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चार पुरुषार्थ जिन्हें वैदिक धर्म ने धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राथमिकता दी है। इस दृष्टि से ब्रह्म विवाह सर्वोत्तम विकल्प है।
 
चार पुरुषार्थ जिन्हें वैदिक धर्म ने धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राथमिकता दी है। इस दृष्टि से ब्रह्म विवाह सर्वोत्तम विकल्प है।
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====== वर्तमान प्रारूप: ======
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=== वर्तमान प्रारूप: ===
 
शादी का मकसद है पशु मर्दानगी खत्म करना एक सुव्यवस्थित समाज का उत्पादित किया जाना चाहिए , अर्थात् । वर्तमान युग में मानवीय मूल्यों में घटित होना ह्रास , बढ़ती अश्लीलता , स्वच्छंद जीवन जीने पर उग्रवादी जिद , बढ़ती जा रही लिंग संबंधों के कारण विलासिता और परिणामी त्रुटियां (गलतियां) पहले जैसा पवित्र नहीं। विवाह के इन अपवित्र तत्वों को इस रिश्ते को खत्म कर और भी सभ्य , पवित्र , विश्वसनीय और भरोसेमंद बनाने के लिए विवाह संस्कार अनिवार्य हैं। इस संस्कार की रचना बहुत सोचनीय है हो चूका है। विवाह समारोहों में से प्रत्येक को करीब से देखने से पता चलता है कि कि , ऐतिहासिक काल में लिंग संबंधों के सूक्ष्म अध्ययन से, कई प्रयोग के बाद से वर्तमान विवाह पद्धति विकसित हुई है। वह वैज्ञानिक है। इतना ही नहीं , बल्कि टाइटस , 1) वैदिक , 2) लोकगीत और 3) कुलधर्म: अंगों पर विचार किया गया है।
 
शादी का मकसद है पशु मर्दानगी खत्म करना एक सुव्यवस्थित समाज का उत्पादित किया जाना चाहिए , अर्थात् । वर्तमान युग में मानवीय मूल्यों में घटित होना ह्रास , बढ़ती अश्लीलता , स्वच्छंद जीवन जीने पर उग्रवादी जिद , बढ़ती जा रही लिंग संबंधों के कारण विलासिता और परिणामी त्रुटियां (गलतियां) पहले जैसा पवित्र नहीं। विवाह के इन अपवित्र तत्वों को इस रिश्ते को खत्म कर और भी सभ्य , पवित्र , विश्वसनीय और भरोसेमंद बनाने के लिए विवाह संस्कार अनिवार्य हैं। इस संस्कार की रचना बहुत सोचनीय है हो चूका है। विवाह समारोहों में से प्रत्येक को करीब से देखने से पता चलता है कि कि , ऐतिहासिक काल में लिंग संबंधों के सूक्ष्म अध्ययन से, कई प्रयोग के बाद से वर्तमान विवाह पद्धति विकसित हुई है। वह वैज्ञानिक है। इतना ही नहीं , बल्कि टाइटस , 1) वैदिक , 2) लोकगीत और 3) कुलधर्म: अंगों पर विचार किया गया है।
    
लोकगीत और पंथ समय के साथ विकसित होने वाले कर्मकांड हैं , वैदिक कर्मकांड ऐसे दोनों मूल्यों के हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा विकसित समाजशास्त्र इस विवाह पद्धति में सुयोग्य संगम किया गया है। का अनुसरण करना
 
लोकगीत और पंथ समय के साथ विकसित होने वाले कर्मकांड हैं , वैदिक कर्मकांड ऐसे दोनों मूल्यों के हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा विकसित समाजशास्त्र इस विवाह पद्धति में सुयोग्य संगम किया गया है। का अनुसरण करना
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गन्ना:
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==== गन्ना: ====
 
