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| * घर से विद्यालय जाने के लिये वाहन चाहिये । यह बाइसिकल, ओटोरीक्षा, स्कूलबस, कार आदि कोई भी हो सकता है। वाहन की आवश्यकता क्यों होती है ? इसलिये कि अब पैदल चलना असंभव लगता है। वास्तव में घर से विद्यालय पैदल चलकर ही जाना चाहिये । पाँच से सात वर्ष के छात्र एक किलोमीटर. आठ से दस वर्ष के छात्र तीन किलोमीटर, दस से अधिक आयु के छात्र पाँच किलोमीटर और महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र आठ किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय जाते हैं तो उसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। परन्तु आज इसे अत्यंत अस्वाभाविक माना जाता है। इनके कारण विभिन्न प्रकार के बताए जाते हैं। जैसे की | | * घर से विद्यालय जाने के लिये वाहन चाहिये । यह बाइसिकल, ओटोरीक्षा, स्कूलबस, कार आदि कोई भी हो सकता है। वाहन की आवश्यकता क्यों होती है ? इसलिये कि अब पैदल चलना असंभव लगता है। वास्तव में घर से विद्यालय पैदल चलकर ही जाना चाहिये । पाँच से सात वर्ष के छात्र एक किलोमीटर. आठ से दस वर्ष के छात्र तीन किलोमीटर, दस से अधिक आयु के छात्र पाँच किलोमीटर और महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र आठ किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय जाते हैं तो उसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। परन्तु आज इसे अत्यंत अस्वाभाविक माना जाता है। इनके कारण विभिन्न प्रकार के बताए जाते हैं। जैसे की |
| * रास्ते इतने भीड़ भरे होते हैं कि छोटे छात्रों का उन पर चलना सुरक्षित नहीं होता। | | * रास्ते इतने भीड़ भरे होते हैं कि छोटे छात्रों का उन पर चलना सुरक्षित नहीं होता। |
− | * आजकल बच्चों का हरण करने वाले गुंडे भी होते हैं अतः बच्चों की असुरक्षा बढ़ गई है। उन्हें अकेले विद्यालय जाने देना उचीत नहीं होता। | + | * आजकल बच्चोंं का हरण करने वाले गुंडे भी होते हैं अतः बच्चोंं की असुरक्षा बढ़ गई है। उन्हें अकेले विद्यालय जाने देना उचीत नहीं होता। |
| * एक किलोमीटर से अधिक चलना बड़ों को भी आज अच्छा नहीं लगता। एक कारण शारीरिक दुर्बलता है। वे थक जाते हैं । यह कारण सत्य भी है और मानसिक दुर्बलता का द्योतक भी, क्योंकि चलना पहले मन को अच्छा नहीं लगता, बाद में शरीर को । | | * एक किलोमीटर से अधिक चलना बड़ों को भी आज अच्छा नहीं लगता। एक कारण शारीरिक दुर्बलता है। वे थक जाते हैं । यह कारण सत्य भी है और मानसिक दुर्बलता का द्योतक भी, क्योंकि चलना पहले मन को अच्छा नहीं लगता, बाद में शरीर को । |
| लोग कहते हैं कि विद्यालय तक चलने में ही यदि थकान हो जाती है तो फिर पढ़ेंगे कैसे । अत: वाहन तो अति आवश्यक है । साथ ही समय बर्बाद होता है । आज इतना समय है ही नहीं इसलिये वाहन चाहिये । | | लोग कहते हैं कि विद्यालय तक चलने में ही यदि थकान हो जाती है तो फिर पढ़ेंगे कैसे । अत: वाहन तो अति आवश्यक है । साथ ही समय बर्बाद होता है । आज इतना समय है ही नहीं इसलिये वाहन चाहिये । |
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| # विश्वसनीय बनना | | # विश्वसनीय बनना |
| # विश्वास भंग नहीं करना | | # विश्वास भंग नहीं करना |
− | छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते हैं। बड़े होते होते विश्वास करना छोड देते हैं। इसका कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते हैं, बच्चों के विश्वास का भंग करते हैं । इससे झूठ बोलना और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं । | + | छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते हैं। बड़े होते होते विश्वास करना छोड देते हैं। इसका कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते हैं, बच्चोंं के विश्वास का भंग करते हैं । इससे झूठ बोलना और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं । |
