| १९. काम नहीं करना यह एक इच्छा और काम करवाना यह दूसरी इच्छा सार्वत्रिक बन रही है, कदाचित बन रही है । दूसरी यदि पूर्ण नहीं भी होती तो प्रथम तो पूर्ण कर ही सकते हैं ऐसा मनोभाव रहता है । हर कोई काम कैसे टाल सकें इसकी ही फिराक में रहता है । मजदूरी के ही नहीं तो मुकादमी के क्षेत्र में भी काम नहीं करने की इच्छा फैलती ही रहती है । वेतन के साथ मतलब काम के साथ नहीं यह सूत्र है । वेतन अपना है, काम नहीं यह समझ है । ऐसा होना अपरिहार्य है । | | १९. काम नहीं करना यह एक इच्छा और काम करवाना यह दूसरी इच्छा सार्वत्रिक बन रही है, कदाचित बन रही है । दूसरी यदि पूर्ण नहीं भी होती तो प्रथम तो पूर्ण कर ही सकते हैं ऐसा मनोभाव रहता है । हर कोई काम कैसे टाल सकें इसकी ही फिराक में रहता है । मजदूरी के ही नहीं तो मुकादमी के क्षेत्र में भी काम नहीं करने की इच्छा फैलती ही रहती है । वेतन के साथ मतलब काम के साथ नहीं यह सूत्र है । वेतन अपना है, काम नहीं यह समझ है । ऐसा होना अपरिहार्य है । |
− | २०. इसका घातक रूप ऐसा है कि लोग घर में काम करना पसन्द नहीं करते, बच्चों से काम करवाते नहीं, उन्हें काम करना सिखाते नहीं । काम से बच्चे और बडे इतने विमुख हो जाते हैं कि घर में काम करने वाले नौकर क्या कर रहे हैं, काम कर रहे हैं कि नहीं, कैसा कर रहे हैं इसकी और भी ध्यान नहीं देते । घर के कामों के लिये नौकर रखना घर की गृहिणी की विवशता है । नौकर को डाँटना असम्भव बन गया है । पहले स्थिति ऐसी थी कि सर्वसामान्य घरों में नौकर नहीं होते थे । घर का काम घर के लोग मिलकर करेंगे यह स्वाभाविक माना जाता था । कभी घर में काम करने विषय कोई कठिनाई है तो नौकर रखे जाते थे परन्तु वे सहयोगी होते थे, घर के साथ उनका पारिवारिक सम्बन्ध बनता था और घर के लोगोंं के साथ मिलकर आनन्द से काम करते थे । जिम्मेदारी और मुख्य काम घर के लोगोंं का ही रहता था । आज नौकर घर के लोगोंं का पर्याय बन गये हैं। नौकर नहीं होगा तो काम करना पड़ेगा इस भय से उसका मन रखना पडता है, उसकी ख़ुशामद करनी पड़ती है। नौकर भी यह विवशता समझता है । उसका सम्बन्ध वेतन से होता है, काम से या घर से नहीं इसलिये जैसे तैसे काम करता है । इसे ही हीन संस्कृति कहते हैं । | + | २०. इसका घातक रूप ऐसा है कि लोग घर में काम करना पसन्द नहीं करते, बच्चोंं से काम करवाते नहीं, उन्हें काम करना सिखाते नहीं । काम से बच्चे और बडे इतने विमुख हो जाते हैं कि घर में काम करने वाले नौकर क्या कर रहे हैं, काम कर रहे हैं कि नहीं, कैसा कर रहे हैं इसकी और भी ध्यान नहीं देते । घर के कामों के लिये नौकर रखना घर की गृहिणी की विवशता है । नौकर को डाँटना असम्भव बन गया है । पहले स्थिति ऐसी थी कि सर्वसामान्य घरों में नौकर नहीं होते थे । घर का काम घर के लोग मिलकर करेंगे यह स्वाभाविक माना जाता था । कभी घर में काम करने विषय कोई कठिनाई है तो नौकर रखे जाते थे परन्तु वे सहयोगी होते थे, घर के साथ उनका पारिवारिक सम्बन्ध बनता था और घर के लोगोंं के साथ मिलकर आनन्द से काम करते थे । जिम्मेदारी और मुख्य काम घर के लोगोंं का ही रहता था । आज नौकर घर के लोगोंं का पर्याय बन गये हैं। नौकर नहीं होगा तो काम करना पड़ेगा इस भय से उसका मन रखना पडता है, उसकी ख़ुशामद करनी पड़ती है। नौकर भी यह विवशता समझता है । उसका सम्बन्ध वेतन से होता है, काम से या घर से नहीं इसलिये जैसे तैसे काम करता है । इसे ही हीन संस्कृति कहते हैं । |
| २१. कार्यालयों में, विद्यालयों में, कारखानों में काम नहीं करना यह इच्छा है परन्तु वेतन तो चाहिये इसलिये काम करने की विवशता है इसका असर काम पर होता है । दिन प्रतिदिन काम की गुणवत्ता कम होती है । अब काम के लिये वेतन नहीं अपितु वेतन के लिये काम है । | | २१. कार्यालयों में, विद्यालयों में, कारखानों में काम नहीं करना यह इच्छा है परन्तु वेतन तो चाहिये इसलिये काम करने की विवशता है इसका असर काम पर होता है । दिन प्रतिदिन काम की गुणवत्ता कम होती है । अब काम के लिये वेतन नहीं अपितु वेतन के लिये काम है । |