डॉ श्रीधर व्यंकटेश केतकर लिखते हैं<ref>धार्मिक समाजशास्त्र (वरदा प्रकाशन, सेनापति बापट मार्ग, पुणे 16) पृष्ठ 142</ref> - ब्राह्मणांचा सर्वत्र प्रचार होण्यापूर्वी समाजाला असे स्वरूप होते कि प्रत्येक जातीत चातुरर््वण्य होते म्हणजे शेतकरी, पुजारी, व्यापारी, आणि सेवक वर्ग होते'। अर्थात् ब्राह्मणों का सर्वत्र प्रचार होने से पूर्व प्रत्येक जाति में किसान, पुजारी, व्यापारी और सेवक ऐसे चार वर्ण थे। | डॉ श्रीधर व्यंकटेश केतकर लिखते हैं<ref>धार्मिक समाजशास्त्र (वरदा प्रकाशन, सेनापति बापट मार्ग, पुणे 16) पृष्ठ 142</ref> - ब्राह्मणांचा सर्वत्र प्रचार होण्यापूर्वी समाजाला असे स्वरूप होते कि प्रत्येक जातीत चातुरर््वण्य होते म्हणजे शेतकरी, पुजारी, व्यापारी, आणि सेवक वर्ग होते'। अर्थात् ब्राह्मणों का सर्वत्र प्रचार होने से पूर्व प्रत्येक जाति में किसान, पुजारी, व्यापारी और सेवक ऐसे चार वर्ण थे। |