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६६. हम सीखते जाते हैं और अनुभव प्राप्त करते जाते हैं । तब हमें सिखाने की भी इच्छा होती है और अपने चरित्र तथा व्यवहार से अनेक लोगोंं को अनेक बातें सिखाते भी हैं । उनका कल्याण होता है । फिर एक समय ऐसा आता है जब सिखाने की इच्छा भी नहीं रहती और हम प्रयास भी नहीं करते । तो भी लोग हम से सीखते ही है ।
६६. हम सीखते जाते हैं और अनुभव प्राप्त करते जाते हैं । तब हमें सिखाने की भी इच्छा होती है और अपने चरित्र तथा व्यवहार से अनेक लोगोंं को अनेक बातें सिखाते भी हैं । उनका कल्याण होता है । फिर एक समय ऐसा आता है जब सिखाने की इच्छा भी नहीं रहती और हम प्रयास भी नहीं करते । तो भी लोग हम से सीखते ही है ।
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६७. नदी किसी को पोनी देने के लिये नहीं बहती फिर भी लोगोंं को नदी से पानी मिलता ही है उसी प्रकार लोग हमसे सीखते ही है । ऐसी अवस्था को पहुँचना हमारा लक्ष्य है कि नहीं इसका विचार करना चाहिये । शिक्षा इसी के लिये होती है ।
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६७. नदी किसी को पोनी देने के लिये नहीं बहती तथापि लोगोंं को नदी से पानी मिलता ही है उसी प्रकार लोग हमसे सीखते ही है । ऐसी अवस्था को पहुँचना हमारा लक्ष्य है कि नहीं इसका विचार करना चाहिये । शिक्षा इसी के लिये होती है ।
६८. हमारा शरीर बहुत ही अच्छा आज्ञाकारी चाकर है, बहुत ही कुशल यन्त्र है । उसे हम मन का चाकर बनाते हैं या बुद्धि का यह समझ लेना चाहिये । यदि वह मन का चाकर है तो उसे उससे मुक्त कर बुद्धि के अधीन बनाना चाहिये ।
६८. हमारा शरीर बहुत ही अच्छा आज्ञाकारी चाकर है, बहुत ही कुशल यन्त्र है । उसे हम मन का चाकर बनाते हैं या बुद्धि का यह समझ लेना चाहिये । यदि वह मन का चाकर है तो उसे उससे मुक्त कर बुद्धि के अधीन बनाना चाहिये ।