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== हर जाति में चार वर्ण ==
 
== हर जाति में चार वर्ण ==
महाराष्ट्र में संतों की एक दीर्घ परंपरा है। हर जाति में बडे संत हुए है। जेसे गोरोबा कुम्हार थे। चोखोबा महार थे। नामदेव दर्जी थे। नरहरी सुनार थे। कान्होपात्रा वेश्या थीं। ज्ञानेश्वर, रामदास, एकनाथ ब्राह्मण थे । किन्तु इन संतों की एक विशेषता यह रही है कि इन सभी ने एक ही [[Vedanta_([[Vedanta_(वेदान्तः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]] के तत्वज्ञान की प्रस्तुति की है। यह कैसे हुआ? ये तो किसी गुरूकुल में नही जाते थे । फिर इन तक [[Vedanta_([[Vedanta_(वेदान्तः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]] की ज्ञानधारा कैसे पहुंची ? थोडा जातियों का अध्ययन करने से हमें ध्यान में आता है की हर जाति में जाति पुराण कहनेवाला एक वर्ग होता है । यह वर्ग उस जाति में सब से अधिक सम्मानित माना जाता है । यह वर्ग अर्थार्जन नही करता । यह उस जाति में नि:स्वार्थ भाव से ज्ञानार्जन और ज्ञानदान का ( ब्राह्मण का ) काम ही करता है। यह उस जाति के ब्राह्मण वर्ण के लोग ही होते है। ब्राह्मणजाति में भी जिनका ज्ञानार्जन और ज्ञानदान से दूर दूर तक कोई संबंध नही है ऐसे भोजन पकानेवाले महाराज होते है। यह ब्राह्मण जाति के शूद्र वर्ण के लोग होते है।   
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महाराष्ट्र में संतों की एक दीर्घ परंपरा है। हर जाति में बडे संत हुए है। जेसे गोरोबा कुम्हार थे। चोखोबा महार थे। नामदेव दर्जी थे। नरहरी सुनार थे। कान्होपात्रा वेश्या थीं। ज्ञानेश्वर, रामदास, एकनाथ ब्राह्मण थे । किन्तु इन संतों की एक विशेषता यह रही है कि इन सभी ने एक ही [[Vedanta_([[Vedanta_([[Vedanta_(वेदान्तः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]] के तत्वज्ञान की प्रस्तुति की है। यह कैसे हुआ? ये तो किसी गुरूकुल में नही जाते थे । फिर इन तक [[Vedanta_([[Vedanta_([[Vedanta_(वेदान्तः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]]ः)|वेदांत]] की ज्ञानधारा कैसे पहुंची ? थोडा जातियों का अध्ययन करने से हमें ध्यान में आता है की हर जाति में जाति पुराण कहनेवाला एक वर्ग होता है । यह वर्ग उस जाति में सब से अधिक सम्मानित माना जाता है । यह वर्ग अर्थार्जन नही करता । यह उस जाति में नि:स्वार्थ भाव से ज्ञानार्जन और ज्ञानदान का ( ब्राह्मण का ) काम ही करता है। यह उस जाति के ब्राह्मण वर्ण के लोग ही होते है। ब्राह्मणजाति में भी जिनका ज्ञानार्जन और ज्ञानदान से दूर दूर तक कोई संबंध नही है ऐसे भोजन पकानेवाले महाराज होते है। यह ब्राह्मण जाति के शूद्र वर्ण के लोग होते है।   
    
महाभारत के युध्द के बाद निर्माण हुई सामाजिक अव्यवस्था को दूर करने के लिये जो विद्वत परिषद नैमिषारण्य में हुयी थी उस का नेतृत्व सूत मुनि ने किया था। वे सूत जाति के ज्ञानवान ( ब्राह्मणों के गुण और लक्षणों वाले ) मनुष्य थे । इस से भी यह अनुमान लगाया जा सकता है की हर जाति में चार वर्ण होते है।   
 
महाभारत के युध्द के बाद निर्माण हुई सामाजिक अव्यवस्था को दूर करने के लिये जो विद्वत परिषद नैमिषारण्य में हुयी थी उस का नेतृत्व सूत मुनि ने किया था। वे सूत जाति के ज्ञानवान ( ब्राह्मणों के गुण और लक्षणों वाले ) मनुष्य थे । इस से भी यह अनुमान लगाया जा सकता है की हर जाति में चार वर्ण होते है।   

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