पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता कि गंगाजी शंकर की जटाओं में कई वर्षो तक भ्रमण कराती रही परन्तु निकालने का कहीं भी रास्ता नहीं मिला । भागीरथ के पुनः अनुनय विनय करने पर नन्दीश्वर से प्रसन्न होकर हिमालय में ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित बिन्दुसार में गंगाजी को छोड़ दिया । उस समय इनकी सात धराये हो गयी । आगे आगे भागीरथ चल रहे थे पीछे पीछे गंगाजी चल रही थी । धरातल पर गनगा जी के आते ही हाहाकार मच गया । जिस मार्ग से गंगाजी जा रही थी उसी मार्ग में ऋषिराज जन्हू का आश्रम और तपोस्थल था । तपस्या अदि में विघ्न समझकर गंगाजी को पी गये, फिर देवताओं की प्रार्थना पर उन्हें पुनः जांघ से निकल दिया । तभी से ये जन्हू की पुत्री जान्हवी कहलाई । इस प्रकार अनेक स्थलों से तरन करन करती हुई जान्हवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सागर के साठ हजार पुत्रो के भस्मावशेष को तरकर मुक्त किया । उसी समय ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन ताप और सगर के साठ हजार पुत्रो के अमर होने का वर दिया , तदन्तर यह घोषित किया की तुम्हारे नाम से गंगाजी का नाम भागीरथी होगा । अब तुम अयोध्या में राजकाज संभालो । ऐसा कहकर ब्रहमाजी अंतर्ध्यान हो गए । इस वरदान से भागीरथ को पुत्रलाभ हुआ और सुखपूर्वक राज्य भोगकर परलोक गमन किया । | पुराणों में ऐसा उल्लेख मिलता कि गंगाजी शंकर की जटाओं में कई वर्षो तक भ्रमण कराती रही परन्तु निकालने का कहीं भी रास्ता नहीं मिला । भागीरथ के पुनः अनुनय विनय करने पर नन्दीश्वर से प्रसन्न होकर हिमालय में ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित बिन्दुसार में गंगाजी को छोड़ दिया । उस समय इनकी सात धराये हो गयी । आगे आगे भागीरथ चल रहे थे पीछे पीछे गंगाजी चल रही थी । धरातल पर गनगा जी के आते ही हाहाकार मच गया । जिस मार्ग से गंगाजी जा रही थी उसी मार्ग में ऋषिराज जन्हू का आश्रम और तपोस्थल था । तपस्या अदि में विघ्न समझकर गंगाजी को पी गये, फिर देवताओं की प्रार्थना पर उन्हें पुनः जांघ से निकल दिया । तभी से ये जन्हू की पुत्री जान्हवी कहलाई । इस प्रकार अनेक स्थलों से तरन करन करती हुई जान्हवी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सागर के साठ हजार पुत्रो के भस्मावशेष को तरकर मुक्त किया । उसी समय ब्रह्मा जी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन ताप और सगर के साठ हजार पुत्रो के अमर होने का वर दिया , तदन्तर यह घोषित किया की तुम्हारे नाम से गंगाजी का नाम भागीरथी होगा । अब तुम अयोध्या में राजकाज संभालो । ऐसा कहकर ब्रहमाजी अंतर्ध्यान हो गए । इस वरदान से भागीरथ को पुत्रलाभ हुआ और सुखपूर्वक राज्य भोगकर परलोक गमन किया । |