   
यह दूल्हा और दुल्हन के बीच एक अनुबंध है। परस्पर एक आम सहमति भी है। कहीं- कहीं इसे ' एटिको ' वनिष्चय , खेडोपदी कहा जाता है इसे ' शालमुडी ' भी कहा जाता है । Faldan मूल शब्द है। दूल्हा और दुल्हन यह रस्म इस बात का संकेत है कि चुनाव के बाद शादी तय हो गई है। सामान्य रूप में चीनी का हलवा और दृढ़ संकल्प के बाद एक साल के भीतर विवाह समारोह किया जाता है। हाँ विधि कन्यापक्ष के लोग वरपक्ष जाते हैं। आजकल दोनों पार्टियां एक साथ यह अनुष्ठान कार्यालय में भी मनाया जाता है। दुल्हन के पिता और भाई का मुख उत्तर की ओर तथा दूल्हे के पिता का मुख पूर्व की ओर है। गणेश पूजा , गृह देवता पूजा के बाद दुल्हन के पिता या भाई भगवान की गवाही देते हैं सामने बैठे दूल्हे से अपनी बेटी/बहन की शादी करने के लिए संकल्प लें और दूल्हे के हाथ में अक्षत रखें। उस अक्षमता को लेते हुए अपनी स्वीकृति व्यक्त करता है। इस दौरान नारियल और फूलों का गुलदस्ता भेंट किया गया जाता है। दूल्हे के माता-पिता भी दुल्हन के घर पर इस रस्म को निभाते हैं। विवाह यह अनुष्ठान निश्चितता का प्रतीक है।
 
यह दूल्हा और दुल्हन के बीच एक अनुबंध है। परस्पर एक आम सहमति भी है। कहीं- कहीं इसे ' एटिको ' वनिष्चय , खेडोपदी कहा जाता है इसे ' शालमुडी ' भी कहा जाता है । Faldan मूल शब्द है। दूल्हा और दुल्हन यह रस्म इस बात का संकेत है कि चुनाव के बाद शादी तय हो गई है। सामान्य रूप में चीनी का हलवा और दृढ़ संकल्प के बाद एक साल के भीतर विवाह समारोह किया जाता है। हाँ विधि कन्यापक्ष के लोग वरपक्ष जाते हैं। आजकल दोनों पार्टियां एक साथ यह अनुष्ठान कार्यालय में भी मनाया जाता है। दुल्हन के पिता और भाई का मुख उत्तर की ओर तथा दूल्हे के पिता का मुख पूर्व की ओर है। गणेश पूजा , गृह देवता पूजा के बाद दुल्हन के पिता या भाई भगवान की गवाही देते हैं सामने बैठे दूल्हे से अपनी बेटी/बहन की शादी करने के लिए संकल्प लें और दूल्हे के हाथ में अक्षत रखें। उस अक्षमता को लेते हुए अपनी स्वीकृति व्यक्त करता है। इस दौरान नारियल और फूलों का गुलदस्ता भेंट किया गया जाता है। दूल्हे के माता-पिता भी दुल्हन के घर पर इस रस्म को निभाते हैं। विवाह यह अनुष्ठान निश्चितता का प्रतीक है।
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1 हरिद्रा/हल्दी रोपण:
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==== हरिद्रा/हल्दी रोपण: ====
 
   
हल्दी एक तरह की औषधि है। इसका उपयोग रोगों की रोकथाम और उपचार के लिए किया जाता है इसका उपयोग प्रतिरोध के लिए और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए भी किया जाता है। शादी की तारीख तय उसके बाद विवाह के एक सप्ताह पूर्व से प्रतिदिन स्नान कर लें वे शरीर पर हल्दी का लेप लगाते हैं और फिर स्नान करते हैं। इस हल्दी पेस्ट के लिए हल्दी , चंदन , दही और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों को मिलाएं करना। इस हल्दी लेप का मुख्य उद्देश्य दूल्हा और दुल्हन के शरीर को पूरी तरह से ढंकना है यह विटिलिगो को ठीक करने के लिए है , या इसे होने से रोकने के लिए है। आयुर्वेद के अनुसार इस लेप का शरीर के रक्त और आंतरिक अंगों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है यह अंगों के साथ भी होता है।
 
