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नीचे ही देवी नांदनी रूप में प्रतिष्ठित मानी जाती हैं।   
 
नीचे ही देवी नांदनी रूप में प्रतिष्ठित मानी जाती हैं।   
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१९. '''श्रीशैल :'''आन्ध्रप्रदेश में श्रीशैल पर्वत पर भगवान् शिव मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वहीं पर भ्रमराम्बा मन्दिर शक्तिपीठ है। इस मन्दिर में देवी महालक्ष्मी रूप में   
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१९. '''श्रीशैल :'''आन्ध्रप्रदेश में श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वहीं पर भ्रमराम्बा मन्दिर शक्तिपीठ है। इस मन्दिर में देवी महालक्ष्मी रूप में   
    
विराजमान है।  
 
विराजमान है।  
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=== वाराहमूल (बारामूला) ===
 
=== वाराहमूल (बारामूला) ===
श्रीनगर से पश्चिमोत्तर दिशा में वाराह मूल स्थित है।इसका सम्बन्ध वाराह अवतार से जोड़ा जाता है। जब हिरण्याक्ष्य पृथ्वी का अपहरण कर पाताल ले गया तो भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार धारण कर उस अत्याचारीसे पृथ्वी को मुक्त कराया। कई प्राचीन मन्दिर तथा तीर्थों के ध्वंस अवशेष यहाँ आज भी विद्यमान हैं।  
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श्रीनगर से पश्चिमोत्तर दिशा में वाराह मूल स्थित है।इसका सम्बन्ध वाराह अवतार से जोड़ा जाता है। जब हिरण्याक्ष्य पृथ्वी का अपहरण कर पाताल ले गया तो भगवान विष्णु ने वाराह अवतार धारण कर उस अत्याचारीसे पृथ्वी को मुक्त कराया। कई प्राचीन मन्दिर तथा तीर्थों के ध्वंस अवशेष यहाँ आज भी विद्यमान हैं।  
    
=== वैष्णवी देवी ===
 
=== वैष्णवी देवी ===
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=== साधुवेला तीर्थ ===
 
=== साधुवेला तीर्थ ===
पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में सक्खर नगर के पास यह तीर्थ क्षेत्र स्थित हैं। यहाँ अनेक पक्के घाट तथा ध्यान करने के स्थान बने हैं। तीर्थ क्षेत्र में भगवान् राम, लक्ष्मण, सीता, पवनपुत्र हनुमान, गणेश दुग, महादेव शिव के मन्दिर बने हैं। पाकिस्तान बनने से पूर्व यहाँ नियमित रूप से कथा-प्रवचन, कीर्तन व धमॉपदेश होते थे, परन्तु पाकिस्तान बनने के बाद यहाँ की दशा शोचनी हो गयी है।  
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पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में सक्खर नगर के पास यह तीर्थ क्षेत्र स्थित हैं। यहाँ अनेक पक्के घाट तथा ध्यान करने के स्थान बने हैं। तीर्थ क्षेत्र में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता, पवनपुत्र हनुमान, गणेश दुग, महादेव शिव के मन्दिर बने हैं। पाकिस्तान बनने से पूर्व यहाँ नियमित रूप से कथा-प्रवचन, कीर्तन व धमॉपदेश होते थे, परन्तु पाकिस्तान बनने के बाद यहाँ की दशा शोचनी हो गयी है।  
    
=== कटाक्षराज (कटास राज ) ===
 
=== कटाक्षराज (कटास राज ) ===
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=== मुलस्थान  (मुल्तान) ===
 
=== मुलस्थान  (मुल्तान) ===
पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित यह नगर दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म-स्थान है। यहीं पर नृसिंह अवतारलेकर भगवान् ने निरंकुश हिरण्यकशिपु का वध किया।भगवान् नूसिंह काभव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंआज भी है। नृसिंह चतुर्दशों को यहाँ मेला लगता था। पास में ही सूर्यकुण्ड सरोवर है वहाँ पर माघ शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को भी मेला लगता था, परन्तु आज सब अस्त - व्यस्त है । प्रहलादपुरी इसका पुराना नाम था।
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पंजाब (पाकिस्तान) में स्थित यह नगर दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राजधानी तथा भक्त प्रहलाद का जन्म-स्थान है। यहीं पर नृसिंह अवतारलेकर भगवान ने निरंकुश हिरण्यकशिपु का वध किया।भगवान नूसिंह काभव्य मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंआज भी है। नृसिंह चतुर्दशों को यहाँ मेला लगता था। पास में ही सूर्यकुण्ड सरोवर है वहाँ पर माघ शुक्ल षष्ठी व सप्तमी को भी मेला लगता था, परन्तु आज सब अस्त - व्यस्त है । प्रहलादपुरी इसका पुराना नाम था।
    
