Line 253: |
Line 253: |
| उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्र वास्तव में प्रस्थान त्रयी के बाहर के नहीं है। सूक्ष्मता के क्षेत्र में, अंतरिक्ष ज्ञान के क्षेत्र में और स्वयंचलित यंत्रों के ऐसे तीनों क्षेत्रों में प्रस्थान त्रयी का प्रमाण उपयुक्त ही है। अध्यात्म विज्ञान तो नैनो से कहीं सूक्ष्म, वर्तमान साईंस की कल्पना से अधिक व्यापक, विशाल और पूरी सृष्टि के निर्माण, रचना और विनाश का ज्ञान रखता है। | | उपर्युक्त दोनों ही क्षेत्र वास्तव में प्रस्थान त्रयी के बाहर के नहीं है। सूक्ष्मता के क्षेत्र में, अंतरिक्ष ज्ञान के क्षेत्र में और स्वयंचलित यंत्रों के ऐसे तीनों क्षेत्रों में प्रस्थान त्रयी का प्रमाण उपयुक्त ही है। अध्यात्म विज्ञान तो नैनो से कहीं सूक्ष्म, वर्तमान साईंस की कल्पना से अधिक व्यापक, विशाल और पूरी सृष्टि के निर्माण, रचना और विनाश का ज्ञान रखता है। |
| | | |
− | ऐसे साईंटिस्ट प्रस्थान त्रयी के बारे में जानते ही नहीं है। किन्तु उन्हें समझाने का काम धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के जानकारों का है। वर्तमान साईंटिस्टों को यह समझाना होगा कि पंचमहाभूतों के साथ मन, बुद्धि और अहंकार के साथ अष्टधा प्रकृति तक सीमा रखने वाला विज्ञान यह अंगी है। और केवल पंचमहाभूतों तक सीमित रहने वाला साईंस उसका अंग है। अष्ट्धा प्रकृति से भी अत्यंत सूक्ष्म जो आत्म तत्व है उसका क्षेत्र याने अध्यात्म शास्त्र यह तो और भी व्यापक है। अध्यात्म शास्त्र यह अंगी है और अष्टधा प्रकृति की सीमाओं वाला विज्ञान उसका अंग है। इस लिये साईंस, भारतीय विज्ञान और अध्यात्म विज्ञान इन में कोई विरोधाभास नहीं है। यह तो एक दूसरे से अंगांगी भाव से जुडे विषय है। | + | ऐसे साईंटिस्ट प्रस्थान त्रयी के बारे में जानते ही नहीं है। किन्तु उन्हें समझाने का काम धार्मिक (भारतीय) शास्त्रों के जानकारों का है। वर्तमान साईंटिस्टों को यह समझाना होगा कि पंचमहाभूतों के साथ मन, बुद्धि और अहंकार के साथ अष्टधा प्रकृति तक सीमा रखने वाला विज्ञान यह अंगी है। और केवल पंचमहाभूतों तक सीमित रहने वाला साईंस उसका अंग है। अष्ट्धा प्रकृति से भी अत्यंत सूक्ष्म जो आत्म तत्व है उसका क्षेत्र याने अध्यात्म शास्त्र यह तो और भी व्यापक है। अध्यात्म शास्त्र यह अंगी है और अष्टधा प्रकृति की सीमाओं वाला विज्ञान उसका अंग है। इस लिये साईंस, भारतीय विज्ञान और अध्यात्म विज्ञान इन में कोई विरोधाभास नहीं है। यह तो एक दूसरे से अंगांगी भाव से जुड़े विषय है। |
| | | |
| पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के निराकरण की साईंस की दृष्टि, भारतीय विज्ञान की दृष्टि, इन दोनों को समझने से इन का परस्पर संबंध और इनमे अंगी और अंग सम्बन्ध समझ में आ जाएंगे। वर्तमान में पर्यावरण के प्रदूषण को दूर करने के लिए बहुत गंभीरता से विचार हो रहा है। प्रमुखता से जल, हवा और पृथ्वी के प्रदूषण का विचार इसमें है। यह साईंटिफिक ही है। लेकिन यह अधूरा है। भारतीय विज्ञान की दृष्टि से पर्यावरण याने प्रकृति के आठ घटक हैं। जल, हवा और पृथ्वी इन तीन महाभूतों का जिनका आज विचार हो रहा है, उनके अलावा आकाश और तेज ये दो महाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार ये त्रिगुण मिलाकर अष्टधा प्रकृति बनती है। इनमें प्रदूषण के लिए जब तक मन और बुद्धि के प्रदूषण का विचार और इस प्रदूषण का निराकरण नहीं होगा पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण की कोई योजना सफल नहीं होनेवाली। इस का तात्पर्य है कि वर्तमान साईंस अंग है और भारतीय विज्ञान अंगी है। इस अंगांगी भाव को स्थापित करने से ही प्रस्थान त्रयी की पुन: सार्वकालिक और सार्वत्रिक प्रमाण के रूप से स्थापना हो सकेगी तथा प्रमाण से संबंधित विवाद का शमन होगा। | | पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के निराकरण की साईंस की दृष्टि, भारतीय विज्ञान की दृष्टि, इन दोनों को समझने से इन का परस्पर संबंध और इनमे अंगी और अंग सम्बन्ध समझ में आ जाएंगे। वर्तमान में पर्यावरण के प्रदूषण को दूर करने के लिए बहुत गंभीरता से विचार हो रहा है। प्रमुखता से जल, हवा और पृथ्वी के प्रदूषण का विचार इसमें है। यह साईंटिफिक ही है। लेकिन यह अधूरा है। भारतीय विज्ञान की दृष्टि से पर्यावरण याने प्रकृति के आठ घटक हैं। जल, हवा और पृथ्वी इन तीन महाभूतों का जिनका आज विचार हो रहा है, उनके अलावा आकाश और तेज ये दो महाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार ये त्रिगुण मिलाकर अष्टधा प्रकृति बनती है। इनमें प्रदूषण के लिए जब तक मन और बुद्धि के प्रदूषण का विचार और इस प्रदूषण का निराकरण नहीं होगा पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण की कोई योजना सफल नहीं होनेवाली। इस का तात्पर्य है कि वर्तमान साईंस अंग है और भारतीय विज्ञान अंगी है। इस अंगांगी भाव को स्थापित करने से ही प्रस्थान त्रयी की पुन: सार्वकालिक और सार्वत्रिक प्रमाण के रूप से स्थापना हो सकेगी तथा प्रमाण से संबंधित विवाद का शमन होगा। |
Line 415: |
Line 415: |
| * अंग्रेजी में अनुवाद नहीं करना चाहिए ऐसे भारतीय संकल्पनात्मक शब्दोंकी सूची | | * अंग्रेजी में अनुवाद नहीं करना चाहिए ऐसे भारतीय संकल्पनात्मक शब्दोंकी सूची |
| * मम हिताय मम सुखाय से सर्वे भवन्तु सुखिन: की ओर - परिवर्तनकी प्रक्रिया | | * मम हिताय मम सुखाय से सर्वे भवन्तु सुखिन: की ओर - परिवर्तनकी प्रक्रिया |
− | * शिक्षा से जुडे विभिन्न घटकोंकी जिम्मेदारी - शिक्षक, विद्वान, अभिभावक, शासन, समाज}} | + | * शिक्षा से जुड़े विभिन्न घटकोंकी जिम्मेदारी - शिक्षक, विद्वान, अभिभावक, शासन, समाज}} |
| | | |
| ==References== | | ==References== |