हल्दी एक तरह की औषधि है। इसका उपयोग रोगों की रोकथाम और उपचार के लिए किया जाता है इसका उपयोग प्रतिरोध के लिए और सौंदर्य प्रसाधनों के लिए भी किया जाता है। शादी की तारीख तय उसके बाद विवाह के एक सप्ताह पूर्व से प्रतिदिन स्नान कर लें वे शरीर पर हल्दी का लेप लगाते हैं और फिर स्नान करते हैं। इस हल्दी पेस्ट के लिए हल्दी , चंदन , दही और अन्य सौंदर्य प्रसाधनों को मिलाएं करना। इस हल्दी लेप का मुख्य उद्देश्य दूल्हा और दुल्हन के शरीर को पूरी तरह से ढंकना है यह विटिलिगो को ठीक करने के लिए है , या इसे होने से रोकने के लिए है। आयुर्वेद के अनुसार इस लेप का शरीर के रक्त और आंतरिक अंगों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है यह अंगों के साथ भी होता है।
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मातृकापूजन:
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==== मातृकापूजन: ====
 
   
के लिए ऑफिस जाने से पहले मंडली के दूल्हे से लेकर दूल्हे तक जाने से पहले दूल्हे के लोग घर के किसी सुनसान हिस्से में या मंदिर में देवी के सोलह रूपों की स्थापना करते हैं , जिन्हें ' मातृका ' कहा जाता है । के नाम गौरी , पद्मा , शची , मेधा , सावित्री , विजया , जया , देवसेना , स्वाधा , स्वाहा , मत्रा , लोकमातृ , धृति , पुष्टि , त्रिष्टि और सोलहवें कुल के कुल देवता ! गुरुजी / उन्हें औपचारिक रूप से पुजारी द्वारा स्थापित किया जाता है और पूजा की जाती है।
 
के लिए ऑफिस जाने से पहले मंडली के दूल्हे से लेकर दूल्हे तक जाने से पहले दूल्हे के लोग घर के किसी सुनसान हिस्से में या मंदिर में देवी के सोलह रूपों की स्थापना करते हैं , जिन्हें ' मातृका ' कहा जाता है । के नाम गौरी , पद्मा , शची , मेधा , सावित्री , विजया , जया , देवसेना , स्वाधा , स्वाहा , मत्रा , लोकमातृ , धृति , पुष्टि , त्रिष्टि और सोलहवें कुल के कुल देवता ! गुरुजी / उन्हें औपचारिक रूप से पुजारी द्वारा स्थापित किया जाता है और पूजा की जाती है।
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मंडप:
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==== मंडप: ====
 
   
मंडप वह स्थान है जहाँ विवाह समारोह होता है! आजकल एक गैलरी या भवन उपलब्ध है। इसे ' मंगल कार्यालय ' कहा जाता है । इसमें फ्लैट और स्वच्छ स्थान महत्वपूर्ण है। पहले घर के आंगन में ऐसी जगह बना रहे थे। चारों ओर छतरियां लगाकर जगह को जाम कर देते थे। अभी भी यह प्रथा देखा जाता है। समतल संस्कृति और शहरीकरण के कारण घर छोटे होते हैं। ऐसी स्थिति में मंगल कार्यालय में मंडप मंडप है। वहाँ या घर के आँगन में  तंबू में तंबू के पत्ते (विशेषकर आम) , तरह-तरह के फूल , कपड़ा , कागज की माला वे मंडप को सजाते हैं। भूमि को गोबर से समतल किया जाता है। उसके लिए रंगोली मांगलिक रूप दिया गया है। मंडप में वेदी बनाई गई है। उसके बाद गुरुजी वे मंडप की पूजा करते हैं।
 
