले-गर्दनके रोग, हाइड्रोसील, हर्निया।
 
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|बुध
 
|बुध
 
|स्नायु-तन्त्र, जीभ, ऑंत, वाणी, नाक, कान, गला, फेफडे।
 
|स्नायु-तन्त्र, जीभ, ऑंत, वाणी, नाक, कान, गला, फेफडे।
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|मस्तिष्क-विकार, स्मृतिहास, पक्षाघात, हकलाहट, दौरे आना, सूँघने, सुनने अथवा बोलनेकी शक्तिका ह्रास।
 
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|बृहस्पति
 
|बृहस्पति
 
|यकृत् , नितम्ब, जॉंघ, मांस, चर्बी, कफ, पॉंव।
 
|यकृत् , नितम्ब, जॉंघ, मांस, चर्बी, कफ, पॉंव।
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|पीलिया, यकृत्-सम्बन्धी रोग, अपच, मोतियाबिन्द, रक्तकैंसर, फुफ्फुसावरण, शोथ, वात, बादी, उदर-वायु, तिल्ली-कष्ट, साइटिका, गठिया, कटिवेदना, नाभि-चलना।
 
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|शुक्र
 
|शुक्र
 
|जननाङ्ग, ऑंख, मुख, ठुड्डी, गाल, गुर्दे, ग्लैण्ड, वीर्य।
 
|जननाङ्ग, ऑंख, मुख, ठुड्डी, गाल, गुर्दे, ग्लैण्ड, वीर्य।
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|काले-नीले धब्बे, चमड़ीके रोग, कोढ़, सफेद दाग, गुप्ताङ्गरोग, मधुमेह, नेत्ररोग, मोतियाबिन्द, रक्ताल्पता, एक्जिमा, मत्ररोग।
 
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|शनि
 
|शनि
 
|पॉंव, घुटने, श्वास, हड्डी, बाल, नाखून, दॉंत, कान।
 
|पॉंव, घुटने, श्वास, हड्डी, बाल, नाखून, दॉंत, कान।
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|बहरापन, दाँत-दर्द, पायरिया, ब्लडप्रेशर, कठिन उदरशूल, आर्थराइटिस, कैंसर, स्पांडलाइटिस, हाथ-पाँवकी कँपकपाहट, साइटिका, मूर्च्छा, जटिल रोग।
 
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|राहु, केतु
 
|राहु, केतु
 
|राहु मुख्यतः शरीरके ऊपरी हिस्से और केतु निचले धडको बतलाते हैं।
 
|राहु मुख्यतः शरीरके ऊपरी हिस्से और केतु निचले धडको बतलाते हैं।
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|प्रायः ये दोनों ग्रह क्रमश: शनि और मंगलके अनुरूप रोग-व्याधि देते हैं या जिस राशि-भावमें बैठते हैं, उसके अनुरूप रोग-व्याधि देते हैं। राहु, केतुसे सम्बन्धित रोगकी पहचान प्रायः कठिनाईसे हो पाती है।
 
|}ज्योतिषशास्त्रके अनुसार विभिन्न ग्रह निम्न शरीर रचनाओं के नियन्त्रक होते हैं-
 
|}ज्योतिषशास्त्रके अनुसार विभिन्न ग्रह निम्न शरीर रचनाओं के नियन्त्रक होते हैं-
 
#'''सूर्य-''' अस्थि, जैव-विद्युत् , श्वसन-तन्त्र।
 
#'''सूर्य-''' अस्थि, जैव-विद्युत् , श्वसन-तन्त्र।
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#'''राहु एवं केतु-''' शरीरके अन्दर आकाश एवं अपानवायु।
 
