Line 367: |
Line 367: |
| उपर्युक्त शक्तिपीठों के अतिरिक्त कांगड़ा की महामाया, विश्वेश्वरी (विजेश्वरी), नगरकोट की देवी, चिंतपूर्णी माता, चर्चिका देवी(उड़ीसा) और चण्डीतला (सियालदह के पास) को भी कुछ विद्वान शक्तिपीठ मानते हैं। शक्तिपीठों के अतिरिक्त आद्या शक्ति भगवती के प्रमुख मन्दिर वैष्णवी देवी (जम्मू), विन्ध्यवासिनी (मिर्जापुर), शाकम्भरी (सहारनुपर), नैनादेवी (अम्बाला), कालीमठ (बदरी-केदारनाथ क्षेत्र), कालिका (हिमाचल) आदि प्रसिद्ध हैं। | | उपर्युक्त शक्तिपीठों के अतिरिक्त कांगड़ा की महामाया, विश्वेश्वरी (विजेश्वरी), नगरकोट की देवी, चिंतपूर्णी माता, चर्चिका देवी(उड़ीसा) और चण्डीतला (सियालदह के पास) को भी कुछ विद्वान शक्तिपीठ मानते हैं। शक्तिपीठों के अतिरिक्त आद्या शक्ति भगवती के प्रमुख मन्दिर वैष्णवी देवी (जम्मू), विन्ध्यवासिनी (मिर्जापुर), शाकम्भरी (सहारनुपर), नैनादेवी (अम्बाला), कालीमठ (बदरी-केदारनाथ क्षेत्र), कालिका (हिमाचल) आदि प्रसिद्ध हैं। |
| | | |
− | 2ढ़ा दिया था
| + | = उत्तर- पश्चिम एवं उत्तर भारत = |
| | | |
− | कश्मीर हिमालय में स्थित महादेव शिव का स्थान है। यहाँ लगभग 15 | + | === अमरनाथ === |
| + | कश्मीर हिमालय में स्थित महादेव शिव का स्थान है। यहाँ लगभग १५ फूट ऊँची प्राकृतिक गुफा में हिम का शिवलिंग है। हिम का यह शिवलिंग प्रत्येक मास की शुक्ल प्रतिपदा को बनना प्रारम्भ होता है, पूर्णिमा को पूर्णकार होकर कृष्णपक्ष में धीरे-धीरे घटता है। श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबन्धन) को यहाँ बृहत् समागम होता है। देश के सभी भागों से एकत्र भक्तजन श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं। |
| | | |
− | फूट ऊँचीप्राकृतिक गुफा में हिम का शिवलिंग है। हिम का यह शिवलिंग
| + | === श्रीनगर === |
| + | वर्तमान जम्मू-कश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है। आद्य शांकराचार्य ने इस क्षेत्र की यात्रा कीऔर एक पहाड़ी पर शिवलिंग स्थापित किया। इस पहाड़ी का नाम शांकराचार्य पर्वत और मन्दिर शांकराचार्य मन्दिर के नाम से विख्यात हैं। शांकराचार्य पर्वत की तलहटी में शांकराचार्य द्वारा स्थापित मठ भी है। पास में एक मस्जिद भी हैं जो मन्दिर के ध्वंसावशोष से बनी है। स्थानीय जनता इसे काली मन्दिर का स्थान मानती है और लोग मस्जिद के कोने में स्थित जलस्रोत की पूजा कर सन्तुष्टिप्राप्त करते हैं। श्रीनगर में हरिपर्वत पर निर्मित एक परकोटे में मन्दिर और गुरुद्वारा बने हैं। सैन्य-सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण इनकी पवित्रता अभी तक अक्षुण्ण है। श्रीनगर के आसपास अनेक तीर्थ स्थल बिखरे पड़े हैं। जिनमें क्षीरभवानी, अनन्त नाग, मार्तण्डमन्दिर(मट्टन),पुंछ(बूढ़ेअमरनाथ) आदि प्रमुख हैं।श्रावण मास मेंअमरनाथ जाने वाली यात्रा (छड़ी साहब) यहीं से प्रारम्भ होती है। |
| | | |
− | प्रत्येक मास की शुक्ल प्रतिपदा को बनना प्रारम्भ होता है, पूर्णिमा को
| + | === वाराहमूल (बारामूला) === |
| + | श्रीनगर से पश्चिमोत्तर दिशा में वाराह मूल स्थित है।इसका सम्बन्ध वाराह अवतार से जोड़ा जाता है। जब हिरण्याक्ष्य पृथ्वी का अपहरण कर पाताल ले गया तो भगवान् विष्णु ने वाराह अवतार धारण कर उस अत्याचारीसे पृथ्वी को मुक्त कराया। कई प्राचीन मन्दिर तथा तीर्थों के ध्वंस अवशेष यहाँ आज भी विद्यमान हैं। |
| | | |
− | पूर्णकार होकर कृष्णपक्ष मेंधीरे-धीरेघटता है। श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबन्धन)
