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| परन्तु यह प्रयोग दर्शाता है कि विश्वास करने का और विश्वसनीयता का संकट कितना गहरा है । और जब तक अविश्वास है शिक्षा कैसे हो पायेगी ? | | परन्तु यह प्रयोग दर्शाता है कि विश्वास करने का और विश्वसनीयता का संकट कितना गहरा है । और जब तक अविश्वास है शिक्षा कैसे हो पायेगी ? |
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− | कभी कभी तो लोग कह देते हैं कि आज के जमाने में विश्वास का कोई वजूद नहीं है । विश्वास से काम नहीं हो सकता । जमाना खराब हो गया है । अतः नियम तो बनाने ही पड़ेंगे और जाँच पड़ताल भी करनी पडेगी । निरीक्षण की व्यवस्था नहीं रही तो कोई नकल किये बिना रहेगा नहीं । पुलीस नहीं रहा तो ट्राफिक के नियमों का पालन कौन करेगा ? बिना जाँच रखे अनुशासन कैसे रहेगा ? इसलिये विश्वास का आग्रह छोडो । | + | कभी कभी तो लोग कह देते हैं कि आज के जमाने में विश्वास का कोई वजूद नहीं है । विश्वास से काम नहीं हो सकता । जमाना खराब हो गया है । अतः नियम तो बनाने ही पड़ेंगे और जाँच पड़ताल भी करनी पड़ेगी । निरीक्षण की व्यवस्था नहीं रही तो कोई नकल किये बिना रहेगा नहीं । पुलीस नहीं रहा तो ट्राफिक के नियमों का पालन कौन करेगा ? बिना जाँच रखे अनुशासन कैसे रहेगा ? इसलिये विश्वास का आग्रह छोडो । |
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| परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है, कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब | | परन्तु विश्वास और श्रद्धा के बिना कोई भी अच्छा काम सम्भव नहीं है । अच्छाई के आधार पर ही दुनिया चलती है, कानून के आधार पर नहीं । रास्ते पर चलते हुए कोई दुर्घटना देखी और कोई व्यक्ति बहुत गम्भीर रूप से घायल हो गया है वह भी देखा । उस समय रुकना, उसकी सहायता करना उसे अस्पताल पहुँचाना कानून से बन्धनकारक नहीं है तो भी लोग होते हैं जो अपना काम छोड़कर घायल व्यक्ति की सहायता करते हैं । ठण्ड में ठिठुरने वाले खुले में सोये गरीब |
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| छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते हैं। बड़े होते होते विश्वास करना छोड देते हैं। इसका कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते हैं, बच्चों के विश्वास का भंग करते हैं । इससे झूठ बोलना और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं । | | छोटे बच्चे स्वभाव से विश्वास करने वाले ही होते हैं। बड़े होते होते विश्वास करना छोड देते हैं। इसका कारण उसके आसपास के बडे ही होते हैं । वे झूठ बोलते हैं, बच्चों के विश्वास का भंग करते हैं । इससे झूठ बोलना और विश्वास नहीं करना दोनों बातों के संस्कार होते हैं । |
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− | एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ ऐसे चार लोग होते थे । रात्रि में भोजन आदि से निपटकर पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे। उस समय छोटा बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही सो जाता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था। फिर माता कपडे बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा । उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से रोने लगा। थोड़ी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि मुझसे झूठ क्यों बोले ? | + | एक परिवार में छोटा बेटा, मातापिता और दादीमाँ ऐसे चार लोग होते थे । रात्रि में भोजन आदि से निपटकर पतिपत्नी कुछ चलने के लिये जाते थे। उस समय छोटा बालक भी साथ जाना चाहता था । उसे साथ लेकर घूमने जाना मातापिता को सुविधाजनक नहीं लगता था । वह चल नहीं सकता था, उसे उठाना पड़ेगा । वह रास्ते में ही सो जाता था। इसलिये उन्होंने सोचा कि वह सो जायेगा फिर जायेंगे । दादीमां ने ही यह उपाय सुझाया था । परन्तु बालक ने सुन लिया । इसलिये वह मातापिता नहीं सोते थे तब तक सोने के लिये भी तैयार नहीं था। फिर माता कपड़े बदल लेती, साथ में सुलाती और कहानी बताती । बालक सो जाता तब फिर दोनों घूमने के लिये जाते । कुछ दिन यह क्रम ठीक चला । एक दिन बालक पूरा नहीं सोया था और माता को लगा कि सो गया, तब वे दोनों घूमने गये । इधर कहानी की आवाज बन्द हो गई इसलिये बालक जागा । उसने देखा कि माँ नहीं है । वह रोने लगा । दादीमाँ ने कहा कि घूमने गये हैं, अभी आ जायेंगे । बालक और जोर से रोने लगा। थोड़ी ही देर में मातापिता आ गये । बालक ने यह नहीं पूछा कि मुझे छोडकर क्यों गये । उसने पूछा कि मुझसे झूठ क्यों बोले ? |