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| एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ ऐसे चार लोग होते थे । रात्रि में भोजन आदि से निपटकर पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे। उस समय छोटा बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही सो जाता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था। फिर माता कपड़े बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा । उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से रोने लगा। थोड़ी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि मुझसे झूठ क्यों बोले ? | | एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ ऐसे चार लोग होते थे । रात्रि में भोजन आदि से निपटकर पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे। उस समय छोटा बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही सो जाता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था। फिर माता कपड़े बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा । उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से रोने लगा। थोड़ी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि मुझसे झूठ क्यों बोले ? |
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| ==== १, मान्यता का प्रश्न ==== | | ==== १, मान्यता का प्रश्न ==== |
− | कोई भी विद्यालय चलता है तब उसे मान्यता की आवश्यकता होती है । भारत की दीर्घ परम्परा में विद्यालय को समाज से मान्यता मिलती रही है । समाज से मान्यता मिलने का अर्थ है समाज ने अपने बच्चों को विद्यालयों में पढने हेतु भेजना और विद्यालय के योगक्षेम की चिन्ता करना । समाज के भरोसे शिक्षक विद्यालय आरम्भ करते थे और शिक्षक के सदूभाव, ज्ञान और कर्तृत्व के आधार पर उसे मान्यता भी मिलती थी । | + | कोई भी विद्यालय चलता है तब उसे मान्यता की आवश्यकता होती है । भारत की दीर्घ परम्परा में विद्यालय को समाज से मान्यता मिलती रही है । समाज से मान्यता मिलने का अर्थ है समाज ने अपने बच्चोंं को विद्यालयों में पढने हेतु भेजना और विद्यालय के योगक्षेम की चिन्ता करना । समाज के भरोसे शिक्षक विद्यालय आरम्भ करते थे और शिक्षक के सदूभाव, ज्ञान और कर्तृत्व के आधार पर उसे मान्यता भी मिलती थी । |
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| यह केवल प्राथमिक विद्यालयों की ही बात नहीं है । | | यह केवल प्राथमिक विद्यालयों की ही बात नहीं है । |
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| ==== मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल ==== | | ==== मनोवैज्ञानिक समस्याओं का हल ==== |
− | उपाय की दृष्टि से यदि हम बौद्धिक, तार्किक उपाय करेंगे, अनेक वास्तविक प्रमाण देंगे, आंकडे देंगे तो उसका कोई परिणाम नहीं होता है। कल्पना करें कि कोई एक सन्त जिनके लाखों अनुयायी हैं वे यदि अपने सत्संग में अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चों को मत भेजो ऐसा कहेंगे तो लोग मानेंगे ? कदाचित सन्तों को भी लगता है कि नहीं मानेंगे इसलिये वे कहते नहीं हैं। यदि सरकार अंग्रेजी माध्यम को मान्यता न दे तो लोग उसे मत नहीं देंगे इसलिये सरकार भी नहीं कहती । अर्थात् जिनका प्रजामानस पर प्रभाव होता है वे ही यह बात नहीं कह सकते हैं ? क्या वे अंग्रेजी माध्यम होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? नहीं होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? कदाचित उन्होंने इस प्रश्न पर विचार ही नहीं किया है। | + | उपाय की दृष्टि से यदि हम बौद्धिक, तार्किक उपाय करेंगे, अनेक वास्तविक प्रमाण देंगे, आंकडे देंगे तो उसका कोई परिणाम नहीं होता है। कल्पना करें कि कोई एक सन्त जिनके लाखों अनुयायी हैं वे यदि अपने सत्संग में अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चोंं को मत भेजो ऐसा कहेंगे तो लोग मानेंगे ? कदाचित सन्तों को भी लगता है कि नहीं मानेंगे इसलिये वे कहते नहीं हैं। यदि सरकार अंग्रेजी माध्यम को मान्यता न दे तो लोग उसे मत नहीं देंगे इसलिये सरकार भी नहीं कहती । अर्थात् जिनका प्रजामानस पर प्रभाव होता है वे ही यह बात नहीं कह सकते हैं ? क्या वे अंग्रेजी माध्यम होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? नहीं होना चाहिये ऐसा मानते हैं ? कदाचित उन्होंने इस प्रश्न पर विचार ही नहीं किया है। |
