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| '''तदेतेषु''' '''ऋतुष्वेते''' '''रसा''' '''भूयसोपयोक्तव्याः,''' '''न''' '''त्वेत''' '''एवेत्यर्थः|''' '''तथा,''' '''समधातुं''' '''प्रति''' '''समे''' '''देशे''' '''चैष''' '''नियमो''' '''वेद्यः|''' '''अन्यत्र''' '''तु''' '''जाङ्गलेऽनूपे''' '''वा''' '''देशे''' '''विषमधातोश्च''' '''धातुसाम्योत्पादनार्थं''' '''देशदेहानुगुणमन्यर्तुविहितविधानमन्यस्मिन्नप्यृतावनुष्ठेयमेव| (arundatta, A H SU 3.57)''' | | '''तदेतेषु''' '''ऋतुष्वेते''' '''रसा''' '''भूयसोपयोक्तव्याः,''' '''न''' '''त्वेत''' '''एवेत्यर्थः|''' '''तथा,''' '''समधातुं''' '''प्रति''' '''समे''' '''देशे''' '''चैष''' '''नियमो''' '''वेद्यः|''' '''अन्यत्र''' '''तु''' '''जाङ्गलेऽनूपे''' '''वा''' '''देशे''' '''विषमधातोश्च''' '''धातुसाम्योत्पादनार्थं''' '''देशदेहानुगुणमन्यर्तुविहितविधानमन्यस्मिन्नप्यृतावनुष्ठेयमेव| (arundatta, A H SU 3.57)''' |
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| + | तस्याशिताद्यादाहाराद्बलं वर्णश्च वर्धते| |
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| + | यस्यर्तुसात्म्यं विदितं चेष्टाहारव्यपाश्रयम्||३|| (Cha. Su 6.3) |
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| == Role of ahara in prevention of diseases == | | == Role of ahara in prevention of diseases == |
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| Dalhana- पाञ्चभौतिकस्येति पृथिव्यादिभूतद्रव्यभेदेन, चतुर्विधस्येति पेयलेह्यभोज्यभक्ष्यभेदेन, षड्रसस्येति मधुरादिरसभेदेन, द्विविधवीर्यस्येति शीतोष्णवीर्यभेदेन, पक्षान्तरमाह- अष्टविधवीर्यस्य वेति शीतोष्णस्निग्धरूक्षविशदपिच्छिलमृदुतीक्ष्णभेदेन, अनेकगुणस्येति शीतादिद्रवादिगुणभेदेन विंशतिगुणस्य, उपयुक्तस्येति सम्यक्परिणतस्येत्यनेनैवोपयुक्तपदार्थस्य लब्धत्वाद्यदुपयुक्तग्रहणं करोति तत् सम्यग्योगं स्वास्थ्यवृत्तीयद्वादशविधाशनप्रविचारमपेक्ष्योपयोगं प्रापयति| | | Dalhana- पाञ्चभौतिकस्येति पृथिव्यादिभूतद्रव्यभेदेन, चतुर्विधस्येति पेयलेह्यभोज्यभक्ष्यभेदेन, षड्रसस्येति मधुरादिरसभेदेन, द्विविधवीर्यस्येति शीतोष्णवीर्यभेदेन, पक्षान्तरमाह- अष्टविधवीर्यस्य वेति शीतोष्णस्निग्धरूक्षविशदपिच्छिलमृदुतीक्ष्णभेदेन, अनेकगुणस्येति शीतादिद्रवादिगुणभेदेन विंशतिगुणस्य, उपयुक्तस्येति सम्यक्परिणतस्येत्यनेनैवोपयुक्तपदार्थस्य लब्धत्वाद्यदुपयुक्तग्रहणं करोति तत् सम्यग्योगं स्वास्थ्यवृत्तीयद्वादशविधाशनप्रविचारमपेक्ष्योपयोगं प्रापयति| |
| + | |
| + | === Types of aharadravyas === |
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| + | ==== Laghu ==== |
| + | तत्र शालिषष्टिकमुद्गलावकपिञ्जलैणशशशरभशम्बरादीन्याहारद्रव्याणि प्रकृतिलघून्यपि मात्रापेक्षीणि भवन्ति| (Cha Su 5.5) |
| + | |
| + | ==== Guru ==== |
