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| [[Bharatiya Kala Vidya (भारतीय कला विद्या)]] | | [[Bharatiya Kala Vidya (भारतीय कला विद्या)]] |
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− | == कला के चौंसठ प्रकार॥ Kinds of 64 Kalas == | + | कला प्राचीन भारतीय शिक्षाप्रणाली का महत्त्वपूर्ण अंग हुआ करता था। मानव जीवन को सुन्दर एवं परिष्कृत बनाने में कला का विशेष योगदान है। इनकी संख्या चौंसठ होने के कारण इन्हैं चतुष्षष्टिः कला भी कहा जाता है। |
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| + | == कला के प्रकार॥ Kinds of Kalas == |
| प्राचिन साहित्य में पूर्णावतार परमात्मा को 64 कलाओं से युक्त कहा गया है। वात्स्यायन सूत्र एवं शुक्र नीति में कला के 64 प्रकारों का विवेचन है तथा ललित-विस्तर इसके 86 प्रभेदों का निरूपण करता है। जैन एवं बौद्ध परंपरा के ग्रन्थों में चौंसठ कलाओं की सूची मिलती है। जैन आचार्य शेखरसूरि के प्रबन्धकोष में इसके 72 प्रकारों का विश्लेषण है।जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, 64 कलाओं की गणना के संबंध में भिन्नताएं हैं। इन कलाओं का उल्लेख इन ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है - | | प्राचिन साहित्य में पूर्णावतार परमात्मा को 64 कलाओं से युक्त कहा गया है। वात्स्यायन सूत्र एवं शुक्र नीति में कला के 64 प्रकारों का विवेचन है तथा ललित-विस्तर इसके 86 प्रभेदों का निरूपण करता है। जैन एवं बौद्ध परंपरा के ग्रन्थों में चौंसठ कलाओं की सूची मिलती है। जैन आचार्य शेखरसूरि के प्रबन्धकोष में इसके 72 प्रकारों का विश्लेषण है।जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, 64 कलाओं की गणना के संबंध में भिन्नताएं हैं। इन कलाओं का उल्लेख इन ग्रन्थोंमें प्राप्त होता है - |
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| |+चौंसठ कलाऍं॥ Chatusshashti Kala (64 Arts) | | |+चौंसठ कलाऍं॥ Chatusshashti Kala (64 Arts) |
| !क्र.सं. | | !क्र.सं. |
| + | !ललितविस्तर <ref>आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय, संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास, अष्टादश(प्रकीर्ण)खण्ड,संस्कृतवाङ्मय में कलाशास्त्र, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान सन् २०१७ पृ० ३१/३३।</ref> |
| + | !प्रबन्धकोश<ref>आचार्य श्री बलदेव उपाध्याय, संस्कृत वाङ्मय का बृहद् इतिहास, अष्टादश(प्रकीर्ण)खण्ड,संस्कृतवाङ्मय में कलाशास्त्र, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान सन् २०१७ पृ० ३६/३७।</ref> |
| !शैवतन्त्रम्<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%AD Vachaspatyam]</ref><ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%83/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%83 Shabdakalpadruma]</ref><ref name=":0">श्री मद्भागवत महापुराण, (द्वितीय खण्ड) हिन्दी टीका सहित,स्कन्ध १०,अध्याय ४५ , श्लोक ३६, हनुमान प्रसाद् पोद्दार,गोरखपुर गीता प्रेस सन् १९९७ पृ०४१२।</ref> | | !शैवतन्त्रम्<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AE%E0%A5%8D/%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A4%AD Vachaspatyam]</ref><ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%95%E0%A4%B2%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%83/%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%83 Shabdakalpadruma]</ref><ref name=":0">श्री मद्भागवत महापुराण, (द्वितीय खण्ड) हिन्दी टीका सहित,स्कन्ध १०,अध्याय ४५ , श्लोक ३६, हनुमान प्रसाद् पोद्दार,गोरखपुर गीता प्रेस सन् १९९७ पृ०४१२।</ref> |
| !शुक्रनीतिसारः<ref>श्रीमत् शुक्राचार्य्यविरचितः शुक्रनीतिसारः, १८९०: कलिकाताराजधान्याम्, द्वितीयसंस्करणम् ।</ref><ref>B.D.Basu, The Sacred Books of the Hindus, Vol XIII [https://archive.org/details/Sukra_Niti The Sukraniti], Allahabad: The Panini Office, Bhuvaneshwari Asrama, 1914. Pg.no.157</ref> | | !शुक्रनीतिसारः<ref>श्रीमत् शुक्राचार्य्यविरचितः शुक्रनीतिसारः, १८९०: कलिकाताराजधान्याम्, द्वितीयसंस्करणम् ।</ref><ref>B.D.Basu, The Sacred Books of the Hindus, Vol XIII [https://archive.org/details/Sukra_Niti The Sukraniti], Allahabad: The Panini Office, Bhuvaneshwari Asrama, 1914. Pg.no.157</ref> |
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| |1 | | |1 |
| + | |लङ्घितम्-कूदना। |
| + | |लिखितम् |
| |गीतम् - गानविद्या। | | |गीतम् - गानविद्या। |
| |हावभावादिसंयुक्तं नर्त्तनम् - हावभाव के साथ नाचना। | | |हावभावादिसंयुक्तं नर्त्तनम् - हावभाव के साथ नाचना। |
