− | ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करके व्रत रखकर भगवान विक्रम को शुद्ध जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनायें फिर धूप, दीप, फूल से उनका पूजन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा दें। उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें विदा करें। दिन में भगवान की मूर्ति के समक्ष बैठकर कीर्तन करें। रात्रि में मूर्ति के चरणों में शयन करें। इस दिन फलाहार करें। जो इस प्रकार व्रत करता है वह मोक्ष को प्राप्त हो स्वर्गलोक को जाता है। साथ ही इस व्रत के करने से पीपल के काटने का पाप दूर हो जाता है। | + | ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करके व्रत रखकर भगवान विक्रम को शुद्ध जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनायें फिर धूप, दीप, फूल से उनका पूजन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा दें। उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें विदा करें। दिन में भगवान की मूर्ति के समक्ष बैठकर कीर्तन करें। रात्रि में मूर्ति के चरणों में शयन करें। इस दिन फलाहार करें। जो इस प्रकार व्रत करता है वह मोक्ष को प्राप्त हो स्वर्गलोक को जाता है। साथ ही इस व्रत के करने से पीपल के काटने का पाप दूर हो जाता है। |
| + | बड़सौमत ज्येष्ठ की अमावस्या को मनाई जाती है, इस दिन बड़ के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। यह व्रत केवल औरतों को ही करना चाहिए। एक थाल में (जल, रोली, चावल, हल्दी, गुड़, भीगे चने) आदि लेकर बड़ के पेड़ के नीचे बैठना चाहिए। बड़ के तने पर रोली का टीका लगाकर चना, गुड़, चावल सबको बड़ के पेड़ के नीचे चढ़ा दें। घी का दीपक व धूप जलायें। तत्पश्चात् सूत के धागों को हल्दी में रंगकर बड़ के पेड़ पर लपेटते हुए सात परिक्रमा लें। बड़ के पत्तों की माला बनाकर पहन लें, कहानी सुनें, घर में बनी वस्तु व चने, रुपये रखकर बायने के रूप में पैर छूकर अपनी सासू मां को दें तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इस दिन बड़ के पेड़ के साथ-साथ सत्यवान सावित्री और यमराज की पूजा की जाती है। तत्पश्चात् फलों का भक्षण किया जाता है। सावित्री ने इस व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़ा लिया था। सुवर्ण या मिट्टी से सावित्री, सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बनाकर धूप, चन्दन, दीपक, रोली, केसर, से पूजा करनी चाहिए और सत्यवान - सावित्री की कथा सुनानी चाहिए | |