| + | तथा पिष्टेक्षुक्षीरविकृतितिलमाषानूपौदकपिशितादीन्याहारद्रव्याणि प्रकृतिगुरूण्यपि मात्रामेवापेक्षन्ते||५|| (Cha.Su 5.5) |
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| + | Cha.su 25.36 |
| + | |
| + | आहारत्वमाहारस्यैकविधमर्थाभेदात्; स पुनर्द्वियोनिः, स्थावरजङ्गमात्मकत्वात्; द्विविधप्रभावः, हिताहितोदर्कविशेषात्; चतुर्विधोपयोगः, पानाशनभक्ष्यलेह्योपयोगात्; षडास्वादः, रसभेदतः षड्विधत्वात्; विंशतिगुणः, गुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षमन्दतीक्ष्णस्थिरसरमृदुकठिन- विशदपिच्छिलश्लक्ष्णखरसूक्ष्मस्थूलसान्द्रद्रवानुगमात्; अपरिसङ्ख्येयविकल्पः, द्रव्यसंयोगकरणबाहुल्यात्||३६|| |
| + | |
| + | == Best quality of ahara == |
| + | तृप्तिराहारगुणानां, Cha.Su 25.40 |
| + | |
| + | Agrya related to ahara |
| + | |
| + | अन्नं वृत्तिकराणां श्रेष्ठम्, |
| | | |
| == Ahara varga == | | == Ahara varga == |
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| == Pathya- Apathya == | | == Pathya- Apathya == |
| A.H.SU.7.40-42 | | A.H.SU.7.40-42 |
| + | |
| + | Cha Su 25.38 |
| + | |
| + | Pathya |
| + | |
| + | तद्यथा- लोहितशालयः शूकधान्यानां पथ्यतमत्वे श्रेष्ठतमा भवन्ति, मुद्गाः शमीधान्यानाम्, आन्तरिक्षमुदकानां, सैन्धवं लवणानां, जीवन्तीशाकं शाकानाम्, ऐणेयं मृगमांसानां, लावः पक्षिणां, गोधा बिलेशयानां, रोहितो मत्स्यानां, गव्यं सर्पिः सर्पिषां, गोक्षीरं क्षीराणां, तिलतैलं स्थावरजातानां स्नेहानां, वराहवसा आनूपमृगवसानां, चुलुकीवसा मत्स्यवसानां, पाकहंसवसा जलचरविहङ्गवसानां, कुक्कुटवसा विष्किरशकुनिवसानां, अजमेदः शाखादमेदसां, शृङ्गवेरं कन्दानां, मृद्वीका फलानां, शर्करेक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैव हिततमानामाहारविकाराणां प्राधान्यतो द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति||३८|| |
| + | |
| + | Apathya/ahita |
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| + | अहिततमानप्युपदेक्ष्यामः- यवकाः शूकधान्यानामपथ्यतमत्वेन प्रकृष्टतमा [१] भवन्ति, माषाः शमीधान्यानां, वर्षानादेयमुदकानाम्, ऊषरं लवणानां, सर्षपशाकं शाकानां, गोमांसं मृगमांसानां, काणकपोतः पक्षिणां, भेको बिलेशयानां, चिलिचिमो मत्स्यानाम्, आविकं सर्पिः सर्पिषाम्, अविक्षीरं क्षीराणां, कुसुम्भस्नेहः स्थावरस्नेहानां, महिषवसा आनूपमृगवसानां, कुम्भीरवसा मत्स्यवसानां, काकमद्गुवसा जलचरविहङ्गवसानां, चटकवसा विष्किरशुकनिवसानां, हस्तिमेदः शाखादमेदसां, निकुचं फलानाम्, आलुकं कन्दानां, फाणितमिक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैवाहिततमानामाहारविकाराणां प्रकृष्टतमानि द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति; (इति) हिताहितावयवो व्याख्यात आहारविकाराणाम्||३९|| |
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| == Trayopasthambha == | | == Trayopasthambha == |