=== लवपुर (लाहौर) ===
 
=== लवपुर (लाहौर) ===
भगवान् राम के पुत्र लव द्वारा बसाया गया। प्राचीन नगर। महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी यह नगर रहा। धर्मवीर हकीकत की समाधि यहीं पर है। गुरु अर्जुनदेव का बलिदान यहींहुआ। कई मन्दिर व गुरुद्वारे यहाँ आज वीरान पड़े है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रावी-तट पर स्थित इसी नगर में कांग्रेस ने १९२९ में पूर्ण स्वराज्य-प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया।  
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भगवान राम के पुत्र लव द्वारा बसाया गया। प्राचीन नगर। महाराजा रणजीत सिंह की राजधानी यह नगर रहा। धर्मवीर हकीकत की समाधि यहीं पर है। गुरु अर्जुनदेव का बलिदान यहींहुआ। कई मन्दिर व गुरुद्वारे यहाँ आज वीरान पड़े है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रावी-तट पर स्थित इसी नगर में कांग्रेस ने १९२९ में पूर्ण स्वराज्य-प्राप्ति को अपना लक्ष्य घोषित किया।  
    
=== करवीर  ===
 
=== करवीर  ===
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=== श्री महावीर जी ===
 
=== श्री महावीर जी ===
यह जैन समाज का प्रमुख तीर्थ है। यहाँ वर्षभर लाखों तीर्थयात्री भगवान् महावीर स्वामी के दर्शनार्थ आते रहते हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि यहाँ उनकीमनोकामना पूरी हो जाती है। मन्दिर में महावीर स्वामी की कत्थई रंग की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा एक भक्त ग्वाले को भूमि केअन्दर दबी मिली थी जिसे पास में प्रतिष्ठित करा दिया गया। मन्दिर का निर्माण भरतपुर के दीवान जोधराज ने कराया। मन्दिर के चारों ओर तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कई धर्मशालाएँ बनी हैं। जैनियों के अतिरिक्त भी सभी स्थानीय लोग महावीर जी के प्रति श्रद्धा रखते हैं। सम्पूर्ण उत्तर भारत में इस तीर्थ की अतिशय क्षेत्र के रूप में मान्यता है।  
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यह जैन समाज का प्रमुख तीर्थ है। यहाँ वर्षभर लाखों तीर्थयात्री भगवान महावीर स्वामी के दर्शनार्थ आते रहते हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि यहाँ उनकीमनोकामना पूरी हो जाती है। मन्दिर में महावीर स्वामी की कत्थई रंग की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा एक भक्त ग्वाले को भूमि केअन्दर दबी मिली थी जिसे पास में प्रतिष्ठित करा दिया गया। मन्दिर का निर्माण भरतपुर के दीवान जोधराज ने कराया। मन्दिर के चारों ओर तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए कई धर्मशालाएँ बनी हैं। जैनियों के अतिरिक्त भी सभी स्थानीय लोग महावीर जी के प्रति श्रद्धा रखते हैं। सम्पूर्ण उत्तर भारत में इस तीर्थ की अतिशय क्षेत्र के रूप में मान्यता है।  
    
=== रणथम्भौर ( सवाई माधोपुर ) ===
 
=== रणथम्भौर ( सवाई माधोपुर ) ===
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=== नाथद्वारा ===
 
=== नाथद्वारा ===
उदयपुर से ४८ कि.मी. दूर बनास नदी पर नाथद्वार स्थित है। यहाँ भगवान् श्रीनाथ का सुन्दर मन्दिर है। श्री नाथजी की प्रतिमा मूलत: वज्रभूमि में गोवर्धन पर प्रतिष्ठित थी। औरंगजेब के शासन के दौरान वहाँ से हटाकर नाथद्वारा मेंप्रस्थापित करा दी गयी। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्य श्री विग्रह को लेकरआये थे। अत: यह स्थान वल्लभाचार्य के शिष्यों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। नाथद्वारा में वनमाली जी का मन्दिर, मीरा मन्दिर, नवनीतलाल जी का मन्दिर तथा अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। नाथद्वारा मन्दिर के माध्यम से यहाँ हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थों का विशाल पुस्तकालय संचालित किया जाता है।  
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उदयपुर से ४८ कि.मी. दूर बनास नदी पर नाथद्वार स्थित है। यहाँ भगवान श्रीनाथ का सुन्दर मन्दिर है। श्री नाथजी की प्रतिमा मूलत: वज्रभूमि में गोवर्धन पर प्रतिष्ठित थी। औरंगजेब के शासन के दौरान वहाँ से हटाकर नाथद्वारा मेंप्रस्थापित करा दी गयी। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्य श्री विग्रह को लेकरआये थे। अत: यह स्थान वल्लभाचार्य के शिष्यों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। नाथद्वारा में वनमाली जी का मन्दिर, मीरा मन्दिर, नवनीतलाल जी का मन्दिर तथा अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। नाथद्वारा मन्दिर के माध्यम से यहाँ हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थों का विशाल पुस्तकालय संचालित किया जाता है।  
    
