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| == स्वाधीन भारत में शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में संभ्रम == | | == स्वाधीन भारत में शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में संभ्रम == |
− | स्वाधीनता के बाद शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में जो लोग थे उन्हें शायद ऐसा लगता था की प्राचीन भारत के पास भी कुछ श्रेष्ठ बातें थीं किंतु युरोप के वर्तमान से श्रेष्ठ नहीं। इस लिये हमारे प्राचीन भारतीय जो था उसे जब तक वर्तमान पश्चिमी ज्ञानधारा के साथ समायोजित नहीं किया जाता हम शिक्षा के माध्यम से श्रेष्ठ मानव का निर्माण नहीं कर सकेंगे। ऐसा मान कर उन्होंने पश्चिमी ज्ञानधारा के साथ भारतीय ज्ञानधारा को समायोजित करने के प्रयास किये। जो गलती स्वाधीनता से पहले किये गये शिक्षा को भारतीय बनाने के प्रयासों में हुई थी वही गलती स्वाधीनता के बाद सरकारने और नए प्रयासों ने भी दोहराई दिखाई देती है। इस के फलस्वरूप सभी पाठयक्रमों का मूल और सार तो पश्चिमी विचार ही रहे। खाना तो पश्चिमी जंक फूड ही रहा। बस साथ में कुछ भारतीय चटनी आचार परोसने का प्रयास हुआ। | + | स्वाधीनता के बाद शिक्षा के लक्ष्य निर्धारण में जो लोग थे उन्हें संभवतः ऐसा लगता था की प्राचीन भारत के पास भी कुछ श्रेष्ठ बातें थीं किंतु युरोप के वर्तमान से श्रेष्ठ नहीं। इस लिये हमारे प्राचीन भारतीय जो था उसे जब तक वर्तमान पश्चिमी ज्ञानधारा के साथ समायोजित नहीं किया जाता हम शिक्षा के माध्यम से श्रेष्ठ मानव का निर्माण नहीं कर सकेंगे। ऐसा मान कर उन्होंने पश्चिमी ज्ञानधारा के साथ भारतीय ज्ञानधारा को समायोजित करने के प्रयास किये। जो गलती स्वाधीनता से पहले किये गये शिक्षा को भारतीय बनाने के प्रयासों में हुई थी वही गलती स्वाधीनता के बाद सरकारने और नए प्रयासों ने भी दोहराई दिखाई देती है। इस के फलस्वरूप सभी पाठयक्रमों का मूल और सार तो पश्चिमी विचार ही रहे। खाना तो पश्चिमी जंक फूड ही रहा। बस साथ में कुछ भारतीय चटनी आचार परोसने का प्रयास हुआ। |
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| इसी प्रकार विविधता या अनेकता में एकता के भारतीय तत्व को समझने में भी भूल हुई समझ में आती है। विविधता ढूँढते ढूँढते बात सांस्कृतिक विविधता तक खींची गई। फिर एकता किस बात में रही यह कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया। वास्तव में वेष, भोजन, भाषा, भूषणों जैसे अन्य सभी प्रकार की विविधता तो समझी जा सकती है, किंतु संस्कृति की विविधता होगी तो साथ में कैसे रह सकेंगे। इस बिंदू को ठीक से समझना होगा। स्वामी विवेकानंदजी ने पश्चिमी देशों में किये कई भाषणों में कहा है कि 'आप के समाज में अपनी माँ को छोडकर आप अन्य सभी स्त्रियों को संभाव्य पत्नी (प्रॉस्पेक्टिव्ह वाईफ) के रूप में देखते है। भारत में हम अपनी पत्नी को छोडकर अन्य सभी स्त्रियों को माता के रूप में देखते है (मातृवत् परदारेषू)। ऐसी विपरीत मान्यता रखनेवाले दो कुटुम्ब इकठ्ठे नहीं रह सकते। इसी प्रकार समाज के एक गुट की मान्यता है कि मूर्ति में भी परमात्मा को देखा जा सकता है। और दूसरे वर्ग की मान्यता है ऐसी मूर्तियों को नष्ट करना (बुतशिकन अर्थात् मूर्तिभंजक) पुण्य की बात है, मूर्ति की पूजा करने वाले लोगोंं को कत्ल करने की। ऐसी विपरीत सांस्कृतिक मान्यता वाले दो समाज गुट इकठ्ठे नहीं रह सकते। इकठ्ठे रहे तो शांति नहीं रहेगी। इसलिये मिली-जुली संस्कृति या साझी संस्कृति की भाषा तो तब ही बोली जा सकती है जब माता छोडकर हर स्त्री में संभाव्य पत्नी को देखनेवाले और मूर्तिपूजकों को जीने का अधिकार नहीं है ऐसा कहने वाले मजहबी लोग अपने विचारों का त्याग करेंगे। किंतु इस