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| === सिंहगढ़ === | | === सिंहगढ़ === |
| पूणे से २५-२६ कि. मी. दूरी पर इतिहास-प्रसिद्ध सिंहगढ़ स्थित है। इसका पुराना नाम कोंडाना था।शिवाजी के वीर सेनापति तानाजी मालसुरे ने आत्म बलिदान के कारण ही इसका नाम सिंहगढ़ हुआ। | | पूणे से २५-२६ कि. मी. दूरी पर इतिहास-प्रसिद्ध सिंहगढ़ स्थित है। इसका पुराना नाम कोंडाना था।शिवाजी के वीर सेनापति तानाजी मालसुरे ने आत्म बलिदान के कारण ही इसका नाम सिंहगढ़ हुआ। |
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| + | === प्रतापगढ़ === |
| + | दुर्गम पहाड़ी पर स्थित यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी केबुद्धि-चातुर्य तथा शौर्य का प्रत्यक्ष साक्षी है। बीजापुर का शासक शिवाजी के बढ़ते प्रभाव से बहुत चिन्तित था। उसने अपने सरदार अफजलखां से शिवाजी को जिन्दा या मुर्दा पकड़ लाने को कहाँ परन्तु वह धूर्त अपने उद्देश्य में सफल न होकर प्रतापगढ़ के पास एक छोटे से समतल स्थान परअपने ही प्राण दे बैठा। नियत स्थान पर मिलने के समय अफजलखां ने शिवाजी परतलवार से प्रहार किया, परन्तु शिवाजी पहले से ही सचेत थे। उन्होंने अपने बघनखे से उसकी अंतड़ियाँ बाहर निकाल दीं तथा बिछवां कटार से उसके सीने को भेद कर सदा के लिये ठंडा कर दिया। प्रतापगढ़ के किले में शिवाजी ने सन् १६६१ ई0 में तुलजा भवानी की प्रतिष्ठा की। भारत के स्वतंत्र हो जाने पर प्रतापगढ़ में शिवाजी का भव्य स्मारक बनाया गया जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने बड़ी होलो हुज्जत के बाद किया।पुरन्दर,चाकन, मकरन्दगढ़, पन्हालागढ़आदि अन्य प्रमुख दुर्ग भी शिवाजी महाराज की शौर्य - कथा सुनते है । |
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| + | महाबलेश्वरम् |
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| + | पर्वतमाला के पश्चिमी ढाल पर स्थित महाबलेश्वरम् अति प्राचीन शैव |
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| + | तीर्थ है।भगवान् विष्णुने अतिबल तथा आदिमाया ने महाबल नामक दैत्यों |
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| + | का वध यहीं किया था। कहते हैं कि सृष्टि के प्रारम्भ में ब्रह्मा, विष्णु व |
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| + | महेश ने लोकमंगल के लिए यहाँतपस्या कीथी। कृष्णा नदी का उद्गम |
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| + | स्थान यही है। |
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| + | महाबलेश्वर,अतिबलेश्वर तथा कोटीश्वर ये तीन मन्दिर तो यहाँ हैंही, |
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| + | कृष्णा बाई व बलसोम नामक मन्दिर भी हैं। अहिल्याबाई द्वारा निर्मित |
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| + | रुदेश्वर तथा समर्थ रामदास द्वारा श्रीमारुति की प्रतिष्ठा भी यहाँ की गयी |
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| + | हैं ।<sub>मुम्बई (बम्बई)</sub> |
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| + | वर्तमान महाराष्ट्र की राजधानी,प्रमुखतम पत्तन तथा औद्योगिक नगरी |
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| + | मुम्बई। पश्चिमी समुद्र-तट के एक सुरक्षित स्थान पर विद्यमान है। यहाँ |
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| + | मुम्बा देवी का प्राचीन मन्दिर है। यह यहाँ की आराध्या देवी हैं। इनके |
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| + | आधार परहीइस नगर का नाम मुम्बई पड़ा।मुम्बई के अन्य मुख्य मन्दिरों |
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| + | के नाम इस प्रकार हैं : |
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| + | 1, लक्ष्मीनारायण मन्दिर - माधव बाग में |
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| + | 2. महालक्ष्मी- परेल से दक्षिण में समुद्रतट पर |
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| + | 3. हनुमान जी - माटूगा में |
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| + | 4, कालबादेवी - स्वदेशी बाजार में कालबा रोड पर |
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| + | तुलजा भवानी महाराष्ट्र की कुलस्वामिनी हैं। ये छत्रपति शिवाजी की |
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| + | परमाराध्या हैं। स्वयं तुलजा भवानी ने शिवाजी को खड्ग प्रदान कर |
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| + | आशीर्वाद दिया था। मूल तुलजा भवानी शोलापुर से 40 किमी. दूर |
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| + | तुलजापुरमें विराजमान हैं। शिवाजी ने प्रतापगढ़ व रायगढ़ में भीइनको |
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| + | प्रतेिटित कराया । |
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| + | 5, द्वारिकाधीश- 6 विभिन्न व एक पारसी मन्दिर। |
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| + | धारापुरी (एलिफेंट) में मुम्बई के पास द्वीप पर स्थिति अनेक गुफा |
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| + | मन्दिरएलोरा शैली में बनाये गए हैं।शिवरात्रि के पर्व पर धारापुरी मेंमेला |
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| + | भी शिवाजी महाराज की शौर्य-कथा सुनाते हैं। <sup>लगता है।</sup> |
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| ==References== | | ==References== |