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३२. मणिवेदिक : प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर के समीप गायत्री पर्वत पर यह शक्तिपीठ है। यहाँ सती के दोनों मणिबन्ध (कलाई) गिरेथे। यहाँ देवी गायत्री रूप में पूजित है।  
 
३२. मणिवेदिक : प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर के समीप गायत्री पर्वत पर यह शक्तिपीठ है। यहाँ सती के दोनों मणिबन्ध (कलाई) गिरेथे। यहाँ देवी गायत्री रूप में पूजित है।  
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३३. त्रिपुरा : त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है।  
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३३. मानस : यह स्थान मानसरोवर के पास स्थित है। यहाँ देवी दाक्षायणी नाम से प्रतिष्ठित है। इस शक्तिपीठ को मानस-पीठ नाम से भी जाना जाता है।  
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३७. कांची : सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में कांची के शिवकांची का काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी देवगभी रूप में विद्यमान है।  
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३४. यशोर : बांगला देश के खुलना जिले में एक ईश्वरपुर नामक ग्राम है।इसी का पुराना नाम यशोर(यशोदर) है। यहीं पर देवी यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।
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३५. प्रयाग : अक्षयवट के पास ललितादेवी मन्दिर शक्तिपीठ हैं, यद्यपि प्रयाग नगर में एक और ललितादेवी मंदिर भी है |
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३६. उत्कल - विराजा क्षेत्र : पवित्र धाम जगन्नाथपुरी में जगन्नाथ मंदिर परिसर में विमला देवी मंदिर है, यह शक्तिपीठ है | कुछ विद्वान याजपुर के विरजा देवी के मंदिर को शक्तिपीठ मानते है | 
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३७. कांची : सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में कांची के शिवकांची का काली मन्दिर शक्तिपीठ हैं। यहाँ देवी देवगभी रूप में विद्यमान है।
    
रूप में विराजमान हैं।   
 
रूप में विराजमान हैं।   
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४३. त्रिसवोता : पं. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में शालवाड़ी नामक ग्राम तिस्ता (त्रिस्रोत) नदी के तट पर बसा है। यहीं शक्तिपीठ में देवी भ्रामरी  रूप में प्रतिष्ठित हैं।   
 
४३. त्रिसवोता : पं. बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में शालवाड़ी नामक ग्राम तिस्ता (त्रिस्रोत) नदी के तट पर बसा है। यहीं शक्तिपीठ में देवी भ्रामरी  रूप में प्रतिष्ठित हैं।   
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३२. मणिवेदिक : प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर के समीप गायत्री पर्वत पर यह शक्तिपीठ है। यहाँ सती के दोनों मणिबन्ध (कलाई) गिरेथे। यहाँ देवी गायत्री रूप में पूजित है। 
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४४. त्रिपुरा : त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है।
 