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| |2 | | |2 |
| + | |प्राक्चलितम्-उछलना। |
| + | |गणितम् |
| |वाद्यम् - भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे बजाना। | | |वाद्यम् - भिन्न-भिन्न प्रकार के बाजे बजाना। |
| |अनेकवाद्यविकृतौ तद्वादने ज्ञानम्- आरकेस्ट्रा में अनेक प्रकार के बाजे बजा लेना। | | |अनेकवाद्यविकृतौ तद्वादने ज्ञानम्- आरकेस्ट्रा में अनेक प्रकार के बाजे बजा लेना। |
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| |3 | | |3 |
| + | |लिपिमुद्रागणनासंख्यासालम्भधनुर्वेदाः- लेखनकला, हाथकी उंगलियों से भिन्न-भिन्न आकृतियों को बनाना, गिनना, संख्याओं की गिनती, कुश्ती, धनुषविद्या। |
| + | |गीतम् |
| |नृत्यम् - नाचना। | | |नृत्यम् - नाचना। |
| |स्त्रीपुंसोः वस्त्रालंकारसन्धानम्- स्त्री और पुरुषों को वस्त्र - अलंकार पहनाने की कला। | | |स्त्रीपुंसोः वस्त्रालंकारसन्धानम्- स्त्री और पुरुषों को वस्त्र - अलंकार पहनाने की कला। |
| |- | | |- |
| |4 | | |4 |
| + | |जवितम् - दौड़ना। |
| + | |नृत्यम् |
| |आलेख्यम् - चित्रकारी। | | |आलेख्यम् - चित्रकारी। |
| |अनेकरूपाविर्भावकृतिज्ञानम्- पत्थर, काठ आदि पर भिन्न-भिन्न आकृतियों का निर्माण । | | |अनेकरूपाविर्भावकृतिज्ञानम्- पत्थर, काठ आदि पर भिन्न-भिन्न आकृतियों का निर्माण । |
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| |5 | | |5 |
| + | |प्लवितम् - पानी में डुबकी लगाना । |
| + | |पठितम् |
| |विशेषकच्छेद्यम् - तिलकरचना, पत्रावलीरचना के साँचे बनाना। | | |विशेषकच्छेद्यम् - तिलकरचना, पत्रावलीरचना के साँचे बनाना। |
| |शय्यास्तरणसंयोगपुष्पादिग्रथनम् - फूल का हार गूंथना और शय्या सजाना। | | |शय्यास्तरणसंयोगपुष्पादिग्रथनम् - फूल का हार गूंथना और शय्या सजाना। |
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| |6 | | |6 |
| + | |तरणम् -तैरना। |
| + | |वाद्यम् |
| |तण्डुलकुसुमयलिविकाराः - पूजा के लिये अक्षत एवं पुष्पों को सजाना। | | |तण्डुलकुसुमयलिविकाराः - पूजा के लिये अक्षत एवं पुष्पों को सजाना। |
| |द्यूताद्यनेकक्रीडाभी रञ्जनम् - जुआ इत्यादि से मनोरंजन करना | | |द्यूताद्यनेकक्रीडाभी रञ्जनम् - जुआ इत्यादि से मनोरंजन करना |
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| |7 | | |7 |
| + | |इष्वस्त्रम् -तीर चलाना। |
| + | |व्याकरणम् |
| |पुष्पास्तरणम् - पुष्पसज्जा। | | |पुष्पास्तरणम् - पुष्पसज्जा। |
| |अनेकासनसन्धानै रमतेर्ज्ञानम्- कामशास्त्रीय आसनों आदि का ज्ञान। | | |अनेकासनसन्धानै रमतेर्ज्ञानम्- कामशास्त्रीय आसनों आदि का ज्ञान। |
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| |8 | | |8 |
| + | |हस्तिग्रीवा- हाथी की सवारी करना। |
| + | |छन्दः |
| |दशनवसनाङ्गरागाः - दाँत-वस्त्र एवं शरीर के अंगों को रंगना। | | |दशनवसनाङ्गरागाः - दाँत-वस्त्र एवं शरीर के अंगों को रंगना। |
| |मकरन्दासवादीनां मद्यादीनां कृतिः - भिन्न-भिन्न भाँति के शराब बनाना। | | |मकरन्दासवादीनां मद्यादीनां कृतिः - भिन्न-भिन्न भाँति के शराब बनाना। |
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| |9 | | |9 |
| + | |रथः- रथ से सम्बद्ध ज्ञान। |
| + | |ज्योतिषम् |
| |मणिभूमिकाकर्म - भूमि को मणियों से सजाना। | | |मणिभूमिकाकर्म - भूमि को मणियों से सजाना। |
| |शल्यगूढाहृतौ सिराघ्रणव्यधे ज्ञानम्- शरीर में घुसे हुए शल्य को शस्त्रों की सहायता से निकालना, जर्राही। | | |शल्यगूढाहृतौ सिराघ्रणव्यधे ज्ञानम्- शरीर में घुसे हुए शल्य को शस्त्रों की सहायता से निकालना, जर्राही। |
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| |10 | | |10 |
| + | |धनुष्कलाप-धनुष-सम्बन्धी विज्ञान। |
| + | |शिक्षा |
| |शयनरचनम् - शय्या की रचना। | | |शयनरचनम् - शय्या की रचना। |
| |हीनाद्रिरससंयोगान्नादिसम्पाचनम्- नाना रसों का भोजन बनाना । | | |हीनाद्रिरससंयोगान्नादिसम्पाचनम्- नाना रसों का भोजन बनाना । |
| |- | | |- |
| |11 | | |11 |
| + | |अश्व पृष्ठम्- घोड़े की सवार। |
| + | |निरुक्तम् |
| |उदकवाद्यम् - जल पर हाथ से इस प्रकार आघात करना कि मृदङ्ग आदि वाद्यों के समान ध्वनि उत्पन्न हो। | | |उदकवाद्यम् - जल पर हाथ से इस प्रकार आघात करना कि मृदङ्ग आदि वाद्यों के समान ध्वनि उत्पन्न हो। |
| |वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः- पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान । | | |वृक्षादिप्रसवारोपपालनादिकृतिः- पेड़-पौधों की देखभाल, रोपाई, सिंचाई का ज्ञान । |
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| |12 | | |12 |