मंडप वह स्थान है जहाँ विवाह समारोह होता है! आजकल एक गैलरी या भवन उपलब्ध है। इसे ' मंगल कार्यालय ' कहा जाता है । इसमें फ्लैट और स्वच्छ स्थान महत्वपूर्ण है। पहले घर के आंगन में ऐसी जगह बना रहे थे। चारों ओर छतरियां लगाकर जगह को जाम कर देते थे। अभी भी यह प्रथा देखा जाता है। समतल संस्कृति और शहरीकरण के कारण घर छोटे होते हैं। ऐसी स्थिति में मंगल कार्यालय में मंडप मंडप है। वहाँ या घर के आँगन में  तंबू में तंबू के पत्ते (विशेषकर आम) , तरह-तरह के फूल , कपड़ा , कागज की माला वे मंडप को सजाते हैं। भूमि को गोबर से समतल किया जाता है। उसके लिए रंगोली मांगलिक रूप दिया गया है। मंडप में वेदी बनाई गई है। उसके बाद गुरुजी वे मंडप की पूजा करते हैं।
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3 द्वाराचार : ( वराचे आगमन )
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==== द्वाराचार : ( दुल्हे का आगमन ) ====
 
   
रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ दुल्हन के घर आता है । फिर सारे चर्च वर-वधू का गर्मजोशी से स्वागत। दुल्हन की मां और अन्य सुगंधित दूल्हे हिलाना। कहीं-कहीं तो कन्यादान करने वाले पिता या भाई का भी कल्याण हो गया लहर की। शो का स्वागत करने की प्रथा अलग-अलग समाजों में अलग है हो चूका है। वे इसे कबीले के अनुसार करते हैं।
 
रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ दुल्हन के घर आता है । फिर सारे चर्च वर-वधू का गर्मजोशी से स्वागत। दुल्हन की मां और अन्य सुगंधित दूल्हे हिलाना। कहीं-कहीं तो कन्यादान करने वाले पिता या भाई का भी कल्याण हो गया लहर की। शो का स्वागत करने की प्रथा अलग-अलग समाजों में अलग है हो चूका है। वे इसे कबीले के अनुसार करते हैं।
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दूल्हे से मंडपपूजन।
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==== दूल्हे से मंडपपूजन ====
 
   
स्वागत के बाद दूल्हे को सम्मानपूर्वक टेंट में लाया जाता है। आरम्भ एव दूल्हा पूजा करने बैठ जाता है। दूल्हे का मुंह पूर्व दिशा में है गुरुजी वे पश्चिम दिशा में तथा पिता/भाई उत्तर दिशा में विराजमान हैं। गुरुजी दूल्हे से पाणिग्रह और पिता से कन्यादान।
 
स्वागत के बाद दूल्हे को सम्मानपूर्वक टेंट में लाया जाता है। आरम्भ एव दूल्हा पूजा करने बैठ जाता है। दूल्हे का मुंह पूर्व दिशा में है गुरुजी वे पश्चिम दिशा में तथा पिता/भाई उत्तर दिशा में विराजमान हैं। गुरुजी दूल्हे से पाणिग्रह और पिता से कन्यादान।
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==== मधुकोश :<nowiki>:</nowiki> ====
 
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3 मधुकोश :
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दही , शहद और घी मिला कर मिश्रण को चाटें। ऊपर यह इसे चखने से पहले देखता है फिर सभी दिशाओं में (गोल) ग्रहण के लिए प्रार्थना करता है , फिर उसका सेवन करता है। दही को पोषण का प्रतीक माना जाता है , शहद मीठा होता है और घी चिकनाई का प्रतीक माना जाता है। दूल्हे के माध्यम से आओ इसे घर (दूल्हा/ससुर) पर अमल में लाना है।
 
दही , शहद और घी मिला कर मिश्रण को चाटें। ऊपर यह इसे चखने से पहले देखता है फिर सभी दिशाओं में (गोल) ग्रहण के लिए प्रार्थना करता है , फिर उसका सेवन करता है। दही को पोषण का प्रतीक माना जाता है , शहद मीठा होता है और घी चिकनाई का प्रतीक माना जाता है। दूल्हे के माध्यम से आओ इसे घर (दूल्हा/ससुर) पर अमल में लाना है।
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कन्यादान और पाणिग्रह:
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==== कन्यादान और पाणिग्रह: ====
 