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| शरीरं धार्यते नित्यमागारमिव धारणैः||५२| | | शरीरं धार्यते नित्यमागारमिव धारणैः||५२| |
| + | |
| + | Cha.Su 11.25 |
| + | |
| + | त्रय उपस्तम्भा इति- आहारः, स्वप्नो, ब्रह्मचर्यमिति; एभिस्त्रिभिर्युक्तियुक्तैरुपस्तब्धमुपस्तम्भैः शरीरं बलवर्णोपचयोपचितमनुवर्तते यावदायुःसंस्कारात् संस्कारमहितमनुपसेवमानस्य [१] , य इहैवोपदेक्ष्यते||३५|| |
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| == Bhojana kala == | | == Bhojana kala == |
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| विहाराहारजनितं तथोर्जस्करयोगजम्||७८|| | | विहाराहारजनितं तथोर्जस्करयोगजम्||७८|| |
| + | |
| + | Cha.Su 11.36 |
| + | |
| + | त्रिविधं बलमिति- सहजं, कालजं, युक्तिकृतं च| |
| + | |
| + | सहजं यच्छरीरसत्त्वयोः प्राकृतं, कालकृतमृतुविभागजं वयःकृतं च, युक्तिकृतं पुनस्तद्यदाहारचेष्टायोगजम्||३६|| |
| + | |
| + | आहारस्य मांससर्पिरादेः, |
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| == Function or role of ahara in sharira vruddhi == | | == Function or role of ahara in sharira vruddhi == |
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| आयुस्तेजःसमुत्साहस्मृत्योजोग्निविवर्धनः |६९| Su.Chi.24.68-69 | | आयुस्तेजःसमुत्साहस्मृत्योजोग्निविवर्धनः |६९| Su.Chi.24.68-69 |
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| + | In sthoulya-karshya |
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| + | देहवृत्तौ यथाऽऽहारस्तथा स्वप्नः सुखो मतः| |
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| + | स्वप्नाहारसमुत्थे च स्थौल्यकार्श्ये विशेषतः||५१|| Cha.Su 21.51 |
| + | |
| + | Cha.Su.25.31 |
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| + | हिताहारोपयोग एक एव पुरुषवृद्धिकरो भवति, अहिताहारोपयोगः पुनर्व्याधिनिमित्तमिति [१] ||३१|| |
| + | |
| + | यदाहारजातमग्निवेश! समांश्चैव शरीरधातून् प्रकृतौ स्थापयति विषमांश्च समीकरोतीत्येतद्धितं विद्धि, विपरीतं त्वहितमिति; इत्येतद्धिताहितलक्षणमनपवादं भवति||३३|| 25.34 |
| + | |
| + | === Factors affecting effect of Ahara on body === |
| + | हिताहितानामाहारजातानां लक्षणमनपवादमभिजानीमहे; हितसमाख्यातानामाहारजातानामहितसमाख्यातानां च मात्राकालक्रियाभूमिदेहदोषपुरुषावस्थान्तरेषु विपरीतकारित्वमुपलभामह इति||३२|| |
| + | |
| + | हिताहारोपयोग एक एवेत्यवधारणेनास्य [२] प्राधान्यं दर्शयति नान्यप्रतिषेधम्, आचारस्य स्वप्नादेस्तथा शब्दादीनामपि कारणत्वेनोक्तत्वात्| व्याधिनिमित्तमिति व्याध्यभिवृद्धिनिमित्तं मध्यपदलोपाज्ज्ञेयम्, अभिवृद्धिकारणस्यैव पृष्टत्वात्; तथाऽहिताहारस्य यद्व्याधिनिमित्तत्वं, तस्य ‘तेषामेव विपद्व्याधीन् विविधान् समुदीरयेत्’ इत्यनेनैवोक्तत्वात्| किंवा व्याधिनिमित्तशब्देन सामान्येन जनको वर्धकश्च हेतुरुच्यते| अनपवादमिति