| + | |स्थैर्यम् - स्थिरता। |
| + | |कात्यायनम् |
| |उदकाघातः - जलक्रीड़ा के समय कलात्मक ढंग से छींटे मारना या जल को उछालना। | | |उदकाघातः - जलक्रीड़ा के समय कलात्मक ढंग से छींटे मारना या जल को उछालना। |
| |पाषाणधात्वादिदृतिभस्मकरणम्- पत्थर और धातुओं को गलाना तथा भस्म बनाना । | | |पाषाणधात्वादिदृतिभस्मकरणम्- पत्थर और धातुओं को गलाना तथा भस्म बनाना । |
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| |13 | | |13 |
| + | |स्थाम- बल। |
| + | |निघण्टुः |
| |चित्रायोगाः - औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग। | | |चित्रायोगाः - औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग। |
| |यावदिक्षुविकाराणां कृतिज्ञानम्-फल के रस से मिश्री, चीनी आदि भिन्न-भिन्न चीजें बनाना। | | |यावदिक्षुविकाराणां कृतिज्ञानम्-फल के रस से मिश्री, चीनी आदि भिन्न-भिन्न चीजें बनाना। |
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| |14 | | |14 |
| + | |सुशौर्यम् -साहस। |
| + | |पत्रच्छेद्यम् |
| |माल्यग्रथनविकल्पाः - औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग। | | |माल्यग्रथनविकल्पाः - औषधि, मणि, मंत्र आदि के रहस्यमय प्रयोग। |
| |धात्वोषधीनां संयोगक्रियाज्ञानम्- धातु और औषधों के संयोग से रसायनों का बनाना। | | |धात्वोषधीनां संयोगक्रियाज्ञानम्- धातु और औषधों के संयोग से रसायनों का बनाना। |
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| |15 | | |15 |
| + | |बाहुव्यायाम-बाहु का व्यायाम। |
| + | |नखच्छेद्यम् |
| |शेखरकापीडयोजनम् - शेखरक और आपीड (शिर पर धारण किये जाने वाले पुष्पाभरण) की योजना। | | |शेखरकापीडयोजनम् - शेखरक और आपीड (शिर पर धारण किये जाने वाले पुष्पाभरण) की योजना। |
| |धातुसाङ्कर्यपार्थक्यकरणम्-धातुओं के मिलाने और अलग करने की विद्या । | | |धातुसाङ्कर्यपार्थक्यकरणम्-धातुओं के मिलाने और अलग करने की विद्या । |
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| |16 | | |16 |
| + | |अङ्कुशग्रहपाशग्रहाः - अंकुश और पाश, इन दोनों हथियारों का ग्रहण करना। |
| + | |रत्नपरीक्षा |
| |नेपाथ्ययोगाः - वेश-भूषा धारण की कला। | | |नेपाथ्ययोगाः - वेश-भूषा धारण की कला। |
| |धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्- धातुओं के नये संयोग बनाना । | | |धात्वादीनां संयोगापूर्वविज्ञानम्- धातुओं के नये संयोग बनाना । |
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| |17 | | |17 |
| + | |उद्याननिर्माणम्-ऊँची वस्तु को फाँदकर और दो ऊँची वस्तु के बीच से कूदकर पार जाना। |
| + | |आयुधाभ्यासः |
| |कर्णपत्रभङ्गाः - हाथीदाँत के पत्तरों आदि से कर्णाभूषण की रचना। | | |कर्णपत्रभङ्गाः - हाथीदाँत के पत्तरों आदि से कर्णाभूषण की रचना। |
| |क्षारनिष्कासनज्ञानम्- खार बनाना । | | |क्षारनिष्कासनज्ञानम्- खार बनाना । |
| |- | | |- |
| |18 | | |18 |
| + | |अपयानम्-पीछे की ओर से निकलना। |
| + | |गजारोहणम् |
| |गन्धयुक्तिः - सुगंध की योजना। | | |गन्धयुक्तिः - सुगंध की योजना। |
| |पदादिन्यासतः शस्त्रसन्धाननिक्षेपः- पैर ठीक करके धनुष चढ़ाना और बाण फेंकना। | | |पदादिन्यासतः शस्त्रसन्धाननिक्षेपः- पैर ठीक करके धनुष चढ़ाना और बाण फेंकना। |
| |- | | |- |
| |19 | | |19 |
| + | |मुष्टिबन्ध-मुट्ठी और घूसे की कला। |
| + | |तुरगारोहणम् |
| |भूषणयोजनम् - आभूषण निर्माण की कला। | | |भूषणयोजनम् - आभूषण निर्माण की कला। |
| |सन्ध्याघाताकृष्टिभेदैः मल्लयुद्धम्- तरह-तरह के दाँव-पेंच के साथ कुश्ती लड़ना । | | |सन्ध्याघाताकृष्टिभेदैः मल्लयुद्धम्- तरह-तरह के दाँव-पेंच के साथ कुश्ती लड़ना । |
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| |20 | | |20 |
| + | |शिखाबन्ध- शिखा बाँधना। |
| + | |तपःशिक्षा |
| |ऐन्द्रजालम् - इन्द्रजाल या जादू का खेल। | | |ऐन्द्रजालम् - इन्द्रजाल या जादू का खेल। |
| |अभिलक्षिते देशे यन्त्राद्यस्त्रनिपातनम्- शस्त्रों को निशाने पर फेंकना । | | |अभिलक्षिते देशे यन्त्राद्यस्त्रनिपातनम्- शस्त्रों को निशाने पर फेंकना । |
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| |21 | | |21 |
| + | |छेद्यम्- भिन्न-भिन्न सुन्दर आकृतियों को काटकर बनाना। |
| + | |मन्त्रवादः |
| |कौचुमारयोगाः - कुचुमारतंत्र में बताये गये वाजीकरण आदि प्रयोग। | | |कौचुमारयोगाः - कुचुमारतंत्र में बताये गये वाजीकरण आदि प्रयोग। |
| |वाद्यसंकेततो व्यूहरचनादि - बाजे के संकेत से सेना की व्यूह रचना। | | |वाद्यसंकेततो व्यूहरचनादि - बाजे के संकेत से सेना की व्यूह रचना। |
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| |22 | | |22 |
