− | गृह्यसूत्रों में ही गर्भाधान-विषयक विद्वानों का सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप से विवेचन हुआ है। उनके अनुसार विवाह के उपरान्त ऋतुस्नान से शुद्ध पत्नी के समीप पति को प्रति मास जाना होता था। किन्तु गर्भाधान से पूर्व उसे विभिन्न प्रकार के पुत्रों-ब्राह्मण, श्रोत्रिय ( जिसने एक शाखा का अध्ययन किया हो ), अनूचान (जिसने केवल वेदाङ्गों का अनुशीलन किया हो), ऋषिकल्प ( कल्पों का अध्येता), भ्रूण ( जिसने सूत्रों और प्रवचनों का अध्ययन किया हो), ऋषि (चारों वेदों का अध्येता) और देव (जो उपर्युक्त से श्रेष्ठ हो)-की इच्छा के लिए व्रत का अनुष्ठान करना होता था । व्रत-समाप्ति पर अग्नि में पक्वान्न की आहुति दी जाती थी। तदुपरांत सहवास के हेतु पति-पत्नी | + | गृह्यसूत्रों में ही गर्भाधान-विषयक विद्वानों का सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप से विवेचन हुआ है। उनके अनुसार विवाह के उपरान्त ऋतुस्नान से शुद्ध पत्नी के समीप पति को प्रति मास जाना होता था। किन्तु गर्भाधान से पूर्व उसे विभिन्न प्रकार के पुत्रों-ब्राह्मण, श्रोत्रिय ( जिसने एक शाखा का अध्ययन किया हो ), अनूचान (जिसने केवल वेदाङ्गों का अनुशीलन किया हो), ऋषिकल्प ( कल्पों का अध्येता), भ्रूण ( जिसने सूत्रों और प्रवचनों का अध्ययन किया हो), ऋषि (चारों वेदों का अध्येता) और देव (जो उपर्युक्त से श्रेष्ठ हो)-की इच्छा के लिए व्रत का अनुष्ठान करना होता था । व्रत-समाप्ति पर अग्नि में पक्वान्न की आहुति दी जाती थी। तदुपरांत सहवास के हेतु पति-पत्नी को प्रस्तुत किया जाता था। जब पत्नी अत्यन्त सुसज्जित एवं सुन्दर ढंग से अलंकृत हो जाती थी, पति प्रकृति-सृजन-सम्बन्धी उपमामय तथा गर्भधारण में पत्नी को देवों की सहायता के लिए स्तुतिमयी वेदवाणी का उच्चारण करता था।' पुनः पुरुष और स्त्री के सहवास के विषय में उपमा-रूपकयुक्त मन्त्र का उच्चारण तथा अपनी प्रजननशक्ति का वर्णन करता था और नर-नारी के सहकार्य के रूपकों से युक्त वैदिक ऋचाओं का गान करते हुए अपने शरीर को मलता था । आलिङ्गन के उपरान्त पूजा की स्तुति करते और विकीर्ण बीज को इंगित करते हुए गर्भाधान होता था। पति, पत्नी के हृदय का स्पर्श करता और उसके दक्षिण स्कन्ध पर झुकते हुए कहता, 'सुगुम्फित केशों वाली तुम, तुम्हारा हृदय जो स्वर्ग में निवास करता है, चन्द्रमा में निवास करता हैं, जिसे मैं जानता हूँ, क्या वह मुझे जान सकता है ? क्या हम शत शरद् देखेंगे। |
| + | धर्मसूत्र और स्मृतियाँ इस संस्कार के कर्मकाण्डीय पक्ष में कुछ और योग दे देती हैं । वस्तुतः वे इसे अनुशासित करने के लिए कुछ नियम निर्धारित करते हैं, जैसे :-गर्भाधान कब हो, स्वीकृत और निषिद्ध रात्रियाँ, नक्षत्र-सम्बन्धी विचार, बहुपत्नीक पुरुष अपनी पत्नी के पास कैसे पहुंचे; गर्भाधान एक आवश्यक कर्तव्य और इसके अपवाद, संस्कार को सम्पन्न करने की रात्रि, आदि । केवल याज्ञवल्क्य, आपस्तम्ब और शातातप आदि कतिपय स्मृतियाँ पति के लिए सहवासोपरान्त स्नान करने का विधान करती हैं। पत्नी को इस शुद्धि से मुक्त |