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त्रिपुरा : त्रिपुरा प्रान्त के राधा-किशोरपुर ग्राम के पास आग्नेयकोण (दक्षिण-पूर्व) में पहाड़ी पर त्रिपुरसुन्दरी का प्रसिद्ध मन्दिर ही शक्तिपीठ है।  
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मानस : यह स्थान मानसरोवर के पास स्थित है। यहाँ देवी
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ही शक्तिपीठ है।
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दाक्षायणी नाम से प्रतिष्ठित है। इस शक्तिपीठ को मानस-पीठ
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विभाष : पं. बंगाल के मिदनापुर जिले में तमलुक का काली
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नाम से भी जाना जाता है।
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मन्दिर शक्तिपीठ है| यहाँ देवी कपालिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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यशोर : बांगला देश के खुलना जिले में एक ईश्वरपुर नामक
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कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र में हैपायन सरोवर के पास यहशक्तिपीठ है।
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ग्राम है।इसी का पुराना नाम यशोर(यशोदर) है। यहीं पर देवी
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यहाँ देवी सावित्री रूप में स्थाणु भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।
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यशोरेश्वरी नाम से विराजमान हैं।
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लका : यह शक्तिपीठ लंका में है, यहाँ (अशोक वाटिका में) देवी
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35. प्रयाग : अक्षयवट के पास ललितादेवी मन्दिर शक्तिपीठ हैं, यद्यपि
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<sub>सीताम्बा मन्दिर में प्रतिष्ठित है। सती का नूपुर यहाँ गिरा था।</sub>
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यहाँ देवी इन्द्राक्षी रूप में राक्षसेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित मानी
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जाती हैं।
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48. युगाद्या : वर्द्धवान् संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) से 35 कि.मी.
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उत्तर में क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी भूतधात्री रूप
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में अधिष्ठित है।
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49. विराट : राजस्थान प्रान्त में जयपुर से 70 किमी. उत्तर विराट
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नामक ग्राम में देवी अम्बिका रूप में विराजमान हैं। यहाँ सती के
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दायें पैर की अंगुलियाँ गिरने से शक्तिपीठ बना।
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50, कालीपीठ : कलकत्ते का प्रसिद्ध काली मनिन्दर शक्तिपीठ के रूप
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मेंप्रसिद्धहै। कुछ विद्वानों के अनुसार टाली-गंज का आदिकाली
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मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी महाकाली के रूप में पूजित है।
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51, कणांट : जहाँ सती के दोनों कान गिरे, वह स्थान कणॉट
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कहलाया। यह कहीं कनॉटक में विद्यमान है। ठीक स्थिति की
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जानकारी नहीं है।इस शक्तिपीठमें देवीजयदुर्गा रूपमें प्रतिष्ठित
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मानी जाती हैं।
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उपर्युक्त शक्तिपीठों के अतिरिक्त कांगड़ा की महामाया, विश्वेश्वरी
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४५. विभाष : पं. बंगाल के मिदनापुर जिले में तमलुक का काली मन्दिर शक्तिपीठ है| यहाँ देवी कपालिनी रूप में प्रतिष्ठित हैं।
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(विजेश्वरी), नगरकोट की देवी, चिंतपूर्णी माता, चर्चिका देवी(उड़ीसा) और
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४६. कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र में हैपायन सरोवर के पास यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी सावित्री रूप में स्थाणु भैरव के साथ प्रतिष्ठित है।
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चण्डीतला (सियालदह के पास) को भी कुछ विद्वान शक्तिपीठ मानते हैं।
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  : यह शक्तिपीठ लंका में है, यहाँ (अशोक वाटिका में) देवी मन्दिर में प्रतिष्ठित है। सती का नूपुर यहाँ गिरा था। यहाँ देवी इन्द्राक्षी रूप में राक्षसेश्वर भैरव के साथ प्रतिष्ठित मानी जाती है ४८. युगाद्या : वर्द्धवान् संयान-स्थानक (रेलवे स्टेशन) से 35 कि.मी. उत्तर में क्षीर ग्राम में यह शक्तिपीठ है। यहाँ देवी भूतधात्री रूप में अधिष्ठित है।
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शक्तिपीठों के अतिरिक्त आद्या शक्ति भगवती के प्रमुख मन्दिर वैष्णवी
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४९. विराट : राजस्थान प्रान्त में जयपुर से 70 किमी. उत्तर विराट नामक ग्राम में देवी अम्बिका रूप में विराजमान हैं। यहाँ सती के दायें पैर की अंगुलियाँ गिरने से शक्तिपीठ बना।
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देवी (जम्मू), विन्ध्यवासिनी (मिर्जापुर), शाकम्भरी (सहारनुपर), नैनादेवी
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५०.  कालीपीठ : कलकत्ते का प्रसिद्ध काली मनिन्दर शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। कुछ विद्वानों के अनुसार टाली-गंज का आदिकाली मन्दिर शक्तिपीठ है। यहाँ देवी महाकाली के रूप में पूजित है।
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(अम्बाला), कालीमठ (बदरी-केदारनाथ क्षेत्र), कालिका (हिमाचल) आदि
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५१.  कणांट : जहाँ सती के दोनों कान गिरे, वह स्थान कणॉट कहलाया। यह कहीं कनॉटक में विद्यमान है। ठीक स्थिति की जानकारी नहीं है।इस शक्तिपीठमें देवीजयदुर्गा रूपमें प्रतिष्ठित मानी जाती हैं।
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प्रसिद्ध हैं।  
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उपर्युक्त शक्तिपीठों के अतिरिक्त कांगड़ा की महामाया, विश्वेश्वरी (विजेश्वरी), नगरकोट की देवी, चिंतपूर्णी माता, चर्चिका देवी(उड़ीसा) और चण्डीतला (सियालदह के पास) को भी कुछ विद्वान शक्तिपीठ मानते हैं। शक्तिपीठों के अतिरिक्त आद्या शक्ति भगवती के प्रमुख मन्दिर वैष्णवी देवी (जम्मू), विन्ध्यवासिनी (मिर्जापुर), शाकम्भरी (सहारनुपर), नैनादेवी (अम्बाला), कालीमठ (बदरी-केदारनाथ क्षेत्र), कालिका (हिमाचल) आदि प्रसिद्ध हैं।  
    
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