प्रकार का कोई भी प्रयास शिक्षा के माध्यम से (कोअर एलिमेंण्ट्स् की पुस्तिका में भी) किया नहीं जा रहा है। यह जब तक नहीं होता तब तक साझी संस्कृति की बात करना बेमानी होगी। | | इसी प्रकार विविधता या अनेकता में एकता के भारतीय तत्व को समझने में भी भूल हुई समझ में आती है। विविधता ढूँढते ढूँढते बात सांस्कृतिक विविधता तक खींची गई। फिर एकता किस बात में रही यह कहीं भी स्पष्ट नहीं किया गया। वास्तव में वेष, भोजन, भाषा, भूषणों जैसे अन्य सभी प्रकार की विविधता तो समझी जा सकती है, किंतु संस्कृति की विविधता होगी तो साथ में कैसे रह सकेंगे। इस बिंदू को ठीक से समझना होगा। स्वामी विवेकानंदजी ने पश्चिमी देशों में किये कई भाषणों में कहा है कि 'आप के समाज में अपनी माँ को छोडकर आप अन्य सभी स्त्रियों को संभाव्य पत्नी (प्रॉस्पेक्टिव्ह वाईफ) के रूप में देखते है। भारत में हम अपनी पत्नी को छोडकर अन्य सभी स्त्रियों को माता के रूप में देखते है (मातृवत् परदारेषू)। ऐसी विपरीत मान्यता रखनेवाले दो कुटुम्ब इकठ्ठे नहीं रह सकते। इसी प्रकार समाज के एक गुट की मान्यता है कि मूर्ति में भी परमात्मा को देखा जा सकता है। और दूसरे वर्ग की मान्यता है ऐसी मूर्तियों को नष्ट करना (बुतशिकन अर्थात् मूर्तिभंजक) पुण्य की बात है, मूर्ति की पूजा करने वाले लोगोंं को कत्ल करने की। ऐसी विपरीत सांस्कृतिक मान्यता वाले दो समाज गुट इकठ्ठे नहीं रह सकते। इकठ्ठे रहे तो शांति नहीं रहेगी। इसलिये मिली-जुली संस्कृति या साझी संस्कृति की भाषा तो तब ही बोली जा सकती है जब माता छोडकर हर स्त्री में संभाव्य पत्नी को देखनेवाले और मूर्तिपूजकों को जीने का अधिकार नहीं है ऐसा कहने वाले मजहबी लोग अपने विचारों का त्याग करेंगे। किंतु इस प्रकार का कोई भी प्रयास शिक्षा के माध्यम से (कोअर एलिमेंण्ट्स् की पुस्तिका में भी) किया नहीं जा रहा है। यह जब तक नहीं होता तब तक साझी संस्कृति की बात करना बेमानी होगी। |
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| # जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पड़ेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पड़ेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है। | | # जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पड़ेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पड़ेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है। |
| # अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा। | | # अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा। |
− | # भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] को टुकडों में बाँटा है विश्व में [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] विश्व नाशक बन गया है। शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'। | + | # भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] को टुकडों में बाँटा है विश्व में [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] विश्व नाशक बन गया है। शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। संभवतः वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'। |
| # यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग’ (To know more and more about smaller and smaller things till you know everything about nothing. )। | | # यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग’ (To know more and more about smaller and smaller things till you know everything about nothing. )। |
| # इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन। | | # इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन। |