Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]" to "[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_वि...
Line 43: Line 43:  
# जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पड़ेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पड़ेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।
 
# जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगोंं से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पड़ेगा। बलवान लोगोंं से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पड़ेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।
 
# अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
 
# अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
# भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] को टुकडों में बाँटा है विश्व में [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] विश्व नाशक बन गया है। शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'।
+
# भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग) सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा आरम्भ हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड़ से बनीं है। चेतना तो उस जड़ का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना। भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] को टुकडों में बाँटा है विश्व में [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] विश्व नाशक बन गया है। शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था 'यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता'।
 
# यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग’ (To know more and more about smaller and smaller things till you know everything about nothing. )।
 
# यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग’ (To know more and more about smaller and smaller things till you know everything about nothing. )।
 
# इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन।
 
# इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन।
Line 69: Line 69:     
== विषयों की नहीं जीवन की शिक्षा ==
 
== विषयों की नहीं जीवन की शिक्षा ==
१५ वर्ष तक की आयु के बच्चोंं के लिए शिक्षा विषयों की नहीं होती। जीवन की होती है। समग्रता की होती है। एकात्मता की होती है। विषयों को टुकड़ों में बांटकर शिक्षा नहीं होती थी। जीवन जीने के लिए और बालक के ज्ञानार्जन के करणों के विकास के लिए, आयु की अवस्था के अनुसार शिक्षा में जितने गणित की आवश्यकता है उतना गणित आएगा, जितना इतिहास आना चाहिये इतिहास आएगा, जितना [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] आना चाहिये [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] आएगा, जितना भाषाज्ञान आना चाहिये भाषाज्ञान आएगा। याने जिस जिस विषय का जितना जितना ज्ञान आवश्यक है उतना आएगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यांत्रिकता है। शिक्षा को विषयों के अनुसार समय खण्डों में बांटा जाता है। बालक का मन को कोई बिजली के खटके जैसी कल लगी नहीं होती की एक विषय की कल को बंद किया और दूसरे विषय की कल दबा दी। शिक्षा की कहीं से भी किसी भी वस्तु या विचार को लेकर शुरुआत होगी। परस्पर सम्बद्ध विचारों के माध्यम से शिक्षा की यात्रा अन्यान्य विषयों का ज्ञान प्रकट करती हुई आगे बढ़ेगी। ऐसा कौशल्य रखने के लिए शिक्षक का प्रतिभाशाली होना आवश्यक होगा। तब ही तो समाज में वह सर्वोच्च सम्मान का पात्र होगा।   
+
१५ वर्ष तक की आयु के बच्चोंं के लिए शिक्षा विषयों की नहीं होती। जीवन की होती है। समग्रता की होती है। एकात्मता की होती है। विषयों को टुकड़ों में बांटकर शिक्षा नहीं होती थी। जीवन जीने के लिए और बालक के ज्ञानार्जन के करणों के विकास के लिए, आयु की अवस्था के अनुसार शिक्षा में जितने गणित की आवश्यकता है उतना गणित आएगा, जितना इतिहास आना चाहिये इतिहास आएगा, जितना [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] आना चाहिये [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] आएगा, जितना भाषाज्ञान आना चाहिये भाषाज्ञान आएगा। याने जिस जिस विषय का जितना जितना ज्ञान आवश्यक है उतना आएगा। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यांत्रिकता है। शिक्षा को विषयों के अनुसार समय खण्डों में बांटा जाता है। बालक का मन को कोई बिजली के खटके जैसी कल लगी नहीं होती की एक विषय की कल को बंद किया और दूसरे विषय की कल दबा दी। शिक्षा की कहीं से भी किसी भी वस्तु या विचार को लेकर शुरुआत होगी। परस्पर सम्बद्ध विचारों के माध्यम से शिक्षा की यात्रा अन्यान्य विषयों का ज्ञान प्रकट करती हुई आगे बढ़ेगी। ऐसा कौशल्य रखने के लिए शिक्षक का प्रतिभाशाली होना आवश्यक होगा। तब ही तो समाज में वह सर्वोच्च सम्मान का पात्र होगा।   
    
१६ वर्ष से आगे की आयु में जब जीवन का समग्रता से विचार करने की नींव डल गयी है, किसी विशेष विषय के अध्ययन की शिक्षा चलेगी।  
 
१६ वर्ष से आगे की आयु में जब जीवन का समग्रता से विचार करने की नींव डल गयी है, किसी विशेष विषय के अध्ययन की शिक्षा चलेगी।  
Line 172: Line 172:  
# शिक्षा यह आजीवन चलनेवाली प्रक्रिया है। इस दृष्टि से कुटुंब शिक्षा की योजना और क्रियान्वयन नितांत आवश्यक है।
 
# शिक्षा यह आजीवन चलनेवाली प्रक्रिया है। इस दृष्टि से कुटुंब शिक्षा की योजना और क्रियान्वयन नितांत आवश्यक है।
 
# भारतीय दृष्टि से विचार कैसे किया जाता है ? इसकी शिक्षा भी आवश्यक है।
 
# भारतीय दृष्टि से विचार कैसे किया जाता है ? इसकी शिक्षा भी आवश्यक है।
# शिक्षा सर्वप्रथम अध्यात्मनिष्ठ हो, फिर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]निष्ठ हो और भौतिक पदार्थों के सन्दर्भ में साईंस निष्ठ हो।
+
# शिक्षा सर्वप्रथम अध्यात्मनिष्ठ हो, फिर [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]]निष्ठ हो और भौतिक पदार्थों के सन्दर्भ में साईंस निष्ठ हो।
 
# अन्य सामान्य तत्व निम्न हैं:
 
# अन्य सामान्य तत्व निम्न हैं:
 
#* प्रत्यक्ष से कल्पना की ओर या मूर्त से अमूर्त की ओर या परिचित से अपरिचित की ओर।
 
#* प्रत्यक्ष से कल्पना की ओर या मूर्त से अमूर्त की ओर या परिचित से अपरिचित की ओर।

Navigation menu