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{{One source|date=January 2019}}
 
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== प्रस्तावना ==
 
== प्रस्तावना ==
धार्मिक समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 'हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना'। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान धार्मिक (धार्मिक) समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग दंभ से कहते है कि हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगों की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बार बार अपमानित होते रहते है। इतिहास से समाजमन तैयार होता है। हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगों द्वारा समाज मन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुआ करती थी। सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है। इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय २९, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
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धार्मिक समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि 'हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना'। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान धार्मिक (धार्मिक) समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग दंभ से कहते है कि हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगोंं की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बार बार अपमानित होते रहते है। इतिहास से समाजमन तैयार होता है। हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगों द्वारा समाज मन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुआ करती थी। सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है। इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय २९, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== शत्रुओं द्वारा लिखित धार्मिक (धार्मिक) इतिहास की पार्श्वभूमि ==
 
== शत्रुओं द्वारा लिखित धार्मिक (धार्मिक) इतिहास की पार्श्वभूमि ==
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== धार्मिक इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य ==
 
== धार्मिक इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य ==
धार्मिक विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये 'सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का धार्मिक (धार्मिक) आदर्श है।
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धार्मिक विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये 'सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगोंं के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का धार्मिक (धार्मिक) आदर्श है।
    
शिक्षा के उद्देश्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य भिन्न नहीं हो सकता।
 
शिक्षा के उद्देश्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य भिन्न नहीं हो सकता।
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इसलिये इतिहास की धार्मिक (धार्मिक) व्याख्या कही गई{{Citation needed}} <blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है।</blockquote>इस का अर्थ है कि इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी। जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानि होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी। यह है अत्यंत संक्षेप में धार्मिक (धार्मिक) इतिहास दृष्टि ।
 
इसलिये इतिहास की धार्मिक (धार्मिक) व्याख्या कही गई{{Citation needed}} <blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है।</blockquote>इस का अर्थ है कि इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी। जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानि होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी। यह है अत्यंत संक्षेप में धार्मिक (धार्मिक) इतिहास दृष्टि ।
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धार्मिक विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुण संपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और  उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगों के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और  व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना।
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धार्मिक विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुण संपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और  उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगोंं के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और  व्यवहार से लोगोंं के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना।
    
इस दृष्टि पर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे।  
 
इस दृष्टि पर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे।  
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* भारत की सीमाओं का आकुंचन क्यों हुआ और होता ही जा रहा है ? देश के जिस हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्य हुए, असंगठित हुए, दुर्बल हुए वह देश का हिस्सा हमरे भूगोल मे नहीं रहा। इसलिये आगे देश के किसी भी हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्य नहीं रहें, असंगठित नहीं रहें और दुर्बल नहीं रहे यह सबक सीखाने वाला इतिहास हमें लिखना होगा।
 
* भारत की सीमाओं का आकुंचन क्यों हुआ और होता ही जा रहा है ? देश के जिस हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्य हुए, असंगठित हुए, दुर्बल हुए वह देश का हिस्सा हमरे भूगोल मे नहीं रहा। इसलिये आगे देश के किसी भी हिस्से में हिन्दू अल्पसंख्य नहीं रहें, असंगठित नहीं रहें और दुर्बल नहीं रहे यह सबक सीखाने वाला इतिहास हमें लिखना होगा।
 
* हिन्दुस्थान १९४७ से नहीं वेदकाल से भी पहले से एक राष्ट्र रहा है।
 
* हिन्दुस्थान १९४७ से नहीं वेदकाल से भी पहले से एक राष्ट्र रहा है।
* सामान्य आदमी की गलतियों का नुकसान उस के घरवालों को या थोडे से लोगों को होता है। किन्तु देश का नेता जब गलती करता है तो देश और समाज का तात्कालिक ही नहीं कई पीढ़ियों का नुकसान होता है। जैसे पृथ्वीराज चौहान, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री आदि। इसलिये नेता का चुनाव बहुत सावधानी से करना चाहिये। ऐसा चुनाव करने के उपरांत भी सदैव चौकन्ने रहना चाहिये।
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* सामान्य आदमी की गलतियों का नुकसान उस के घरवालों को या थोडे से लोगोंं को होता है। किन्तु देश का नेता जब गलती करता है तो देश और समाज का तात्कालिक ही नहीं कई पीढ़ियों का नुकसान होता है। जैसे पृथ्वीराज चौहान, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री आदि। इसलिये नेता का चुनाव बहुत सावधानी से करना चाहिये। ऐसा चुनाव करने के उपरांत भी सदैव चौकन्ने रहना चाहिये।
 