| + | |भेद्यम् - छेदना। |
| + | |यन्त्रवादः |
| |हस्तलाघवम् - हाथ की सफाई। | | |हस्तलाघवम् - हाथ की सफाई। |
| |गजाश्वरथगत्या तु युद्धसंयोजनम्- हाथी, घोड़े या रथ से युद्ध करना । | | |गजाश्वरथगत्या तु युद्धसंयोजनम्- हाथी, घोड़े या रथ से युद्ध करना । |
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| |23 | | |23 |
| + | |तरणम् -नाव खेना या जहाज चलाना या तैरना। |
| + | |रसवादः |
| |विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया - नाना प्रकार के व्यंजन, यूष-सूप आदि बनाने की कला । | | |विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया - नाना प्रकार के व्यंजन, यूष-सूप आदि बनाने की कला । |
| |विविधासनमुद्राभिः देवतातोषणम्- विभिन्न आसनों तथा मुद्राओं के द्वारा देवता को प्रसन्न करना। | | |विविधासनमुद्राभिः देवतातोषणम्- विभिन्न आसनों तथा मुद्राओं के द्वारा देवता को प्रसन्न करना। |
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| |24 | | |24 |
| + | |स्फालनम् -(कन्दुक आदि को) उछालनेका कौशल। |
| + | |स्वन्यवादः |
| |पानकरसरागासवयोजनम् - प्रपाणक, आराव आदि पेय बनाने की कला। | | |पानकरसरागासवयोजनम् - प्रपाणक, आराव आदि पेय बनाने की कला। |
| |सारथ्यम् - रथ हाँकना, वाहन चलाना। | | |सारथ्यम् - रथ हाँकना, वाहन चलाना। |
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| + | |अक्षुण्णवेधित्वम् -भाले से लक्ष्यबेथ करना। |
| + | |रसायनम् |
| |[[Textile Technology (तन्तुकार्यम्)|सूचीवापकर्म]] - वस्त्ररचना एवं कढ़ाई का शिल्प। | | |[[Textile Technology (तन्तुकार्यम्)|सूचीवापकर्म]] - वस्त्ररचना एवं कढ़ाई का शिल्प। |
| |गजाश्वादे: गतिशिक्षा- हाथी-घोड़ों आदि की चाल सिखाना। | | |गजाश्वादे: गतिशिक्षा- हाथी-घोड़ों आदि की चाल सिखाना। |
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| |26 | | |26 |
| + | |मर्मवेधित्वम् -मर्मस्थल का बेधना। |
| + | |विज्ञानम् |
| |सूत्रक्रीडा - हाथ के सूत्र (धागा आदि) से नानाप्रकार की आकृतियॉं बुनना। | | |सूत्रक्रीडा - हाथ के सूत्र (धागा आदि) से नानाप्रकार की आकृतियॉं बुनना। |
| |मृत्तिकाकाष्ठपाषाणधातुभाण्डादिसत्क्रिया -मिट्टी, लकड़ी पत्थर और धातु के बर्तन बनाना | | |मृत्तिकाकाष्ठपाषाणधातुभाण्डादिसत्क्रिया -मिट्टी, लकड़ी पत्थर और धातु के बर्तन बनाना |
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| |27 | | |27 |
| + | |शब्दवेधित्वम् - शब्दबेधी बाण चलाना। |
| + | |तर्कवादः |
| |वीणाडमरुकवाद्यानि - वीणा, डमरु आदि बजाना। | | |वीणाडमरुकवाद्यानि - वीणा, डमरु आदि बजाना। |
| |चित्राद्यालेखनम् - चित्र बनाना। | | |चित्राद्यालेखनम् - चित्र बनाना। |
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| |- | | |- |
| |28 | | |28 |
| + | |दृढप्रहारित्वम् मुष्टिप्रहार करना। |
| + | |सिद्धान्तः |
| |प्रहेलिका - पहेलियाँ बुझाना। | | |प्रहेलिका - पहेलियाँ बुझाना। |
| |तटाकवापीप्रसादसमभूमिक्रिया - कुँआ, पोखरे खोदना तथा जमीन बराबर करना। | | |तटाकवापीप्रसादसमभूमिक्रिया - कुँआ, पोखरे खोदना तथा जमीन बराबर करना। |
| |- | | |- |
| |29 | | |29 |
| + | |अक्षक्रीडा-पाशा फेंकना। |
| + | |विषवादः |
| |प्रतिमा* - अंत्याक्षरी। | | |प्रतिमा* - अंत्याक्षरी। |
| |घट्याद्यनेकयन्त्राणां वाद्यानां कृतिः - वाद्य - यन्त्र तथा पनचक्की जैसी मशीनों का बनाना। | | |घट्याद्यनेकयन्त्राणां वाद्यानां कृतिः - वाद्य - यन्त्र तथा पनचक्की जैसी मशीनों का बनाना। |
| |- | | |- |
| |30 | | |30 |
| + | |काव्यव्याकरणम्-काव्य की व्याख्या करना। |
| + | |गारुडम् |
| |दुर्वाचकयोगाः - कठिन उच्चारण और गूढ अर्थों वाले श्लोकों की रचना। | | |दुर्वाचकयोगाः - कठिन उच्चारण और गूढ अर्थों वाले श्लोकों की रचना। |
| |हीनमध्यादिसंयोगवर्णाद्यै रंजनम् - रंगों के भिन्न-भिन्न मिश्रणों से चित्र रँगना। | | |हीनमध्यादिसंयोगवर्णाद्यै रंजनम् - रंगों के भिन्न-भिन्न मिश्रणों से चित्र रँगना। |
| |- | | |- |
| |31 | | |31 |
| + | |ग्रन्थरचितम्- ग्रन्थ - रचना। |
| + | |शाकुनम् |
| |पुस्तकवाचनम् - पुस्तक बाँचने का शिल्प। | | |पुस्तकवाचनम् - पुस्तक बाँचने का शिल्प। |
| |जलवाटवग्निसंयोगनिरोधैः क्रिया - जल, वायु, अग्नि को साथ मिलाकर और अलग-अलग रखकर कार्य करना, इन्हें बाँधना। | | |जलवाटवग्निसंयोगनिरोधैः क्रिया - जल, वायु, अग्नि को साथ मिलाकर और अलग-अलग रखकर कार्य करना, इन्हें बाँधना। |
| |- | | |- |
| |32 | | |32 |
| + | |रूपम् - रूप निर्माण कला ( लकड़ी-सोना इत्यादि में आकृति बनाना )। |
| + | |वैद्यकम् |
