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वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए '''शिक्षा''', यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु '''कल्प''', शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु '''व्याकरण''', शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए '''निरुक्त''', पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए '''छंद''' और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लिए '''ज्योतिष''' ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है ।  
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वेदों के सम्यक उच्चारण के लिए '''शिक्षा''', यज्ञ की विधि और कर्मकांड के ज्ञान हेतु '''कल्प''', शब्दों की अर्थपूर्ण और नियमबद्ध रचना के ज्ञान हेतु '''व्याकरण''', शब्द व्युत्पत्ति और नए शब्दों के निर्माण के लिए '''निरुक्त''', पद्यरचनाओं के छंदबद्ध गायन के लिए '''छंद''' और अनुष्ठानों के उचित कालनिर्णय के लिए '''ज्योतिष''' ऐसे छ: वेदांगों की रचना की गयी है । जिस प्रकार से शरीर के महत्वपूर्ण अंग होते हैं वैसे ही यह वेद के अंग हैं ऐसा उनका महत्व है इस कारण इन्हें वेदांग कहा गया है । <blockquote>शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ ।</blockquote><blockquote>या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: ।।</blockquote><blockquote>अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं ।</blockquote>वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है । इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं । इस दृष्टि से एक भी अभारतीय का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है ।  
 
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शब्दशात्रम् मुखं ज्योतिषं चक्षुषी श्रोत्रमुक्तन् निरुक्तं च कल्प: करौ ।  
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या तु शिक्षस्य वेदस्य सा नासिका पादपद्मद्वयम्छंद आद्यैर्बुधै: ।।  
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अर्थ : मुख व्याकरणशास्त्र, नेत्र ज्योतिष, निरुक्त कर्ण, कल्प हाथ, शिक्षा नासिका और छंद पैर हैं ।  
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वेद के ज्ञान को समझने के लिए वेदांग का अध्ययन आवश्यक है । इन का ठीक से ज्ञान नहीं होने से केवल वर्तमान संस्कृत सीखकर वेदों का अर्थ लगानेवाले लोगों ने वेदों के विषय में कई भ्रांतियां निर्माण कीं हैं । इस दृष्टि से एक भी अभारतीय का वेद संबंधी भाष्य अध्ययन योग्य नहीं है ।  
      
=== [[Brahmana (ब्राह्मणम्)|ब्राह्मण ग्रन्थ]] ===
 
=== [[Brahmana (ब्राह्मणम्)|ब्राह्मण ग्रन्थ]] ===
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*१८. मोक्षसंन्यास – ७८ }}
 
*१८. मोक्षसंन्यास – ७८ }}
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वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है ।  
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९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है । <blockquote>कहा गया है:</blockquote><blockquote>सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: ।</blockquote><blockquote>पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  ।।</blockquote>उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
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कहा गया है:
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१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टि निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टि के मूल तत्व को तथा सृष्टि के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
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सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन: ।  
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११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्रारम्भबिन्दू, विचार यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथों द्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।  
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पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  ।।
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१२. गीता योगशास्त्र है । योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है । गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है ।
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उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
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१३. गीता में योग की व्याख्या इस प्रकार है –  <blockquote>समत्वं योगमुच्यते  : योग का अर्थ है समत्व ।</blockquote><blockquote>योग: कर्मसु कौशलम् : (विहित) कर्म में कुशलता (निष्काम भाव) ही योग है </blockquote>१४. गीता व्यवहार शास्त्र है । सिद्धांत और व्यवहार दोनों का निरूपण करती है ।  
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१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टि निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टि के मूल तत्व को तथा सृष्टि के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
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११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।
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१२. गीता योगशास्त्र है । योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है । गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है ।
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१३. गीता में योग की व्याख्या इस प्रकार है –
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समत्वं योगमुच्यते  : योग का अर्थ है समत्व ।
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योग: कर्मसु कौशलम्  : (विहित) कर्म में कुशलता(निष्काम भाव) ही योग है ।
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१४. गीता व्यवहार शास्त्र है । सिद्धांत और व्यवहार दोनों का निरूपण करती है ।
   
१५. गीता के उपदेश का उद्देश्य अर्जुन को अहंकार त्यागकर अपने कर्तव्य याने क्षत्रिय कर्म के लिए प्रवृत्त करने का है । इससे भी और गहराई से देखें तो गीता का केन्द्रवर्ती विषय निष्काम कर्म है ।  
 
१५. गीता के उपदेश का उद्देश्य अर्जुन को अहंकार त्यागकर अपने कर्तव्य याने क्षत्रिय कर्म के लिए प्रवृत्त करने का है । इससे भी और गहराई से देखें तो गीता का केन्द्रवर्ती विषय निष्काम कर्म है ।  
१६. परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्.... के माध्यम से भगवान मनुष्य को आश्वस्त करते हैं कि दुष्टों का नाश होनेवाला है ।  
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१७. भक्तिमार्गी हो चाहे ज्ञानमार्गी हो, गीता सभी को अपने ‘स्व’धर्म के अनुसार आचरण करने को कहती है ।  
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१६. "परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्" के माध्यम से भगवान मनुष्य को आश्वस्त करते हैं कि दुष्टों का नाश होनेवाला है ।  
१८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं । इसलिए वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं । कृष्ण के स्तर से नहीं ।
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१९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है । लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है ।
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१७. भक्तिमार्गी हो चाहे ज्ञानमार्गी हो, गीता सभी को अपने ‘स्व’धर्म के अनुसार आचरण करने को कहती है ।
२०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है ।  
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२१. ऐसा कहते हैं कि गीता का प्रतिदिन पाठ किया जाये तो ढाई घंटे में एकबार पढी जा सकती है । स्पष्ट एवं शुद्ध वाचन करनेवाले को धीरे धीरे अपने आप समझमें आने लग जाती है । एकाग्रता के साथ प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं तो गीता स्वयं ही अपना अर्थ पाठक के समक्ष प्रकट करती है । गीता का सूत्र है – श्रद्धावाँलभते ज्ञानम् याने श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होता है ।  
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१८. गीता कहते समय कृष्ण योगारूढ़ अवस्था में हैं । इसलिए वे परमात्मा के स्तर से बात करते हैं । कृष्ण के स्तर से नहीं ।  
२२. विश्व को भारत की यह अनुपम भेंट है ।  
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१९. गीता का अध्ययन सभी वर्ण, जाति, पंथ, सम्प्रदाय के लोगों के लिए है । लेकिन उनमें से तप न करनेवालों के लिए, वेदशास्त्र और परमात्मा में श्रद्धा न रखनेवालों के लिए, भक्तिहीन व्यक्ति के लिए और जिसकी सुनने की इच्छा नहीं है ऐसे लोगों के लिए नहीं है ।  
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२०. गीता सांख्ययोग, भक्तियोग और कर्मयोग तीनों का मार्गदर्शन करनेवाला ग्रन्थ है ।
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२१. ऐसा कहते हैं कि गीता का प्रतिदिन पाठ किया जाये तो ढाई घंटे में एकबार पढी जा सकती है । स्पष्ट एवं शुद्ध वाचन करनेवाले को धीरे धीरे अपने आप समझमें आने लग जाती है । एकाग्रता के साथ प्रतिदिन इसका पाठ करते हैं तो गीता स्वयं ही अपना अर्थ पाठक के समक्ष प्रकट करती है । <blockquote>गीता का सूत्र है – श्रद्धावाँलभते ज्ञानम् याने श्रद्धावान को ज्ञान प्राप्त होता है ।</blockquote>२२. विश्व को भारत की यह अनुपम भेंट है ।  
    
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
 
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