* स्वाधीनता की लडाई में अहिंसक आंदोलन का लक्षणीय योगदान है। किन्तु साथ ही में क्रांतिकारकों के प्रयास, आझाद हिंद सेना का पराक्रम, धार्मिक (धार्मिक) सेना का अंग्रेजों को किया हुआ विरोध आदि बातें भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। धार्मिक (धार्मिक) सेना अंग्रेजों के प्रति एकनिष्ठ नहीं रही थी इसलिये अंग्रेजों को भारत छोडना पडा, यह वास्तविकता है। इसे हम समझें। अहिंसा के आंदोलन तो स्वाधीन भारत में भी अक्सर निष्प्रभ होते हम आज भी देख रहे है।
 
* स्वाधीनता की लडाई में अहिंसक आंदोलन का लक्षणीय योगदान है। किन्तु साथ ही में क्रांतिकारकों के प्रयास, आझाद हिंद सेना का पराक्रम, धार्मिक (धार्मिक) सेना का अंग्रेजों को किया हुआ विरोध आदि बातें भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। धार्मिक (धार्मिक) सेना अंग्रेजों के प्रति एकनिष्ठ नहीं रही थी इसलिये अंग्रेजों को भारत छोडना पडा, यह वास्तविकता है। इसे हम समझें। अहिंसा के आंदोलन तो स्वाधीन भारत में भी अक्सर निष्प्रभ होते हम आज भी देख रहे है।
 
* इतिहास के कालखंड की दीर्घता के कारण हमारे इतिहास लेखन में वही घटनाएँ प्रस्तुत की जाएँगी जिन के कारण समाज जीवन में महत्त्वपूर्ण मोड़ आया होगा। इसीलिये अंग्रेज पूर्व भारत में प्राथमिक स्तर पर इतिहास के रूप में रामायण और महाभारत ही मुख्यत: सिखाए जाते थे।
 
* इतिहास के कालखंड की दीर्घता के कारण हमारे इतिहास लेखन में वही घटनाएँ प्रस्तुत की जाएँगी जिन के कारण समाज जीवन में महत्त्वपूर्ण मोड़ आया होगा। इसीलिये अंग्रेज पूर्व भारत में प्राथमिक स्तर पर इतिहास के रूप में रामायण और महाभारत ही मुख्यत: सिखाए जाते थे।
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== समारोप ==
 
== समारोप ==
इतिहास का ऐसा पुनर्लेखन करने के लिये हिम्मत चाहिये । लोकक्षोभ निर्माण करने के प्रयास देशद्रोही, विदेशी शक्तियों और देश के हित से अपने या अपनी पार्टी के हित को बडा माननेवाले राजनयिक आदि लोगों द्वारा किये जाएंगे। उन के विरोध पर विजय पाकर और विरोध की चिंता किये बिना निर्भयता से तथ्यों के आधार पर हमें भारत के इतिहास का अपनी भूमिका से पुनर्लेखन करना होगा।
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इतिहास का ऐसा पुनर्लेखन करने के लिये हिम्मत चाहिये । लोकक्षोभ निर्माण करने के प्रयास देशद्रोही, विदेशी शक्तियों और देश के हित से अपने या अपनी पार्टी के हित को बडा माननेवाले राजनयिक आदि लोगोंं द्वारा किये जाएंगे। उन के विरोध पर विजय पाकर और विरोध की चिंता किये बिना निर्भयता से तथ्यों के आधार पर हमें भारत के इतिहास का अपनी भूमिका से पुनर्लेखन करना होगा।
    
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है।  
 
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है।  

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