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: कोलाहल से दूर अरण्यों में एकांत में ज्ञानविज्ञान के गहन अध्ययन के ग्रन्थ हैं आरण्यक । ये यज्ञों के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हैं । कर्मकांड का दार्शनिक पक्ष उजागर करते हैं । आरण्यक वेदों के साररूप हैं ।
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कोलाहल से दूर अरण्यों में एकांत में ज्ञानविज्ञान के गहन अध्ययन के ग्रन्थ हैं आरण्यक । ये यज्ञों के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हैं । कर्मकांड का दार्शनिक पक्ष उजागर करते हैं । आरण्यक वेदों के साररूप हैं ।
 
उपनिषद् : उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है । इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना । ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं । चिल्लाकर नहीं कहे जाते । रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है ।  
 
उपनिषद् : उप+नि+सद से उपनिषद शब्द बना है । इसका अर्थ है गुरू के निकट बैठकर ज्ञान प्राप्त करना । ज्ञान के मर्म या रहस्य पात्र को ही बताए जाते हैं । चिल्लाकर नहीं कहे जाते । रहस्य जानने के लिए निकट बैठना आवश्यक है ।  
 
वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है । उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है ।  
 
वेदों का ज्ञानात्मक या सैद्धांतिक पक्ष उपनिषदों में बताया गया है । उपनिषद प्रस्थानत्रयी का एक भाग है ।  
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