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| # नहीं, ऐसी बात नहीं है। हम उन मानकों को तो पूरा कर भी लेंगे परन्तु हमारे लोगोंं को भारत का नाम लेते ही कुछ नीचा सा लगता है। भले ही आन्तर्राष्ट्रीय हो तो भी इसकी तुलना में अमेरिका का या इंग्लैण्ड का बोर्ड ही उन्हें ऊँचा लगेगा । हम कितना भी अच्छा बनायेंगे तो भी वे भारत के बोर्ड में प्रवेश नहीं लेंगे। | | # नहीं, ऐसी बात नहीं है। हम उन मानकों को तो पूरा कर भी लेंगे परन्तु हमारे लोगोंं को भारत का नाम लेते ही कुछ नीचा सा लगता है। भले ही आन्तर्राष्ट्रीय हो तो भी इसकी तुलना में अमेरिका का या इंग्लैण्ड का बोर्ड ही उन्हें ऊँचा लगेगा । हम कितना भी अच्छा बनायेंगे तो भी वे भारत के बोर्ड में प्रवेश नहीं लेंगे। |
| # भारत में यदि आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड बनेगा तो भी वह नाम मात्र का होगा । आन्तर्राष्ट्रीय बनने के लिये उसकी विदेशों में शाखा होनी चाहिये । वे यदि अरब देशों या आफ्रिका के देशों में रहीं तो प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। वे शाखायें यूरोप और अमेरिका के देशों में होनी चाहिये । भारत के आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की यदि अमेरिका या यूरोप के देशों में शाखायें रहीं तो भी वहाँ कोई प्रवेश नहीं लेगा । उनके बोर्डों में ही अच्छी शिक्षा मिलती है फिर भारत के बोर्ड में कोई क्यों पढेगा ? इसलिये भारत में आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड बनाने की बात व्यावहारिक नहीं लगती। | | # भारत में यदि आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड बनेगा तो भी वह नाम मात्र का होगा । आन्तर्राष्ट्रीय बनने के लिये उसकी विदेशों में शाखा होनी चाहिये । वे यदि अरब देशों या आफ्रिका के देशों में रहीं तो प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। वे शाखायें यूरोप और अमेरिका के देशों में होनी चाहिये । भारत के आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड की यदि अमेरिका या यूरोप के देशों में शाखायें रहीं तो भी वहाँ कोई प्रवेश नहीं लेगा । उनके बोर्डों में ही अच्छी शिक्षा मिलती है फिर भारत के बोर्ड में कोई क्यों पढेगा ? इसलिये भारत में आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड बनाने की बात व्यावहारिक नहीं लगती। |
− | # मेरे मतानुसार हमें धार्मिक स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड अवश्य बनाना चाहिये । और उसकी विदेशों में भी शाखायें होनी चाहिये ताकि वहाँ जो धार्मिक रहते हैं वे अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा दे सकें । यह कार्य कठिन होने पर भी सरकार ने विशेष योजना बनाकर करना चाहिये । आज पश्चिम के लोगोंं को भी धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा हो रही है । वे भी भारत आने के स्थान पर अपने ही देश में रहकर पढ सकते हैं। | + | # मेरे मतानुसार हमें धार्मिक स्वरूप का आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड अवश्य बनाना चाहिये । और उसकी विदेशों में भी शाखायें होनी चाहिये ताकि वहाँ जो धार्मिक रहते हैं वे अपने बच्चोंं को धार्मिक शिक्षा दे सकें । यह कार्य कठिन होने पर भी सरकार ने विशेष योजना बनाकर करना चाहिये । आज पश्चिम के लोगोंं को भी धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा हो रही है । वे भी भारत आने के स्थान पर अपने ही देश में रहकर पढ सकते हैं। |
