− | पाठयक्रम का निर्माण और विविध विषयों की विषयवस्तु का निर्माण करने का आधार जिस समाज के लिये इन का निर्माण किया जा रहा है, उस की जीवनदृष्टि, उस की मान्यताएं आदि होते है। यह जीवन दृष्टि और मान्यताएं उस समाज के सामूहिक और समाज घटकों के व्यक्तिगत लक्ष्य के अनुसार उस समाज की जीवनदृष्टि और मान्यताएं विकसित होतीं है। इस प्रकार से सर्वप्रथम समाज के सामूहिक और समाज घटकों के व्यक्तिगत लक्ष्य को सर्वप्रथम समझना, इस लक्ष्य के कारण विकसित हुई जीवनदृष्टि को समझना, जीवनदृष्टि के आधार पर पाठयक्रम निर्माण का उद्देश्य तय करना, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आयु की अवस्था के अनुसार पाठयक्रम निर्माण के मार्गदर्शक सूत्र, इन सूत्रों के आधार पर समाज जीवन से जुडे विभिन्न आवश्यक विषयों का निर्धारण और फिर जीवनदृष्टि के अनुरूप उन विषयों की विषयवस्तुओं का निर्माण, ऐसी यह प्रक्रिया चलती है। | + | पाठयक्रम का निर्माण और विविध विषयों की विषयवस्तु का निर्माण करने का आधार जिस समाज के लिये इन का निर्माण किया जा रहा है, उस की जीवनदृष्टि, उस की मान्यताएं आदि होते है। यह जीवन दृष्टि और मान्यताएं उस समाज के सामूहिक और समाज घटकों के व्यक्तिगत लक्ष्य के अनुसार उस समाज की जीवनदृष्टि और मान्यताएं विकसित होतीं है। इस प्रकार से सर्वप्रथम समाज के सामूहिक और समाज घटकों के व्यक्तिगत लक्ष्य को सर्वप्रथम समझना, इस लक्ष्य के कारण विकसित हुई जीवनदृष्टि को समझना, जीवनदृष्टि के आधार पर पाठयक्रम निर्माण का उद्देश्य तय करना, इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आयु की अवस्था के अनुसार पाठयक्रम निर्माण के मार्गदर्शक सूत्र, इन सूत्रों के आधार पर समाज जीवन से जुड़े विभिन्न आवश्यक विषयों का निर्धारण और फिर जीवनदृष्टि के अनुरूप उन विषयों की विषयवस्तुओं का निर्माण, ऐसी यह प्रक्रिया चलती है। |