Line 22: |
Line 22: |
| | | |
| === जया एकादशी === | | === जया एकादशी === |
− | यह उत्तम व्रत माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को शुद्ध अन्त:करण से करना चाहिये। इस दिन किसी भी प्रकार के दुर्गुण को स्वप्न में भी चित्त में स्थान नहीं देना चाहिये। प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर | + | यह उत्तम व्रत माघ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस व्रत को शुद्ध अन्त:करण से करना चाहिये। इस दिन किसी भी प्रकार के दुर्गुण को स्वप्न में भी चित्त में स्थान नहीं देना चाहिये। प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवा। केशव (वीका) की पुष्प, जल, अक्षत, शैली विशिष्ट सुगन्धित पदार्थों से पूजा करके आरती उतारनी चाहिये। भगवान की भी लगाकर प्रसाद को भक्त स्वयं ग्रहण करें। |
| + | |
| + | ==== व्रत कथा- ==== |
| + | एक बार की बात है कि इन्द्र की सभा में एक गर्व गीत गा रहा था। लेकिन उसका मन अपनी नवयौवना सुन्दरी में आसक्न था। अतएव स्वर लय भंग हो रहा था। यह लीला इन्द्र को बहुत बुरी खटकी। इस पर उन्होंने श्रोधित होकर उसे श्राप दिया- "हे दुष्ट गन्धर्व तू जिसकी याद में मस्त है, यह राक्षसी ही जायेगी।" यह श्राप सुनकर वह बहुत घबड़ाया और देवराज इन्द्र से क्षमायाचना करने लगा। इन्द्र के कुछ न बोलने पर वह घर चला आया। उसने घर आकर देखा तो उसकी पत्नी वास्तव में पिशाचिनी रूप में मिली। उसने श्राप निवत्ति के लिये यल किए, लेकिन सब व्यर्थ। अन्त में वह हार कर बैठ गया। अकस्मात् एक रोज उसका साक्षात्कार देवर्षि नारद से हो गया। दुःख का कारण पूछने पर उसने आपबीती सुना दी। यह सुनकर नारद ने माघ शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का व्रत तथा भगवत कीर्तन करने को कहा। गंधर्व के नारर के कथारानुसार जया एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से उसकी पत्नी अत्यन्त रूपवाली सौन्दर्यशाली हो गयी। |
| + | |
| + | === संक्रान्ति (मकर संक्रान्ति) === |
| + | जब माघ मास में सूर्य मकर राशि पर आये, तब उस दिन तथा उस समय की संक्रान्ति प्रवेश काल और संक्रान्ति वाहते हैं। अंग्रेजी तारीख के हिसाब से यह हमेशा 14 जनवरी को मनायी जाती है। इस दिन गंगा या यमुना में स्नान करें। ब्राह्मण तथा देवर्षि नारद के भिखारियों को यथाश्रद्धा दान दें। संक्रान्ति के 1-2 दिन पहले बायना निकालने के लिये सफेद तिल, काले तिल, चून और मूंग की दाल के लडडू बनायें। काले तिल के लड्डूओं पर दक्षिणा रखकर संक्रान्ति के दिन ब्राह्मणों को दे दें। संक्रान्ति के एक दिन पहले अपने हाथों में मेहंदी लगायें और संक्रान्ति के दिन गंगास्नान करें। बायना काढने के लिये जितने चाहे उतने सफेद तिल के और दाल के लड्डू लें और उन पर रुपये रखकर तथा हाथ फेरकर अपनी सासुजी को पांव छूकर दे दें। गरीबों और ब्राह्मणों के लिये खिचड़ी दान करें। इसके अलावा श्रद्धानुसार जो भी वस्तु चाहे चौदह वस्तु लेकर उन पर हाथ फेर दें। इन चौदह वस्तुओं को चाहे तो ब्राह्मणों को दे दें। चाहे तो अपने रिश्तेदारों नन्द, जेठानी, दौरानी आदि को भेज दें। जैसा भी उचित समझे। जितनी चीजों का बायना निकालना हो तो उतनी चीजों और रुपये लड़कियों को वायना काढ़कर उनकी ससुराल भेज दें। संक्रान्ति के 360 |