=== एकलिंग जी ===
 
=== एकलिंग जी ===
उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय रास्ते में भगवान् एकलिंगजी का पवित्र स्थान पड़ता है। एकलिंग जी मेवाड़भूषण बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक प्रतापी नरेशों की प्रेरणा देने वाला आराध्य देव है। महाराणा प्रताप ने इन्हीं एकलिंग जी का पुण्य स्मरण करमुगलों से लोहा लिया औरअपनी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखी। यहाँ भगवान् एकलिंग जी का चतुर्मुखी विग्रह एक विशाल मन्दिर में प्रतिष्ठित है।थोड़ी दूर पर इन्द्र सागर नामक सरोवर है। सरोवर के आसपास गणेश, धारेश्वर, लक्ष्मी के मन्दिर बने हैं। वनवासिनी देवी का पवित्र मन्दिर यहाँ से कुछ दूर है।  
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उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय रास्ते में भगवान एकलिंगजी का पवित्र स्थान पड़ता है। एकलिंग जी मेवाड़भूषण बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक प्रतापी नरेशों की प्रेरणा देने वाला आराध्य देव है। महाराणा प्रताप ने इन्हीं एकलिंग जी का पुण्य स्मरण करमुगलों से लोहा लिया औरअपनी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखी। यहाँ भगवान एकलिंग जी का चतुर्मुखी विग्रह एक विशाल मन्दिर में प्रतिष्ठित है।थोड़ी दूर पर इन्द्र सागर नामक सरोवर है। सरोवर के आसपास गणेश, धारेश्वर, लक्ष्मी के मन्दिर बने हैं। वनवासिनी देवी का पवित्र मन्दिर यहाँ से कुछ दूर है।  
    
=== आबू (अर्बुदाचल  ) ===
 
=== आबू (अर्बुदाचल  ) ===
राजस्थान का यह अति सुन्दर व पवित्र स्थान अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह पावन क्षेत्र समुद्रतल से १२२० मीटर ऊँचाई पर है। महाभारत के अनुसार मथुरा से द्वारिका जाते हुए भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ रुके थे। यहाँ पर वसिष्ठ मुनि का आश्रम था,अत:अति प्राचीन समय से यह पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। उत्तरी पहाड़ी पर विश्व-प्रसिद्ध दिलवाड़ा के जैन मन्दिरहैं जो कला की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ कहे जा सकते हैं। दूर-दूर से जैन तीर्थयात्री यहाँआते रहते हैं। एक शिखर पर अचलेश्वर लिंग तु वर्तते यत्र वीरक। (स्कन्दपुराण-माहेश्वर खण्ड-५९२६८)  इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी अर्बुदादेवी का मन्दिर है और थोड़ी दूर पर अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं। अचलेश्वर महादेव परमार व चौहान नरेशों के कुलदेवता के रूप में पूजित हैं। स्कन्द पुराण में इसकी महिमा का बखान है।'आबू-नरेश धारावर्ष ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सन् ११९७ ई. तथा शहाबुद्दीन गौरी को सन् ११७८ ई. में परास्त कर इस प्रेदश में घुसने से रोक दिया।आबू वैष्णव,शैव व जैन सम्प्रदाय के लोगों का तीर्थ स्थान तो है ही, ब्रह्मा कुमारी पंथ का भी पवित्रतम केन्द्र है।  
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राजस्थान का यह अति सुन्दर व पवित्र स्थान अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह पावन क्षेत्र समुद्रतल से १२२० मीटर ऊँचाई पर है। महाभारत के अनुसार मथुरा से द्वारिका जाते हुए भगवान श्रीकृष्ण यहाँ रुके थे। यहाँ पर वसिष्ठ मुनि का आश्रम था,अत:अति प्राचीन समय से यह पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। उत्तरी पहाड़ी पर विश्व-प्रसिद्ध दिलवाड़ा के जैन मन्दिरहैं जो कला की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ कहे जा सकते हैं। दूर-दूर से जैन तीर्थयात्री यहाँआते रहते हैं। एक शिखर पर अचलेश्वर लिंग तु वर्तते यत्र वीरक। (स्कन्दपुराण-माहेश्वर खण्ड-५९२६८)  इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी अर्बुदादेवी का मन्दिर है और थोड़ी दूर पर अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं। अचलेश्वर महादेव परमार व चौहान नरेशों के कुलदेवता के रूप में पूजित हैं। स्कन्द पुराण में इसकी महिमा का बखान है।'आबू-नरेश धारावर्ष ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सन् ११९७ ई. तथा शहाबुद्दीन गौरी को सन् ११७८ ई. में परास्त कर इस प्रेदश में घुसने से रोक दिया।आबू वैष्णव,शैव व जैन सम्प्रदाय के लोगों का तीर्थ स्थान तो है ही, ब्रह्मा कुमारी पंथ का भी पवित्रतम केन्द्र है।  
    
=== चित्तौड़गढ़ ===
 
=== चित्तौड़गढ़ ===
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=== अमृतसर ===
 
