# आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार प्राणिक आवेग मनुष्यों और पशुओं में दोनों में एक जैसे ही होते हैं। मनुष्य की आवश्यकताओं का निर्धारण प्राणिक आवेग करते हैं। लेकिन मनुष्य का मन इच्छाएँ भी करता हैं। प्राणिक आवेगों की तृप्ति की सीमा होती है। लेकिन इच्छाओं की और इस कारण से तृप्ति की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन प्रकृति के संसाधन मर्यादित होते हैं। इस विसंगति को दूर करने का एकमात्र उपाय ‘उपभोग संयम’ ही है। उपभोग संयम की शिक्षा के अभाव में हर नया तन्त्रज्ञान प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढाकर पर्यावरणीय समस्याओं में वृद्धि करता है। | # आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार प्राणिक आवेग मनुष्यों और पशुओं में दोनों में एक जैसे ही होते हैं। मनुष्य की आवश्यकताओं का निर्धारण प्राणिक आवेग करते हैं। लेकिन मनुष्य का मन इच्छाएँ भी करता हैं। प्राणिक आवेगों की तृप्ति की सीमा होती है। लेकिन इच्छाओं की और इस कारण से तृप्ति की कोई सीमा नहीं होती। लेकिन प्रकृति के संसाधन मर्यादित होते हैं। इस विसंगति को दूर करने का एकमात्र उपाय ‘उपभोग संयम’ ही है। उपभोग संयम की शिक्षा के अभाव में हर नया तन्त्रज्ञान प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग बढाकर पर्यावरणीय समस्याओं में वृद्धि करता है। |