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येन काशी दृढी ध्याता येन काशीः सेविता।तेनाहं हृदि संध्यातस्तेनाहं  सेवितः सदा॥
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काशी यः सेवते जन्तु  निर्विकल्पेन चेतसा। तमहं  हृदये   नित्यं  धारयामि  प्रयत्नतः ॥ (काशी_खण्ड् )
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विश्वनाथ जी कहते हैं की जो मनुष्य हृदय में काशी का ध्यान करता है साथ ही जो मनुष्य निर्विकल्प चित से काशी का स्मरण करता है , समझना चाहिए कि उसने मेरा हृदय में ध्यान कर लिया , उससे मैं सदा सेवित रहता हूं तथा मैं नित्य उसे प्रयत्न पूर्वक अपने हृदय में धारण करता हूं ।
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== काशी का महत्व ==
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काशी के ब्राह्मण , भगवान विश्वनाथ के बड़े ही अनन्य भक्त थे।   जब भगवान सदाशिव राजा दिवोदास के फलस्वरूप #ब्रह्मा जी के गौरव की रक्षा के लिए समस्त देवी देवताओं सहित अविमुक्त पूरी काशी को छोड़कर मंदराचल चले गए , तब उनके भक्त , ऋषि , मुनि एवं ब्राह्मणों को बहुत दुख हुआ । वह किसी का दिया हुआ दान दक्षिणा नहीं लेते थे, प्रति ग्रह से दूर रहते थे वह अपनी जीविका के लिए डंडों से पृथ्वी खोद खोद कर कंदमूल का आहार करने लगे इससे वहां एक बहुत बड़ा तालाब बन गया जो दंडखात (यह दंडखात तीर्थ भुत भैरव मुहल्ले के पास कही था पर अब लुप्त होगया है) के नाम से प्रसिद्ध हुआ उन ब्राह्मणों ने उस तालाब के चारों ओर शिवलिंग एवं अनेक मूर्तियां स्थापित की और उनकी पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी।
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जब उन ब्राह्मणों को विदित हुआ कि भगवान विश्वनाथ जी पुनः काशी में आ गए हैं तब उन सभी ने प्रसन्न होकर उनके दर्शनार्थ उनके समक्ष उपस्थित होकर दंडवत प्रणाम करके अनेक अनेक स्त्रोतों से उनकी स्तुति की ।
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भगवान विश्वनाथ ने भी उन्हें अभयदान देते हुए उनका कुशल समाचार पूछा ब्राह्मणों ने कहा भगवान आपकी कृपा से सर्वत्र कुशल है। अब हमारी करबद्ध प्रार्थना है कि आप इस अविमुक्त पूरी काशी का कभी भी परित्याग न करें भगवान सदाशिव ने कहा ब्राह्मणों मैं तुम्हारी भक्ति निष्ठा से बहुत ही प्रसन्न हूं । मैं जगदम्बा भगवती के साथ सदैव यहां निवास करूंगा और मरणासन्न जीवो को तारक मंत्र का उपदेश देकर उन्हें मुक्त करता रहूंगा ।
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यदि अन्य क्षेत्र का पापी मानव भी यहां आकर निवास करेगा तो यहां आते ही उसके समस्त पाप भी नष्ट हो जाएंगे परंतु यहां कृत्य पाप वज्र लेप बन जाता है , अतः पापों के प्रायश्चित के लिए काशी निवासियों को प्रतिवर्ष में कम से कम एक बार अविमुक्त पूरी काशी की पंचकोसी परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए ।
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इस प्रकार अविमुक्त पुरी का महात्मा वर्णन करते हुए भगवान विश्वनाथ अंतर्ध्यान हो गए और वह ब्राह्मण प्रसन्नता पूर्वक अपने अपने आश्रमों में लौट गए ।
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== पंचक्रोशात्मक_काशी ==
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<blockquote>शिव_उवाचः॥
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विषयासक्तचित्तेःपि त्यक्तधर्मरतिनर्रः। ह क्षेत्रे मृतः सोपि संसारे न पुनर्भवेत् ॥
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इदं गुह्यतमं क्षेत्रं सदा वाराणसी मम । सर्वेषा मेव जन्तूनां हेतु मोर्क्षस्य् सर्वदा ॥(लिङ्गपुराण)</blockquote>'''भावार्थ'''-शिव जी पार्वति जी से कहते है कि, विषयासक्त प्राणी सब धर्मो से रहित होने पर भी इस काशी क्षेत्र मे मरने  पर पुनः  जन्म नही पाता। यह काशी अत्यंत गोपनीय क्षेत्र है, क्योंकि सम्पूर्ण जंतुओं के मोक्ष के हेतु है , इस काशी क्षेत्र में बहुत बड़े बड़े सिद्ध लोग व्रत संकल्प लेकर मोक्ष की कामना से निवास करते है ।
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यह पंचक्रोशत्मिका काशी नाम की भूमि यथार्त में एक तेजोमय शिवलिंग है (#अर्थात सम्पूर्ण काशी ही एक लिंग है) , समस्त देवगन इस काशी की परिक्रमा करते रहते है जिसे पंचक्रोशी परिक्रमा कहते है ।<blockquote>यल्लिङ्गदृष्टवन्तौ हि नारायण पितामहौ । तदेव लोके वेदे च काशिति परिगीयते॥(पद्मपुराण)</blockquote>'''अर्थ'''- जिस तेजोमय लिङ्ग को नारायण और ब्रह्मा ने देखा था, उसी लिङ्ग को लोक और वेद मे काशी नाम से निर्देश किया गया है।
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काशी ही समस्त भू मण्डल में देवयजन एवं मोक्ष के हेतु विशिष्ट स्थान है।
 
काशी ही समस्त भू मण्डल में देवयजन एवं मोक्ष के हेतु विशिष्ट स्थान है।
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समस्त देवगन इस काशी की परिक्रमा करते रहते है जिसे पंचक्रोशी परिक्रमा कहते है ।<blockquote>यल्लिङ्गदृष्टवन्तौ हि नारायण पितामहौ  । तदेव लोके वेदे च काशिति परिगीयते ॥(पद्मपुराण)</blockquote>जिस तेजोमय लिङ्ग को नारायण और ब्रह्मा ने देखा था, उसी लिङ्ग को लोक और वेद मे काशी नाम से निर्देश किया गया है.।
 
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