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=== सोमनाथ ===
 
=== सोमनाथ ===
 
सौराष्ट्र (काठियावाड़) प्रदेश में स्थित सोमनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में प्रथम है। दक्ष प्रजापति के शाप सेमुक्ति के लिए चन्द्रमा ने यहाँ तप किया मत्र्यलोके महाकाल लिंगत्रयं नमोस्तुते। तथा शापमुक्त हो गये। भगवान् श्री कृष्ण केचरणोंमें यहीं परजरा नामक  व्याध का बाण लगा। इस प्रकार यह स्थान उनकी अन्तिम लीलास्थली रहा है। ऋग्वेद, स्कन्द पुराण, श्रीमद्भागवत, शिव पुराण, महाभारत आदि ग्रन्थों में प्रभास क्षेत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया हैं। अति प्राचीन काल से यह स्थान पूजित रहा है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यहाँ ६४९ ईसा-पूर्व भव्य मन्दिर था जो विदेशी समुद्री डाकुओं के अत्याचार का शिकार हुआ। ईसवी सन् ४०६ में सोमनाथ देवस्थानम् फिरअस्तित्व में था, इसके प्रमाण हैं। सन् ४८७ के आसपास शैवभक्त वल्लभीशासकों ने इसका पुनर्निर्माण कराया।एक शिलालेख के अनुसार मालवा के राजा भोजराज परमार ने भी इसका निर्माण कराया। मुसलमान इतिहासकारों नेइसके वैभव का वर्णन किया है।इब्न असीर ने इसके रख रखाव तथा पूजन-अर्चन के विषय में लिखा है : "१० हजार गाँवों के जागीर मन्दिर के लिए निर्धारित है। मूर्ति के अभिषेक के लिए गांग-जल आता है। १०००  पुजारी पूजा करते हैं। मुख्य मन्दिर ५६रत्नजटित खंभो परआधारित है।" यहाँ पर चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, पूर्णिमा (श्रावण मास की) तथा शिवरात्रि के अवसरों पर बृहत् मेलों का आयोजन किया जाता था, जिनमें पूरे देश से भक्तजन व व्यापारी आते थे। अरब, ईरान से भी व्यापारी यहाँ पर आते थे। सन् १०२५ में महमूद गजनवी की गिद्ध दृष्टि मन्दिर की सम्पत्ति पर पड़ी और उसने इसकी पवित्रता नष्ट कर अकूत सम्पत्ति लूटी। परन्तु गुजरात के महाराजा भीम ने इसका पुनर्निर्माण करा दिया। सन ११६९ में राजा कुमारपाल ने यहाँ एक मन्दिर बनवाया। सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर कीपुन:प्रतिष्ठा में सहायता की। परन्तु मुसलमान आक्रमणकारियों के अत्याचार बन्द नहीं हुए। सन् १२९७ में अलाउद्दीन खिलजी ने, सन १३९० में मुजफ्फरशाह प्रथम ने, १४९० में मोहम्मद बेगड़ा ने, सन् १५३० में मुजफ्फरशाह द्वितीय ने तथा सन् १७०१ में औरंगजेब ने इस मन्दिर का विध्वंस किया। सन् १७८३ ई. में महारानी अहिल्याबाई ने भी यहाँ एक मन्दिर बनवाया। इस प्रकार दासता के कालखण्ड में यह अनेक बार टूटा और हर बारइसका पुनर्निर्माण कराया गया।अन्त में भारत के स्वतन्त्र हो जाने पर लौह पुरुष सरदार पटेल की पहल पर मूल ब्रह्मशिला परभव्य डा. राजेन्द्र प्रसाद ने मन्दिर में ज्योतिर्लिग स्थापित कर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करायी।इस प्रकार सोमनाथ मन्दिर फिर अपने प्राचीन गौरव के अनुकूल प्रतिष्ठित हो गया।  
 