=== अमृतसर ===
पंजाब का धार्मिक-ऐतिहासिक नगर जो सिख पन्थ का प्रमुख तीथ-स्थान है। उसकी नींव सिख पन्थ के चौथे गुरु रामदास ने युगाब्द ४६७९ (सन् १५७७ ई.) में डाली। मन्दिर का निर्माण-कार्य आरम्भ होने से  पूर्व उसके चारों ओर एक सरेवर बनवाया। मन्दिर-निर्माण का कार्य उनके पुत्र तथा पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव ने हरिमन्दिर (स्वर्णमन्दिर) बनवाकर पूरा किया। सरोवर एवं हरिमन्दिर के पूर्ण होने पर गुरु अर्जुनदेव ने कहा भगवान् की कृपा से ही यह कार्य पूर्ण हो सका है। जो भी इस सरोवर में स्नान करेगा उसे भारत के 64 तीर्थों के स्नान का पुण्य मिलेगा। महाराजा रणजीत सिंह ने मन्दिर कीशोभा बढ़ाने के लिए बहुत धन व्यय किया । अंग्रेजी दासता के काल में 13अप्रैल 1919 को स्वर्ण मन्दिर से लगभग दो फलॉग की दूरी पर जलियांवाला बाग में स्वतंत्रता की माँग कर रही एक शान्ति-पूर्ण सभा पर जनरल डायर ने गोलीचलाकर भीषण नरसंहार किया था। डेढ़ हजार व्यक्ति घायल हुए अथवा मारे गयेथे। वहाँ पर उन आत्म बलिदानियों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। बाग की दीवार पर उस बर्बरतापूर्ण घटना की साक्षीरूप गोलियों के निशान आज भी विद्यमान हैं। नगर में स्वर्ण मन्दिर केअतिरिक्त दुग्र्याणा मन्दिर, सत्य नारायण मन्दिर तथा लक्ष्मीनारायण मन्दिर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।   
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पंजाब का धार्मिक-ऐतिहासिक नगर जो सिख पन्थ का प्रमुख तीथ-स्थान है। उसकी नींव सिख पन्थ के चौथे गुरु रामदास ने युगाब्द ४६७९ (सन् १५७७ ई.) में डाली। मन्दिर का निर्माण-कार्य आरम्भ होने से  पूर्व उसके चारों ओर एक सरेवर बनवाया। मन्दिर-निर्माण का कार्य उनके पुत्र तथा पाँचवे गुरु श्री अर्जुनदेव ने हरिमन्दिर (स्वर्णमन्दिर) बनवाकर पूरा किया। सरोवर एवं हरिमन्दिर के पूर्ण होने पर गुरु अर्जुनदेव ने कहा भगवान की कृपा से ही यह कार्य पूर्ण हो सका है। जो भी इस सरोवर में स्नान करेगा उसे भारत के 64 तीर्थों के स्नान का पुण्य मिलेगा। महाराजा रणजीत सिंह ने मन्दिर कीशोभा बढ़ाने के लिए बहुत धन व्यय किया । अंग्रेजी दासता के काल में 13अप्रैल 1919 को स्वर्ण मन्दिर से लगभग दो फलॉग की दूरी पर जलियांवाला बाग में स्वतंत्रता की माँग कर रही एक शान्ति-पूर्ण सभा पर जनरल डायर ने गोलीचलाकर भीषण नरसंहार किया था। डेढ़ हजार व्यक्ति घायल हुए अथवा मारे गयेथे। वहाँ पर उन आत्म बलिदानियों की स्मृति में एक स्मारक बनाया गया है। बाग की दीवार पर उस बर्बरतापूर्ण घटना की साक्षीरूप गोलियों के निशान आज भी विद्यमान हैं। नगर में स्वर्ण मन्दिर केअतिरिक्त दुग्र्याणा मन्दिर, सत्य नारायण मन्दिर तथा लक्ष्मीनारायण मन्दिर प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।   
    
=== ज्वालामुखी ===
 
=== ज्वालामुखी ===
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=== स्थानेश्वर  ===
 
=== स्थानेश्वर  ===
कुरुक्षेत्र के पास स्थित वर्तमान हरियाणा का प्रमुख ऐतिहासिक नगर। पवित्र सरोवर (ब्रह्मासर, ज्योतिसर), तीर्थ क्षेत्र (काम्यकत्वन, आदितिवन, इसको स्थाण्वीश्वर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर पवित्र सरोवर के तटपर भगवान् शिव का प्राचीन मन्दिरहै। पुराणों में इस सरोवर व मन्दिर की महिमा का वर्णन किया गया है। महाभारत युद्ध के समय भी इस पवित्र तीर्थ की मान्यता थी। युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने यहीं पर शिव की पूजा-अर्चना की और विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया।  
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कुरुक्षेत्र के पास स्थित वर्तमान हरियाणा का प्रमुख ऐतिहासिक नगर। पवित्र सरोवर (ब्रह्मासर, ज्योतिसर), तीर्थ क्षेत्र (काम्यकत्वन, आदितिवन, इसको स्थाण्वीश्वर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ पर पवित्र सरोवर के तटपर भगवान शिव का प्राचीन मन्दिरहै। पुराणों में इस सरोवर व मन्दिर की महिमा का वर्णन किया गया है। महाभारत युद्ध के समय भी इस पवित्र तीर्थ की मान्यता थी। युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने यहीं पर शिव की पूजा-अर्चना की और विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया।  
    