| |नाटिकाख्यायिकादर्शनम् - नाट्य एवं कथा-काव्यों का रसास्वादन। | | |नाटिकाख्यायिकादर्शनम् - नाट्य एवं कथा-काव्यों का रसास्वादन। |
| |नौकारथादियानानां कृतिज्ञानम् - नौका, रथ आदि सवारियों का बनाना। | | |नौकारथादियानानां कृतिज्ञानम् - नौका, रथ आदि सवारियों का बनाना। |
| |- | | |- |
| |33 | | |33 |
| + | |रूपकर्म- चित्रकारी। |
| + | |आचार्यविद्या |
| |काव्यसमस्यापूरणम् - समस्यापूर्ति। | | |काव्यसमस्यापूरणम् - समस्यापूर्ति। |
| |सूत्रादिरज्जुकरणविज्ञानम्- सूत और रस्सी बनाने का ज्ञान। | | |सूत्रादिरज्जुकरणविज्ञानम्- सूत और रस्सी बनाने का ज्ञान। |
| |- | | |- |
| |34 | | |34 |
| + | |अधीतम् -अध्ययन करना। |
| + | |आगमः |
| |पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः - बेंत ओर बाँस का शिल्प। | | |पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः - बेंत ओर बाँस का शिल्प। |
| |अनेकतन्तुसंयोगैः पटबन्धः- सूत से कपड़ा बुनना। | | |अनेकतन्तुसंयोगैः पटबन्धः- सूत से कपड़ा बुनना। |
| |- | | |- |
| |35 | | |35 |
| + | |अग्निकर्म-आग पैदा करना । |
| + | |प्रासादलक्षणम् |
| |तक्षकर्माणि - नक्काशी का काम। | | |तक्षकर्माणि - नक्काशी का काम। |
| |रत्नानां वेधादिसदसद्ज्ञानम् - रत्नों की परीक्षा, उन्हें काटना- छेदना आदि। | | |रत्नानां वेधादिसदसद्ज्ञानम् - रत्नों की परीक्षा, उन्हें काटना- छेदना आदि। |
| |- | | |- |
| |36 | | |36 |
| + | |वीणा- वीणा बजाना । |
| + | |सामुद्रिकम् |
| |तक्षणम् - काष्ठकर्म। | | |तक्षणम् - काष्ठकर्म। |
| |स्वर्णादीनान्तु याथार्थ्यविज्ञानम् - सोने आदि के जाँचने का ज्ञान। | | |स्वर्णादीनान्तु याथार्थ्यविज्ञानम् - सोने आदि के जाँचने का ज्ञान। |
| |- | | |- |
| |37 | | |37 |
| + | |वाद्यनृत्यम् -नाचना और बाजा बजाना । |
| + | |स्मृतिः |
| |वास्तुविद्या - स्थापत्य शिल्प | | |वास्तुविद्या - स्थापत्य शिल्प |
| |कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् - बनावटी सोना, रत्न (इमिटेशन) आदि बनाना। | | |कृत्रिमस्वर्णरत्नादिक्रियाज्ञानम् - बनावटी सोना, रत्न (इमिटेशन) आदि बनाना। |
| |- | | |- |
| |38 | | |38 |
| + | |गीतपठिम् -गाना और कविता- पाठ करना। |
| + | |पुराणम् |
| |रूप्यरत्नपरीक्षा - चाँदी-सोना आदि धातुओं तथा रत्नों की परीक्षा। | | |रूप्यरत्नपरीक्षा - चाँदी-सोना आदि धातुओं तथा रत्नों की परीक्षा। |
| |स्वर्णाद्यलंकारकृतिः - सोने आदि का गहना बनाना। | | |स्वर्णाद्यलंकारकृतिः - सोने आदि का गहना बनाना। |
| |- | | |- |
| |39 | | |39 |
| + | |आख्यातम् -कहानी सुनाना। |
| + | |इतिहासः |
| |धातुवादः - धातु-शोधन, मिश्रण आदि। | | |धातुवादः - धातु-शोधन, मिश्रण आदि। |
| |लेपादिसत्कृतिः- मुलम्मा देना, पानी चढ़ाना। | | |लेपादिसत्कृतिः- मुलम्मा देना, पानी चढ़ाना। |
| |- | | |- |
| |40 | | |40 |
| + | |हास्यम् -मजाक करना। |
| + | |वेदः |
| |मणिरागाकरज्ञानम् - मणियों को रंगना एवं उनके आकर का ज्ञान। | | |मणिरागाकरज्ञानम् - मणियों को रंगना एवं उनके आकर का ज्ञान। |
| |चर्मणां मार्दवादिक्रियाज्ञानम् चमड़े को नर्म बनाना। | | |चर्मणां मार्दवादिक्रियाज्ञानम् चमड़े को नर्म बनाना। |
| |- | | |- |
| |41 | | |41 |
| + | |लास्यम् -सुकुमार नृत्य । |
| + | |विधिः |
| |वृक्षायुर्वेदयोगाः - वृक्षों के दीर्घायुष्य का शिल्प एवं उपवन लगाने की कला। | | |वृक्षायुर्वेदयोगाः - वृक्षों के दीर्घायुष्य का शिल्प एवं उपवन लगाने की कला। |
| |पशुचर्माङ्गनिर्हारज्ञानम्-पशु के शरीर से चमड़ा, मांस आदि को अलग कर सकना। | | |पशुचर्माङ्गनिर्हारज्ञानम्-पशु के शरीर से चमड़ा, मांस आदि को अलग कर सकना। |
| |- | | |- |
| |42 | | |42 |
| + | |नाट्यम् -नाटक, अनुकरण नृत्य । |
| + | |विद्यानुवादः |
| |मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः - मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना। | | |मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः - मेष आदि पशु पक्षियों को लड़ाना। |
| |दुग्धदोहादिघृतान्तं विज्ञानम् - दूध दुहना और उससे घी आदि निकालना। | | |दुग्धदोहादिघृतान्तं विज्ञानम् - दूध दुहना और उससे घी आदि निकालना। |
| |- | | |- |
| |43 | | |43 |
| + | |विडिम्बितम् - दूसरे का व्यंगात्मक अनुकरण, कैरिकेचर, मिमिक्री। |
| + | |दर्शनसंस्कारः |
| |शुकसारिकाप्रलापनम् - तोता-मैना आदि को बोलना सिखाना। | | |शुकसारिकाप्रलापनम् - तोता-मैना आदि को बोलना सिखाना। |
| |कञ्चुकादीनां सीवने विज्ञानम् - चोली आदि का सीना । | | |कञ्चुकादीनां सीवने विज्ञानम् - चोली आदि का सीना । |
| |- | | |- |
| |44 | | |44 |
| + | |माल्यग्रन्थनम्-माला गूंथना। |
| + | |खेचरीकला |
