आदर्श गुरुभक्त, श्रेष्ठ धनुर्धर, वचनधनी एकलव्य व्याधों के राजा हिरण्यधनु का पुत्र था। महाभारत काल के धनुर्विद्या के सर्वश्रेष्ठ आचार्य द्रोण से विद्या पाने की अभिलाषा लेकर एकलव्य उनके पास गया। किन्तु द्रोणाचार्य ने राज्य के उत्तराधिकारियों को दी जा रही शस्त्र-विद्या इस वनवासी बालक को देना राज्य के लिए अहितकर मानकर उसे सिखाने से इन्कार कर दिया। तब एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की प्रतिमा बनायी,उसे गुरु मान्य किया अनुकरण करते हुए और मानो उनके आदेश-निर्देश से धनुर्विद्या का अभ्यास कर श्रेष्ठ धनुर्धारी बन गया। बाद में गुरुदक्षिणा में गुरु द्रोण द्वारा अंगूठा माँगे जाने पर बिना हिचक अपना अंगूठा देकर गुरुभक्ति का आदर्श प्रस्थापित किया। उसकी स्मृति में आज भी भील जनजाति के अनेक लोग धनुष-वाण चलाते समय अपने अंगूठे का प्रयोग नहीं करते। | आदर्श गुरुभक्त, श्रेष्ठ धनुर्धर, वचनधनी एकलव्य व्याधों के राजा हिरण्यधनु का पुत्र था। महाभारत काल के धनुर्विद्या के सर्वश्रेष्ठ आचार्य द्रोण से विद्या पाने की अभिलाषा लेकर एकलव्य उनके पास गया। किन्तु द्रोणाचार्य ने राज्य के उत्तराधिकारियों को दी जा रही शस्त्र-विद्या इस वनवासी बालक को देना राज्य के लिए अहितकर मानकर उसे सिखाने से इन्कार कर दिया। तब एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की प्रतिमा बनायी,उसे गुरु मान्य किया अनुकरण करते हुए और मानो उनके आदेश-निर्देश से धनुर्विद्या का अभ्यास कर श्रेष्ठ धनुर्धारी बन गया। बाद में गुरुदक्षिणा में गुरु द्रोण द्वारा अंगूठा माँगे जाने पर बिना हिचक अपना अंगूठा देकर गुरुभक्ति का आदर्श प्रस्थापित किया। उसकी स्मृति में आज भी भील जनजाति के अनेक लोग धनुष-वाण चलाते समय अपने अंगूठे का प्रयोग नहीं करते। |