=== पानीपत  ===
 
=== पानीपत  ===
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=== मुक्तिनाथ ===
 
=== मुक्तिनाथ ===
नेपाल स्थित यह नगर प्रसिद्ध तथा प्राचीन धार्मिक नगर है। भगवान् शंकर और विष्णु यहाँ पर्वत रूप में स्थित हैं। पुलह और पुलस्त्य ऋषियों ने इस क्षेत्र को अपनी तपस्या से पावन किया। पवित्र शालिग्राम शिलाओं के लिए विख्यात गण्डकी नदी मुक्तिनाथ के पास से बहती है। यही वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णुने भक्त हाथी को बलशाली ग्रह के जबड़ों से मुक्त कराया था। भगवती सती का दाहिना गण्डस्थल यहीं पर गिरा था। अत: भगवती के प्रमुख शक्तिपीठों में इसकी गणना की जाती है।  
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नेपाल स्थित यह नगर प्रसिद्ध तथा प्राचीन धार्मिक नगर है। भगवान शंकर और विष्णु यहाँ पर्वत रूप में स्थित हैं। पुलह और पुलस्त्य ऋषियों ने इस क्षेत्र को अपनी तपस्या से पावन किया। पवित्र शालिग्राम शिलाओं के लिए विख्यात गण्डकी नदी मुक्तिनाथ के पास से बहती है। यही वह स्थान है जहाँ भगवान विष्णुने भक्त हाथी को बलशाली ग्रह के जबड़ों से मुक्त कराया था। भगवती सती का दाहिना गण्डस्थल यहीं पर गिरा था। अत: भगवती के प्रमुख शक्तिपीठों में इसकी गणना की जाती है।  
    
=== पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू ) ===
 
=== पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू ) ===
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में विराजित पशुपतिनाथ भगवान् शिव कीअष्ट मूर्तियों में प्रमुख है। विश्वभर के शैव मतानुयायी पशुपति नाथ के प्रति अविचल श्रद्धा रखते हैं। काठमाण्डू तीर्थस्थान बागमती व विष्णुमती नदियों के संगम पर बसा है। बागमती के तट पर नेपाल के रक्षक मस्येन्द्रनाथ और विष्णुमती के तट पर पशुपति नाथ विराजमान हैं। पशुपतिनाथ मन्दिरमें पंचमुखी शिवअधिष्ठित हैं। बाहर नन्दी की विशाल प्रस्तर-मूर्ति है। पशुपति नाथ सेथोड़ी दूर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर है। यह विशाल व भव्य मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ सती के दोनों जानु गिरे थे। धवलगिरि, गौरीशंकर सरगमाथा (एवरेस्ट) तथा कचनजघा नेपाल स्थित हिमालय के उच्चतम शिखर हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ये शिखर श्रद्धा के केन्द्र हैं। महाभारतादि ग्रन्थों में इनका वर्णन आया है। सागरमाथा (एवरेस्ट) विश्व का सर्वोच्च पर्वत है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ८८४८ मीटर है। कच्चनजंघा नेपाल-सिक्किम सीमा स्थित पर्वत श्रृंग है। समुद्र-ताल से कंचनजघा की ऊंचाई लगभग ८५०० मीटर है।  
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नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में विराजित पशुपतिनाथ भगवान शिव कीअष्ट मूर्तियों में प्रमुख है। विश्वभर के शैव मतानुयायी पशुपति नाथ के प्रति अविचल श्रद्धा रखते हैं। काठमाण्डू तीर्थस्थान बागमती व विष्णुमती नदियों के संगम पर बसा है। बागमती के तट पर नेपाल के रक्षक मस्येन्द्रनाथ और विष्णुमती के तट पर पशुपति नाथ विराजमान हैं। पशुपतिनाथ मन्दिरमें पंचमुखी शिवअधिष्ठित हैं। बाहर नन्दी की विशाल प्रस्तर-मूर्ति है। पशुपति नाथ सेथोड़ी दूर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर है। यह विशाल व भव्य मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ सती के दोनों जानु गिरे थे। धवलगिरि, गौरीशंकर सरगमाथा (एवरेस्ट) तथा कचनजघा नेपाल स्थित हिमालय के उच्चतम शिखर हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ये शिखर श्रद्धा के केन्द्र हैं। महाभारतादि ग्रन्थों में इनका वर्णन आया है। सागरमाथा (एवरेस्ट) विश्व का सर्वोच्च पर्वत है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ८८४८ मीटर है। कच्चनजंघा नेपाल-सिक्किम सीमा स्थित पर्वत श्रृंग है। समुद्र-ताल से कंचनजघा की ऊंचाई लगभग ८५०० मीटर है।  
    
=== लुम्बिनी ===
 
=== लुम्बिनी ===
हिमालय की तलहटी में भगवान् बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है । स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है ।   
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हिमालय की तलहटी में भगवान बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है । स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है ।   
    
=== श्रावस्ती ===
 
=== श्रावस्ती ===
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=== कुशीनगर ===
 