| # भारत पहले अपनी शिक्षाव्यवस्था ठीक कर ले यह आवश्यक है। भारत में शिक्षकों की नीयत और क्षमता, शिक्षा का दर्जा और परीक्षाओं की पद्धति जिस प्रकार के हैं वे आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड में नहीं चल सकते । इन बातों में पर्याप्त सुधार किये बिना हम आन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड की कल्पना भी नहीं कर सकते । | | # भारत पहले अपनी शिक्षाव्यवस्था ठीक कर ले यह आवश्यक है। भारत में शिक्षकों की नीयत और क्षमता, शिक्षा का दर्जा और परीक्षाओं की पद्धति जिस प्रकार के हैं वे आन्तर्राष्ट्रीय बोर्ड में नहीं चल सकते । इन बातों में पर्याप्त सुधार किये बिना हम आन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड की कल्पना भी नहीं कर सकते । |
| # यह तो एक बात है । दूसरी बात यह है कि सरकार को इसमें नहीं पडना चाहिये । जिस प्रकल्प में सरकार होती है वह परिणामकारी नहीं होता । किसी निजी संस्था को ऐसा बोर्ड बनाना चाहिये । ऐसा साहस ताता, अम्बानी, निरमा जैसे उद्योगगृह ही कर सकते हैं। सरकार ने उन्हें बताना चाहिये। | | # यह तो एक बात है । दूसरी बात यह है कि सरकार को इसमें नहीं पडना चाहिये । जिस प्रकल्प में सरकार होती है वह परिणामकारी नहीं होता । किसी निजी संस्था को ऐसा बोर्ड बनाना चाहिये । ऐसा साहस ताता, अम्बानी, निरमा जैसे उद्योगगृह ही कर सकते हैं। सरकार ने उन्हें बताना चाहिये। |
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| # वास्तव में इस प्रकार के अभियान युनेस्को के दबाव में लिये जाते हैं, भारत सरकार की अपनी पहल नहीं है । जब छः से चौदह वर्ष की आयु की शिक्षा को संविधान में ही निःशुल्क और अनिवार्य बनाया है तब इस अभियान की अलग से क्या आवश्यकता है ? एक यदि पूर्ण नहीं हो सकता तो दूसरा कैसे होगा? | | # वास्तव में इस प्रकार के अभियान युनेस्को के दबाव में लिये जाते हैं, भारत सरकार की अपनी पहल नहीं है । जब छः से चौदह वर्ष की आयु की शिक्षा को संविधान में ही निःशुल्क और अनिवार्य बनाया है तब इस अभियान की अलग से क्या आवश्यकता है ? एक यदि पूर्ण नहीं हो सकता तो दूसरा कैसे होगा? |
| # वास्तव में हमारे देश के लोगोंं को ही शिक्षा की कोई चाह नहीं है । जिसे चाह होती है वह तो बिना अभियान के भी शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करता है । जिन्हें चाह ही नहीं है उनके लिये कितना भी प्रयास करो तो भी वह फलदायी नहीं हो सकता । सरकार का केवल पैसा ही खर्च होता है। | | # वास्तव में हमारे देश के लोगोंं को ही शिक्षा की कोई चाह नहीं है । जिसे चाह होती है वह तो बिना अभियान के भी शिक्षा प्राप्त करने का प्रयास करता है । जिन्हें चाह ही नहीं है उनके लिये कितना भी प्रयास करो तो भी वह फलदायी नहीं हो सकता । सरकार का केवल पैसा ही खर्च होता है। |
− | # जो लोग घूमन्तु जाति के हैं, दिनभर मजदूरी करते हैं, बच्चों को भी काम में लगाते हैं वे उन्हें पढने के लिये कैसे भेज सकते हैं। साथ ही उन्हें लिखने पढने की बहुत चाह भी नहीं होती इसलिये वे सरकार के आव्हान को प्रतिसाद नहीं देते । | + | # जो लोग घूमन्तु जाति के हैं, दिनभर मजदूरी करते हैं, बच्चोंं को भी काम में लगाते हैं वे उन्हें पढने के लिये कैसे भेज सकते हैं। साथ ही उन्हें लिखने पढने की बहुत चाह भी नहीं होती इसलिये वे सरकार के आव्हान को प्रतिसाद नहीं देते । |
