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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
धार्मिक समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 'हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना'। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान धार्मिक (धार्मिक) समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग दंभ से कहते है कि हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगोंं की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बार बार अपमानित होते रहते है। इतिहास से समाजमन तैयार होता है। हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगों द्वारा समाज मन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुआ करती थी। सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है। इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय २९, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
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धार्मिक समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 'हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना'। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान धार्मिक (धार्मिक) समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग दंभ से कहते है कि हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगोंं की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बार बार अपमानित होते रहते है। इतिहास से समाजमन तैयार होता है। हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएँं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगों द्वारा समाज मन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुआ करती थी। सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है। इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय २९, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== शत्रुओं द्वारा लिखित धार्मिक (धार्मिक) इतिहास की पार्श्वभूमि ==
 
== शत्रुओं द्वारा लिखित धार्मिक (धार्मिक) इतिहास की पार्श्वभूमि ==
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* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।
* शिशू और बाल अवस्थाएं संस्कारक्षम आयु की होती है। शिक्षा शास्त्र के अनुसार छोटी आयु में पूरी तरह से रोचक, रंजक कथाओं के माध्यम से इतिहास पढाना चाहिये। शिशू अवस्था तक तो लोरियाँ बालगीतों का उपयोग करना चाहिये। बाल आयु के बच्चों के लिये शौर्य की, विजय की, त्याग की, तपस्या की कथाएं ही बतानी चाहिये। बढती आयु के साथ आगे धीरेधीरे गंभीर कथाएं बतानी चाहिये।
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* शिशू और बाल अवस्थाएं संस्कारक्षम आयु की होती है। शिक्षा शास्त्र के अनुसार छोटी आयु में पूरी तरह से रोचक, रंजक कथाओं के माध्यम से इतिहास पढाना चाहिये। शिशू अवस्था तक तो लोरियाँ बालगीतों का उपयोग करना चाहिये। बाल आयु के बच्चों के लिये शौर्य की, विजय की, त्याग की, तपस्या की कथाएँं ही बतानी चाहिये। बढती आयु के साथ आगे धीरेधीरे गंभीर कथाएँं बतानी चाहिये।
* अविचार का उदात्तीकरण करनेवाली कथाएं कच्ची आयु में नहीं बतानी चाहिये। जैसे पृथ्वीराज चौहानद्वारा गौरी को बारबार क्षमा करने की कथा। या छत्रपति शिवाजी के सरसेनापति प्रतापराव गुर्जर द्वारा अविचार से अपने सात सरदारों के साथ किया अविचारी बलिदान। आदि
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* अविचार का उदात्तीकरण करनेवाली कथाएँं कच्ची आयु में नहीं बतानी चाहिये। जैसे पृथ्वीराज चौहानद्वारा गौरी को बारबार क्षमा करने की कथा। या छत्रपति शिवाजी के सरसेनापति प्रतापराव गुर्जर द्वारा अविचार से अपने सात सरदारों के साथ किया अविचारी बलिदान। आदि
 
* पाश्चात्य समाज जीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
 
* पाश्चात्य समाज जीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
 
* इतिहास की प्रस्तुति स्वाधीनता और स्वतन्त्रता के अर्थों का अन्तर ध्यान में रखकर करनी होगी । वर्तमान सभी व्यवस्थाएं (तंत्र) भारत में अंग्रेजों की देन है । हमें अपना समाज, अपनी संस्कृति, अपने संसाधन, अपनी शक्तियाँ, अपनी श्रेष्ठ परंपराएं, अपना जीवनलक्ष्य आदि विभिन्न बातों को ध्यान में रखकर अपने समाज के और चराचर के हिते में व्यवस्थाएं निर्माण करने की प्रेरणा इतिहास से मिलनी चाहिये ।
 
* इतिहास की प्रस्तुति स्वाधीनता और स्वतन्त्रता के अर्थों का अन्तर ध्यान में रखकर करनी होगी । वर्तमान सभी व्यवस्थाएं (तंत्र) भारत में अंग्रेजों की देन है । हमें अपना समाज, अपनी संस्कृति, अपने संसाधन, अपनी शक्तियाँ, अपनी श्रेष्ठ परंपराएं, अपना जीवनलक्ष्य आदि विभिन्न बातों को ध्यान में रखकर अपने समाज के और चराचर के हिते में व्यवस्थाएं निर्माण करने की प्रेरणा इतिहास से मिलनी चाहिये ।
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* ना मूलम् लिख्यते किंचित यही हमारे इतिहास लेखन का आधार रहना चाहिये।
 
* ना मूलम् लिख्यते किंचित यही हमारे इतिहास लेखन का आधार रहना चाहिये।
 
* इतिहास केवल राजाओं का नहीं होता। इतिहास जीवन का होता है। जीवन के हर पहलू का होता है। जीवन के प्रत्येक पहलू के इतिहास के अध्ययन अध्यापन और लेखन से मनुष्य मोक्षगामी बने ऐसी इतिहास की प्रस्तुति होनी चाहिए।
 
* इतिहास केवल राजाओं का नहीं होता। इतिहास जीवन का होता है। जीवन के हर पहलू का होता है। जीवन के प्रत्येक पहलू के इतिहास के अध्ययन अध्यापन और लेखन से मनुष्य मोक्षगामी बने ऐसी इतिहास की प्रस्तुति होनी चाहिए।
* अरुण-तरूण अवस्था के बच्चों को इतिहास पढाने के लिये लोककथा, लोकनाटय, स्फूर्तिगीत, समूहगीत, ग्रंथ, ललित कथाएं, शौर्यगीत आदि माध्यमों का भी उपयोग किया जा सकता है।
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* अरुण-तरूण अवस्था के बच्चों को इतिहास पढाने के लिये लोककथा, लोकनाटय, स्फूर्तिगीत, समूहगीत, ग्रंथ, ललित कथाएँं, शौर्यगीत आदि माध्यमों का भी उपयोग किया जा सकता है।
 
* गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चों के लिए आवश्यक है। लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए। जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए। किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए।
 
* गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चों के लिए आवश्यक है। लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए। जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए। किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए।
 
* पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
 
* पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।

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