| |उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलम् - शरीर दबाने, सिर पर तेल लगाने आदि की कला। | | |उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलम् - शरीर दबाने, सिर पर तेल लगाने आदि की कला। |
| |जले बाह्वादिभिस्तरणम् हाथ की सहायता से तैरना। | | |जले बाह्वादिभिस्तरणम् हाथ की सहायता से तैरना। |
| |- | | |- |
| |45 | | |45 |
| + | |संवाहितम्-शरीर की मालिश। |
| + | |भ्रामरीकला |
| |अक्षरमुष्टिकाकथनम् - संकेत भाषा का ज्ञान। | | |अक्षरमुष्टिकाकथनम् - संकेत भाषा का ज्ञान। |
| |गृहभाण्डादेर्मार्जने विज्ञानम् - घर तथा घर के बर्तनों को साफ करने में निपुणता। | | |गृहभाण्डादेर्मार्जने विज्ञानम् - घर तथा घर के बर्तनों को साफ करने में निपुणता। |
| |- | | |- |
| |46 | | |46 |
| + | |मणिरागः- कपड़ा रँगना |
| + | |इन्द्रजालम् |
| |म्लेच्छितकविकल्पाः - गुप्तभाषा का ज्ञान। | | |म्लेच्छितकविकल्पाः - गुप्तभाषा का ज्ञान। |
| |वस्त्रसंमार्जनम् - कपड़ा साफ करना। | | |वस्त्रसंमार्जनम् - कपड़ा साफ करना। |
| |- | | |- |
| |47 | | |47 |
| + | |वस्त्ररागः-बहुमूल्य पत्थरों को रँगना। |
| + | |पातालसिद्धिः |
| |देशभाषाज्ञानम् - लोकभाषाओं का ज्ञान। | | |देशभाषाज्ञानम् - लोकभाषाओं का ज्ञान। |
| |क्षुरकर्म - हजामत बनाना । | | |क्षुरकर्म - हजामत बनाना । |
| |- | | |- |
| |48 | | |48 |
| + | |मायाकृतम्-इन्द्रजाल। |
| + | |धूर्तशम्बलम् |
| |पुष्पशकटिका- पुष्पों से गाड़ी आदि बनाना या सजाना। | | |पुष्पशकटिका- पुष्पों से गाड़ी आदि बनाना या सजाना। |
| |तिलमांसादिस्नेहानां निष्कासने कृतिः-तिल और मांस आदि से तेल निकालना। | | |तिलमांसादिस्नेहानां निष्कासने कृतिः-तिल और मांस आदि से तेल निकालना। |
| |- | | |- |
| |49 | | |49 |
| + | |स्वप्नाध्यायः-सपनों का अर्थ लगाना। |
| + | |गन्धवादः |
| |निमित्तज्ञानम् - शकुन ज्ञानम् । | | |निमित्तज्ञानम् - शकुन ज्ञानम् । |
| |सीराद्याकर्षणे ज्ञानम्-खेत जोतना, निराना आदि। | | |सीराद्याकर्षणे ज्ञानम्-खेत जोतना, निराना आदि। |
| |- | | |- |
| |50 | | |50 |
| + | |शकुनिरुतम् - पक्षी की बोली समझना। |
| + | |वृक्षचिकित्सा |
| |यन्त्रमातृका - यंत्ररचना का शिल्प। | | |यन्त्रमातृका - यंत्ररचना का शिल्प। |
| |वृक्षाद्यारोहणे ज्ञानम् - वृक्ष आदि पर चढ़ना। | | |वृक्षाद्यारोहणे ज्ञानम् - वृक्ष आदि पर चढ़ना। |
| |- | | |- |
| |51 | | |51 |
| + | |स्त्रीलक्षणम् -स्त्री का लक्षण जानना। |
| + | |कृत्रिममणिकर्म |
| |धारणमातृका - स्मरणशक्ति बढ़ाने की कला। | | |धारणमातृका - स्मरणशक्ति बढ़ाने की कला। |
| |मनोनुकूलसेवायाः कृतिज्ञानम् - अनुकूल सेवा द्वारा दूसरों को प्रसन्न करना । | | |मनोनुकूलसेवायाः कृतिज्ञानम् - अनुकूल सेवा द्वारा दूसरों को प्रसन्न करना । |
| |- | | |- |
| |52 | | |52 |
| + | |पुरुषलक्षणम्-पुरुष का लक्षण जानना। |
| + | |सर्वकरणी |
| |सम्पाठ्यम् - काव्यपाठ की कला। | | |सम्पाठ्यम् - काव्यपाठ की कला। |
| |वेणुतृणादिपात्राणां कृतिज्ञानम् -बाँस, नरकट आदि से बर्तन आदि बना लेना। | | |वेणुतृणादिपात्राणां कृतिज्ञानम् -बाँस, नरकट आदि से बर्तन आदि बना लेना। |
| |- | | |- |
| |53 | | |53 |
| + | |अश्वलक्षणम् - घोड़े का लक्षण जानना। |
| + | |वश्यकर्म |
| |मानसीकाव्यक्रिया - मौखिक काव्यरचना। | | |मानसीकाव्यक्रिया - मौखिक काव्यरचना। |
| |काचपात्रादिकरणविज्ञानम् - शीशे का बर्तन आदि बनाना। | | |काचपात्रादिकरणविज्ञानम् - शीशे का बर्तन आदि बनाना। |
| |- | | |- |
| |54 | | |54 |
| + | |हस्तिलक्षणम् - हाथी का लक्षण जानना। |
| + | |पणकर्म |
| |अभिधानकोष - शब्दकोष। | | |अभिधानकोष - शब्दकोष। |
| |जलानां संसेचनं संहरणम् - जल लाना और सींचना। | | |जलानां संसेचनं संहरणम् - जल लाना और सींचना। |
| |- | | |- |
| |55 | | |55 |
| + | |गोलक्षणम् गाय, बैल का लक्षण जानना। |
| + | |सूचित्रकर्म |
| |छ्न्दोज्ञानम् - छन्द का ज्ञान। | | |छ्न्दोज्ञानम् - छन्द का ज्ञान। |
| |लोहाभिसारशस्त्राकृतिज्ञानम्-धातुओं से हथियार बनाना। | | |लोहाभिसारशस्त्राकृतिज्ञानम्-धातुओं से हथियार बनाना। |
| |- | | |- |
| |56 | | |56 |
| + | |अजलक्षणम् - बकरा, बकरी का लक्षण जानना। |
| + | |काष्ठघटन कर्म |
| |क्रियाकल्पः - काव्यालंकार का ज्ञान। | | |क्रियाकल्पः - काव्यालंकार का ज्ञान। |
| |गजाश्ववृषभोष्ट्राणां पल्याणादिक्रिया - हाथी, घोड़ा, बैल, ऊँट आदि का जीन, चारजामाओं का हौदा बनाना। | | |गजाश्ववृषभोष्ट्राणां पल्याणादिक्रिया - हाथी, घोड़ा, बैल, ऊँट आदि का जीन, चारजामाओं का हौदा बनाना। |
| |- | | |- |
| |57 | | |57 |
| + | |मिश्रितलक्षणम् - मिलावट पहचानने की या भिन्न-भिन्न जन्तुओं को पहचानने की कला। |
| + | |पाषाणकर्म |