=== कुशीनगर ===
कुशीनगर(देवरिया)में 80 वर्ष कीआयु में भगवान्बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध मत से सम्बन्धित परिनिर्वाण स्तूप तथा विहार स्तूप विशेष उल्लेखनीय हैं।पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई से इसके गौरवशाली अतीत की झांकी प्राप्त होतीहै।प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी भी भगवान बुद्ध से सम्बन्धित ऐतिहासिक नगरी है। काशी के पास विद्यमान उपनगर सारनाथ में भगवान् बुद्ध ने अपना पहला उपदेश जनता को सुनाया,अत: यहभी प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता है। भगवान् बुद्ध तथा हिमालयक्षेत्र मेंस्थिति प्रमुख क्षेत्रों के वर्णन के बाद अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।  
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कुशीनगर(देवरिया)में 80 वर्ष कीआयु में भगवानबुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया। बौद्ध मत से सम्बन्धित परिनिर्वाण स्तूप तथा विहार स्तूप विशेष उल्लेखनीय हैं।पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई से इसके गौरवशाली अतीत की झांकी प्राप्त होतीहै।प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी भी भगवान बुद्ध से सम्बन्धित ऐतिहासिक नगरी है। काशी के पास विद्यमान उपनगर सारनाथ में भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश जनता को सुनाया,अत: यहभी प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता है। भगवान बुद्ध तथा हिमालयक्षेत्र मेंस्थिति प्रमुख क्षेत्रों के वर्णन के बाद अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।  
    
=== हस्तिनापुर ===
 
=== हस्तिनापुर ===
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी धारा रह गयी जो अब बूढ़ी गंगा के नाम से जानी जाती है। बौद्ध साहित्य में भी हस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान् बुद्ध की प्रतिमा हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।  
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उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी धारा रह गयी जो अब बूढ़ी गंगा के नाम से जानी जाती है। बौद्ध साहित्य में भी हस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान बुद्ध की प्रतिमा हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।  
    
=== नैमिषारण्य ===
 
=== नैमिषारण्य ===
पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै। नौ अरण्यों (वनों) में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की अतिसूक्ष्म इकाई) मात्र में दैत्यों का वध कर इस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान् के मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्म शरीरधारी ऋषिगण लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व देवस्थान हैं।सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।  
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पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै। नौ अरण्यों (वनों) में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की अतिसूक्ष्म इकाई) मात्र में दैत्यों का वध कर इस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान के मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्म शरीरधारी ऋषिगण लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व देवस्थान हैं।सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।  
    
=== गोलागोकर्ण नाथ ===
 
=== गोलागोकर्ण नाथ ===
छोटी काशी नाम से प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ गोला गोकर्णनाथ भगवान शिव का प्रिय स्थान है। यहाँ भगवान शिव का आत्मतत्व लिंग अधिष्ठित है। प्रमुख मन्दिर एक विशाल सरोवर के किनारे स्थित है। मन्दिर व सरोवर बहुत अच्छी अवस्था में नहीं है। वहाँ स्वच्छता की व्यवस्था अति आवश्यक है। भारत में दो गोकर्णनाथक्षेत्र एक दक्षिण मेंतथा दूसरा गोला गोकर्णनाथ यहाँ विद्यमान है। देवताओं द्वारा स्थापित भगवान् शिव का विग्रह यहाँप्राचीन काल से पूजित रहा है। आसपास के तीर्थों में भद्रकुण्ड, पुनभूकुण्ड, देवेश्वर महादेव, बटेश्वर तथा स्वर्णश्वर महादेव प्रमुख हैं। यहाँ शिवरात्रि तथा श्रावण पूर्णिमा को मेला लगता है।   
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छोटी काशी नाम से प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ गोला गोकर्णनाथ भगवान शिव का प्रिय स्थान है। यहाँ भगवान शिव का आत्मतत्व लिंग अधिष्ठित है। प्रमुख मन्दिर एक विशाल सरोवर के किनारे स्थित है। मन्दिर व सरोवर बहुत अच्छी अवस्था में नहीं है। वहाँ स्वच्छता की व्यवस्था अति आवश्यक है। भारत में दो गोकर्णनाथक्षेत्र एक दक्षिण मेंतथा दूसरा गोला गोकर्णनाथ यहाँ विद्यमान है। देवताओं द्वारा स्थापित भगवान शिव का विग्रह यहाँप्राचीन काल से पूजित रहा है। आसपास के तीर्थों में भद्रकुण्ड, पुनभूकुण्ड, देवेश्वर महादेव, बटेश्वर तथा स्वर्णश्वर महादेव प्रमुख हैं। यहाँ शिवरात्रि तथा श्रावण पूर्णिमा को मेला लगता है।   
    
=== लक्ष्मणपुर( लखनऊ ) ===
 
=== लक्ष्मणपुर( लखनऊ ) ===
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=== वैशाली ===
 
