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| | इसलिए जिनकी दिनचर्या में श्रम की कमी होती है उन्हें नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए । चलना (30 से 45 मीटर / घंटा) , दौड़ना ( 3-5 किमी ) , धूप सेंकना , योग , तैराकी , व्यायामशाला / जिम मे आप जैसा चाहें वैसा करना या हर दिन अपना उचित व्यायाम करना फायदेमंद होता है। रोग अगर ऐसा है तो किस तरह का व्यायाम करना है या नहीं करना है इस पर एक विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लें। | | इसलिए जिनकी दिनचर्या में श्रम की कमी होती है उन्हें नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए । चलना (30 से 45 मीटर / घंटा) , दौड़ना ( 3-5 किमी ) , धूप सेंकना , योग , तैराकी , व्यायामशाला / जिम मे आप जैसा चाहें वैसा करना या हर दिन अपना उचित व्यायाम करना फायदेमंद होता है। रोग अगर ऐसा है तो किस तरह का व्यायाम करना है या नहीं करना है इस पर एक विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लें। |
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| − | पारिवारिक रीति-रिवाजों के अनुसार प्रतिदिन स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन यह बहुत फायदेमंद होता है। फास्ट फूड , डिब्बाबंद पेय पदार्थ और खाद्य पदार्थ अनावश्यक रूप से शरीर में रसायनों की मात्रा बढ़ा देते हैं । | + | पारिवारिक रीति-रिवाजों के अनुसार प्रतिदिन स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन यह बहुत फायदेमंद होता है। फास्ट फूड , डिब्बाबंद पेय पदार्थ और खाद्य पदार्थ अनावश्यक रूप से शरीर में रसायनों की मात्रा बढ़ा देते हैं । इनका सेवन न करना सबसे अच्छा उपचार है । भोजन में ताजे फल , सलाद , पत्तेदार सब्जियां आदि शामिल होनी चाहिए। आधुनिक खाद्याचीकीत्सक में बताए अनुसार आहार में प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , फाइबर को हि केवल सम्मिलित न करते हुये पोषण के लिए विटामिन , कैल्शियम , आयरन और कुछ अम्ल भी भोजन में समावेश करना आवश्यक है। गर्भावस्था के पहले तीन महिने फोलिक एसिड (जो विटामिन बी कॉम्प्लेक्स में होता है , पत्तेदार सब्जियों से मिलता ) की अत्यंत आवश्यकता होती है। पानी और हवा की शुद्धता भी उतनी ही आवश्यक है। शयनकक्ष में वायु प्रवाह निरंतर चालना अर्थात प्रदूषित वायु को बाहर निकालना , शुद्ध वायू अंदर आना जैसी सुविधा का परामर्श दी जाता है। सही अनुपात में स्वस्थ शरीर के लिए नींद भी जरूरी मानी जाती है। हमारे पूर्वजों ने स्वस्थ शरीर की तीन महत्वपूर्ण विशेषताओं का उल्लेख किया है। सही समय पर भूख लगना , पाचन और पेट की सफाई, और गहरी नींद ये हैं प्रमुख लक्षण! गर्भधारण से पहले पुरुषों और महिलाओं को इस बात की जानकारी होनी चाहिए सभी कमियों को निरीक्षण कर दूर किया जाए। |
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| | + | === मन: === |
| | + | मन संचित कर्मों , पूर्व-संस्कारों और इच्छाओं का एक समूह है। वे पानी में उठने वाले एक भँवर की तरह है , जिसका अपना कोई रूप नहीं है। इच्छा और कर्म की उत्पत्ति के मुख्य सिद्धांत माने जाते हैं। उसकेनुसार (इच्छा और कर्म) मन बदलता है और उसके अनुसार स्वरूप का निर्माण होता है। मन, शरीर के प्रत्येक पेशियो को प्रभावित करता है। हृदय , पाचन तंत्र , श्वसन आदि चौबीस घंटे कार्यरत स्वचालित अंगों की गती मन के चढाव – उतार के परिवर्तन से स्पष्ट दिखाई पडता है । लंबे समय तक मन में नकारात्मक भावनाओं का आना शरीर के लिए आवश्यक अंग के विफलता का कारण हो सकता है। मन के डी.एन.ए. पर प्रभाव पड़ता है , इसलिए प्रजनन पूर्व मानसिक स्थिति पर बहुत गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। |