| |छलितकयोगाः - छलने का कौशल। | | |छलितकयोगाः - छलने का कौशल। |
| |शिशोस्संरक्षणे धारणे क्रीडने ज्ञानम्-बच्चों को पालना और खेलाना। | | |शिशोस्संरक्षणे धारणे क्रीडने ज्ञानम्-बच्चों को पालना और खेलाना। |
| |- | | |- |
| |58 | | |58 |
| + | |कैटभेश्वरलक्षणम् - लिपि विशेष। |
| + | |लेपकर्म |
| |वस्त्रगोपनानि - असुंदर को छिपाते हुये वस्त्रधारण का कौशल। | | |वस्त्रगोपनानि - असुंदर को छिपाते हुये वस्त्रधारण का कौशल। |
| |अपराधिजनेषु युक्तताडनज्ञानम्-अपराधियों को ढंग से दण्ड देना। | | |अपराधिजनेषु युक्तताडनज्ञानम्-अपराधियों को ढंग से दण्ड देना। |
| |- | | |- |
| |59 | | |59 |
| + | |निघण्टु- कोष। |
| + | |चर्मकर्म |
| |द्यूतविशेषः - द्यूतक्रीडा। | | |द्यूतविशेषः - द्यूतक्रीडा। |
| |नानादेशीयवर्णानां सुसम्यग्लेखने ज्ञानम्-भिन्न-भिन्न देशीय लिपियों का लिखना। | | |नानादेशीयवर्णानां सुसम्यग्लेखने ज्ञानम्-भिन्न-भिन्न देशीय लिपियों का लिखना। |
| |- | | |- |
| |60 | | |60 |
| + | |निगमः-श्रुति। |
| + | |यन्त्रकरसवती |
| |आकर्षक्रीडा - पासे का खेल। | | |आकर्षक्रीडा - पासे का खेल। |
| |ताम्बूलरक्षादिकृतिविज्ञानम्-पान को रखने, बीड़ा बनाने की विधि। | | |ताम्बूलरक्षादिकृतिविज्ञानम्-पान को रखने, बीड़ा बनाने की विधि। |
| |- | | |- |
| |61 | | |61 |
| + | |पुराणम्-पुराण। |
| + | |काव्यम् |
| |बालकक्रीडनकानि - बच्चों की विभिन्न क्रीडाओं का ज्ञान। | | |बालकक्रीडनकानि - बच्चों की विभिन्न क्रीडाओं का ज्ञान। |
| |आदानम् - कलामर्मज्ञता। | | |आदानम् - कलामर्मज्ञता। |
| |- | | |- |
| |62 | | |62 |
| + | |इतिहासः-इतिहास। |
| + | |अलंकारः |
| |वैनायिकीनां विद्यानां ज्ञानम् - विनय सिखाने वाली विद्याओं का ज्ञान। | | |वैनायिकीनां विद्यानां ज्ञानम् - विनय सिखाने वाली विद्याओं का ज्ञान। |
| |आशुकारित्वम् - शीघ्र काम कर सकना । | | |आशुकारित्वम् - शीघ्र काम कर सकना । |
| |- | | |- |
| |63 | | |63 |
| + | |वेदः - वेद। |
| + | |हसितम् |
| |वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् - विजय दिलाने वाली विद्याओं का ज्ञान। | | |वैजयिकीनां विद्यानां ज्ञानम् - विजय दिलाने वाली विद्याओं का ज्ञान। |
| |प्रतिदानम् - कलाओं को सिखा सकना । | | |प्रतिदानम् - कलाओं को सिखा सकना । |
| |- | | |- |
| |64 | | |64 |
| + | |व्याकरणम्-व्याकरण। |
| + | |संस्कृतम् |
| |व्यायामिकीनां नांविद्यानां ज्ञानम् - व्यायामविद्या का ज्ञान। | | |व्यायामिकीनां नांविद्यानां ज्ञानम् - व्यायामविद्या का ज्ञान। |
| |चिरक्रिया - देर-देर से काम करना। | | |चिरक्रिया - देर-देर से काम करना। |
| + | |- |
| + | |65 |
| + | |निरुक्तम् - निरुक्त । |
| + | |प्राकृतम् |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |66 |
| + | |शिक्षा - उच्चारणविज्ञान। |
| + | |पैशाचिकम् |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |67 |
| + | |छन्दः- छन्द। |
| + | |अपभ्रंशम् |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |68 |
| + | |यज्ञकल्पः-यज्ञ-विधि। |
| + | |कपटम् |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |69 |
| + | |ज्योतिः-ज्योतिष। |
| + | |देशभाषा |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |70 |
| + | |सांख्यम्-सांख्यदर्शन। |
| + | |धातुकर्म |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |71 |
| + | |योगः-योगदर्शन। |
| + | |प्रयोगोपायः |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |72 |
| + | |क्रियाकल्पकः काव्य और अलंकार । |
| + | |केवलिविधिः |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |73 |
| + | |वैशेषिकम् - वैशेषिक दर्शन। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |74 |
| + | |वेशिकम् - ‘कामसूत्र' के अनुसार वेशिक विज्ञान का प्रकरण (दत्तक नामकने पाटलिपुत्र की वेश्याओं के अनुरोध से प्रणीत किया था)। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |75 |
| + | |अर्थविद्या - राजनीति और अर्थशास्त्र। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |76 |
| + | |बार्हस्पत्यम् -लोकायत मत। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |77 |
| + | |आश्चर्यम् |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |78 |
| + | |आसुरम्-असुर-सम्बन्धी विद्या। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |79 |
| + | |मृगपक्षिरुतम् -पशुपक्षी की बोली समझना। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |80 |
| + | |हेतुविद्या -न्याय दर्शन। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |81 |
