Changes

Jump to navigation Jump to search
→‎पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू ): लेख सम्पादित किया
Line 505: Line 505:  
=== पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू ) ===
 
=== पशुपतिनाथ ( काठमाण्डू ) ===
 
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में विराजित पशुपतिनाथ भगवान् शिव कीअष्ट मूर्तियों में प्रमुख है। विश्वभर के शैव मतानुयायी पशुपति नाथ के प्रति अविचल श्रद्धा रखते हैं। काठमाण्डू तीर्थस्थान बागमती व विष्णुमती नदियों के संगम पर बसा है। बागमती के तट पर नेपाल के रक्षक मस्येन्द्रनाथ और विष्णुमती के तट पर पशुपति नाथ विराजमान हैं। पशुपतिनाथ मन्दिरमें पंचमुखी शिवअधिष्ठित हैं। बाहर नन्दी की विशाल प्रस्तर-मूर्ति है। पशुपति नाथ सेथोड़ी दूर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर है। यह विशाल व भव्य मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ सती के दोनों जानु गिरे थे। धवलगिरि, गौरीशंकर सरगमाथा (एवरेस्ट) तथा कचनजघा नेपाल स्थित हिमालय के उच्चतम शिखर हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ये शिखर श्रद्धा के केन्द्र हैं। महाभारतादि ग्रन्थों में इनका वर्णन आया है। सागरमाथा (एवरेस्ट) विश्व का सर्वोच्च पर्वत है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ८८४८ मीटर है। कच्चनजंघा नेपाल-सिक्किम सीमा स्थित पर्वत श्रृंग है। समुद्र-ताल से कंचनजघा की ऊंचाई लगभग ८५०० मीटर है।  
 