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| अविश्वास का प्रारम्भ ऐसे होता है । इन मातापिता ने किया ऐसा व्यवहार तो लोग सदा करते हैं, निर्दोषता से करते हैं । इसे झूठ नहीं कहते, व्यवहार कहते हैं । परन्तु इससे विश्वसनीयता गँवाते हैं और विश्वास नहीं करना सिखाते हैं । | | अविश्वास का प्रारम्भ ऐसे होता है । इन मातापिता ने किया ऐसा व्यवहार तो लोग सदा करते हैं, निर्दोषता से करते हैं । इसे झूठ नहीं कहते, व्यवहार कहते हैं । परन्तु इससे विश्वसनीयता गँवाते हैं और विश्वास नहीं करना सिखाते हैं । |
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| विद्यालय को विश्वास के वातावरण से युक्त बनाने का दायित्व शिक्षकों का है। किसी और को दायित्व देने से या और का दायित्व बताने से काम होगा नहीं। | | विद्यालय को विश्वास के वातावरण से युक्त बनाने का दायित्व शिक्षकों का है। किसी और को दायित्व देने से या और का दायित्व बताने से काम होगा नहीं। |
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− | पहली बात है सब पर विश्वास करना, भले ही कुछ हानि उठानी पडे । शत प्रतिशत पता है कि सामने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है तो भी उसे यह नहीं कहना कि मुझे तुम्हारा विश्वास नहीं है, या मुझे पता है कि तुम झूठ बोल रहे हो। सामने वाला कितना भी माने कि मैं ने इनके सामने झूठ बोलकर इन्हें मूर्ख बनाया और फायदा उठाया, तो भी विश्वास ही करना, विश्वास नहीं है अथवा विश्वास करने योग्य नहीं है ऐसा मालूम है तो भी विश्वास करना । मुझे तुम पर विश्वास नहीं है ऐसा कभी भी नहीं कहना । तुम सत्य बोल रहे हो इसका प्रमाण दो यहभी नहीं कहना । यह तो अविश्वास करने । के बराबर ही है। कुछ समय के बाद विश्वासभंग करने वाले का मन ही उसे झूठ बोलने के लिये मना करने लगेगा। अविश्वास करने वाले के समक्ष तो झूठ बोला जा सकता है, झूठे प्रमाण भी दिये जा सकते हैं, पर विश्वास करने वाले के समक्ष कैसे झूठ बोलें । विश्वास करनेवाले का विश्वास भंग नहीं करना चाहिये यह सहज ही सामने वाले को लगने लगता है। आखिर विश्वास करने वाले की ही जीत होती है। | + | पहली बात है सब पर विश्वास करना, भले ही कुछ हानि उठानी पड़े । शत प्रतिशत पता है कि सामने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा है तो भी उसे यह नहीं कहना कि मुझे तुम्हारा विश्वास नहीं है, या मुझे पता है कि तुम झूठ बोल रहे हो। सामने वाला कितना भी माने कि मैं ने इनके सामने झूठ बोलकर इन्हें मूर्ख बनाया और फायदा उठाया, तो भी विश्वास ही करना, विश्वास नहीं है अथवा विश्वास करने योग्य नहीं है ऐसा मालूम है तो भी विश्वास करना । मुझे तुम पर विश्वास नहीं है ऐसा कभी भी नहीं कहना । तुम सत्य बोल रहे हो इसका प्रमाण दो यहभी नहीं कहना । यह तो अविश्वास करने । के बराबर ही है। कुछ समय के बाद विश्वासभंग करने वाले का मन ही उसे झूठ बोलने के लिये मना करने लगेगा। अविश्वास करने वाले के समक्ष तो झूठ बोला जा सकता है, झूठे प्रमाण भी दिये जा सकते हैं, पर विश्वास करने वाले के समक्ष कैसे झूठ बोलें । विश्वास करनेवाले का विश्वास भंग नहीं करना चाहिये यह सहज ही सामने वाले को लगने लगता है। आखिर विश्वास करने वाले की ही जीत होती है। |
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| इस प्रकार विद्यालय में शिक्षकों की और से विश्वास करने का प्रारम्भ करना चाहिये फिर विद्यार्थियों को आपस में विश्वास करना सिखाना चाहिये । कोई झूठ क्यों बोलेगा ऐसा एक वातावरण बनाना चाहिये । कभी कभी कोई विद्यार्थी अपने मातापिता झूठ बोलते हैं ऐसी शिकायत करता है। तब विद्यार्थी से कोई बात न करते हुए मातापिता से इस विषय में बात करनी चाहिये । परन्तु ऐसा करने में बहुत सावधानी रखनी चाहिये क्योंकि नहीं तो मातापिता अपने बालक को ही क्यों शिक्षक को बताते हो ?' कहकर डाँटेंगे । | | इस प्रकार विद्यालय में शिक्षकों की और से विश्वास करने का प्रारम्भ करना चाहिये फिर विद्यार्थियों को आपस में विश्वास करना सिखाना चाहिये । कोई झूठ क्यों बोलेगा ऐसा एक वातावरण बनाना चाहिये । कभी कभी कोई विद्यार्थी अपने मातापिता झूठ बोलते हैं ऐसी शिकायत करता है। तब विद्यार्थी से कोई बात न करते हुए मातापिता से इस विषय में बात करनी चाहिये । परन्तु ऐसा करने में बहुत सावधानी रखनी चाहिये क्योंकि नहीं तो मातापिता अपने बालक को ही क्यों शिक्षक को बताते हो ?' कहकर डाँटेंगे । |