| + | |जतुयन्त्रम् -लाख के यन्त्र बनाना। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |82 |
| + | |मधूच्छिष्टकृतम् -मोम का काम । |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |83 |
| + | |सूचीकर्म-सुई के काम। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |84 |
| + | |विदलकर्म-दलों या हिस्सों को अलग कर देने का कौशल। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |85 |
| + | |पत्रच्छेद्यम् - पत्तियों को काट-छाँटकर विभिन्न आकृतियाँ बनाना। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| + | |- |
| + | |86 |
| + | |गन्धयुक्तिः - कई द्रव्यों के मिश्रण से सुगन्धि तैयार करना। |
| + | | |
| + | | |
| + | | |
| |} | | |} |
| <nowiki>*</nowiki> शब्दकल्पद्रुम में प्रतिमाला के स्थान में प्रतिमा (मूर्तिकला) का उल्लेख है। | | <nowiki>*</nowiki> शब्दकल्पद्रुम में प्रतिमाला के स्थान में प्रतिमा (मूर्तिकला) का उल्लेख है। |
| + | |
| + | == कलाओं का वर्गीकरण॥ Classification of Arts == |
| + | कलाओं के वर्गीकरण की प्रवृत्ति आधुनिक है। संस्कृत वाङ्मय में कलाओं का परिगणन हुआ है न कि वर्गीकरण। ललितकला शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कालिदास साहित्य में हुआ है किन्तु कलाओं का वर्गीकरण उनका अभिप्राय नहीं है। शुक्रनीति में भी कलाओं के वर्गीकरण का प्रयास किञ्चित् परिलक्षित है। यहां स्रोत की दृष्टि से कलाओं के चार वर्ग कहे गये हैं- |
| + | |
| + | # '''गान्धर्ववेदोक्त कला=''' नृत्य, वाद्य, वस्त्रालंकार, संधान, पुष्पग्रथन, शयन-रचना, द्यूत-क्रीडा, रतिज्ञान आदि सात कलाऐं इस वर्ग में आती हैं। |
| + | # '''आयुर्वेदोक्त कला=''' आसव-मद्य आदि बनाने की कला, शल्य-क्रिया की कला, पाककला, धातुवाद, क्षार-निष्कासन आदि दस कलाऐं इस श्रेणी में परिगणित होती है। |
| + | # '''धनुर्वेदोक्त कला=''' शस्त्रसन्धान, मल्लयुद्ध, यन्त्रादि, संचालन, अस्त्रसंचालन, व्यूहरचना आदि पॉंच धनुर्वेदोक्त कलाऐं हैं। |
| + | # '''विविध =''' मृत्तिका- काष्ठ-पाषाण और धातु से भाण्डरचना, चित्रादि आलेखन, तडाग-वापी-प्रासाद आदि की रचना पृथक-पृथक् कलाऐं हैं। |
| + | |
| + | === शिल्प एवं कला॥ Crafts & Arts === |
| + | यह वर्गीकरण उपजीव्य स्रोत की दृष्टि से है। शिल्प और कला का भेद यहां नहीं है। वस्तुतः प्राचीन वाङ्ममय में जिस व्यापक अर्थ में शिल्प शिल्प शब्द का प्रयोग हुआ करता था उस अर्थ में वर्तमान युग में कला शब्द का प्रयोग होता है। तथा शिल्प कला का विशेषण बन गया है। आधुनिक विचारकों ने कला को मुख्यतः दो वर्गों में विभक्त किया है- |
| + | |
| + | # '''ललित कलाऐं''' = इसके अन्तर्गत वास्तु, मूर्ति, चित्र, संगीत और काव्य को रखा गया है। यद्यपि अधिकांश विद्वान् काव्य को कला मानने के पक्ष में नहीं हैं। इसे चारुशिल्प भी कहा गया है। यह कलाकार की महान् साधना, अंतःप्रज्ञा और अभ्यास से प्रसूत होती है। सौंदर्य, रस और आनन्द की सृष्टि ही इसका मूल लक्ष्य है। |
| + | # '''शिल्प कलाऐं''' = दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को सुन्दर ढंग से पूर्ण करने के लिये जो कौशल विकसित हुए हैं जैसे- पुष्पसज्जा, गन्धयुक्ति, वृक्षायुर्वेद, तक्षण कर्म आदि उन्हैं इस वर्ग में रखा गया है। इसे कारुशिल्प या उपयोगी कलाऐं भी कहा गया है। |
| + | |
| + | विद्याओं के साथ ही इन कलाओं का अध्ययन भी भारतीय सुबुद्ध नागरिक क्योंकि कला जीवन जीने की कला है तथा प्रेममय दाम्पत्य जीवन, सुखी परिवार और सुन्दर समाज की आधार शिला है। संस्कृत वाङ्ममय में निबद्ध कलाऐं पुरातन भारतीय जीवन, सभ्यता, संस्कृति धर्म और दर्शन को समझने तथा वर्तमान जीवन शैली को सँवारने की दृष्टि देती है। |
| + | |
| + | == कलाओं का संक्षिप्त परिचय == |
| + | |
| + | |
| + | गीतम् - संस्कृत वाङ्ममय में ' गीत, वाद्य, तथा नृत्य इन तीनों की त्रयी को संगीत कहा गया है।<blockquote>गीतं वाद्यं तथा नृत्तं त्रयं संगीतमुच्यते।(संगीत रत्नाकर१/२१)</blockquote>संगीत में वाद्य गीत का अनुगामी है और नृत्य वाद्य का। अतः गीत ही प्रधान एवं प्रथम है।<blockquote>नृत्यं वाद्यानुगं प्रोक्तं वाद्यं गीतानुवर्ति च। अतो गीतं प्रधानत्वादत्रादावभिधीयते॥ (संगीत रत्नाकर १/२५)</blockquote>गीत नादब्रह्म की साधना है, फलतः पुरुषार्थ चतुष्टय की साधक है-<blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणामिदमेवैकसाधनम् ।(संगीत रत्नाकर १/३०)</blockquote>आचार्य शार्गदेवके अनुसार मनोरंजक स्वरसमुदाय की संज्ञा गीत है-<blockquote>रञ्जकः स्वरसन्दर्भो गीतमित्यभिधीयते।((संगीत रत्नाकर ४/१)</blockquote> |
| | | |
| == निष्कर्ष॥ Discussion == | | == निष्कर्ष॥ Discussion == |