| # उनकी दृष्टि से भी जरा देखें । किसान का बेटा पढता है और किसानी नहीं करता, उसी प्रकार सभी कारीगरी के व्यवसायों पर साक्षरता का विपरीत प्रभाव होता है। उस व्यक्ति को तो ठीक ही है परन्तु देश को भी सारे व्यवसायों का छिन्नविच्छिन्न हो जाना कैसे मान्य हो सकता है ? परन्तु सरकारी तन्त्र भी एक ही बात देखता है उससे सम्बन्धित अन्य बातों का विचार नहीं करता । आर्थिक क्षेत्र की कठिनाई तो कोई मोल नहीं ले सकता । इसलिये वे पढना लिखना न चाहे यही अच्छा है। | | # उनकी दृष्टि से भी जरा देखें । किसान का बेटा पढता है और किसानी नहीं करता, उसी प्रकार सभी कारीगरी के व्यवसायों पर साक्षरता का विपरीत प्रभाव होता है। उस व्यक्ति को तो ठीक ही है परन्तु देश को भी सारे व्यवसायों का छिन्नविच्छिन्न हो जाना कैसे मान्य हो सकता है ? परन्तु सरकारी तन्त्र भी एक ही बात देखता है उससे सम्बन्धित अन्य बातों का विचार नहीं करता । आर्थिक क्षेत्र की कठिनाई तो कोई मोल नहीं ले सकता । इसलिये वे पढना लिखना न चाहे यही अच्छा है। |
| # यदि शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है तो सरकार को यह कार्य निजी संस्थाओं को देना चाहिये। उसके लिये जो बजट है वह इन समाजसेवी संगठनों को देना चाहिये । तब यह कार्य निश्चित रूप से सम्भव हो सकता है। इसमें कार्य के विकेन्द्रीकरण का भी मुद्दा है। विकेन्द्रीकरण से कार्य की व्याप्ति कम हो जाती है इसलिये वह अपने नियन्त्रण में रहता है। भारत में ऐसी असंख्य संस्थायें हैं जो बिना सरकारी सहायता के भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं। | | # यदि शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त करना है तो सरकार को यह कार्य निजी संस्थाओं को देना चाहिये। उसके लिये जो बजट है वह इन समाजसेवी संगठनों को देना चाहिये । तब यह कार्य निश्चित रूप से सम्भव हो सकता है। इसमें कार्य के विकेन्द्रीकरण का भी मुद्दा है। विकेन्द्रीकरण से कार्य की व्याप्ति कम हो जाती है इसलिये वह अपने नियन्त्रण में रहता है। भारत में ऐसी असंख्य संस्थायें हैं जो बिना सरकारी सहायता के भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करती हैं। |
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| भारत में हजारों लोगोंं को सदाव्रतों में भोजन मिलता है, यात्रियों को पीने का पानी जलसेवा से निःशुल्क मिलता है। अनेक भिक्षकों और संन्यासियों को निःशुल्क भोजन मिलता है। अतिथि निःशुल्क भोजन प्राप्त करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि होटेल उद्योग बढता नहीं है । | | भारत में हजारों लोगोंं को सदाव्रतों में भोजन मिलता है, यात्रियों को पीने का पानी जलसेवा से निःशुल्क मिलता है। अनेक भिक्षकों और संन्यासियों को निःशुल्क भोजन मिलता है। अतिथि निःशुल्क भोजन प्राप्त करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि होटेल उद्योग बढता नहीं है । |
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− | भारत में शिशुसंगोपन और बिमारों की परिचर्या घर में होती है जो निःशुल्क होती है। भारत में लोग कम बीमार होते हैं और बीमारी में भी कम दवाई लेते हैं। अनेक धर्मादाय ऋग्णसेवा संस्थायें होती हैं। परिणाम स्वरूप हॉस्पिटल उद्योग कम पनपता है और देश का जीडपी कम रह जाता है। संक्षेप में भारत में अनेक बातें ऐसी हैं जिनका व्यापार नहीं होता, जो बाजार का हिस्सा नहीं होती । इस प्रकार पैसे के लेनदेन का व्यवहार नहीं होना