अव्यभिचारि| हिताहिताहारदुर्ज्ञानताहेतुमाह- हितसमाख्यातानामित्यादि| विपरीतकारित्वमिति पथ्यस्यापथ्यत्वं तथा अपथ्यस्य पथ्यत्वं मात्रादिवशाद्भवति| तत्र पथ्या रक्तशाल्यादयोऽतिमात्रा हीनमात्रा वा मात्रादोषादपथ्या भवन्ति| तथा कालवशात्त एव रक्तशाल्यादयो लघुत्वाद्बलवदग्नीनां हेमन्ते न हिताः; कालशब्देन चेह नित्यग एव कालो गृह्यते, आवस्थिकस्य पुरषावस्थाशब्देन गृहीतत्वात्| क्रिया तु संस्करणं, तेन च रक्तशालिरसम्यक्स्विन्नाप्रस्रुतत्वादिना ओदनदोषेणाहितो भवति, तथा स एव भूमिसम्बन्धादानूपदेशजः सन्नपथ्यो भवति| तथा देहापेक्षया मेदस्विनो रक्तशालिर्लघुतया न हितो भवति, तदुक्तं- “गुरु चातर्पणं चेष्टं स्थूलानां कर्शनं प्रति” (सू. २१) इति| तथा स एव दोषे वायावहितः, दोषशब्देन व्याधिरपि ग्रहीतव्यः| तथा- पुरुषस्य बाल्यावस्थायां श्लेष्मप्रधानायां तिक्तादि पथ्यं, तत्तु वार्धक्ये वृद्धवाते न पथ्यम्| अवस्थान्तरशब्दश्च मात्रादिभिः प्रत्येकं सम्बध्यते| एवमहितस्यापि मात्रादिपरिग्रहेण हितत्वमुन्नेतव्यम्||३०-३२|| |
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| == Prakruti and ahara matra == | | == Prakruti and ahara matra == |
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| द्रवोत्तरो द्रवश्चापि न मात्रागुरुरिष्यते ||४९५|| Su.Su.46/495 | | द्रवोत्तरो द्रवश्चापि न मात्रागुरुरिष्यते ||४९५|| Su.Su.46/495 |
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| + | मात्राशी स्यात्| |
| + | |
| + | आहारमात्रा पुनरग्निबलापेक्षिणी||३|| (Cha.Su. 5.3) |
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| == Factors that affect proper digestion of food == | | == Factors that affect proper digestion of food == |
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| विण्मूत्रमाहारमलः सारः प्रागीरितो रसः |५२८| S.u.su. 46.528 | | विण्मूत्रमाहारमलः सारः प्रागीरितो रसः |५२८| S.u.su. 46.528 |
| + | |
| + | == Ahara as medicine == |
| + | Cha. Su. 11.54 |
| + | |
| + | युक्तिव्यपाश्रयं- पुनराहारौषधद्रव्याणां योजना, |
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| + | Ahara as the only only medicine to regain strength after recovery from diseases |
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| + | भेषजक्षपिते पथ्यमाहारैरेव बृंहणम्| |
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| + | घृतमांसरसक्षीरहृद्ययूषोपसंहितैः||२२|| |
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| + | अभ्यङ्गोत्सादनैः स्नानैर्निरूहैः सानुवासनैः| |
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| + | तथा स लभते शर्म युज्यते चायुषा चिरम्||२३|| Cha.Su. 16.22-23 |
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| == Specific recipes in specific diseases == | | == Specific recipes in specific diseases == |