| + | === वैष्णवी देवी === |
| + | जम्मू से लगभग ७० कि. मी. दूर माता वैष्णवी का पावन स्थान है। जम्मू के बाद कटरा नामक स्थान से १३ किमी. चढ़ाई पैदल चलकर यात्री माता के दर्शन करता है। यहाँ एक पर्वत-कन्दरा में महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली की मूर्तियाँ स्थापित हैं इन प्रतिमाओं के चरणों से निरन्तर जल प्रवाहित होता रहता है। इसे बाणगंगा कहते हैं। वैष्णवी देवी सिद्धपीठ माना जाता है। |
| | | |
− | को यहाँ बृहत् समागम होता है। देश के सभी भागों से एकत्र भक्तजन
| + | === जम्मू === |
| + | यह वर्तमान जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी है। यहाँ कई प्राचीन तथा भव्य मन्दिरहैं। जम्मू नगर की स्थापना राजा जम्बूलोचन ने ३ हजार वर्ष पूर्व की। जम्बूलोचन केभाई नेतवी नदी के तटपर एक दुर्ग बनवाया। उसके अवशोष नदी के तट पर आज भी विद्यमान हैं। यहाँ मौर्य तथा गुप्तकालीन अवशेष भी मिले हैं।जम्मू डोगरा की केन्द्रीय कार्यस्थली रहा है। प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर यहीं पर स्थित है। |
| | | |
− | श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं।
| + | === पुरुषपुर (पेशावर) === |
| + | वायव्य (पश्चिमोत्तर) प्रान्त की राजधानी। खैबर दरें से आने वाली विदेशी आक्रान्ताओं को धूल चटाने का सौभाग्य इस नगर को प्राप्त हुआ है। पुरूषपुर कुभा (काबुल) नदी के तट पर स्थित है। इस नदी का उद्गम वर्तमान काबुल नगर से आगे हिन्दुकुश पर्वतमाला में है। |
| + | |
| + | === तक्षशिला === |
| + | प्राचीन शिक्षा-केन्द्र जो रावलपिण्डी के पास स्थित हैं। आचार्य चाणक्य इसी विद्यापीठ के स्नातक थे जो कालान्तर में यही परआचार्य बने तथा चन्द्रगुप्त आदि राष्ट्रपुरूषों का निर्माण कर उन्होंने आचार्य विशेषण को सार्थक किया।अपने पूर्वज महाराजा परिक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु का प्रतिकार करने के लिए जन्मेजय ने यहीं नागयज्ञ किया था। महर्षि वैशम्पायन ने महाभारत का प्रथम पाठ यहीं पर सुनाया था। पाणिनि ने भी यहाँ अध्ययन किया। |
| + | |
| + | === काबुल (कुभानगर) === |
| + | आधुनिकअफगानिस्तान की राजधानी, हिन्दूकुश पर्वतमाला की तराई में स्थित है। महाभारतकालीन उपगणस्थान (अफगानिस्ता) जिसे अहिंगण स्थान भी कहा जाता था। यह प्राचीन नगर है। काबूल से आगे ईरान (आर्यान) की सीमा तक क्रमु (वर्तमान कुर्रम), सुवास्तु (स्वात),गोमती(गुमल) आदि नदियों के क्षेत्र में विकसित गणराज्यों का यह केन्द्र रहा है। इन गणराज्यों ने दो शताब्दियों तक मुस्लिम आक्रमण रोके रखा। |
| + | |
| + | === पंजा साहिब === |
| + | तक्षशिला के समीप स्थित इस स्थान की गुरु नानक देव ने यात्रा की तथा पीरअली कन्धारी नामक धर्मान्ध मुस्लिम पीर के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाकर अजस्त्रधारा जल की उत्पत्ति की। पीर अली ने क्रोधित होकर एक विशाल पर्वतखण्ड गुरु नानक की ओर धकेल दिया।अपनी ओर पर्वतखण्ड को आता देख श्री नानकदेव ने अपना पंजा अड़ाकर उसे रोक दिया। आज भी वह पंजा और उसकी रेखाएँ यहाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। विधर्मी लोगों द्वारा खोदने पर पंजा पुन: वैसा ही हो जाता है। यहाँ पवित्र गुरुद्वारा तथा तालाब है। वैशाख मास की प्रथम तिथि को यहाँ मेला लगता था,परन्तुआजकल सीमित संख्या में ही तीर्थयात्री यहाँ पहुँच पाते हैं |
| | | |
| ==References== | | ==References== |