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महिर्ष स्कंदजी अपने शिष्यों को ज्येष्ट मास का माहात्म्य सुनाता हुए कहने लगे कि ज्येष्ठ मास का माहात्म्य अन्य मास के माहात्म्य से श्रेष्ठ है। इस मास  में जल-दान देने का विशेष महत्व है, वैसे तो प्रत्येक मास आपने आप में विशेषता रखता है परन्तु इस मास में थोड़ा-सा दान अधिक पुण्य प्रदान करता है। इस मास  में भगवान का सच्चे हृदय से ध्यान करने वाले मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मास के देवता श्री हरि विष्णु भगवान जी हैं। इस मास में घर-दान, जल-दान तलयन्त्र (व्यंजन) दान चन्दन-दान हल-दाल और जूतों के दान से शान्ति प्राप्त होती है। चन्दन के दान से देवाता, पितर,ऋषि और मनुष्य सब ही प्रसन्न होते हैं। इसलिए अपनी शक्ति के अनुसार इन दोनों को करना चाहिए। निर्जन देश में प्राणी मात्र की रक्षा के लिए छायादार वृक्षों को लगाना। इस मास में जल-दान का विधान विशेष है। जो बारह महीनों के व्रत एवं त्यौहार
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महिर्ष स्कंदजी अपने शिष्यों को ज्येष्ट मास का माहात्म्य सुनाता हुए कहने लगे कि ज्येष्ठ मास का माहात्म्य अन्य मास के माहात्म्य से श्रेष्ठ है। इस मास  में जल-दान देने का विशेष महत्व है, वैसे तो प्रत्येक मास आपने आप में विशेषता रखता है परन्तु इस मास में थोड़ा-सा दान अधिक पुण्य प्रदान करता है। इस मास  में भगवान का सच्चे हृदय से ध्यान करने वाले मनुष्यों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मास के देवता श्री हरि विष्णु भगवान जी हैं। इस मास में घर-दान, जल-दान तलयन्त्र (व्यंजन) दान चन्दन-दान हल-दाल और जूतों के दान से शान्ति प्राप्त होती है। चन्दन के दान से देवाता, पितर,ऋषि और मनुष्य सब ही प्रसन्न होते हैं। इसलिए अपनी शक्ति के अनुसार इन दोनों को करना चाहिए। निर्जन देश में प्राणी मात्र की रक्षा के लिए छायादार वृक्षों को लगाना। इस मास में जल-दान का विधान विशेष है।  
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जो मनुष्य ज्येष्ठ मास में जल का दान नहीं करता वह नरक की यातना भोगकर पपोहा की योनि में पड़ता है। इस विषय में एक प्राचीन इतिहास है। त्रेतायुग के अन्त में महष्मतिपुरी मे वेद-वेदांतो को जानने वाला सुमन्त नाम का एक श्रेष्ठ ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम गुणवती था। उसको देव शर्मा नाम का एक पुत्र भी था। एक दिन वह ब्राह्मण समाधि लगाने के लिए वन में गया। वहां सुन्दर सरोवर का जल पीकर वृक्ष कि छाया में वहीं पर सो गया। वहां पर जो भी जीव जल पीने आता उसे देखकर डरकर भाग जाता। जल न पीने के कारण कई-एक तो प्यासे ही मर गये। सूर्य नारायण के अस्त हो जाने पर जब वह अपने घर पर आया तो अज्ञात पाप के दोष से मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसकी पतिव्रता स्त्री अपने पुत्र  और घर आदि को त्याग कर उसके साथ सती हो गई।
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अज्ञात पाप के दोष से वह कई दिनों तक नर्क की यातना भोगकर चातक को योनि में पड़ा। तब वह अपने पूर्व के कमों को याद करके रोने लगा। उसके रुदन को सुनकर उसके पुत्र ने कई बार उसको मना किया, परन्तु उसका रुदन बन्द नहीं हुआ। तब क्रोध में आकर उसके पुत्र ने उस वृक्ष में आग लगा दी और उन दोनों चातक व चातको के पंख जल गए और वो वृक्ष के नीचे गिर पड़े और आपस में अपने कष्ट की बात करने लग गये। उनकी बातों को सुनकर उनके पुत्र को बड़ा विस्मय हुआ और वह श्रेष्ठ ब्राह्मण से पूछने के लिए उनके आश्रम में गया और अपने माता-पिता का सब व्लान्स उसने कहा तथा उनके उद्धार के लिए उपाय पूछने लगा। उनके कहने पर उसने अपने माता-पिता के निर्मित निर्जन वन में प्याऊ लगवा दी, जहां पर सब मनुष्य, पक्षी और जन्तु आकर जल पीते हैं। उसके इस पुण्य के प्रभाव से उसके माता-पिता बैकुण्ठ धाम को चले गये।
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=== अपरा एकादशी व्रत ===
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ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करके व्रत रखकर भगवान विक्रम को शुद्ध जल से स्नान कराकर स्वच्छ वस्त्र पहनायें फिर धूप, दीप, फूल से उनका पूजन करें। ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा दें। उनका आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें विदा करें। दिन में भगवान की मूर्ति के समक्ष बैठकर कीर्तन करें। रात्रि में मूर्ति के चरणों में शयन करें। इस दिन फलाहार करें। जो इस प्रकार व्रत करता है वह मोक्ष को प्राप्त हो स्वर्गलोक को जाता है। साथ ही इस व्रत के करने से पीपल के काटने का पाप दूर हो जाता है।
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