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* भारत में अधिसत्ता धर्म की ही है, शिक्षक उसका प्रतिहारी है, शासक, कारीगर, व्यापारी सब उसकेअनुचर हैं, उसकी आज्ञा का पालन करनेवाले और उसके साम्राज्य की रक्षा करने वाले हैं। श
* भारत में अधिसत्ता धर्म की ही है, शिक्षक उसका प्रतिहारी है, शासक, कारीगर, व्यापारी सब उसकेअनुचर हैं, उसकी आज्ञा का पालन करनेवाले और उसके साम्राज्य की रक्षा करने वाले हैं। श
* शिक्षा मुक्ति देनेवाले ज्ञान का व्यवस्थातन्त्र है वह स्वयं मुक्त होगी तभी ज्ञान की वाहक बन सकेंगी। इसलिये भारत में शासक के द्वारा, व्यापारियों के द्वारा शिक्षा को मुक्त ही रखा गया है और उसे पुष्ट होने हेतु सहयोग और सहायता दी जाती रही है।
* शिक्षा मुक्ति देनेवाले ज्ञान का व्यवस्थातन्त्र है वह स्वयं मुक्त होगी तभी ज्ञान की वाहक बन सकेंगी। इसलिये भारत में शासक के द्वारा, व्यापारियों के द्वारा शिक्षा को मुक्त ही रखा गया है और उसे पुष्ट होने हेतु सहयोग और सहायता दी जाती रही है।
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* धार्मिक शिक्षा सदा धर्मसापेक्ष परन्तु अर्थनिरपेक्ष रही है। शिक्षा ग्रहण करने को और देने को पैसे के साथ कभी जोडा नहीं गया है।
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* धार्मिक शिक्षा सदा धर्मसापेक्ष परन्तु अर्थनिरपेक्ष रही है। शिक्षा ग्रहण करने को और देने को पैसे के साथ कभी जोड़ा नहीं गया है।
* भारत में शिक्षा राजा और प्रजा का मार्गदर्शन और नियमन करती रही है। उसने कभी शासन नहीं किया, व्यापार नहीं किया, उत्पादन नहीं किया, उसने धर्मसाधना और धर्मरक्षा ही की है।
* भारत में शिक्षा राजा और प्रजा का मार्गदर्शन और नियमन करती रही है। उसने कभी शासन नहीं किया, व्यापार नहीं किया, उत्पादन नहीं किया, उसने धर्मसाधना और धर्मरक्षा ही की है।
धार्मिक शिक्षा की यह आत्मा है। धार्मिक शिक्षा का यह स्वभाव रहा है। इस शिक्षा ने समाज को श्रेष्ठ बनाया है। इस शिक्षा ने प्रजा को समृद्ध और सुसंस्कृत बनाया है। इस शिक्षा ने राष्ट्र को चिरंजीव बनाया है।
धार्मिक शिक्षा की यह आत्मा है। धार्मिक शिक्षा का यह स्वभाव रहा है। इस शिक्षा ने समाज को श्रेष्ठ बनाया है। इस शिक्षा ने प्रजा को समृद्ध और सुसंस्कृत बनाया है। इस शिक्षा ने राष्ट्र को चिरंजीव बनाया है।