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| | + | मानसिक स्वास्थ्य के लिए कुछ जरूरी चीजें हैं। खुशी , सौहार्द का वातावरण और सकारात्मक दृष्टिकोण जिसमे परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग की अत्यंत आवश्यकता होती है । इस तरह के सहयोग के अभाव में , कम से कम पति-पत्नी ने एक दूसरे के लिए ऐसा माहौल बनाए रखना चाहिए। चौबीस घंटे में घटनेवाली विभिन्न घटनाओं से परस्पर आपसी समझ और सहयोग से ऐसा वातावरणों का निर्माण किया जा सकता है। इसके लिए एक-दूसरे को पसंद आने वाली छोटी-छोटी बातों को ध्यान रखकर आवश्यक रूप से वातावरण आनंदभरा और सकारात्मक रखे । |
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| | + | अध्ययन से सकारात्मक विचार उत्पन्न किया जा सकता हैं। उसके लिए प्रत्येक वस्तु , घटना , व्यक्ति के अच्छे गुणों पर ध्यान देना चाहिए । जंगल में सौंदर्यदायी बाग होते है , साथ ही उबड़ खाबड़ सड़कें भी होती है । आपका ध्यान कहा है , होना चाहिए , यह महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए हमें कहा लक्ष केन्द्रित करना चाहिए सकारात्मकता का पालन करने के लिए । इसलिए निडर ,निर्णय लेने में निष्पक्ष दृष्टिकोण बढ़ानी होगी । उसके लिए अच्छा साहित्य , उत्तम संगीत कला और सत्संग उनके बड़े फायदे हैं। भय , स्वार्थ , अंधी प्रतिस्पर्धा , घृणास्पद रवैया नकारात्मक भावों का पोषण करनेवाले है , इनसे बचना चाहिए। |
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| | + | जन्म लेने वाले बच्चे की मनःमें हमें क्या डालना है उसकी मनः स्थिति कैसी होगी इसका विचार गर्भधारण के समय किया जाना चाहिए। हमारे पास जो कुछ भी है , यही हम गर्भावस्था के दौरान दे सकते हैं इसलिए पति पत्नी दोनों ने गर्भाधान के समय आहार की तरह विचारों पर भी पूरा चिंतन करना चाहिए। |
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| | + | === बुद्धि: === |
| | + | बुद्धि एक यंत्र है। ईश्वर ने इसे सभी मनुष्यों (समान रूप से) को दिया है। आइंस्टीन , सी.वी. रमन और आप की बुद्धि में कोई अंतर नहीं है अंतर बस इतना है की हमने इसका विकास कैसे किया और इसे किस काम में लगाया. इसके अध्ययन से बुद्धि बढ़ती है। बुद्धि वैसा ही व्यवहार करती है जैसा मन सोचता है । मन में बुद्धि शरीर के द्वारा इच्छा उत्पन्न करने का कार्य करती है। दवाओं के माध्यम से बुद्धि के विकास के बारे में अनेक स्थानों पर वर्णित है। लेकिन स्थिर और सुरक्षित ऐसे बुद्धि का विकास अभ्यास से एकाग्रता और ध्यान से आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। जो हम ईश्वर या महापुरुष को अपना आदर्श मानकर उसी पर एकाग्रचित्त होकर विचार करते हैं साधना बुद्धि को स्थिर करती है। बौद्धिक विकास में संस्कृत भाषा का अध्ययन भी जरूरी एक भूमिका निभाती है । निम्नलिखित प्रयोग का प्रयास करें। |
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| | + | संस्कृत में कोई भी किताब लें। हो सके तो भगवद गीता के ग्रन्थ के साथ आरंभ करें ,उससे दो बाते पूर्ण हो सकती है |एक संस्कृत भाषा का अध्ययन और पाठांतर | सनस्क्री कठिन है इसे मन से दूर भागना और जो लिखा है उसे ही पढ़ें , जोर से और उच्चारण पूर्वक पढ़ें । |