   
दुल्हन को सजाया जाता है और सम्मानपूर्वक तम्बू में लाया जाता है। उसे गुरुजी द्वारा तैयार किया गया था कन्यादान और पाणिग्रहण संस्कार दाहिनी ओर बैठकर किया जाता है। इसके बाद दुल्हन दूल्हे के बाईं ओर बैठी है। दूल्हे का पहनावा और दुल्हन का पदार या ओढ़नी (उत्तरी) की गाँठ बंधी है , जो अगले जन्म के लिए गठबंधन है प्रतीक माना जाता है। इस क्षण के बाद दुल्हन को पत्नी के रूप में छोड़ दिया जाता है। दूल्हा और दुल्हन साथ साथ हवन / होम करो। _ होमान हैं डालें । हाँ कन्यादानी देने की परंपरा है। पूर्व में बारा को गायों का दान किया जाता था। आजकल जितना हो सके सोना , चाँदी , नकद आदि दिया जाता है...
 
दुल्हन को सजाया जाता है और सम्मानपूर्वक तम्बू में लाया जाता है। उसे गुरुजी द्वारा तैयार किया गया था कन्यादान और पाणिग्रहण संस्कार दाहिनी ओर बैठकर किया जाता है। इसके बाद दुल्हन दूल्हे के बाईं ओर बैठी है। दूल्हे का पहनावा और दुल्हन का पदार या ओढ़नी (उत्तरी) की गाँठ बंधी है , जो अगले जन्म के लिए गठबंधन है प्रतीक माना जाता है। इस क्षण के बाद दुल्हन को पत्नी के रूप में छोड़ दिया जाता है। दूल्हा और दुल्हन साथ साथ हवन / होम करो। _ होमान हैं डालें । हाँ कन्यादानी देने की परंपरा है। पूर्व में बारा को गायों का दान किया जाता था। आजकल जितना हो सके सोना , चाँदी , नकद आदि दिया जाता है...
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वेदी- परिसंचरण
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==== वेदी- परिसंचरण ====
 
   
वेदी वेदों का प्रतीक है और अग्रि इसका केंद्र है। ऐसा है अभयारण्य इसलिए इस अनुष्ठान में वर-वधू साक्षी के रूप में वेद और अपरी की परिक्रमा करते हैं हो चूका है। दुल्हन के बगल में खड़े होकर , वह दुल्हन का हाथ पकड़कर वेदी के चारों ओर घूमती है दूल्हे का भाई दुल्हन के हाथ में अनाज डालता है। उसने उन पलकों को फैलाया जाता है। वेदी की चार परिक्रमाएं की जाती हैं। जवानी से लेकर बुढ़ापे तक अनाज है , प्रतीक माना जाता है। इसे समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। उन्होंने इसे फैलाया प्रदक्षिणा है समृद्धि की ओर जीवन की यात्रा!
 
वेदी वेदों का प्रतीक है और अग्रि इसका केंद्र है। ऐसा है अभयारण्य इसलिए इस अनुष्ठान में वर-वधू साक्षी के रूप में वेद और अपरी की परिक्रमा करते हैं हो चूका है। दुल्हन के बगल में खड़े होकर , वह दुल्हन का हाथ पकड़कर वेदी के चारों ओर घूमती है दूल्हे का भाई दुल्हन के हाथ में अनाज डालता है। उसने उन पलकों को फैलाया जाता है। वेदी की चार परिक्रमाएं की जाती हैं। जवानी से लेकर बुढ़ापे तक अनाज है , प्रतीक माना जाता है। इसे समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। उन्होंने इसे फैलाया प्रदक्षिणा है समृद्धि की ओर जीवन की यात्रा!
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सप्तपदी:
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==== सप्तपदी: ====
 