अच्छा माना जाता है । वह संस्कृति का अंग है। घर में गृहिणियाँ भोजन बनाती हैं। बच्चों का संगोपन करती हैं, वृद्धों की सेवा करती हैं वे यदि उसका पैसों में हिसाब करने लगें तो देश का जीडीपी तो बढ जायेगा परन्तु संस्कारिता समाप्त हो जायेगी। जीडीपी बढाने के और विकसित कहे जाने के मोह में संस्कारिता को छोड देना तो बड़े घाटे का सौदा है । इसलिये धार्मिक मानस कहता है कि जीडीपी नहीं बढता है तो न सही, संस्कारिता का त्याग करना सम्भव नहीं। | + | भारत में शिशुसंगोपन और बिमारों की परिचर्या घर में होती है जो निःशुल्क होती है। भारत में लोग कम बीमार होते हैं और बीमारी में भी कम दवाई लेते हैं। अनेक धर्मादाय ऋग्णसेवा संस्थायें होती हैं। परिणाम स्वरूप हॉस्पिटल उद्योग कम पनपता है और देश का जीडपी कम रह जाता है। संक्षेप में भारत में अनेक बातें ऐसी हैं जिनका व्यापार नहीं होता, जो बाजार का हिस्सा नहीं होती । इस प्रकार पैसे के लेनदेन का व्यवहार नहीं होना अच्छा माना जाता है । वह संस्कृति का अंग है। घर में गृहिणियाँ भोजन बनाती हैं। बच्चोंं का संगोपन करती हैं, वृद्धों की सेवा करती हैं वे यदि उसका पैसों में हिसाब करने लगें तो देश का जीडीपी तो बढ जायेगा परन्तु संस्कारिता समाप्त हो जायेगी। जीडीपी बढाने के और विकसित कहे जाने के मोह में संस्कारिता को छोड देना तो बड़े घाटे का सौदा है । इसलिये धार्मिक मानस कहता है कि जीडीपी नहीं बढता है तो न सही, संस्कारिता का त्याग करना सम्भव नहीं। |
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| इससे आगे बढकर भारत ने प्रश्न उठाना चाहिये कि संस्कृति और विकास एकदूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं ? जिसमें संस्कारिता कम हो वह विकास का लक्षण कैसे हो सकता है ? इसका अर्थ है कि विकास की परिभाषा और आर्थिक मापदण्ड ये दोनों बातें अनुचित हैं । वास्तव में विकास संस्कार और संस्कृति के समसम्बन्ध में होना चाहिये, विपरीत सम्बन्ध में नहीं । आर्थिक स्थिति समग्र जीवन का एक अंग है और वह भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नहीं । पश्चिमने कम महत्त्वपूर्ण अर्थ को केन्द्रस्थान में रखकर अपने और विश्व के सही विकास के मार्ग को ही अवरुद्ध कर दिया है। | | इससे आगे बढकर भारत ने प्रश्न उठाना चाहिये कि संस्कृति और विकास एकदूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं ? जिसमें संस्कारिता कम हो वह विकास का लक्षण कैसे हो सकता है ? इसका अर्थ है कि विकास की परिभाषा और आर्थिक मापदण्ड ये दोनों बातें अनुचित हैं । वास्तव में विकास संस्कार और संस्कृति के समसम्बन्ध में होना चाहिये, विपरीत सम्बन्ध में नहीं । आर्थिक स्थिति समग्र जीवन का एक अंग है और वह भी सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नहीं । पश्चिमने कम महत्त्वपूर्ण अर्थ को केन्द्रस्थान में रखकर अपने और विश्व के सही विकास के मार्ग को ही अवरुद्ध कर दिया है। |
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| (२) वहाँ सारे सम्बन्ध औपचारिक हैं और वहाँ किसी को किसी की नहीं पड़ी है ये दो बातें अच्छी नहीं लगती। वहां यातायात का अनुशासन बहुत अच्छा है और रास्तों पर ट्रैफिक जेम की समस्या नहीं होती ये दो बातें बहुत अच्छी लगती है। | | (२) वहाँ सारे सम्बन्ध औपचारिक हैं और वहाँ किसी को किसी की नहीं पड़ी है ये दो बातें अच्छी नहीं लगती। वहां यातायात का अनुशासन बहुत अच्छा है और रास्तों पर ट्रैफिक जेम की समस्या नहीं होती ये दो बातें बहुत अच्छी लगती है। |