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| यदि नहीं किया है तो उन्हें विचार करने हेतु निवेदन करना चाहिये और अपने अनुयायिओं को अंग्रेजी माध्यम से परावृत करने को कहना चाहिये। | | यदि नहीं किया है तो उन्हें विचार करने हेतु निवेदन करना चाहिये और अपने अनुयायिओं को अंग्रेजी माध्यम से परावृत करने को कहना चाहिये। |
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| अंग्रेजी भाषा का मोह इस अंग्रेजीयत का ही एक हिस्सा है । | | अंग्रेजी भाषा का मोह इस अंग्रेजीयत का ही एक हिस्सा है । |
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− | जैसे जैसे स्वतन्त्र भारत आगे बढ रहा है अंग्रेजी का मोह भी बढ़ता जा रहा है । लोग मानने लगे हैं कि अंग्रेजी का कोई पर्याय नहीं है । अंग्रेजी विश्वभाषा है और विकास इससे ही होता है। मजदूर, किसान, फेरी वाला, घर में कपडा बर्तन करने वाली नौकरानी भी अपने बच्चों को अंग्रेजी पढाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने बच्चों को बडा बनाना चाहते हैं । | + | जैसे जैसे स्वतन्त्र भारत आगे बढ रहा है अंग्रेजी का मोह भी बढ़ता जा रहा है । लोग मानने लगे हैं कि अंग्रेजी का कोई पर्याय नहीं है । अंग्रेजी विश्वभाषा है और विकास इससे ही होता है। मजदूर, किसान, फेरी वाला, घर में कपडा बर्तन करने वाली नौकरानी भी अपने बच्चोंं को अंग्रेजी पढाना चाहते हैं क्योंकि वे अपने बच्चोंं को बडा बनाना चाहते हैं । |
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| अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं होनी चाहिये, मातृभाषा ही श्रेष्ठ माध्यम है ऐसा आग्रह करनेवाले लोग | | अंग्रेजी भाषा शिक्षा का माध्यम नहीं होनी चाहिये, मातृभाषा ही श्रेष्ठ माध्यम है ऐसा आग्रह करनेवाले लोग |
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| अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं । | | अपने मोह को भी लोग तर्कों के आधार पर सही बताने का प्रयास करते हैं । ये सब कुतर्क होते हैं परन्तु वे करते ही रहते हैं । एक से बढकर एक प्रभावी तर्क भी असफल हो जाते हैं और मौन हो जाते हैं । |
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− | शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय, धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और घरनौकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके जैसे श्रेष्ठ लोगोंं का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का | + | शासन स्वयं इस मोह से ग्रस्त है, विश्व विद्यालय, धर्माचार्य, उद्योगक्षेत्र सब इस मोह से ग्रस्त हैं। कभी वे ऐसी भाषा बोलते हैं कि लो, अब तो रिक्षावाले और घरनौकर भी अपने बच्चोंं को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भेजना चाहते हैं । मानों अंग्रेजी पढने का अधिकार उनके जैसे श्रेष्ठ लोगोंं का ही है, रिक्षावालों का या नौकरों का |
| नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है । इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगोंं का नहीं है, तथाकथित बडों का ही है । | | नहीं । “प्रत्युत्त में ये नौकर और उनका पक्ष लेनेवाले राजकीय पक्ष के लोग अथवा समाजसेवी लोग कहते हैं कि बडे पढ़ते हैं तो छोटे क्यों न पढ़ें, उन्हें भी अधिकार है । इस प्रकार वे भी पढ़ते हैं ।' अपराध छोटे लोगोंं का नहीं है, तथाकथित बडों का ही है । |
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