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उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी धारा रह गयी जो अब बूढ़ी गंगा के नाम से जानी जाती है। बौद्ध साहित्य में भी हस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान् बुद्ध की प्रतिमा हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी धारा रह गयी जो अब बूढ़ी गंगा के नाम से जानी जाती है। बौद्ध साहित्य में भी हस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान् बुद्ध की प्रतिमा हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।
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नैमिषारण्य
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=== नैमिषारण्य ===
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पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै। नौ अरण्यों (वनों) में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की अतिसूक्ष्म इकाई) मात्र में दैत्यों का वध कर इस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान् के मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्म शरीरधारी ऋषिगण लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व देवस्थान हैं।सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।
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पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै। नौ अरण्यों (वनों) में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की अतिसूक्ष्म इकाई) मात्र में दैत्यों का वध कर इस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने
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के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान् के
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मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य
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कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्मशरीरधारी ऋषिगण
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लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति
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उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और
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एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार
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मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व
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देवस्थान हैं।
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सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन
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अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।
5ोलाछीवठणf बजाश्री
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