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− | (३) वहाँ बच्चों के मातापिता साथ नहीं रहते क्योंकि उनका विवाह विच्छेद हआ है। वहाँ बच्चे सोलह वर्ष के होते हैं तब मातापिता का उनके प्रति दायित्व समाप्त हो जाता है । ये दो बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं । वहाँ सब अपना काम स्वयं कर लेते हैं । वहाँ साफसफाई करने के लिये भी यन्त्र होते हैं । ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं। | + | (३) वहाँ बच्चोंं के मातापिता साथ नहीं रहते क्योंकि उनका विवाह विच्छेद हआ है। वहाँ बच्चे सोलह वर्ष के होते हैं तब मातापिता का उनके प्रति दायित्व समाप्त हो जाता है । ये दो बातें मुझे अच्छी नहीं लगतीं । वहाँ सब अपना काम स्वयं कर लेते हैं । वहाँ साफसफाई करने के लिये भी यन्त्र होते हैं । ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं। |
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| (४) अमेरिका में पर्यावरण का प्रदूषण बहत होता है क्योंकि वहाँ प्राकृतिक सम्पदा का शोषण होता है। अमेरिका में लोगोंं के मन अत्यधिक उत्तेजनाग्रस्त रहते हैं । पहली बात के लिये मुझे नाराजगी होती है और दूसरी बात के लिये उसकी दया आती है। वहाँ सामाजिक बदनामी जैसा कुछ नहीं है । दैनन्दिन जीवन में भ्रष्टाचार नहीं है। ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं। | | (४) अमेरिका में पर्यावरण का प्रदूषण बहत होता है क्योंकि वहाँ प्राकृतिक सम्पदा का शोषण होता है। अमेरिका में लोगोंं के मन अत्यधिक उत्तेजनाग्रस्त रहते हैं । पहली बात के लिये मुझे नाराजगी होती है और दूसरी बात के लिये उसकी दया आती है। वहाँ सामाजिक बदनामी जैसा कुछ नहीं है । दैनन्दिन जीवन में भ्रष्टाचार नहीं है। ये दो बातें मुझे अच्छी लगती हैं। |
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| # जब जनसंख्या अधिक होती है तब अन्न, वस्त्र, औषधि आदि सामग्री का अभाव निर्माण होता है । उस अभाव को भरने का कोई उपाय नहीं होता क्योंकि इनका स्रोत प्राकृतिक संसाधन ही होते हैं । | | # जब जनसंख्या अधिक होती है तब अन्न, वस्त्र, औषधि आदि सामग्री का अभाव निर्माण होता है । उस अभाव को भरने का कोई उपाय नहीं होता क्योंकि इनका स्रोत प्राकृतिक संसाधन ही होते हैं । |
| # जनसंख्या कम करने हेतु जनमानस प्रबोधन की बहुत आवश्यकता होती है। भारत जैसे देश में तो कानून भी बनाये गये हैं । गर्भनिरोधक साधनों का प्रचार भी खूब चलता है। | | # जनसंख्या कम करने हेतु जनमानस प्रबोधन की बहुत आवश्यकता होती है। भारत जैसे देश में तो कानून भी बनाये गये हैं । गर्भनिरोधक साधनों का प्रचार भी खूब चलता है। |
− | # ऐसा कहते हैं कि शिक्षा बढती है वेसे बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति कम होती है । अतः शिक्षा व्यवस्था अच्छी करना एक उपाय है। | + | # ऐसा कहते हैं कि शिक्षा बढती है वेसे बच्चोंं को जन्म देने की प्रवृत्ति कम होती है । अतः शिक्षा व्यवस्था अच्छी करना एक उपाय है। |
| # इसी प्रकार से जब मानसिक समस्यायें कम होती है तब भी कामप्रवृत्ति कम होती है जिसका प्रभाव जनसंख्या पर होता है। | | # इसी प्रकार से जब मानसिक समस्यायें कम होती है तब भी कामप्रवृत्ति कम होती है जिसका प्रभाव जनसंख्या पर होता है। |
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