#'''राहु एवं केतु-''' शरीरके अन्दर आकाश एवं अपानवायु।
 
==ज्योतिष में त्रिदोष॥ Tridoshas in Jyotisha==
 
==ज्योतिष में त्रिदोष॥ Tridoshas in Jyotisha==
भारतीय दर्शन की मान्यतानुसार त्रिदोष चर्चा में चिकित्सा शास्त्र का जनक आयुर्वेद है। जिसे कुछ विद्वान् पञ्चमवेद भी कहते हैं। <nowiki>''</nowiki>शरीरं व्याधि मन्दिरम्<nowiki>''</nowiki> इस उक्ति के समाधान में आयुर्वेद शास्त्र की रचना हुई। आज चिकित्सा के कई रूप उपलब्ध हैं पर सभी का जन्मदाता आयुर्वेद ही है। आयुर्वेद, एलोपैथ तथा होम्योपैथ की चिकित्सा सम्पूर्ण देश में सर्वमान्य है। भारतीय चिकित्सा शास्त्र में त्रिदोष का वर्णन सर्वत्र है, अर्थात् वात, पित्त और कफ जन्य ही रोग होते हैं। चिकित्साशास्त्र इन्हीं पर आधारित है । ज्योतिष शास्त्र में भी त्रिदोष की चर्चा है। ग्रह नक्षत्रों का शास्त्र ज्योतिष है। नवग्रहों की प्रधानता ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है। ये सभी ग्रह त्रिदोष से सम्बन्धित हैं। इनमें से कोई वातज, कोई पित्तज तथा कोई कफज है-
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भारतीय दर्शन की मान्यतानुसार त्रिदोष चर्चा में चिकित्सा शास्त्र का जनक आयुर्वेद है। जिसे कुछ विद्वान् पञ्चमवेद भी कहते हैं। <nowiki>''</nowiki>शरीरं व्याधि मन्दिरम्<nowiki>''</nowiki> इस उक्ति के समाधान में आयुर्वेद शास्त्र की रचना हुई। आज चिकित्सा के कई रूप उपलब्ध हैं पर सभी का जन्मदाता आयुर्वेद ही है। आयुर्वेद, एलोपैथ तथा होम्योपैथ की चिकित्सा सम्पूर्ण देश में सर्वमान्य है। भारतीय चिकित्सा शास्त्र में त्रिदोष का वर्णन सर्वत्र है, अर्थात् वात, पित्त और कफ जन्य ही रोग होते हैं। चिकित्साशास्त्र इन्हीं पर आधारित है । ज्योतिष शास्त्र में भी त्रिदोष की चर्चा है। ग्रह नक्षत्रों का शास्त्र ज्योतिष है। नवग्रहों की प्रधानता ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है। ये सभी ग्रह त्रिदोष से सम्बन्धित हैं। इनमें से कोई वातज, कोई पित्तज तथा कोई कफज है<ref>श्रीरामचन्द्र पाठक, बृहज्जातकम् , ज्योति हिन्दी टीका, वाराणसीः चौखम्बा प्रकाशन (पृ०९-११)।</ref>-
 
*'''वातज ग्रह-''' शनि, राहु केतु।
 
*'''वातज ग्रह-''' शनि, राहु केतु।
 
*'''पित्तज ग्रह'''- सूर्य, मंगल, गुरु।
 
*'''पित्तज ग्रह'''- सूर्य, मंगल, गुरु।
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बुध को तटस्थ(न्यूट्रल) कहा गया है,  इन ग्रहों के दाय काल में अथवा इनके दुर्बल होने से उक्त त्रिदोषजन्य व्याधियाँ होती है। जिसे व्यवहार में भी अनुभव किया गया है
 
बुध को तटस्थ(न्यूट्रल) कहा गया है,  इन ग्रहों के दाय काल में अथवा इनके दुर्बल होने से उक्त त्रिदोषजन्य व्याधियाँ होती है। जिसे व्यवहार में भी अनुभव किया गया है
 
