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उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है । इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना । ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं । चिल्लाकर नहीं कहे जाते । रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है । वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है । उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है ।  
 
उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है । इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना । ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं । चिल्लाकर नहीं कहे जाते । रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है । वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है । उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है ।  
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पुराण : इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती । लेकिन इनके महत्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है । पुराणम् पंचमो वेद:  । पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं । १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं । सर्ग(सृष्टी का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टी का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं ।  
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=== पुराण ===
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इन की गिनती वैदिक साहित्य में नहीं की जाती । लेकिन इनके महत्व को समझकर इन्हें पंचमवेद कहा जाता है । पुराणम् पंचमो वेद:  । पुराण भारत का सांस्कृतिक इतिहास हैं । १८ मुख्य और १८ ही उप पुराण हैं । सर्ग(सृष्टि का सर्जन), प्रतिसर्ग(सृष्टि का विलय), वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित का वर्णन मिलाकर ही उसे पुराण कहते हैं ।  
 
स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं । वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है ।
 
स्मृति : वेदों के अर्थों का औवाद करनेवाले ऋषियों के अनुभव और स्मृति के आधारपर रचे गए ग्रन्थ स्मृति कहलाते हैं । वेदज्ञान के आधारपर मानव धर्मशास्त्र की युगानुकूल और कालानुकूल प्रस्तुति ही स्मृति है ।
 
श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं । यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है । विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । लेखन और प्रवचन किये हैं । यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए । अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे ।
 
श्रीमद्भगवद्गीता : बोलचाल की भाषा में इसे गीता कहते हैं । यह ग्रन्थ विश्वविख्यात है । विश्व के भिन्न भिन्न विचारों के विद्वानों ने गीता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये हैं । लेखन और प्रवचन किये हैं । यह भारतीय ज्ञानधारा का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । प्रत्येक भारतीय को इसे पढ़ना, समझना और व्यवहार में लाना चाहिए । अभी हम इसका प्राथमिक परिचय ही देखेंगे ।
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    १. अर्जुन विषाद – ४७  २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२    ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८  १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७  १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८  
 
    १. अर्जुन विषाद – ४७  २. सांख्य – ७२ ३. कर्म – ४३ ४. ज्ञानकर्मसंन्यास – ४२    ५. कर्मसंन्यास – २९ ६. आत्मसंयम – ४७ ७. ज्ञानविज्ञान ३० ८. अक्षर ब्रह्म – २८ ९. राजविद्याराजगृह्य -३८  १०. विभूति - ४२ ११. विश्वरूपदर्शन – ५५ १२. भक्तियोग २० १३. क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग -३८ १४. गुणत्रयविभाग - २७  १५. पुरूषोत्तम – २० १६. दैवासुरसम्पदविभाग –२८ १७. श्रद्धात्रयविभाग – २८ १८. मोक्षसंन्यास – ७८  
 
९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है । कहा गया है – सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन:  । पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  । ।   उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
 
९. वेद के मोटे मोटे ३ भाग हैं । ज्ञानकाण्ड, कर्मकांड और उपासनाकाण्ड । उपनिषद् ज्ञानकाण्ड हैं याने वेदों का ज्ञानात्मक हिस्सा हैं । वेद भारतीय ज्ञानधारा के सोत और सत्य ज्ञान के ग्रन्थ हैं । १२० उपनिषदों में से १० मुख्य उपनिषद हैं । इन सभी उपनिषदों का सार गीता है । कहा गया है – सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदन:  । पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्  । ।   उपनिषद् गायें हैं, इन गायों को दुहनेवाले स्वयं गोपालनंदन श्रीकृष्ण हैं । गायों का दूध गीता रूपी ज्ञान है । अर्जुन उसका दूध पीनेवाला बछडा है ।  
१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टी निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टी के मूल तत्व को तथा सृष्टी के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
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१०. गीता ब्रह्मविद्या का ग्रन्थ है । ब्रह्म को जानने की विद्या । ब्रह्म याने जिसमें से यह सारी सृष्टि निर्माण हुई है और जिसमें यह फिर से विलीन होनेवाली है उसे जानने की यह विद्या है । इस सृष्टि के मूल तत्व को तथा सृष्टि के साथ हमारा व्यवहार कैसा हो यह जानने के लिए उपयोगी यह ग्रन्थ है ।
 
११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।
 
११. गीता प्रस्थानत्रयी के तीन ग्रंथों में से एक है । प्रस्थानत्रयी याने तीन प्रस्थान । प्रस्थान याने प्राराम्भाबिन्दू, विचारा यात्रा के मूल ग्रन्थ । ये हैं – पहला ब्रह्मसूत्र दूसरा उपनिषद् और तीसरा गीता । भारत में किसी भी तत्वचिंतक आचार्य को अपने मत की प्रतिष्ठा के लिए इन तीन ग्रंथोंद्वारा उसे प्रमाणित करना पड़ता है । सैद्धांतिक साहित्य के क्षेत्र में गीता इसीलिये महत्वपूर्ण है ।
 
१२. गीता योगशास्त्र है । योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है । गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है ।
 
१२. गीता योगशास्त्र है । योग जीवन जीने का विज्ञान भी है और कला भी है । गीता भी दैनंदिन जीवन के लिए, सार्वजनिक जीवन के लिए जीवन के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े विषय के लिए मार्गदर्शक ग्रन्थ है ।
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