| वर्तमान में मूल्यशिक्षा की तो बात चारों ओर हो रही है, परन्तु कर्मशिक्षा की बात सुनाई नहीं देती है । स्थिति इससे उल्टी है । हाथ से होने वाले, शरीर से होने वाले, श्रमसाध्य कार्य को हम हेय मानने लगे हैं और उससे विमुख हो रहे हैं । श्रम नहीं करना पडता है, ऐसे कार्य को ऊँचे दर्ज का मानने लगे हैं । शरीरश्रम का कार्य छोड़कर हम बुद्धि से होने वाला कार्य करने के लिये उद्युक्त होते हैं । अथवा यंत्रों की सहायता लेते हैं । हमारा लक्ष्य यह रहता है कि हमें अपने हाथों से कम से कम काम करना पड़े, शरीर को कम से कम श्रम पहुँचे, बुद्धि को कम से कम उलझना पडे और हमारा समय बचे । इसलिये हम घर में, कार्यालयों में, कारखानों में, मनोरंजनगृहों में यंत्रों का उपयोग करते हैं । हमें इससे बहुत सुख मिलता है। बहुत आराम मिलता है। परन्तु ये सुख और आराम आभासी हैं, वास्तविक नहीं । शरीर से काम नहीं करने के अत्यन्त विपरीत परिणाम पूरे समाज को भुगतने पड़ते हैं । | | वर्तमान में मूल्यशिक्षा की तो बात चारों ओर हो रही है, परन्तु कर्मशिक्षा की बात सुनाई नहीं देती है । स्थिति इससे उल्टी है । हाथ से होने वाले, शरीर से होने वाले, श्रमसाध्य कार्य को हम हेय मानने लगे हैं और उससे विमुख हो रहे हैं । श्रम नहीं करना पडता है, ऐसे कार्य को ऊँचे दर्ज का मानने लगे हैं । शरीरश्रम का कार्य छोड़कर हम बुद्धि से होने वाला कार्य करने के लिये उद्युक्त होते हैं । अथवा यंत्रों की सहायता लेते हैं । हमारा लक्ष्य यह रहता है कि हमें अपने हाथों से कम से कम काम करना पड़े, शरीर को कम से कम श्रम पहुँचे, बुद्धि को कम से कम उलझना पडे और हमारा समय बचे । इसलिये हम घर में, कार्यालयों में, कारखानों में, मनोरंजनगृहों में यंत्रों का उपयोग करते हैं । हमें इससे बहुत सुख मिलता है। बहुत आराम मिलता है। परन्तु ये सुख और आराम आभासी हैं, वास्तविक नहीं । शरीर से काम नहीं करने के अत्यन्त विपरीत परिणाम पूरे समाज को भुगतने पड़ते हैं । |
− | चमकदमक वाले वातावरण में और इन्ट्रियों को मिलने वाले सुख में डूबे हुए होने के कारण ये विपरीत परिणाम हमें दिखाई नहीं देते हैं और समझ में भी नहीं आते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि ये हमें असंस्कारिता, अस्वास्थ्य और दारिद्य की ओर ले जा रहे हैं । इस विषय में बहुत गम्भीर होकर विचार करने की और उपाय योजना करने की आवश्यकता है । | + | चमकदमक वाले वातावरण में और इन्द्रियों को मिलने वाले सुख में डूबे हुए होने के कारण ये विपरीत परिणाम हमें दिखाई नहीं देते हैं और समझ में भी नहीं आते हैं परन्तु वास्तविकता यह है कि ये हमें असंस्कारिता, अस्वास्थ्य और दारिद्य की ओर ले जा रहे हैं । इस विषय में बहुत गम्भीर होकर विचार करने की और उपाय योजना करने की आवश्यकता है । |
| हाथ से काम करने को हेय मानने का एक सूक्ष्म और व्यापक परिणाम है जो हमें जल्दी समझ में नहीं आता है वह है गौरव की हानि और गुलामी । आज उत्पादन केन्द्रों का कद बढ रहा है । उनका केन्द्रीकरण हो रहा है । बहुत बड़ी मात्रा में कोई भी वस्तु एक केन्द्र पर बनती है और दूर दूर तक बिक्री के लिये जाती है । ऐसा हमने इसलिये किया है क्योंकि हम वस्तुओं के उत्पादन के लिये यन्त्रों का प्रयोग करने लगे हैं । यन्त्र कम मात्रा में उत्पादन नहीं कर सकता । | | हाथ से काम करने को हेय मानने का एक सूक्ष्म और व्यापक परिणाम है जो हमें जल्दी समझ में नहीं आता है वह है गौरव की हानि और गुलामी । आज उत्पादन केन्द्रों का कद बढ रहा है । उनका केन्द्रीकरण हो रहा है । बहुत बड़ी मात्रा में कोई भी वस्तु एक केन्द्र पर बनती है और दूर दूर तक बिक्री के लिये जाती है । ऐसा हमने इसलिये किया है क्योंकि हम वस्तुओं के उत्पादन के लिये यन्त्रों का प्रयोग करने लगे हैं । यन्त्र कम मात्रा में उत्पादन नहीं कर सकता । |