| जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं। | | जिस प्रकार पीयूष-प्रवाहिनी नदियाँ राष्ट्र की एकात्मता को सुदृढ़ कड़ियाँ हैं वैसे ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पर्वत और शिखर सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। एकात्मता-स्तोत्र में वर्णित पर्वतों के नाम हैं-हिमालय, महेन्द्र, मलयगिरी, सहयाद्रि, रैवतक, विंध्याचल तथा अरावली। इनके अतिरिक्त अमरकण्टक, सरगमाथा, अर्बुदांचल, कैलास आदि शिखरऔर बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि पर्वतीय स्थल भी वन्दनीय हैं। |
| भारत के पश्चिमी तट के गुजरात महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्य में सह्याद्रि पर्वतमाला का विस्तार है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) के उद्गम-स्थान इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। त्रयम्बकेश्वर, महाबलेश्वर,भीमशकिर, ब्रह्मगिरि, भगवती भवानी, बौद्ध चैत्य प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र इसी पर्वत-श्रेणी में विराजमान हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज से सम्बन्धित कई दुर्ग (शिवनेरी, पन्हालगढ़, प्रतापगढ़, चाकन, रायगढ़) और शिवाजी महाराज की समाधि इस पर्वत की ऐतिहासिक धरोहर हैं। सह्याद्रि उत्तर-दक्षिण खड़ी दीवार के रूप में है। तटीय क्षेत्र में जाने के लिए थाल घाट, भोरघाट, नाना दरी, पालघाट होकर रेल व सड़क मार्ग बनाये गये हैं। सूरत, मुम्बई, रत्नागिरि, पजिम, मंगलौरआदि नगर इसके पश्चिम में समुद्र की ओर स्थित हैं। ब्रह्माजी ने सृष्टि के प्रारम्भ में यहाँ पर यज्ञ किया। दो देंत्यों अतिबल और महाबल ने यज्ञ में बाधा डाली तो विष्णुऔर भगवती आदि ने उनको मारकर यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण करा दिया। भगवान् विष्णु यहाँ पर अतिबलेश्वर, ब्रह्मा कोटीश्वर तथा शंकर महाबलेश्वर के रूप में विराजमान होकर आज भी प्रतिष्ठित हैं। | | भारत के पश्चिमी तट के गुजरात महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्य में सह्याद्रि पर्वतमाला का विस्तार है। दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों (गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) के उद्गम-स्थान इसी श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। त्रयम्बकेश्वर, महाबलेश्वर,भीमशकिर, ब्रह्मगिरि, भगवती भवानी, बौद्ध चैत्य प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र इसी पर्वत-श्रेणी में विराजमान हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज से सम्बन्धित कई दुर्ग (शिवनेरी, पन्हालगढ़, प्रतापगढ़, चाकन, रायगढ़) और शिवाजी महाराज की समाधि इस पर्वत की ऐतिहासिक धरोहर हैं। सह्याद्रि उत्तर-दक्षिण खड़ी दीवार के रूप में है। तटीय क्षेत्र में जाने के लिए थाल घाट, भोरघाट, नाना दरी, पालघाट होकर रेल व सड़क मार्ग बनाये गये हैं। सूरत, मुम्बई, रत्नागिरि, पजिम, मंगलौरआदि नगर इसके पश्चिम में समुद्र की ओर स्थित हैं। ब्रह्माजी ने सृष्टि के प्रारम्भ में यहाँ पर यज्ञ किया। दो देंत्यों अतिबल और महाबल ने यज्ञ में बाधा डाली तो विष्णुऔर भगवती आदि ने उनको मारकर यज्ञ को निर्विघ्न पूर्ण करा दिया। भगवान् विष्णु यहाँ पर अतिबलेश्वर, ब्रह्मा कोटीश्वर तथा शंकर महाबलेश्वर के रूप में विराजमान होकर आज भी प्रतिष्ठित हैं। |