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अनुयायिओं की ओर से सम्मान क्यों मिल रहा है, कौन से तत्त्व उन्हें हमारे पास आने के लिये प्रेरित कर रहे हैं, उनकी दुर्बलतायें कौन सी हैं, आकांक्षायें कैसी हैं और अपेक्षायें क्या होती हैं इन्हें समझना और उसके बाद उनका मार्गदर्शन करना।  
 
अनुयायिओं की ओर से सम्मान क्यों मिल रहा है, कौन से तत्त्व उन्हें हमारे पास आने के लिये प्रेरित कर रहे हैं, उनकी दुर्बलतायें कौन सी हैं, आकांक्षायें कैसी हैं और अपेक्षायें क्या होती हैं इन्हें समझना और उसके बाद उनका मार्गदर्शन करना।  
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धर्म को आज विवाद का विषय बना दिया गया है। इस विवाद से धर्म को मुक्त करने हेतु तप की आवश्यकता है। इस विवाद को समझना, उसके पीछे जो निहित स्वार्थ है उन्हें समझना, उन स्वार्थों को कैसे परास्त करना इसका विचार करना, उसकी योजना करना और योजनाओं का क्रियान्वयन करना यह तप है। विवाद में न पडना पडे इसके लिये धर्म के नाम पर संस्कृति, अध्यात्म, योग आदि के नाम स्वीकार कर धर्म संज्ञा का ही त्याग करना युद्धक्षेत्र से पलायन करना होता है। बौद्धिक तप का यह दूसरा आयाम है।  
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धर्म को आज विवाद का विषय बना दिया गया है। इस विवाद से धर्म को मुक्त करने हेतु तप की आवश्यकता है। इस विवाद को समझना, उसके पीछे जो निहित स्वार्थ है उन्हें समझना, उन स्वार्थों को कैसे परास्त करना इसका विचार करना, उसकी योजना करना और योजनाओं का क्रियान्वयन करना यह तप है। विवाद में न पडना पड़े इसके लिये धर्म के नाम पर संस्कृति, अध्यात्म, योग आदि के नाम स्वीकार कर धर्म संज्ञा का ही त्याग करना युद्धक्षेत्र से पलायन करना होता है। बौद्धिक तप का यह दूसरा आयाम है।  
    
सम्प्रदाय को धर्म के रूप में प्रस्तुत करना धर्म को ही संकुचित बना देना है। सम्प्रदाय को व्यापक धर्म का एक अंग मानकर उसकी प्रतिष्ठा के लिये सम्प्रदाय की शक्ति का उपयोग करना तप ही है क्योंकि तब अनुयायिओं की आर्थिक, राजकीय, सामाजिक, व्यक्तिगत गतिविधियों पर नियन्त्रण करना पडता है।
 
सम्प्रदाय को धर्म के रूप में प्रस्तुत करना धर्म को ही संकुचित बना देना है। सम्प्रदाय को व्यापक धर्म का एक अंग मानकर उसकी प्रतिष्ठा के लिये सम्प्रदाय की शक्ति का उपयोग करना तप ही है क्योंकि तब अनुयायिओं की आर्थिक, राजकीय, सामाजिक, व्यक्तिगत गतिविधियों पर नियन्त्रण करना पडता है।
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धर्म की और मुक्ति की तो बात ही बेमानी है । धर्म का नाम लेते ही साम्प्रदायिकता का लेबल चिपक जाता है और हजार प्रकार की परेशानियाँ निर्माण हो जाती है। आज के धर्माचार्य, साधु संन्यासी सब भोंदूगीरी ही तो कर रहे हैं। यह जमाना विज्ञान का है। विज्ञान के जमाने में वेद, उपनिषद पढाना बुद्धिमानी नहीं है । दुनिया आगे बढ़ रही है और हम पीछे जाने की बात कर रहे हैं।
 
धर्म की और मुक्ति की तो बात ही बेमानी है । धर्म का नाम लेते ही साम्प्रदायिकता का लेबल चिपक जाता है और हजार प्रकार की परेशानियाँ निर्माण हो जाती है। आज के धर्माचार्य, साधु संन्यासी सब भोंदूगीरी ही तो कर रहे हैं। यह जमाना विज्ञान का है। विज्ञान के जमाने में वेद, उपनिषद पढाना बुद्धिमानी नहीं है । दुनिया आगे बढ़ रही है और हम पीछे जाने की बात कर रहे हैं।
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आज अंग्रेजी सीखनी चाहिये, कम्प्यूटर सीखना चाहिये, मेनेजमेण्ट सिखना चाहिये, टेक्नोलोजी सीखनी चाहिये । भारत को विश्व में स्थान मिलना चाहिये और उसे प्राप्त करने के लिये इन सारे विषयों की आवश्यकता है। वेद, उपनिषद सीखने के लिये संस्कृत सीखनी पडेगी। संस्कृत अब 'आउट ऑफ डेट' है। अंग्रेजी ने विश्वभाषा का स्थान ले लिया है।
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आज अंग्रेजी सीखनी चाहिये, कम्प्यूटर सीखना चाहिये, मेनेजमेण्ट सिखना चाहिये, टेक्नोलोजी सीखनी चाहिये । भारत को विश्व में स्थान मिलना चाहिये और उसे प्राप्त करने के लिये इन सारे विषयों की आवश्यकता है। वेद, उपनिषद सीखने के लिये संस्कृत सीखनी पड़ेगी। संस्कृत अब 'आउट ऑफ डेट' है। अंग्रेजी ने विश्वभाषा का स्थान ले लिया है।
    
भारत ने अमेरिका में जाकर अपना स्थान बनाना चाहिये और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी चाहिये । भारत के लोग बुद्धिमान हैं, कर्तृत्ववान हैं, विश्वमानकों पर खरे उतरने वाले हैं। उन्हें इस दिशा में पुरुषार्थ करना चाहिये । इसके लिये अंग्रेजी, विज्ञान तथा कम्प्यूटर पर प्रभुत्व प्राप्त करना चाहिये । हमें आधुनिक बनना चाहिये ।
 
भारत ने अमेरिका में जाकर अपना स्थान बनाना चाहिये और प्रतिष्ठा प्राप्त करनी चाहिये । भारत के लोग बुद्धिमान हैं, कर्तृत्ववान हैं, विश्वमानकों पर खरे उतरने वाले हैं। उन्हें इस दिशा में पुरुषार्थ करना चाहिये । इसके लिये अंग्रेजी, विज्ञान तथा कम्प्यूटर पर प्रभुत्व प्राप्त करना चाहिये । हमें आधुनिक बनना चाहिये ।

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