   
इस समारोह के लिए दुल्हन "उत्तर की ओर मुंह करके" खड़ी होती है और सात कदम उत्तर पूर्व की ओर जाती है एक दूसरे के साथ चलो। हर कदम पर कहीं चावल के पत्तों का ढेर लगाने के लिए अभ्यास होता है। शास्त्रों में सप्तपदी से पहले कन्या को कुँवारी कहा गया है। सप्तपदीच्य: हर कदम पर दुल्हन दूल्हे के कुल से सात मन्नतें मांगती है , जबकि दूल्हा दुल्हन से मांगता है पांच बचे लोगों के लिए पूछता है। इस अनुष्ठान के साथ दुल्हन अपने पूरे जीवन के लिए प्रतिबद्ध हो जाती है।
 
इस समारोह के लिए दुल्हन "उत्तर की ओर मुंह करके" खड़ी होती है और सात कदम उत्तर पूर्व की ओर जाती है एक दूसरे के साथ चलो। हर कदम पर कहीं चावल के पत्तों का ढेर लगाने के लिए अभ्यास होता है। शास्त्रों में सप्तपदी से पहले कन्या को कुँवारी कहा गया है। सप्तपदीच्य: हर कदम पर दुल्हन दूल्हे के कुल से सात मन्नतें मांगती है , जबकि दूल्हा दुल्हन से मांगता है पांच बचे लोगों के लिए पूछता है। इस अनुष्ठान के साथ दुल्हन अपने पूरे जीवन के लिए प्रतिबद्ध हो जाती है।
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3 सप्तपदीचा अर्थ :
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==== सप्तपदीचा अर्थ : ====
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दुल्हन की दूल्हे से ले लिया वादा : आप हमेशा सज्जन और मीठा यहाँ यह है । 1 ) घर पर सुखदू खा के अवसर आते रहेंगे , 2) खैर, झील हो या कहीं भी जाओ यदि हां, तो मेरी अनुमति के बिना कुछ भी न करें , 3) व्रत , उद्यान , दान एक महिला की वृत्ति है। मुझे गलत मत समझो। 4) पैसा , पशुधन , अनाज सब कुछ जो तुमने अपनी मर्जी से कमाया है मैं भी। मुझे बताओ कि तुम क्या चाहते हो और खुश रहो , 5) हाथी , घोड़े या अन्य पशु , जो भी आप खरीदना चाहते हैं या बेचने के लिए , मैं बिना पूछे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता। 6) आभूषण , रत्न आदि मुझे नित्य देते रहना चाहिए , 7) गीत-संगीत के अवसर पर मैं अपनी मालकिन के पास जाऊँगा, न बुलाऊँ भी तो प्रिये , तुम मुझे मत रोको। इसे हमेशा के लिए याद रखें । ( ये 7 श्लोक दुल्हन को दूल्हे को लेने पर मजबूर कर देते हैं।
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===== दुल्हन की दूल्हे से ले लिया वादा : =====
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आप हमेशा सज्जन और मीठा यहाँ यह है । 1 ) घर पर सुखदू खा के अवसर आते रहेंगे , 2) खैर, झील हो या कहीं भी जाओ यदि हां, तो मेरी अनुमति के बिना कुछ भी न करें , 3) व्रत , उद्यान , दान एक महिला की वृत्ति है। मुझे गलत मत समझो। 4) पैसा , पशुधन , अनाज सब कुछ जो तुमने अपनी मर्जी से कमाया है मैं भी। मुझे बताओ कि तुम क्या चाहते हो और खुश रहो , 5) हाथी , घोड़े या अन्य पशु , जो भी आप खरीदना चाहते हैं या बेचने के लिए , मैं बिना पूछे कोई निर्णय नहीं लेना चाहता। 6) आभूषण , रत्न आदि मुझे नित्य देते रहना चाहिए , 7) गीत-संगीत के अवसर पर मैं अपनी मालकिन के पास जाऊँगा, न बुलाऊँ भी तो प्रिये , तुम मुझे मत रोको। इसे हमेशा के लिए याद रखें । ( ये 7 श्लोक दुल्हन को दूल्हे को लेने पर मजबूर कर देते हैं।
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