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| ५. “मेरे साथ बात करनी है तो भारत की भाषा में बोलो' ऐसा कहने वाले से यह भूत सहमता है । शर्त है कि मेरे साथ बोलने की आवश्यकता सामने वाले को होनी चाहिये । सब्जी लेने के लिये गये और सब्जी वाले ने अंग्रेजी समझने को मना कर | | ५. “मेरे साथ बात करनी है तो भारत की भाषा में बोलो' ऐसा कहने वाले से यह भूत सहमता है । शर्त है कि मेरे साथ बोलने की आवश्यकता सामने वाले को होनी चाहिये । सब्जी लेने के लिये गये और सब्जी वाले ने अंग्रेजी समझने को मना कर |
− | दिया तो उसकी भाषा में बोलना ही पड़ेगा । रोग का इलाज करने गये और वैद्य ने अंग्रेजी समझने को मना कर दिया तो वैद्य की भाषा में बोलना ही पडेगा । श्रोताओं ने कहा कि अंग्रेजी बोलोगे तो हम मत नहीं देंगे तो उनकी भाषा में ही बोलना पडेगा । जिस लडकी के प्रेम में पडे उसने अंग्रेजी समझने को मना कर दिया तो उसकी भाषा में बोलना ही पडेगा । इस प्रकार अपनी | + | दिया तो उसकी भाषा में बोलना ही पड़ेगा । रोग का इलाज करने गये और वैद्य ने अंग्रेजी समझने को मना कर दिया तो वैद्य की भाषा में बोलना ही पड़ेगा । श्रोताओं ने कहा कि अंग्रेजी बोलोगे तो हम मत नहीं देंगे तो उनकी भाषा में ही बोलना पड़ेगा । जिस लडकी के प्रेम में पड़े उसने अंग्रेजी समझने को मना कर दिया तो उसकी भाषा में बोलना ही पड़ेगा । इस प्रकार अपनी |
| आवश्यकता निर्माण की और फिर अंग्रेजी सुनने, | | आवश्यकता निर्माण की और फिर अंग्रेजी सुनने, |
| समझने, बोलने को मना कर देने वालों से अंग्रेजी का भूत सहम जाता है । | | समझने, बोलने को मना कर देने वालों से अंग्रेजी का भूत सहम जाता है । |
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| ७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और | | ७. जिनको लगता है कि ज्ञानविज्ञान की, कानून और |
− | कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगोंं को सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को धार्मिक बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो धार्मिक बनाना पडेगा । क्या हमें अभी भी समझना बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का ज्ञान चाहते हैं । अर्थात् राक्षसों की दुनिया में प्रवेश करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है | + | कोपोरेट की, तन्त्रज्ञान और मेनेजमेन्ट की भाषा अंग्रेजी है और इन क्षेत्रों में यश और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी है तो अंग्रेजी अनिवार्य है उन लोगोंं को सावधान होने की आवश्यकता है । और इनसे भी सावधान होने की आवश्यकता है । इन मार्गों से अंग्रेजीयत हमारे ज्ञानक्षेत्र को, समाऊक्षेत्र को, अर्थक्षेत्र को ग्रस्त कर रही है। हम ज्ञानक्षेत्र को धार्मिक बनाना चाहते हैं तो इन क्षेत्रों को भी तो धार्मिक बनाना पड़ेगा । क्या हमें अभी भी समझना बाकी है कि कोपोरेट क्षेत्र ने देश के अर्थतन्त्र को, विश्वविद्यालयों ने देश के ज्ञानक्षेत्र को और मनेनेजमेन्ट क्षेत्र ने मनुष्य को संसाधन बनाकर सांस्कृतिक क्षेत्र को तहसनहस कर दिया है ? इन क्षेत्रों में अंग्रेजी की प्रतिष्ठा है । बडी बडी यन्त्रस्चना ने मनुष्यों को मजदूर बना दिया, पर्यावरण का नाश कर दिया, उस तन्त्रविज्ञान के लिये हम अंग्रेजी का ज्ञान चाहते हैं । अर्थात् राक्षसों की दुनिया में प्रवेश करने के लिये हम उनकी भाषा चाहते हैं । हम बहाना बनाते हैं कि हम उनके ही शख्र से उन्हें समझाकर, उन्हें जीत कर अपना बना लेंगे । उन्हें जीतकर उन्हें अपना लेने का उद्देश्य तो ठीक है |
| क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग | | क्योंकि वे अपने हैं, परन्तु उन्हें जीतने का मार्ग |
| ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर | | ठीक नहीं है यह इतने वर्षों के अनुभव ने सिद्ध कर |