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में विराजित पशुपतिनाथ भगवान् शिव कीअष्ट मूर्तियों में प्रमुख है। विश्वभर के शैव मतानुयायी पशुपति नाथ के प्रति अविचल श्रद्धा रखते हैं। काठमाण्डू तीर्थस्थान बागमती व विष्णुमती नदियों के संगम पर बसा है। बागमती के तट पर नेपाल के रक्षक मस्येन्द्रनाथ और विष्णुमती के तट पर पशुपति नाथ विराजमान हैं। पशुपतिनाथ मन्दिरमें पंचमुखी शिवअधिष्ठित हैं। बाहर नन्दी की विशाल प्रस्तर-मूर्ति है। पशुपति नाथ सेथोड़ी दूर गुहुयेश्वरी देवी का मन्दिर है। यह विशाल व भव्य मन्दिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ सती के दोनों जानु गिरे थे। धवलगिरि, गौरीशंकर सरगमाथा (एवरेस्ट) तथा कचनजघा नेपाल स्थित हिमालय के उच्चतम शिखर हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से ये शिखर श्रद्धा के केन्द्र हैं। महाभारतादि ग्रन्थों में इनका वर्णन आया है। सागरमाथा (एवरेस्ट) विश्व का सर्वोच्च पर्वत है। इसकी समुद्रतल से ऊँचाई ८८४८ मीटर है। कच्चनजंघा नेपाल-सिक्किम सीमा स्थित पर्वत श्रृंग है। समुद्र-ताल से कंचनजघा की ऊंचाई लगभग ८५०० मीटर है।  
 +
 +
=== लुम्बिनी ===
 +
हिमालय की तलहटी में भगवान् बुद्ध से सम्बन्धित अनेक स्थान महत्वपूर्ण हैं। जिनमें लुम्बिनी, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कुशीनगर तथा कौशाम्बी प्रमुख हैं। कपिलवस्तु के पास लुम्बनी में भगवान बुद्ध का जन्म हुआ। यहाँ पर अनेक बौद्ध विहार थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं। सम्राट अशोक के एक स्तम्भ से, यहीं पर बुद्ध का जन्म हुआ, यह पता चलता है | स्तम्भ के पास ही एक ही स्तूप भी है जिसमे भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थित है | 
 +
 +
=== श्रावस्ती ===
 +
श्रावस्ती बलरामपुर (उत्तरप्रदेश) के समीप स्थित सहेट-महेठ गाँव ही है। कहते हैं श्रावस्ती की स्थापना भगवान राम के पुत्र लव ने की थी। महाभारत काल में युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की रक्षा के लिए अर्जुन व सुधन्वा के मध्य यहीं पर युद्ध हुआ।भगवान बुद्ध यहाँ दीर्घकाल तक रहे।तीसरेतीर्थकर सम्भवनाथ का जन्मभी यहीं हुआ था। इस प्रकार श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। यहाँ पर कई जैन व बौद्ध मन्दिर धर्मशालाएँ तथा बौद्ध मठ हैं।
 +
 +
कुशीनगर
 +
 +
कुशीनगर(देवरिया)में 80 वर्ष कीआयु में भगवान्बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त
 +
 +
किया। बौद्ध मत से सम्बन्धित परिनिर्वाण स्तूप तथा विहार स्तूप विशेष
 +
 +
उल्लेखनीय हैं।पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई सेइसके गौरवशाली
 +
 +
अतीत की झांकी प्राप्त होतीहै।प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बीभीभगवान्
 +
 +
बुद्ध से सम्बन्धित ऐतिहासिक नगरी है।
 +
 +
काशी के पास विद्यमान उपनगर सारनाथ में भगवान् बुद्ध ने अपना
 +
 +
पहला उपदेश जनता को सुनाया,अत: यहभी प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ के रूप
 +
 +
में जाना जाता है।
 +
 +
भगवान् बुद्ध तथा हिमालयक्षेत्र मेंस्थिति प्रमुख क्षेत्रों के वर्णन के बाद
 +
 +
अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख नगरों का वर्णन यहाँ दिया जा रहा है।
 +
 +
हस्तिनापुर
 +
 +
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में गांगा के किनारे यह गौरवशाली नगर
 +
 +
स्थित है। हस्तिनापुर कुरुवंशी राजाओं की राजधानी रहा है। पुराने समय
 +
 +
में हस्तिनापुर गांगा के किनारे स्थित था। बाद में गंगा की प्रमुख धारा यहाँ
 +
 +
से लगभग 10 किमी. दूर हटगयी और हस्तिनापुर के पास एक पतली सी
 +
 +
धारा रह गयी जोअब बूढ़ी गंगा के नाम सेजानी जातीहै। बौद्ध साहित्य
 +
 +
में भीहस्तिनापुर को कुरुओं की राजधानी के रूप में निरूपित किया गया
 +
 +
है। तीन जैन तीर्थकरोंशान्तिनाथ, कुन्थुनाथ औरअहंन्नाथ का जन्म यहीं है। स्तम्भ के पास ही एक स्तूप भी है जिसमें भगवान् बुद्ध की प्रतिमा <sub>हुआ था।इन तीर्थकरों ने यहीं तपस्या की।आदि तीर्थकर श्रषभदेव जी</sub>
 +
 +
60 पुण्यभूमेभारत
 +
 +
भी यहाँ पधारे थे। अत: यह अतिशय क्षेत्र कहलाता है। यहाँ जैन मन्दिर
 +
 +
तथा धर्मशालाएँ हैं।आज हस्तिनापुर जैनतीर्थों के रूप में पूजित है।
 +
 +
कैमिषारण्य
 +
 +
पुराणों का उद्गम स्थान नैमिषारण्य गोमती नदी के किनारे स्थितहै।
 +
 +
नौो अरण्यों (वनों)में नैमिषारण्य प्रमुख माना जाता है। निमिष (समय की
 +
 +
अतिसूक्ष्मइकाई) मात्र में दैत्यों का वध करइस क्षेत्र को शान्तिक्षेत्र बनाने
 +
 +
के कारण वराह पुराण में इसे नैमिषारण्य कहा गया है। भगवान् के
 +
 +
मनोमय चक्र की नेमि(हाल) यहाँ गिरी थी इसलिए भी यह नैमिषारण्य
 +
 +
कहलाया। वायुपुराण के अनुसार आज भी सूक्ष्मशरीरधारी ऋषिगण
 +
 +
लोककल्याण के लिए स्वाध्याय में संलग्न हैं। लोमहर्षक के पुत्र सौति
 +
 +
उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों कोपुराण सुनाये। बलरामजीभी यहाँ पधारे और
 +
 +
एक यज्ञ किया। यहाँ एक भव्य प्राकृतिक सरोवर है जिसके गोलाकार
 +
 +
मध्यवर्ती भाग से जल निकलता रहता है। इसके चारों ओर कई मन्दिर व
 +
 +
देवस्थान हैं।
 +
 +
सोमवती अमावस्या को यहाँ मेला लगता है। प्रति वर्ष फाल्गुन
 +
 +
अमावस्या से फाल्गुन पूर्णिमा तक यहाँ की परिक्रमा की जाती है।
 +
 +
5ोलाछीवठणf बजाश्री
 +
 +
छोटी काशी नाम से प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ गोला गोकर्णनाथ भगवान्
 +
 +
शिव का प्रिय स्थान है। यहाँ भगवान शिव का आत्मतत्व लिंग अधिष्ठित
 +
 +
है। प्रमुख मन्दिर एक विशाल सरोवर के किनारे स्थित है। मन्दिर व
 +
 +
सरोवर बहुत अच्छी अवस्था में नहीं है। वहाँ स्वच्छता की व्यवस्था अति
    
==References==
 
==References==
1,192

edits

Navigation menu