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## योग्य वैद्यों तथा ज्योतिषाचार्यों की सलाह लेना। गर्भधारणा का समय तय करना। असावधानी के कारण अपघात से गलत समय पर गर्भधारणा न हो इसे ध्यान में रखना।
 
## योग्य वैद्यों तथा ज्योतिषाचार्यों की सलाह लेना। गर्भधारणा का समय तय करना। असावधानी के कारण अपघात से गलत समय पर गर्भधारणा न हो इसे ध्यान में रखना।
 
## गर्भधारणा से पहले कुछ मास तक पति और पत्नी दोनों ने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना। ऐसा करने से माता का और पिता का दोनों का ओज बढ़ता है। पत्नी जब नौकरी नहीं करती उसे अन्य पुरुषों का सहवास नहीं मिलता। ऐसी स्त्रियों को ब्रह्मचर्य पालन कम कठिन होता है। समय का सार्थक उपयोग करने के लिए घर में अकेली माँ को निश्चय की आवश्यकता होती है। समय का सार्थक उपयोग करने के लिए संयुक्त परिवार में कई अच्छे अच्छे तरीके होते हैं। जैसे भजन मण्डली, कथाकथन, घर के काम, सिलाई, बुनाई आदि। अतः संयुक्त परिवारों में तो ब्रह्मचर्य पालन और भी कम कठिन होता है।
 
## गर्भधारणा से पहले कुछ मास तक पति और पत्नी दोनों ने कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना। ऐसा करने से माता का और पिता का दोनों का ओज बढ़ता है। पत्नी जब नौकरी नहीं करती उसे अन्य पुरुषों का सहवास नहीं मिलता। ऐसी स्त्रियों को ब्रह्मचर्य पालन कम कठिन होता है। समय का सार्थक उपयोग करने के लिए घर में अकेली माँ को निश्चय की आवश्यकता होती है। समय का सार्थक उपयोग करने के लिए संयुक्त परिवार में कई अच्छे अच्छे तरीके होते हैं। जैसे भजन मण्डली, कथाकथन, घर के काम, सिलाई, बुनाई आदि। अतः संयुक्त परिवारों में तो ब्रह्मचर्य पालन और भी कम कठिन होता है।
## जिन गुण लक्षणों वाली संतान की इच्छा है उस के गुण लक्षणों के अनुरूप और अनुकूल अपना व्यवहार रखना। उन गुण और लक्षणों का निरंतर चिंतन करना। उन गुण लक्षणों वाले महापुरुषों की कथाएँ पढ़ना। गीत सुनना। वैसा वातावरण बनाए रखना। पराई स्त्री माता के समान होती है इस भाव को मन पर अंकित करनेवाली कहानियाँ पढ़ना। स्त्री का आदर, सम्मान करनेवाली कहानियां पढ़ना, सुनना। अश्लील, हिंसक साहित्य, सिनेमा, दूरदर्शन की मलिकाओं से दूर रहना। माता पिता दोनों के लिए यह आवश्यक है।
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## जिन गुण लक्षणों वाली संतान की इच्छा है उस के गुण लक्षणों के अनुरूप और अनुकूल अपना व्यवहार रखना। उन गुण और लक्षणों का निरंतर चिंतन करना। उन गुण लक्षणों वाले महापुरुषों की कथाएँँ पढ़ना। गीत सुनना। वैसा वातावरण बनाए रखना। पराई स्त्री माता के समान होती है इस भाव को मन पर अंकित करनेवाली कहानियाँ पढ़ना। स्त्री का आदर, सम्मान करनेवाली कहानियां पढ़ना, सुनना। अश्लील, हिंसक साहित्य, सिनेमा, दूरदर्शन की मलिकाओं से दूर रहना। माता पिता दोनों के लिए यह आवश्यक है।
 
# गर्भधारणा के बाद संतान के जन्म तक: इस काल में पिता की भूमिका दुय्यम हो जाती है। माता के सहायक की हो जाती है। मुख्य भूमिका माता की ही होती है।
 
# गर्भधारणा के बाद संतान के जन्म तक: इस काल में पिता की भूमिका दुय्यम हो जाती है। माता के सहायक की हो जाती है। मुख्य भूमिका माता की ही होती है।
 
## उपर्युक्त बिंदु २.५ में बताई बातों को ‘स्व’भाव बनाना।  
 
## उपर्युक्त बिंदु २.५ में बताई बातों को ‘स्व’भाव बनाना।  

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