| आप हमेशा सज्जन और मीठा यहाँ यह है । 1 ) घर पर सुखदू खा के अवसर आते रहेंगे , 2) खैर, झील हो या कहीं भी जाओ यदि हां, तो मेरी अनुमति के बिना कुछ भी न करें , 3) व्रत , उद्यान , दान एक महिला की वृत्ति है। मुझे गलत मत समझो। 4) पैसा , पशुधन , अनाज सब कुछ जो तुमने अपनी मर्जी से कमाया है मैं भी। मुझे बताओ कि तुम क्या चाहते हो और खुश रहो , 5) हाथी , घोड़े या अन्य पशु , जो भी आप खरीदना चाहते हैं या बेचने के लिए , मैं बिना पूछे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता। 6) आभूषण , रत्न आदि मुझे नित्य देते रहना चाहिए , 7) गीत-संगीत के अवसर पर मैं अपनी मालकिन के पास जाऊँगा, न बुलाऊँ भी तो प्रिये , तुम मुझे मत रोको। इसे हमेशा के लिए याद रखें । ( ये 7 श्लोक दुल्हन को दूल्हे को लेने पर मजबूर कर देते हैं। | | आप हमेशा सज्जन और मीठा यहाँ यह है । 1 ) घर पर सुखदू खा के अवसर आते रहेंगे , 2) खैर, झील हो या कहीं भी जाओ यदि हां, तो मेरी अनुमति के बिना कुछ भी न करें , 3) व्रत , उद्यान , दान एक महिला की वृत्ति है। मुझे गलत मत समझो। 4) पैसा , पशुधन , अनाज सब कुछ जो तुमने अपनी मर्जी से कमाया है मैं भी। मुझे बताओ कि तुम क्या चाहते हो और खुश रहो , 5) हाथी , घोड़े या अन्य पशु , जो भी आप खरीदना चाहते हैं या बेचने के लिए , मैं बिना पूछे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता। 6) आभूषण , रत्न आदि मुझे नित्य देते रहना चाहिए , 7) गीत-संगीत के अवसर पर मैं अपनी मालकिन के पास जाऊँगा, न बुलाऊँ भी तो प्रिये , तुम मुझे मत रोको। इसे हमेशा के लिए याद रखें । ( ये 7 श्लोक दुल्हन को दूल्हे को लेने पर मजबूर कर देते हैं। |
| + | मांडवा में मौजूद सभी लोग (दूल्हे) के इर्द-गिर्द खड़े हो जाते हैं. पुजारी/ स्वास्तिवचन का पाठ गुरुजिन्दवाड़ा द्वारा किया जाता है। दूल्हे पर सब अक्षत और दूर्वा वर्षा। यहाँ अक्षत (अखंड चावल) उस तत्व का है दर्शक है। वह तत्त्व जो नष्ट/विघटित/संकट नहीं होता , लेकिन दुर्वा शाश्वत है जीवन प्रसार का प्रतीक है। महाराष्ट्र में दूल्हा-दुल्हन को आमने सामने खड़ा कर , दोनों में अंतरपत (शॉल या अन्य वस्त्र) धारण करके गुरुजी मंगलाष्टके कहते हैं। ' दुल्हन : शुभमवतु ' कहलाती हैं , तो जो आस-पास खड़े होते हैं सभी लोग दूल्हे पर अक्षत बरसाते हैं। मगलाष्टक के अंत में (आठ .) प्रत्येक काटने के बाद कडवे / स्लोका) दूल्हा और दुल्हन एक दूसरे पर ओंजलि के अक्षत (सिर पर) फेंकते हैं वे एक-दूसरे को माला पहनाते हैं, उसके बाद कन्यादान , सप्तपदी , होम आदि जैसे अनुष्ठान करते हैं। |
| + | सभी सम्मानों के बाद और दूल्हे को शादी की रस्म पूरी की जाती है विदाई ' बोलावन ' कार्यक्रम होता है। इस बार प्यारी झील महेरी की गोद स्थायी निवास के लिए छोड़कर ससुराल (दूल्हे का घर/परिवार) में प्रवेश करना पत्तियाँ पहले के समय में इस अवसर पर भी नामजप करने की एक विधि होती थी। सामाजिक परिवर्तन से यह अनुष्ठान अप्रचलित हो गया है। आमतौर पर दुल्हन के घर के बाहर ओसारी (दहलज) पार करते समय या गांव की सीमा पार करते समय , आपका ओजली में धान की भूसी आगे बढ़ने पर वापस फेंक दी जाती है। इरादा यह है कि , हालाँकि वह इस घर को छोड़ रही है , यह परिवार , यह गाँव , यहाँ का माहौल खुशनुमा है , आपको धन-धान्य की प्राप्ति हो। महाराष्ट्र में, दुल्हन ' मालट्य ' ( एक प्रकार का ) पहनती है ) सूजी के हलवे के लिए एक पदार्थ देता है। उस रास्ते पर जब तक वह दूल्हे के घर नहीं पहुंची थोरा थोरा। |
| + | यह रस्म शादी के बाद सागर के घर में दुल्हन की पहली एंट्री है। इस समय वरपक्षी महिलाएं (सुवासिनी) दुल्हन को हाथ से हाथ से उतारती हैं, उससे पहले उसके मुंह में मिठाई डाली जाती है। एक दुल्हन जो अपने बचने की वजह से रो रही है समझने के बाद, उसे यार्ड में दूल्हे के घर ले जाया जाता है । औक्षाना (आरती) घर की दहलीज से परे की जाती है। फिर बधुने उम्बाटा पार करते समय , अनाज (चावल या गेहूं) दहलीज के घरेलू पक्ष पर भरे हुए पात्र को पैरों से थपथपाकर (उसमें दाना डालना) कर पतिगृह में प्रवेश करना। करता है एक परती में कुंकम (आल्टा से सजा हुआ) युक्त पानी दुल्हन के सामने रखा जाता है , दुल्हन उसमें अपने पैर डुबोती है और फंगस से भरे पैरों के निशान छोड़कर घर में चली जाती है । ये रस्में दुल्हन के शुभ आगमन और उसके स्वागत का प्रतीक हैं। उसके माध्यम से ऐसा कहा जाता है कि दुल्हन श्री लक्ष्मी और समृद्धि के साथ नए घर में आती है । इसके बाद दूल्हा और दुल्हन लक्ष्मी पूजा करते हैं। दुल्हन का नाम बदलने की होती है रस्म |