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अंग्रेजों ने हमारे घरमें जो फूट डाली है उसे दूर कर समरसता निर्माण करने के उपाय ये नहीं हो सकते । वे इससे भिन्न स्वरूप के होंगे । यह तो अपनी ही नासमझी दूर करने का विषय है, अपने ही अवगुर्णों को दूर करने का मामला है ।
 
अंग्रेजों ने हमारे घरमें जो फूट डाली है उसे दूर कर समरसता निर्माण करने के उपाय ये नहीं हो सकते । वे इससे भिन्न स्वरूप के होंगे । यह तो अपनी ही नासमझी दूर करने का विषय है, अपने ही अवगुर्णों को दूर करने का मामला है ।
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२४. इसमें पहला विषय है स्त्रीपुरष समानता का । इस प्रश्न ने हमारे परिवारों का विघटन कर दिया है । परिवार के विघटन से संस्कृति का एक अत्यन्त प्रभावी आलम्बन ही नष्ट हो गया है । परिवार के विघटन का एक महत्त्वपूर्ण कारण है स्त्रीपुरुष समानता की पाश्चात्य भ्रान्‍्त संकल्पना जो शिक्षा के माध्यम से खियों और पुरुषों को समान रूप से मिली है । विगत कुछ वर्षों में खियों पर अत्याचार हुए भी हैं, उन्हें आश्रितता का और हीनता का अनुभव करना भी पडा है, इसमें तो कोई असत्य नहीं है परन्तु इसके जो उपाय बनाये गये, किये गये और आज भी किये जा रहे हैं वे पारिवारिक सन्तुलन बनाने वाले नहीं है, उल्टे बिगाडने वाले ही सिद्ध हुए हैं ।
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२४. इसमें पहला विषय है स्त्रीपुरष समानता का । इस प्रश्न ने हमारे परिवारों का विघटन कर दिया है । परिवार के विघटन से संस्कृति का एक अत्यन्त प्रभावी आलम्बन ही नष्ट हो गया है । परिवार के विघटन का एक महत्त्वपूर्ण कारण है स्त्रीपुरुष समानता की पाश्चात्य भ्रान्‍्त संकल्पना जो शिक्षा के माध्यम से खियों और पुरुषों को समान रूप से मिली है । विगत कुछ वर्षों में खियों पर अत्याचार हुए भी हैं, उन्हें आश्रितता का और हीनता का अनुभव करना भी पडा है, इसमें तो कोई असत्य नहीं है परन्तु इसके जो उपाय बनाये गये, किये गये और आज भी किये जा रहे हैं वे पारिवारिक सन्तुलन बनाने वाले नहीं है, उल्टे बिगाड़ने वाले ही सिद्ध हुए हैं ।
    
२५. स्त्रीयों को ख्ियों के नाते समान मानना, स्त्रीत्व के गुणों का आदर करना, स्त्रीत्व की अमूल्य सम्पत्ति मानकर रक्षा करना सही उपाय है । उसके स्थान पर आज ख्ियों को पुरुष जैसा बनने में, पुरुष करते हैं वे सभी काम करने में, उन कामों में भी पुरुषों से आगे निकलने में अधिक रुचि लगती है। ऐसा होने में पुरुषों को भी आपत्ति नहीं है। परन्तु भारत की करोडों खियों को ऐसी शिक्षा और ऐसे अवसर नहीं दिये जा सकते यह कितना ही इच्छनीय और आवश्यक लगता हो तो भी व्यावहारिक स्तर पर यह सम्भव नहीं है ।
 
२५. स्त्रीयों को ख्ियों के नाते समान मानना, स्त्रीत्व के गुणों का आदर करना, स्त्रीत्व की अमूल्य सम्पत्ति मानकर रक्षा करना सही उपाय है । उसके स्थान पर आज ख्ियों को पुरुष जैसा बनने में, पुरुष करते हैं वे सभी काम करने में, उन कामों में भी पुरुषों से आगे निकलने में अधिक रुचि लगती है। ऐसा होने में पुरुषों को भी आपत्ति नहीं है। परन्तु भारत की करोडों खियों को ऐसी शिक्षा और ऐसे अवसर नहीं दिये जा सकते यह कितना ही इच्छनीय और आवश्यक लगता हो तो भी व्यावहारिक स्तर पर यह सम्भव नहीं है ।

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