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− | === प्रश्न १. आज के बच्चोंं पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ? ===
| + | === अध्याय १८ === |
− | '''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चोंं को पीअर्स अर्थात् समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ
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− | साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चोंं को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है ।
| + | === एक सर्वसामान्य प्रश्रोत्तरी === |
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| + | '''प्रश्न १ आज के बच्चोंं पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ?''' |
− | === प्रश्न २. बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ? ===
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− | '''उत्तर''' एक क्षण में समझ लेना चाहिये कि वह वस्तु देनी है कि नहीं । यदि हमारा मत बनता है कि नहीं देनी चाहिये तो
| + | '''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चोंं को पीअर्स अर्थात् समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ |
− | जिद पूरी नहीं करनी चाहिये । दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये ।
| + | साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चोंं को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है । |
− | # जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ?
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− | # अनावश्यक है परन्तु जिद पूरी करने से लाभ है या हानि ? या लाभ तो नहीं है परन्तु हानि भी नहीं है तो उसे अधिक जिद करने का मौका ही नहीं देना चाहिये और तुरन्त पूरी करना चाहिये । उसे माँग तक सीमित रखें, जिद न बनने दें ।
| + | '''प्रश्न २ बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ?''' |
− | # यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे दिया ।
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− | # दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं ।
| + | '''उत्तर''' एक क्षण में समझ लेना चाहिये कि वह वस्तु देनी है कि नहीं । यदि हमारा मत बनता है कि नहीं देनी चाहिये तो |
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| + | जिद पूरी नहीं करनी चाहिये । |
− | === प्रश्न ३. महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें ? (एक विद्यार्थी का प्रश्न) ===
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− | '''उत्तर'''
| + | दो तीन बातों का विचार कर लेना चाहिये । |
− | # सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है ।
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− | # नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने का ही आग्रह करें ।
| + | १, जिसे हम अनावश्यक मानते हैं वह वास्तव में अनावश्यक है क्या ? |
− | # एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो महाविद्यालय बदलना उचित है ।
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− | # विनय न छोडें, आग्रह भी न छोडें । दोनों किया तो
| + | 2. अनावश्यक है परन्तु जिद पूरी करने से लाभ है या हानि ? या लाभ तो नहीं है परन्तु हानि भी नहीं है तो उसे |
| + | अधिक जिद करने का मौका ही नहीं देना चाहिये और तुरन्त पूरी करना चाहिये । उसे माँग तक सीमित रखें, |
| + | जिद न बनने दें । |
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| + | ३. यदि वास्तव में वस्तु अनावश्यक है और हम देना नहीं चाहते हैं तो दूढतापूर्वक मना करना और उस पर अन्त |
| + | तक डटे रहना चाहिये । यह होना ठीक नहीं है कि दो तीन बार तो मना किया परन्तु और जिद की तो दे |
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| + | ४. दूढतापूर्वक मना करना ही पर्याप्त है । डाँटना, मारना, ताने देना, झुझलाना आदि ठीक नहीं । समझाना ठीक |
| + | है, बच्चे बिलकुल छोटे हैं तो दूसरी ओर ध्यान आकर्षित कर सकते हैं । |
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| + | '''प्रश्न ३''' '''महाविद्यालय में कुछ भी पढाते नहीं । हम क्या करें''' '''?''' |
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| + | '''एक विद्यार्थी का प्रश्न ।''' |
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| + | १. सारे विद्यार्थी मिलकर अध्यापकों को पढ़ाने का आग्रह करें कि वे पढाये । विद्यार्थी ऐसा कहें यह तो एक |
| + | सुखद आश्चर्य होगा क्योंकि विद्यार्थी पढ़ते नहीं ऐसा सबका मानना होता है । |
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| + | २. नोट्स लेने का, गाइड बुक्स पढने का परामर्श यदि अध्यापक देते हैं तो विनयपूर्वक मना करें । स्वयं पढ़ाने का ही आग्रह करें । |
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| + | ३. एकाध अध्यापक ऐसे हैं तो उन्हें बदलना सरल भी होता है, ठीक भी होता है । सारे अध्यापक ऐसे हैं तो महाविद्यालय बदलना उचित है । |
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| + | ४. विनय न छोडें |