सौराष्ट्र (काठियावाड़) प्रदेश में स्थित सोमनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में प्रथम है। दक्ष प्रजापति के शाप सेमुक्ति के लिए चन्द्रमा ने यहाँ तप किया मत्र्यलोके महाकाल लिंगत्रयं नमोस्तुते। तथा शापमुक्त हो गये। भगवान् श्री कृष्ण केचरणोंमें यहीं परजरा नामक  व्याध का बाण लगा। इस प्रकार यह स्थान उनकी अन्तिम लीलास्थली रहा है। ऋग्वेद, स्कन्द पुराण, श्रीमद्भागवत, शिव पुराण, महाभारत आदि ग्रन्थों में प्रभास क्षेत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया हैं। अति प्राचीन काल से यह स्थान पूजित रहा है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यहाँ ६४९ ईसा-पूर्व भव्य मन्दिर था जो विदेशी समुद्री डाकुओं के अत्याचार का शिकार हुआ। ईसवी सन् ४०६ में सोमनाथ देवस्थानम् फिरअस्तित्व में था, इसके प्रमाण हैं। सन् ४८७ के आसपास शैवभक्त वल्लभीशासकों ने इसका पुनर्निर्माण कराया।एक शिलालेख के अनुसार मालवा के राजा भोजराज परमार ने भी इसका निर्माण कराया। मुसलमान इतिहासकारों नेइसके वैभव का वर्णन किया है।इब्न असीर ने इसके रख रखाव तथा पूजन-अर्चन के विषय में लिखा है : "१० हजार गाँवों के जागीर मन्दिर के लिए निर्धारित है। मूर्ति के अभिषेक के लिए गांग-जल आता है। १०००  पुजारी पूजा करते हैं। मुख्य मन्दिर ५६रत्नजटित खंभो परआधारित है।" यहाँ पर चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, पूर्णिमा (श्रावण मास की) तथा शिवरात्रि के अवसरों पर बृहत् मेलों का आयोजन किया जाता था, जिनमें पूरे देश से भक्तजन व व्यापारी आते थे। अरब, ईरान से भी व्यापारी यहाँ पर आते थे। सन् १०२५ में महमूद गजनवी की गिद्ध दृष्टि मन्दिर की सम्पत्ति पर पड़ी और उसने इसकी पवित्रता नष्ट कर अकूत सम्पत्ति लूटी। परन्तु गुजरात के महाराजा भीम ने इसका पुनर्निर्माण करा दिया। सन ११६९ में राजा कुमारपाल ने यहाँ एक मन्दिर बनवाया। सिद्धराज जयसिंह ने भी मन्दिर कीपुन:प्रतिष्ठा में सहायता की। परन्तु मुसलमान आक्रमणकारियों के अत्याचार बन्द नहीं हुए। सन् १२९७ में अलाउद्दीन खिलजी ने, सन १३९० में मुजफ्फरशाह प्रथम ने, १४९० में मोहम्मद बेगड़ा ने, सन् १५३० में मुजफ्फरशाह द्वितीय ने तथा सन् १७०१ में औरंगजेब ने इस मन्दिर का विध्वंस किया। सन् १७८३ ई. में महारानी अहिल्याबाई ने भी यहाँ एक मन्दिर बनवाया। इस प्रकार दासता के कालखण्ड में यह अनेक बार टूटा और हर बारइसका पुनर्निर्माण कराया गया।अन्त में भारत के स्वतन्त्र हो जाने पर लौह पुरुष सरदार पटेल की पहल पर मूल ब्रह्मशिला परभव्य डा. राजेन्द्र प्रसाद ने मन्दिर में ज्योतिर्लिग स्थापित कर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा करायी।इस प्रकार सोमनाथ मन्दिर फिर अपने प्राचीन गौरव के अनुकूल प्रतिष्ठित हो गया।  
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=== मल्लिकार्जुन ===
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मल्लिकार्जुन नामक ज्योतिर्लिग श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। श्रीशेल आन्ध्र प्रदेश में कर्नूल जिले के अन्तर्गत पवित्र कृष्णा नदी के तटपर है। इसे दक्षिण का केंलासभी कहा जाता है। कृष्णा नदी की जिस शाखा पर यह तीर्थ स्थित हैं उसे पातालगंगा नाम दिया गया है। श्रीशैल पर भगवान शंकर पार्वती के साथ सदैव विराजमान रहते हैं. यह मान्यता हैं। यहाँ पार्वती को मल्लिका तथा शिव को अर्जुन नाम दिया गया है। पौराणिक कथा के अनुसारअपने रुष्टपुत्र स्वामी कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव-शक्ति यहाँ पधारे और ज्योतिर्लिग के रूप में विराजमान हो गये ।एक स्थानीय कथा केअनुसार एक राजकन्या अपने पिता के दुव्र्यवहार से बचने के लिए श्रीशैल पर्वत पर गोप-ग्वालों के मध्य रहने लगी। ग्वालों की एक शयामा गाय थी जो खूब दूध देती थी। कुछ दिन उस गाय ने दूध देना बन्द कर दिया | जाँच करने पर पता चला कि गाय स्वेच्छा से शिखर पर स्थित शिवलिंग पर अपना दूध चढ़ा देती है। तब वहाँ एक मन्दिर का निर्माण कराया गया और शिवलिंग मल्लिकार्जुन के नाम से जगतप्रसिद्ध हुआ। यहाँ पर स्थित एक शिलालेख केअनुसार स्वयं शिव एक आखेटक के रूप में पधारे तथा यहाँ के शान्त और मनोरम वातावरण के कारण यहीं विराजित हो गये । इस मन्दिर को पुरातत्वेत्ता डेढ़ से दो हजार वर्ष पुराना मानते हैं। शिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है। मन्दिर की पश्चिमी दिशा में जगदम्बा का मन्दिर हैं। यहाँ पर पार्वती को माधवी या भ्रमराम्बा के नाम सेपुकारा जाता है।भ्रमराम्बा ५१ शक्तिपीठों में से एक है। नवरात्र में यहाँ मेला लगता है। यहाँ पर सती की ग्रीवा का पतन हुआ था। महाभारत के वन पर्व, शिव पुराण तथा पद्म पुराण में इस क्षेत्र के मन्दिर का निर्माण कराया गया। ११ मई १९५१ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति महात्म्य का वर्णन किया गया है। 
    
==References==
 
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