=== वैशाली ===
बिहार की प्राचीन नगरी है। प्रसिद्ध लिच्छवि गणराज्य की राजधानी जिसे सम्पूर्ण वजिज संघ की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है। यह नगरी एक समय अपनी भव्यता और वैभव के लिए सम्पूर्ण देश में विख्यात थी। २४ वें जैन तीर्थकर महावीर का जन्म वैशाली में ही हुआ था। इस नाते यह जैन पंथ का प्रसिद्ध तीर्थ एवं श्रद्धा का केन्द्र है। बुद्ध के समय में भारत के छ: प्रमुख नगरों में वैशाली भी एक थी।बुद्ध ने भी इस नगरी को अपना सान्निध्य प्रदान किया। वैशाली का नामकरण इक्ष्वाकुवंशी राजा विशाल के नाम पर हुआ माना जाता है। भगवान् राम ने मिथिला जाते हुए इसकी भव्यता का अवलोकन किया था।   
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बिहार की प्राचीन नगरी है। प्रसिद्ध लिच्छवि गणराज्य की राजधानी जिसे सम्पूर्ण वजिज संघ की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त है। यह नगरी एक समय अपनी भव्यता और वैभव के लिए सम्पूर्ण देश में विख्यात थी। २४ वें जैन तीर्थकर महावीर का जन्म वैशाली में ही हुआ था। इस नाते यह जैन पंथ का प्रसिद्ध तीर्थ एवं श्रद्धा का केन्द्र है। बुद्ध के समय में भारत के छ: प्रमुख नगरों में वैशाली भी एक थी।बुद्ध ने भी इस नगरी को अपना सान्निध्य प्रदान किया। वैशाली का नामकरण इक्ष्वाकुवंशी राजा विशाल के नाम पर हुआ माना जाता है। भगवान राम ने मिथिला जाते हुए इसकी भव्यता का अवलोकन किया था।   
    
=== राजगृह ===
 
=== राजगृह ===
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=== गया ===
 
=== गया ===
बिहार राज्य में फल्गु नदी के तटपर बसा प्राचीन नगरहै। जिसका उल्लेख पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध साहित्य में हुआ है। पुराणों के अनुसार गाय नामक महापुण्यवान् विष्णुभक्त असुर के नाम पर इस तीर्थ नगर का नामकरण हुआ। मान्यता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो वह पाप मुक्त होकरब्रह्मलोक में वास करता है।भगवान् रामचन्द्र और धर्मराज ने गया में पितृश्राद्ध किया था। पितृश्राद्ध का यह विख्यात तीर्थ है। विष्णुपद मन्दिर यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थान है। गौतम बुद्ध को यहाँ से कुछ दूरी पर बोध प्राप्त हुआ था। वह स्थान बोध गया अथवा बुद्ध गया। कहलाता है। वहाँ प्रसिद्ध बोधिवृक्ष तथा भगवान् बुद्ध का विशाल मन्दिर विद्यमान है। महाभारत के वन पर्व में तथा वायु पुराण में गया का विस्तार के साथ वर्णन' किया गया है। सम्पूर्ण मगध क्षेत्र में गया पुणक्षेत्र माना गया है।" विष्णुपद, गदाधर प्रमुख मन्दिर तथा सीताकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, रामशिला, मतंगवापी, धर्मारण्य आदि पवित्र सरोवर व तीर्थ स्थल गया में विद्यमान हैं।  
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बिहार राज्य में फल्गु नदी के तटपर बसा प्राचीन नगरहै। जिसका उल्लेख पुराणों, महाभारत तथा बौद्ध साहित्य में हुआ है। पुराणों के अनुसार गाय नामक महापुण्यवान् विष्णुभक्त असुर के नाम पर इस तीर्थ नगर का नामकरण हुआ। मान्यता है कि गया में जिसका श्राद्ध हो वह पाप मुक्त होकरब्रह्मलोक में वास करता है।भगवान रामचन्द्र और धर्मराज ने गया में पितृश्राद्ध किया था। पितृश्राद्ध का यह विख्यात तीर्थ है। विष्णुपद मन्दिर यहाँ का प्रमुख दर्शनीय स्थान है। गौतम बुद्ध को यहाँ से कुछ दूरी पर बोध प्राप्त हुआ था। वह स्थान बोध गया अथवा बुद्ध गया। कहलाता है। वहाँ प्रसिद्ध बोधिवृक्ष तथा भगवान बुद्ध का विशाल मन्दिर विद्यमान है। महाभारत के वन पर्व में तथा वायु पुराण में गया का विस्तार के साथ वर्णन' किया गया है। सम्पूर्ण मगध क्षेत्र में गया पुणक्षेत्र माना गया है।" विष्णुपद, गदाधर प्रमुख मन्दिर तथा सीताकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, रामशिला, मतंगवापी, धर्मारण्य आदि पवित्र सरोवर व तीर्थ स्थल गया में विद्यमान हैं।  
    
=== प्रयाग ===
 
=== प्रयाग ===
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=== चित्रकूट  ===
 