===वातजन्य व्याधियॉं===
 
===वातजन्य व्याधियॉं===
शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
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शनि, राहु, केतु के दुष्प्रभाव से वात जन्य व्याधियाँ होती हैं । यह पहले भी कहा जा चुका है । ये वात व्याधियाँ चिकित्सा शास्त्र के जनक आयुर्वेद शास्त्र के चरक संहिता में अस्सी प्रकार की बताई गई हैं । इन सभी के अनेक भेद तथा उपभेद भी हैं । जिसपर चिकित्साशास्त्र आधारित हैं । इसी प्रसंग में इन ८० प्रकार की वात व्याधियों का नाम चरक संहिता से संग्रहीत कर नीचे दिया जा रहा है<ref>अत्रिदेवजी गुप्त, चरक संहिता(हिन्दी अनुवाद सहित),वाराणसी: भार्गव पुस्तकालय, सूत्रनिदान स्थान, अध्याय-२० (पृ०२४०)।</ref>-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
 
* १. नखभेद
 
* १. नखभेद
 
* २. व्यवाई
 
* २. व्यवाई
Line 126: Line 139:  
* ४९. घ्राणनाश
 
* ४९. घ्राणनाश
 
* ५०. कर्णमूल
 
* ५०. कर्णमूल
* ५१.  
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* ५१. अशब्दश्रवण
 
* ५२. उच्चैश्रुति
 
* ५२. उच्चैश्रुति
 
* ५३. बहरापन
 
* ५३. बहरापन
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  ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है ।
 
  ये मुख्यतः वात जन्य व्याधियाँ हैं । शनि, राहु, तथा केतु ग्रह की दुर्बलता, अनिष्ट अरिष्ट सूचक होने पर उक्त व्याधियों का होना सुनिश्चित है ।
 
===पित्तजन्य व्याधियॉं===
 
===पित्तजन्य व्याधियॉं===
पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
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पित्तजन्य ४० प्रकार की व्याधियाँ (रोग) होती हैं । हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल तथा गुरु के दुर्बल तथा अरिष्ट सूचक होने पर अघोलिखित व्याधियाँ (रोग) होती हैं, जिनकी नामावली अधोलिखित हैं<ref>अत्रिदेवजी गुप्त, चरक संहिता(हिन्दी अनुवाद सहित),वाराणसी: भार्गव पुस्तकालय, सूत्रनिदान स्थान, अध्याय-२० (पृ०२४१/२४२)।</ref>-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
 
* १. ओष
 
* १. ओष
 
* २. प्लोष
 
* २. प्लोष
Line 200: Line 213:  
* ४०. अमलका हरा वर्ण या पीला वर्ण}}गुरु, सूर्य तथा मंगल के कारण ये व्याधियाँ होती हैं। इसलिये इन ग्रहों के दायकाल में इनका निदान तथा समाधान आवश्यक है।
 
* ४०. अमलका हरा वर्ण या पीला वर्ण}}गुरु, सूर्य तथा मंगल के कारण ये व्याधियाँ होती हैं। इसलिये इन ग्रहों के दायकाल में इनका निदान तथा समाधान आवश्यक है।
 
===कफजन्य व्याधियॉं===
 
===कफजन्य व्याधियॉं===
कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
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कफ जन्य रोग चन्द्रमा और शुक्र के प्रभाव से होते हैं। चन्द्र और शुक्र दोनों ग्रहों की प्रकृति शीतल है। शीतव्याधि से २० प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। जिसकी चर्चा चिकित्सा शास्त्र में महर्षि चरक ने चरक संहिता के २०वें अध्याय में वर्णित किया है। इन रोगों के भी उपरोग अनेकों हैं। जिसकी चर्चा आयुर्वेद शास्त्र में विस्तार पूर्वक की गयी है। ये व्याधियाँ प्रसंगतः अधोलिखित रूप से यहाँ दी जा रही हैं<ref>अत्रिदेवजी गुप्त, चरक संहिता(हिन्दी अनुवाद सहित),वाराणसी: भार्गव पुस्तकालय, सूत्रनिदान स्थान, अध्याय-२० (पृ०२४३/२४४)।</ref>-{{columns-list|colwidth=10em|style=width: 800px; font-style: italic;|
 
* १. तृप्ति
 
* १. तृप्ति
 
* २. तन्द्रा
 
* २. तन्द्रा
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