=== चित्रकूट  ===
चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान् श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया।" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान् श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं।   
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चित्रकूट हिन्दुओं के पवित्रतम् स्थानों में है। यह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में मध्यप्रदेश सीमा पर स्थित हैं। पास में ही कामदगिरि नामक पर्वत भी है। वनवास के समय भगवान श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण यहाँ पधारे थे। चित्रकूटही वह स्थान है, जहाँभरतजी ने श्रीराम से भेंट कर उनकी चरण-पादुकाएँ प्राप्त कीं।' गोस्वामी तुलसीदास ने यहीं प्रभु श्रीराम का साक्षात्कार करजीवन को धन्य किया।" वाल्मीकि- रामायण में कहा गया है कि चित्रकूट के दर्शन करते रहने से मानव कल्याण-मार्ग पर चलते हुए मोह और अविवेक से दूर रहता है। भगवान श्रीराम के चरणों से पवित्र चित्रकूट में महाराज युधिष्ठिर ने कठोर तपस्या की। महाराज नल ने चित्रकूटमेंतप द्वारा अपनेअशुभ कमाँ को जलाकर खोया राज्य पुन:प्राप्त किया। महाकवि कालिदास ने अपने 'मेघदूतम्' में चित्रकूट के सौन्दर्य का मनोहारी वर्णन किया है। पयस्विनी नदी के तट पर स्थित चित्रकूट में रामनवमी, दीपावली तथा चन्द्र व सूर्य ग्रहण के अवसरोंपर मेले आयोजित किये जाते हैं और परिक्रमा की जाती है। यहाँ रामघाट, राम-लक्ष्मण मन्दिर, अनसूया आश्रम, भरतकूप, कोटितीर्थ, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी, देवगांगा आदि धार्मिक व ऐतिहासिक स्थान हैं। अत्रि ऋषि इस क्षेत्र के अधिष्ठाता हैं। अत्रि-अनसूया आश्रम में भगवती सीता ने अनसूया से पति-परायण होने के लिए उपदेश प्राप्त किया था। रामघाट के पास स्थित यज्ञवेदी मन्दिर वह स्थान है जहाँ ब्रह्माजी ने सबसे पहले यज्ञ किया था। यहीं परश्रीराम वभरतमिलाप हुआ। चित्रकूट के पास की बस्ती का नाम सीतापुर है। यहाँ पर जानकी नाम का पवित्र सरोवर है। यहाँ शक्तिपीठ भी हैं।   
    
=== विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर ) ===
 
=== विंध्यवासिनी ( मिर्जापुर ) ===
मिर्जापुर गांगातट पर बसा प्राचीन नगर है। यहाँ पर गंगा के किनारे-किनारे कई घट व मन्दिर हैं। सबसे प्रसिद्ध मन्दिर श्रीतारकेश्वरनाथ महादेव का है। थोड़ी दूरी पर वामन भगवान् का मन्दिर है। यहाँ वामन द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादश) पर मेला लगता है। दुग्धेश्वर शिवमन्दिरअन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मिर्जापुर के पास ही विन्ध्यवासिनी नामक प्रसिद्ध देवी का सिद्धपीठ है। यह मन्दिर विध्यांचल के पूर्वी छोर पर एक पहाड़ी पर अधिष्ठित है। महाशक्ति के द्वादश स्वरूपों मे विंध्यवासिनी एक है। इनको कौशिकी देवी भी कहा जाता है। विंध्याचल में महाकाली औरअष्टभुजा के रूप में भी महाशक्ति विराजित है। विंध्यवासिनी से ३ कि.मी.पर महाकाली और महाकाली से लगभग १५ किमी. पर अष्टभुजा देवी मन्दिर विद्यमान है। इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मन्दिर खर्पोरेश्वर शिव,हनुमान, अन्नपूर्णा, श्रीकृष्ण, सीताकुण्ड आदि हैं।  
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मिर्जापुर गांगातट पर बसा प्राचीन नगर है। यहाँ पर गंगा के किनारे-किनारे कई घट व मन्दिर हैं। सबसे प्रसिद्ध मन्दिर श्रीतारकेश्वरनाथ महादेव का है। थोड़ी दूरी पर वामन भगवान का मन्दिर है। यहाँ वामन द्वादशी (भाद्रपद शुक्ल द्वादश) पर मेला लगता है। दुग्धेश्वर शिवमन्दिरअन्य प्रमुख मन्दिर हैं। मिर्जापुर के पास ही विन्ध्यवासिनी नामक प्रसिद्ध देवी का सिद्धपीठ है। यह मन्दिर विध्यांचल के पूर्वी छोर पर एक पहाड़ी पर अधिष्ठित है। महाशक्ति के द्वादश स्वरूपों मे विंध्यवासिनी एक है। इनको कौशिकी देवी भी कहा जाता है। विंध्याचल में महाकाली औरअष्टभुजा के रूप में भी महाशक्ति विराजित है। विंध्यवासिनी से ३ कि.मी.पर महाकाली और महाकाली से लगभग १५ किमी. पर अष्टभुजा देवी मन्दिर विद्यमान है। इस क्षेत्र के अन्य प्रमुख मन्दिर खर्पोरेश्वर शिव,हनुमान, अन्नपूर्णा, श्रीकृष्ण, सीताकुण्ड आदि हैं।  
    
=== खजुराहो ===
 
=== खजुराहो ===

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